छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य नाचा में एक गम्मत खेला जाता है। इस गम्मत में नायक की शादी होने वाली रहती है, गांव का एक बुजुर्ग व्यक्ति उनके सामने बहुत सारी लड़कियों को लाकर एक-एक करके पूछता है।
सबसे पहले ब्राह्मण लड़की को सामने लाकर पूछता है कि इससे शादी करोगे? नायक कहता है, नही। इससे शादी करने के बाद दिन भर इसके पांव पड़ते-पड़ते मेरा माथा 'खिया' जाएगा। राजपूत लड़की के लिए कहता है कि, इससे शादी करने पर यह मुझे 'दबकार-दबकार के झोल्टु राम' बना देगी। इसी तरह अन्य समाज की लड़कियोँ को उनके जातिगत विद्रूपों को उधेड़ते हुए, नायक विवाह से इंकार कर देता है। अंत मे एक मैला ढोने वाली की बेटी को उसके सामने लाकर पूछा जाता है कि क्या इससे शादी करोगे?
नायक कहता है कि इसे पहले ही क्यूँ नही लाये, 'लउहे लगन धरावव' मैं इसी से शादी करूँगा। उससे पूछा जाता है कि ऐसी क्या खूबी है इसमें जो ब्राह्मण, ठाकुर जाति की आदि सुंदर लड़कियों को ठुकरा कर इस लड़की से शादी करना चाहते हो?
नायक कहता है क्योंकि यह लोगों को स्वच्छ रखने के लिए, दूसरों के घरों का मैला साफ करती है। 'रोग-राई' दूर करने वाली देवी है।
नायक के भोलेपन से बोले गए संवाद और स्वाभाविक इम्प्रोवाइजेशन से दर्शक हँसते-हँसते लोटपोट होते है। तीक्ष्ण व्यंग्य जाति-समाज में पैठे आडम्बर को परत दर परत उधेड़ता है। देखते ही देखते, गम्मत के क्लाइमेक्स में बावरा सा यह नायक इतना गंभीर संदेश संप्रेषित कर देता है।
हालांकि अब मैला ढोने की प्रथा समाप्त हो गई और बहुत हद तक जाति-पाति का भेद भी मिट गया। इसके बावजूद नाचा में ऐसे पारंपरिक गम्मत आज भी 'खेले' जाते हैं। नाचा के वर्तमान संदर्भों पर चर्चा करते हुए डॉ. परदेशीराम वर्मा कहते हैं कि पिछले सौ साल से छत्तीसगढ़ के लोक में, स्वच्छता अभियान का इस तरह से अलख जगाने का काम, यहां के लोक कलाकार करते रहे हैं। वे कहते हैं कि इस गम्मत को मोदी जी को दिखाना चाहिए।
- संजीव तिवारी
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कल...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-09-2017) को "विजयादशमी पर्व" (चर्चा अंक 2743) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 4अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबापू और स्वच्छता को लेकर आपकी यह पोस्ट बहुत रोचक और मर्मस्पर्शी लगी । सहज बोल । बड़े बोल ।
ReplyDeleteविचारों के इसी प्रवाह में बहती यह छोटी सी नाव भी थी । आपके इस लेख को समर्पित ।
https://noopurbole.blogspot.com/2017/10/blog-post.html?m=1
सच में बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत खूब.....
ReplyDeleteवाह! रचनात्मकता के इस ' गम्मत ' का आभार!!!
ReplyDeleteगजब
ReplyDeleteप्रेरणादायक जानकारी । आभार ।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक और प्रेरणा से भरा छोटा सा प्रसंग पढ़कर बहुत ही अभिभूत हूँ | कितना सुंदर सार्थक सन्देश है खेला की चोटी सी कहानी में !!!!!!!!!!!!!! जो नायक के भोलेपन नहीं अपितु उद्दात दृष्टिकोण की परिचायक है | हार्दिक आभार आपका इस मानवीय भावनाओं को दर्शाते इस प्रसंग को साझा करने के लिए -------
ReplyDeleteaapne bikul sahi kaha
Deleteकृपया खेला की छोटी सी कहानी पढ़े ----- गलती के लिए खेद है
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर . गम्मत का यह भी रूप होता है पहलीबार पता चला . मेरी जानकारी में अब तकयह अर्द्ध शास्त्रीय गायन का कार्यक्रम ही था .
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