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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

छुईखदान के घोषित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

पंडित दामोदर प्रसाद त्रिपाठी
छत्तीसगढ़ के 14 रियासतों में से एक छुईखदान रियासत का राजनैतिक, सांस्कृतिक, साहित्यक एवं धार्मिक गतिविधियों में सदैव अग्रणी स्थान रहा है। भारतवर्ष में जिन कारणों से राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ उनसे छुईखदान भी प्रभावित हुए बिना न रह सका। यहां भी मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए असंतोष के स्वर मुखरित हुए।
छुईखदान के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं पत्रकार स्व. डॉ. रतन जैन के अनुसार तत्कालीन छुईखदान रियासत में आजादी के आंदोलन का सूत्रपात सन् 1920 के आसपास हुआ। उस समय राजनांदगांव, छुईखदान, छुरिया, बादराटोला, कौड़ीकसा, घोघरे और कवर्धा भी स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख केन्द्र थे। अप्रैल 1920 में राजनांदगांव में मजदूरों की 36 दिनों की ऐतिहासिक हड़ताल और 21 दिसम्बर 1920 को महात्मा गांधी के प्रथम छत्तीसगढ़ आगमन ने यहां के लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उस समय अनेक अनाम सेनानियों ने आजादी की मशाल अपने हाथों में थामीं। संभवत: यही कारण है कि जब 26 दिसम्बर 1920 को नागपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तो छुईखदान का एक शिष्टमंडल इसमें सक्रिय रूप से सम्मलित हुआ।
श्री दामोदर प्रसाद त्रिपाठी, पूनमचंद साखंला, नत्थूलाल बरई, अमृतलाल महोबिया, बाबूलाल चौबे, दुखूराम उर्फ भोलाराम महोबिया, समारूराम महोबिया, रामगुलाम पोद्दार, गोवर्धनराम वर्मा, बुधराम पोद्दार, दामोदरलाल ददरिया, पदमाकर त्रिपाठी, लक्ष्मीचंद, झाडूराम महोबिया, झुमुकलाल महोबिया,झाडूराम बरई, अमरलाल महोबिया, शरदचंद सिंघल, उदयराम बरई, सुकान लोधी, गोपालदास, मेलाराम, बीरबल लोधी, गयाराम तेली, हरी तेली, शत्रुघन प्रसाद, मकरू केंवट, सुमेरू गोड़, हृदय गोंड़, पदम केंवट, थनवार केंवट, लतेल केंवट, सांवत गोड़, झल्लू गहिरा, सुकालू लोधी, धनश्याम केंवट, रामेश्वर मरार, मुकुंद गोंड़, बंशी तेली, सजना गहिरा, बतली गोड़, सगरी कंवर, दौलत चमार, सुखराम मरार, कन्हैयालाल बख्शी, बल्ले लोधी, हरदेव लोधी, राजाराम गहिरा, धनश्याम कंवर, गौकरण गोंड़, सुखराम, कन्हैयालाल, पूरनलाल, भुखऊ, माजून गोड़, भागचंद, गठरूलाल, अमरलाल महोबिया एवं श्री गुलाबदास वैष्णव।
1920 में ही गांधीजी के आव्हान पर देशव्यापी असहयोग आंदोलन शुरू हुआ इसमें ठाकुर प्यारेलाल सिंह के भाग लेने के कारण राजनांदगांव रियासत में राजनीतिक गतिविधियां तेज होने लगी थी। गांधीजी ने अपने छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान लोगों से कांग्रेस के कार्यक्रमों में सक्रियता से भाग लेने की अपील की थी जिसका असर व्यापक रूप से जनमानस पर पड़ा था। कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन के बाद ही छुईखदान में 'गौ सेवा संघ' के माध्यम से रियासती आंदोलन का आगाज हुआ। यह कालखण्ड छुईखदान रियासत में आजादी के आंदोलन का शैशवकाल था।
