27 मार्च विश्व रंगमंच दिवस। जब बात विश्व रंगमंच की हो तो भला छत्तीसगढ़ के रंग-परंपरा की चर्चा कैसे नहीं होगी। क्योंकि दुनिया में सबसे पुराना नाट्य शाला छत्तीसगढ़ में जो मिलता है। दुनिया के बड़े रंगकर्मी छत्तीसगढ़ में जन्म लेते हैं। अतभूद शैली वाले नाचा-गम्मत भी छत्तीसगढ़ में ही मिलता है। हम चर्चा कर रहे छत्तीसगढ़ की रंग परंपरा की ।
सरगुजा में दुनिया का प्राचीन नाट्य शाला-
छत्तीसगढ़...कला और संस्कृति का गढ़। एक ऐसा प्रदेश जहां की रंग-परंपरा दुनिया में सबसे पुराना माना जाता है। दुनिया का सबसे पुराना नाट्य शाला छत्तीसगढ़ के सरगुजा में रामगढ़ के पहाड़ी पर मिलता है। रामगढ़ की पहाड़ी पर स्थित सीताबोंगरा गुपा और जोगमारा गुफा में प्राचीन नाट्य शाला के प्रमाण मिले है। खैरागढ़ संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में शिक्षक वरिष्ठ रंगकर्मी योगेन्द्र चौबे बताते है कि आधुनिक थियेटर की तरह सीताबोंगरा गुफा के भीतर मंच , बैठक व्यवस्था आदि के साथ शैल चित्र मिलते है। सीताबोंगरा गुफा को छत्तीसगढ़ में रंगकर्म की परंपरा का जीवंत प्रमाण के रुप में देखा जाता है।
छत्तीसगढ़ में नाचा-गम्मत -
रंग-परंपरा में छत्तीसगढ़ के नाचा-गम्मत शैली की परंपरा बेहद प्राचीन है। प्रदेश के गांव-गांव में नाचा-गम्मत की परंपरा देखने को मिलती है। नाचा-गम्मत एक ऐसा रंगकर्म जिसके कलाकारों को न मंच की जरुरत होती है, न विशेष साज-सस्जा, वेष-भूषा की, न प्रकाश की, न पर्दे की। कलाकार अपनी खास तरह के पहवाने जो साधरण होते हुए विशिष्ट लगते है में सज-धजे होते है। न कलाकारों के पास कोई स्क्रिप्ट होती है, न संवाद लिखित में होता है। न पहले से प्रस्तुति को लेकर किसी तरह का कोई खास अभ्यास किया जाता है। सबकुछ दर्शको के सामने जीवंत होता है। महौल के हिसाब, सम-सामयिक घटनाओं, हाना-मुहावरों से हास्य और व्यंग से सराबोर होता है नाचा-गम्मत। लेकिन नाचा के इस विशिष्ट शैली को और नाचा कलाकारों नए आधुनिक तरीके से रंगकर्म की तौर-तरीकों के साथ नए प्रयोग कर उसे दुनिया में पहचान दिलाने का काम किया हबीब तनवीर ने। रंगकर्म के मास्टर हबीब तनवीर काम जन्म रायपुर में हुआ था। उन्होने भोपाल में नया थियेटर की स्थापना की और नया थियेटर के जरिए पूरी दुनिया ने देखीं छत्तीसगढ़ की रंग-परंपरा, छत्तीसगढ़ के रंगकर्मियों की कलाकारी, ताकत। खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय में शिक्षक औऱ वरिष्ठ रंगकर्मी योगेदन्द्र चौबे कहते है कि छत्तीसगढ़ की रंग-परंपरा छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत में जहां दाऊ मदराजी , रामचंद्र देशमुख का नाम लिया जा सकता है। वहीं नाचा-गम्मत को नाचा कलाकारों के साथ उसे विश्व विख्यात बनाने का श्रेय हबीब तनवीर को जाता है।
अतीत के पन्नो से ----
