छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग का प्रादेशिक सम्मेलन, 2015

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रचार—प्रसार हेतु एवं छत्तीसगढ़ी को राज काज की भाषा बनानें हेतु दो दिवसीय प्रांतीय सम्मेलन का आयोजन दिनांक 20 व 21 फरवरी 2015 को किया जायेगा। इस आयोजन में छत्तीसगढ़ी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग मुखरता से रखी जावेगी। आयोजन स्थल देवकी नंदन सभाकक्ष, लाल बहादुर स्कूल, सिटी कोतवाली चौक, बिलासपुर होगा।

बिलासपुर में आयोजित इस प्रादेशिक सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष नंद किशोर तिवारी, आर.सी.सिन्हा सचिव—संस्कृति एवं पर्यटन, राकेश चतुर्वेदी संचालक—संस्कृति एवं पुरातत्व, संयोजक पद्मश्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे, अध्यक्ष डॉ.विनय कुमार पाठक, सह संयोजक डॉ.सुधीर शर्मा, सचिव मनोज भंडारी हैं।

कार्यक्रम के संबंध में विवरण इस प्रकार हैं —

20 फरवरी 2015

सुबह 9 से 11 बजे तक पंजीयन एवं स्वल्पाहार

सुबह 11 से 12 बजे तक छत्तीसगढ़ी और मराठी के बीच अंतर संबन्ध
डॉ.मधुप पाण्डेय, कवि व्यंग्यकार नागपुर
मूल कृति 'मॉं' की अनुवादित कृति 'दाई' का वाचन डॉ.विनय कुमार पाठक द्वारा

पहला सत्र
दोपहर 12.00 से 1.30 बजे तक गुनान महिला साहित्यकार संगोष्ठी
विषय — छत्तीसगढ़ी महिला लेखन
अध्यक्षता — डॉ.निरूपमा शर्मा
संचालन — श्रीमती शशि दुबे
वक्ता — श्रीमती सरला शर्मा, डॉ.अनुसूया अग्रवाल, बसंती वर्मा, दुलारी चंद्राकर, श्रीमती किरण शर्मा

दोपहर 1.30 से 2.30 भोजन

दूसरा सत्र
दोपहर 2.30 से 4.00 तक कहानी पाठ एवं समीक्षा
अध्यक्षता — डॉ.पालेश्वर प्रसाद शर्मा
कहानीकार — डॉ.परदेशीराम वर्मा संयोजक
वक्ता — डॉ.बिहारी लाल साहू, कामेश्वर पाण्डेय, सुदामा प्रसाद, भाव सिंह हिरवानी, कुबेर साहू, लता राठौर, तुलसी देवी तिवारी

तीसरा सत्र
संध्या 4.00 से 6.00 तक लोक व बाल साहित्य
अध्यक्षता — नन्द किशोर तिवारी
संचालन — डॉ.पीसी लाल यादव
वक्ता — शम्भू लाल शर्मा बसंत, डॉ.चंद्रावती नागेश्वर, डॉ.सोमनाथ यादव, विवेक तिवारी, शिवशंकर शुक्ल

चौथा सत्र
रात्रि 6.00 से 8.00 तक छत्तीसगढ़ी में मीडिया, पत्रकारिता, रेडियो और टीवी, सोसल मीडिया
अध्यक्षता — दानेश्वर शर्मा
संचालन — संजीव तिवारी
वक्ता — मनु नायक, विमल कुमार पाठक, जागेश्वर प्रसाद, लाल रामकुमार सिंह, प्रेम चंद्राकर, मुकुन्द कौशल, पद्मश्री अनुज शर्मा, श्याम वर्मा, दीन दयाल साहू, सुधा वर्मा, योगेन्द्र चौबे, गिरधर शर्मा

रात्रि 8.00 से 9.00 बजे रात्रि भोजन

21 फरवरी 2015

सुबह 8 से 9 बजे स्वल्पाहार

पांचवा सत्र
सुबह 9.00 से 10.30 बजे तक आठवीं अनुसूची में छत्तीसगढ़ी
अध्यक्षता — डॉ.विनय कुमार पाठक
संचालन — डॉ.सुधीर शर्मा
वक्ता — दानेश्वर शर्मा, पद्मश्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे, डॉ.ध्रुव कुमार वर्मा, डॉ.सत्यभामा आडिल, डॉ.बिहारी लाल साहू, डॉ.राघवेन्द्र दुबे, हरिहर वैष्णव, डॉ.सुधीर पाठक, ध्रुव देवांगन