सन् 1920 से शुरू हुआ आजादी का आंदोलन छुईखदान में 1929 तक असंगठित रूप से छिटपुट ढ़ग से चलता रहा। सन् 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में रावी के तट पर तिरंगा झण्डा फहराकर पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पास किया। सन् 1930 में गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया तथा 12 मार्च 1930 को गांधीजी ने प्रसिद्ध डाण्डी यात्रा प्रारंभ कर इस आंदोलन का श्रीगणेश किया। जिसके परिणाम स्वरूप समूचे देश में आंदोलन प्रारंभ हो गया जिससे सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ भी आंदोलित हो उठा था। सन् 1930 में कांग्रेस के विदेशी वस्त्रों की होली जलाने एवं विदेशी मिल के कपड़ों के बहिष्कार के अखिल भारतीय आह्वान का क्रियान्वयन भी छुईखदान के तत्कालीन स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किया गया। यहां यह उल्लेखनीय है कि सन् 1931-32 में छुईखदान के प्रमुख सेनानियों का ठाकुर प्यारेलाल सिंह से घनिष्ठ संपर्क स्थापित हो चुका था। जब उन्होंने छत्तीसगढ़ की रियासतों में कांग्रेस संगठन एवं संघर्ष मोर्चा बनाने का कार्य प्रारंभ किया तो छुईखदान के लोगों की जागरूकता पर प्रसन्न होकर उन्होंने छुईखदान में अपना अस्थाई मुख्यालय भी बनाया था। यहां के कार्यकर्ताओं के विशेष सहयोग से अन्य रियासतों में भी कांग्रेस संगठन का निर्माण करने की योजना फलीभूत हुई।
पूनमचंद जी सांखला
सन् 1931-32 से 1938 तक रियासती जनता संगठन द्वारा तत्कालीन शासन के विरूद्ध उग्र आंदोलन से रियासती आंदोलन चलता रहा, जिसे पूज्य बापू महात्मा गांधी का आशीर्वाद भी प्राप्त था। इस आंदोलन में सन् 1932 में श्री गोवर्धन राम वर्मा एवं अन्य सेनानी राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किये गये। उस समय स्थानीय जेल आंदोलनकारियों से ठसाठस भर चुका था। जिसे नागपुर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र 'लोकमत' ने 'छुईखदान की जेल सत्याग्रहियों से ठसाठस' शीर्षक से प्रथम पृष्ठ पर प्रमुख रूप से प्रकाशित किया था। इस आंदोलन में शामिल लोगों को जेल में अनेक यातनाएं सहनी पड़ी। 22 नवम्बर 1938 में छुईखदान स्टेट कांग्रेस कमेटी की स्थापना हुई, जिसके प्रथम अध्यक्ष श्री गोवर्धनराम वर्मा चुने गये। यहीं से कांग्रेस ने नेतृत्व में संगठित रूप से आजादी का आंदोलन प्रारंभ हुआ।
सन् 1938 में गांधी जी ने यह आह्वान किया कि अंग्रेजी सरकार की गुलामी से मुक्त होने के लिए स्थानीय समस्याओं को आधार बनाकर असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया जाये। उस समय रियासतों की दमनकारी नीति, बेगारी प्रथा और निस्तारी की समस्या के कारण आये दिन रियासतों में राजा और प्रजा के बीच तनाव बना रहता था। गांधीजी के आह्वान पर 1939 में 'रिस्पान्सिबल गवर्नमेंट ' की मांग को लेकर छुईखदान स्टेट कांग्रेस कमेटी द्वारा श्री गोवर्धनराम वर्मा के नेतृत्व में प्रथम आंदोलन का श्रीगणेश किया गया। इसी साल लोगों ने जंगल सत्याग्रह भी शुरू किया। सत्याग्रहियों ने गण्डई की ओर प्रस्थान किया पर उन्हें गिरफ्तार कर छुईखदान लाया गया इसमें श्री समारूराम महोबिया का नाम उल्लेखनीय है।
समारू राम महोबिया
सन् 1939 में रियासती शासन के खिलाफ उत्तरदायी शासन प्राप्त करने के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री गोवर्धनराम वर्मा के नेतृत्व में पुन: आंदोलन शुरू किया गया। इस आंदोलन को त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह, डॉ. बल्देव प्रसाद एवं हर्षुल मिर का मार्गदर्शन प्राप्त था। छुईखदान की जनता ने कर न पटाओ आंदोलन किया। सरकार ने इस आंदोलन के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की। संपूर्ण छुईखदान रियासती क्षेत्र में प्रतिबंधात्मक धारा 144 लागू कर दी गयी। सत्याग्रही लगातार गिरफ्तार होते रहे लेकिन छुईखदान की जनता ने शासन का विरोध जारी रखा। सन् 1938-39 के आंदोलन में भाग लेने के कारण श्री रामगुलाम पोद्दार को सात माह, भोलानाथ महोबिया को 7 माह, समारू राम महोबिया को एक वर्ष और झाडूराम महोबिया को एक माह की सजा सुनाई गयी। इस आंदोलन में श्री अमरलाल महोबिया ने भी सक्रिय सहभागिता निभाई। स्वतंत्रता सेनानी श्री अमृतलाल महोबिया को क्रमश: सवा माह एवं छह माह की सजा सुनाई गयी।