छत्तीसगढ़ में परंपरागत नाचा गम्मत से परे थियेटर के रुप में प्रदेश में रंगकर्म का इतिहास 20वीं शताब्दी से मानी जाती है। छत्तीसगढ़ में एक से बड़कर एक नाटकार पैदा हुए। सन् 1903 में जब हिन्दी नाटकों का कही जोर नहीं था तब छत्तीसगढ़ी भाषा में पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय ने कलिकाल नाम से छत्तीसगढ़ी नाटक की रचना की थी। इसके बाद कई लेखकों ने हिन्दी-छत्तीसगढ़ी में नाटक लेखन कार्य किया। इसमें प्रमुख रुप डॉ. शंकर शेष, विभू खरे, डॉ. प्रमोद वर्मा, प्रेम साइमन उल्खेनीय है। इनके नाटकों को जीवंत प्रस्तुति देने काम किया सत्यजीत दुबे, हबीब तनवीर जैसे रंगकर्मियों ने। हबीब तनवीर ने तो आगरा बजार, राजतिलक, मोर नाम दामाद गांव के ससुराल, चरणदास चोर से जैसे कई चर्चित नाटको का निर्देशन किया। ये वो नाटक थे जिसे छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ की कलाकारों की पहचान पूरा दुनिया में कराई। चरण दास चोर नाटक जो कि छत्तीसगढ़ी भाषा में थी इतना प्रसिद्ध हुआ कि पूरी दुनिया ने जाना की छत्तीसगढ़ की नाचा रंग परंपरा कितना विशिष्ट और समृद्ध है। चरण दास चोर ने रंगकर्मियों के बीच राजनांदगांव के नाचा कलाकार गोविंदराम निर्मलकर को एक बड़े मंचीय नायक के रुप में उभार दिया। वैसे प्रदेश में रंगकर्म का स्वर्ण युग 70-80 के दशक को माना जाता है। यह वह दौर था जब एक से बड़कर एक नाटक प्रदेश में होते थे। सप्रे स्कूल, आरडी तिवारी स्कूल और रंग मंदिर ऐसे स्थान जहां नाटक खेला जाता था। अमरीश पुरी , परेश रावल जैसे कई बड़ी हस्तियों ने छत्तीसगढ़ी में अपनी मंचीय प्रस्तुति दी है।
एक कमी जो आज भी खलती है----
संमृद्ध परंपरा वाले छत्तीसगढ़ में एक अदद रंग-भवन की कमी आज खलती है। सदियो पुराना रंगकर्म के इतिहास को समेटे छत्तीसगढ़ में प्रदेश के किसी भी हिस्सें में कोई सुविधायुक्त रंगभवन नहीं। अलग राज्य बने छत्तीसगढ़ को 15 साल पूरे हो गए लेकिन इस कमी अब तक पूरा नहीं किया जा सका है। जबकि इसी छत्तीसगढ़ में प्राचीन नाट्य शाला सदियों से मौजूद है। बावजूद इसके यह प्रदेश के रंगकर्मियों का दुर्भाग्य है कि उनके पास नाटक खेलने के लिए कोई सभागार या प्रेक्षागृह नहीं है।
छत्तीसगढ़ में रंगकर्मियों के पास कोई खास सुविधा नहीं है। न ही रंगकर्मियों के पास कोई नाट्य मंचन से रोजगार का जरिया। आर्थिक अभाव रंगकर्मियों के बीच सबसे अधिकर है। इन सबके बावजूद राजधानी में प्रति वर्ष मुक्तिबोध स्मृति, शंकर शेष स्मृति , हबीब की यादें नाम से नाट्य समारोह का सिलसिला जारी है। छत्तीसगढ़ में आज अनुप रंजन पाण्डेय, योगेन्द्र चौबे, राजकमल नायक, सुभाष मिश्रा, मिर्जा मसूद , हीरामन मानिकपुरी, अजय आठले, उषा आठले ऐसे नाम है, जो रंगकर्म की कमान संभाले हुए हैं। उम्मींद कर सकते हैं कि प्रदेश की जीवंत रंग-परंपरा सदा इसी तरह कायम रहेगी। और रंगकर्मियों की मांग सरकार जल्द पूरा करेगी।
वैभव शिव पाण्डेय
(शोध छात्र एवं ईटीवी संवाददाता)
विश्व रंगमंच दिवस पर छत्तीसगढ़ की लोकपरंपरा पर शोधपरक जानकारी देने के लिए आपका धन्यवाद। लेखक को बधाई एवं शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंइस शोधपरक आलेख के लिए आभारी हैं हम पाठक गण । लेखक और प्रस्तुत कर्ता दोनों को अशेष
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ।।
अच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं।
koshish zari rahe. achha laga.
जवाब देंहटाएंManoj Kumar
sampdak
shodh patrka SAMAGAM bhopal