रास्ते में ध्यान आया कि कुछ पारिवारिक मिलन भी हो जाये, क्योंकि मेरे परिवार के बहुतायत सदस्य रायपुर में ही रहते हैं रायपुर मेरा लगातार आना जाना लगा रहता है पर व्यावसायिक व्यस्तता की वजह से परिवार के लोगों से मिल नहीं पाता सो कल मैने रायपुर में ही निवासरत मेरे चाचा श्री के घर चला गया ।
वहां मेरी एक छोटी चचेरी बहन से मुलाकात हुई, सामाजिक कार्यक्रमों के दुआ-सलाम को यदि छोड दिया जाये तो मैनें लगभग 14 सालों बाद उसके पास एक घंटा बिताया । चर्चा के दौरान मेरी उस बहन की शादी का एक वाकया मुझे याद आ गया और मैने उसे वहां जिक्र करते हुए पूछा । वाकया कुछ यूं था कि मेरी बहन की शादी के वक्त बारात में बहन का जेठ (दूल्हे का बडा भाई) संपूर्ण शादी की व्यवस्था देख रहे थे, मंडप में चारो तरफ घूम घूम कर सभी बारातियों को चाय पानी नाश्ता मिला कि नहीं बार बार पूछ रहे थे और समय समय पर हम घरातियों को धौंस भी लगा रहे थे कि यहां पानी दो, वहां नाश्ता दो । छत्तीसगढ की तपती गर्मी में टाई सहित थी पीस सूट से लिपटे उस महाशय के रौब को मैं पल पल निहारता था कुछ खीझता था पर छोटी बहन की शादी को देखते हुए उसके आदेश पर जी जी कर रहा था ।
उस महाशय के व्यक्तित्व में टाई सहित थी पीस के अलावा कुछ भी विशेष नहीं था, हां उसने आयातित श्रृंगार के साथ देशी तडका के रूप में पैरो पर रबर के (‘करोना’ के) स्लीपर पहन रखे थे जो बडा अटपटा लगता था पर हम अपने हमउम्र भाईयों को देख कर इस पर मुस्काने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहे थे । मजाक में हममें से कोई दूसरे भाई को कहता कि ‘जा रे ओ टाई चप्पल वाला तुमको पानी लेके बुला रहा है’ और हम लोगों की हंसी समवेत फूट पडती ।
उस समय हमने उसके संबंध में जानकरी इकत्र की थी उसके अनुसार वह राज्य शासन के अंतरगत मंडी निरीक्षक के पद पर कार्यरत था और अच्छा खासा मालदार आसामी था । आज वह बहन मिली तो हमने उस ‘टाई चप्पल’ वाले के संबध में पूछा वह बतलाने लगी कि वे अब प्रमोशन के बाद जिला स्तरीय अधिकारी बन गये हैं और गाडी बंगले सहित माता लक्ष्मी नें उनके घर में स्था ई निवास बना लिया है पर वे आज तक सस्ता चप्पल(स्लीपर) पहनना नहीं छोडे हैं ।
मैंने उत्सुकता वश पूछा कि ऐसा क्यों क्योंकि न तो वे अशिक्षित हैं ना ही पैसे की कमी है कम से कम चमडे का थोडा अच्छा सा चप्पल तो पहन ही सकते हैं । (ज्ञानदत्त जी के जूतों वाला पोस्ट याद हो आया) बहन नें बतलाया कि वे ऐसा जान बूझ कर करते हैं अपने भाईयों एवं बच्चों को कहते हैं कि बेटा मैं जब जब अपने पैरों की ओर देखता हूं तो मुझे अपने बीते गरीबी वाले दिन याद आते हैं और तब मुझे आत्मिक आनंद आता है, दुनिया हंसती है इसका मुझे अब परवाह नहीं है, यही मेरी औकात है ।
जो दुनियाँ की परवाह न करे वह पंहुचा हुआ संत! लेकिन इन सज्जन के घर लक्ष्मी जी का स्थाई वास है- सो मामला कुछ सरल सा नहीं लगता।
जवाब देंहटाएंजो दुनियाँ की परवाह न करे वह पंहुचा हुआ संत! लेकिन इन सज्जन के घर लक्ष्मी जी का स्थाई वास है- सो मामला कुछ सरल सा नहीं लगता।
जवाब देंहटाएंकभी कभी आदमी को पहचानने में हम भूल कर बैठते है..
जवाब देंहटाएंकभी कभी आदमी की कोई छुपाने वाली मजबूरी होती है। जिसे छिपाने के लिए वह ऐसे ही आदर्श गढ़ लेता है।
जवाब देंहटाएंह्म्म, हर आदमी कई विरोधाभास को अपने साथ लेकर जीता है, यह इसी बात का एक उदाहरण है।
जवाब देंहटाएंपर एक अच्छी बात कि ये सज्जन हकीकत भूलना नही चाहते भले ही सांकेतिक रूप से।
किसी के विषय में अवधारणायें तो बनती बिगड़ती रहती हैं. जितनी बार सुनो, मिलो-उतनी बार कुछ और. चलिये, आप के मन उनकी छबि बदली अच्छॆ की तरफ, बहुत अच्छा हुआ.
जवाब देंहटाएंलीक लीक गाडी चले लीकही चले कपुत "
जवाब देंहटाएंलीक छोडकर तीन चले सुरमा शायर सपुत
भाई दुनिया का निरालापन है यह और निराले लोगों की मुलाकात को यादगार भावनात्मक पलों के रंग में कलमबद्ध् कर देना ये आपकी लेखनी की ताकत है
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