पंडित पद्माकर प्रसाद त्रिपाठी
40 के दशक में पूरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार आंदोलन की शुरूआत हुई। सन् 1941 में श्री अमृतलाल महोबिया छुईखदान स्टेट कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष चुने गये। सन् 1942 में कांग्रेस ने बम्बई अधिवेशन में ऐतिहासिक 'भारत छोड़ों ' प्रस्ताव पारित किया। गांधी जी ने इसी दिन लोगों को 'करो या मरो ' का नारा दिया। इस आंदोलन की अनुगूंज छुईखदान तक भी पहुंची और यहां के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गांधी जी के 'करो या मरो ' के नारे को मूल मंत्र मानकर आजादी के इस आंदोलन में कूद पड़े। अंग्रेस शासन ने इस आंदोलन में शामिल होने वाले अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी गोवर्धन राम वर्मा, समारूराम माहेबिया, पूनमचंद सांखला, बाबूलाल चौबे, गुलाबदास वैष्णव, बुधराम पोद्दार, सियाराम पोद्दार, दामोदरलाल ददरिया एवं उदयराम महोबिया समेत सैकड़ों आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया। इसमें अमृतलाल महोबिया को सर्वाधिक तीन वर्ष की सश्रम कारावास की सजा सुनाई गयी। अन्य आंदोलनकारियों में गावेर्धनराम वर्मा को 10 माह, दामोदार लाल ददरिया को एक वर्ष एक माह, पूनमचंद सांखला को एक साल, बाबूलाल चौबे को एक साल, बुधराम पोद्दार को एक वर्ष एक माह और समारूराम महोबिया को एक वर्ष की सजा सुनाई गयी। इस आंदोलन में 09 आंदोलनकारी एक साथ गिरफ्तार हुए थे। इतिहासकार डॉ. भगवान सिंह वर्मा के अनुसार 'भारत छोड़ो आंदोलन भारतीयों द्वारा स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए किया गया महत्तम प्रयास था। यद्यपि वह तत्कालिक रूप से सफलता प्राप्त नहीं कर सका तथापि इसने लोगों में अपूर्ण उत्साह का संचार किया।
अमृत लाल महोबिया
एक तरफ जहां छुईखदान के अनेक स्वतंत्रता सेनानी भारत माता को आजादी दिलाने के लिए अपनी जन्मभूमि में ही रहकर संघर्ष कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ छुईखदान के ही दो सूपत पं. दामोदर प्रसाद त्रिपाठी और पद्माकर प्रसाद त्रिपाठी अपने गृहनगर से दूर रायपुर में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का नारा बुलंद कर रहे थे। पं. दामोदर प्रसाद त्रिपाठी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सन् 1937 से 1949 तक रायपुर के रामचन्द्र संस्कृत पाठशाला के विद्यार्थी थे। शाला के आचार्य पं. विश्वनाथ पाण्डेय की प्रेरणा से वे भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। अंग्रेजों के दमन एवं राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में 02 अक्टूबर 1942 को सत्ती बाजार चौक रायपुर में श्री मोतीलाल त्रिपाठी के नेतृत्व में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नारेबाजी करते हुए तत्कालीन ब्रितानी प्रधानमंत्री श्री चर्चिल का जनाजा निकाला गया और उसके पुतले का दहन किया गया। पुतला दहन करने के दौरान ही पं. दामोदर प्रसाद त्रिपाठी, पं. पद्माकर त्रिपाठी, मोतीलाल त्रिपाठी, पूरनलाल तिरोड़े, काकेश्वर एवं लूनकरण गिरफ्तार कर लिये गये। इन सभी को 05 अक्टूबर 1942 को सजा सुनाई गयी। पं. दामोदर प्रसाद त्रिपाठी को 6 माह एवं पं. पद्माकर त्रिपाठी को पांच माह की सजा सुनाई गई। जेल का नियम तोड़ने के कारण पं. दामोदर प्रसाद त्रिपाठी को एक माह तक गुनाहखाने में रखा गया। जेल की वर्दी नहीं पहनने के कारण वे एक माह तक कंबल लपेटे रहे।
बाबूलाल चौबे
देश के स्वनामधन्य नेता सेठ गोविंदराम, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभादेवी सिंह पाटिल, मध्यप्रदेश एंव छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के हाथों अनेक बार सम्मानित हो चुके पं. दामोदर प्रसाद त्रिपाठी को अगस्त क्रांति दिवस के अवसर पर विगत 09 अगस्त 2012 को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक गरिमामय समारोह में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने सम्मानित किया। इस समारोह में सम्मानित होने वाले सेनानियों में रायपुर जिले के डॉ.महादेव पाण्डेय एवं श्री रामाधार तिवारी, राजनांदगांव जिले के पं. दामोदर प्रसाद त्रिपाठी एवं दामोदर दास टावरी (डोंगरगांव) तथा जांजगीर-चांपा जिले के भागवत शर्मा शामिल थे। यह सुखद संयोग है कि 15 अगस्त पं. दामोदर त्रिपाठी का जन्मदिन भी है।
स्वतंत्रता आंदोलन में छुईखदान अंचल की सक्रिय सहभागिता स्वयं प्रमाणित है। छुईखदान नगर स्वतंत्रता आंदोलन के समय एक प्रमुख केंद्र रहा है। बुजुर्गों की मानें तो इस अंचल में कुल स्वतंत्रता सेनानियों की संख्या 300 से कुछ अधिक ही है। मध्यप्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सैनिक राज्य सम्मान निधि नियम 1972 के नियम-2 के अंतर्गत राजनांदगांव जिले के घोषित 221 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची में 59 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अकेले छुईखदान अंचल के हैं जो संभवत: जिले में सर्वाधिक हैं।
छुईखदान की जनता ने ब्रिटिश साम्राज्यशाही तथा स्थानीय राजशाही के विरूद्ध दो स्तरों पर संघर्ष किया और अन्तत: पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर भारत जैसे महान गणतंत्र के नक्शे में गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। वस्तुत: आज हम आजादी की जिस स्वच्छंद हवा में सांस ले रहे है उनके पीछे उन ज्ञात अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों की त्याग, तपस्या एवं संघर्ष का प्रतिफल है।
वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह

इस आलेख के लेखक छत्‍तीसगढ़ के वरिष्‍ठ पत्रकार वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह प्रखर पत्रकार हैं। वीरेन्‍द्र जी समसामयिक रिपोर्टिंग के साथ ही छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य, संस्‍कृति एवं इतिहास पर सार्थक व तथ्‍यपरक लेखन करते हैं। छत्‍तीसगढ़ के प्रदर्शनकारी लोक कलाओं एवं उनके लोक कलाकारों पर उन्‍होंनें संग्रहणीय लेखन किया है जो छत्‍तीसगढ़ी संस्‍कृति के महत्‍वपूर्ण दस्‍तावेज हैं।



टिप्पणियाँ

  1. ज्ञानवर्द्धक आलेख के लेखक और संजीव जी को बधाई

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  2. ज्ञानवर्धक। आदरणीय दामोदरप्रसादजी से मिला हूं मैं। लेखक महोदय और आपको भी धन्यवाद।

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’गणेश चतुर्थी और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  4. पद्माकर गुरु जी हा मोला पहली दुसरी ला पढाय हे

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