छठवां सत्र
सुबह 10.30 से 12.00 तक पाठ्यक्रम में छत्तीसगढ़ी
अध्यक्षता — डॉ.राजेश दुबे
वक्ता — नंद किशोर शुक्ला, डॉ.हंसा शुक्ला, डॉ.नरेश कुमार वर्मा, दादू लाल जोशी, संतराम देशमुख

सातवां सत्र
दोपहर 12.00 से 1.30 तक बात—चीत, यादें
विषय — कवि और कविता
अध्यक्षता — डॉ.सत्यभामा आडिल
संयोजन — सरला शर्मा
पं.मुकुटधर पाण्डेय पर शशि दुबे, पं.शेषनाथ शर्मा 'शील' पर शकुन्तला शर्मा, कपिलनाथ कश्यप पर डॉ.संध्या रानी शुक्ला, डॉ.लोचन प्रसाद पाण्डेय पर मनीषा अवस्थी, पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी 'विप्र' पर उषा लता तिवारी, डॉ.प्यारे लाल गुप्त पर वासंती वर्मा, डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा पर डॉ.शैल वर्मा
उपसंहार — तुलसी तिवारी

दोपहर 1.30 से 2.30 भोजन

आठवां सत्र
दोपहर 2.30 से 4.00 तक छत्तीसगढ़ी राजभाषा और राजकाज की भाषा
अध्यक्षता — राकेश चतुर्वेदी, संचालक संस्कृति एवं पुरातत्व
वक्ता — अरविन्द मिश्रा, डॉ.जे.आर.सोनी, डॉ.फूलदास महंत, डॉ.तारणीष गौतम

समापन सत्र
संध्या 4.00 से 5.30 तक खुला मंच
अध्यक्षता — डॉ.जे.आर.सोनी
विमोचन — जात्रा (कु.आस्था तिवारी), कौसल्या दाई के अंचरा (ध्रुव देवांगन), मनखेपन ल जगाना हे (डॉ.जगदीश कुलदीप), पढ़े जाये के डहर म (डॉ.बल्दाउ प्रसाद निर्मलकर), मउरे मोर आमा के डारा (बसंती वर्मा), मोर गज़ल के उडत परेवा (मुकुंद कौशल), रैन बसेरा (तुलसी देवी तिवारी), कथा आय न कथली (वीरेन्द्र सरल), पुरखा के भुइंया (मणिमनेश्वर ध्येय), अंकुश (नरेन्द्र कुमार कौशिक), पुरखा अउ पुरूवानुराग (कृष्ण कुमार अजनबी), हमर चिन्हारी त्रैमासिक पत्रिका (मीना रानी दुबे), भुइंया (रामनाथ साहू), ज्ञान के हवय कहना (संतोष चौबे), पीरा ल कइसे बतांवव संगी (जीतेन्द्र सुकुमार), नाचा (अनिल जांगड़े), मंजूरझाल (अनिल जांगड़े), माटी महतारी (गीता शिशिर चंद्राकर), छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन (डॉ.जयभारती चंद्राकर), उत्ती के बेरा (मनोज श्रीवास्तव), सुरता (रमेश सिंह चौहान), जिनगी के बयारा म (सुधा वर्मा), अटकन बटकन (संतराम साहू), गोहार (किरण शर्मा), छत्तीसगढ़ी दोहे एवं सुघ्घर गांव (डॉ.सोमनाथ यादव)

आयोजन में प्रकाशकों के द्वारा पुस्तक प्रदर्शनी एवं डॉ.शिवानंद कामडे द्वारा छत्तीसगढ़ी सिनेमा प्रदर्शनी भी लगाई जावेगी। महिलाओं हेतु आवास व्यवस्था संतोष गेस्ट हाउस, राघवेन्द्र सभा भवन के पास एवं पुरूषों हेतु आवास व्यवस्था खण्डेलवाल धर्मशाला, ईमलीपारा, पुराना बस स्टैण्ड के पास एवं संतोष लाज, जूनी लाईन में किया गया है।

राजभाषा आयोग के इस प्रांतीय सम्मेलन में यदि आप आना चाहें तो इस आयोजन के निम्नलिखित व्यवस्था प्रभारियों से संपर्क कर अपना पंजीयन करा सकते हैं —
आयोजन समिति: पद्मश्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे 09826189636, डॉ.विनय कुमार पाठक 09229879898, मनोज भंडारी 09893023974.
आवास प्रभारी: सुशील अग्रवाल 09425532110, डॉ.सुधीर शर्मा 09425536258, अजय अग्रवाल 09630096000.
परिवहन व्यवस्था प्रभारी: सुनील मिश्रा 09329802700, अनंत बाजपेयी 09893265657.
(छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के आमंत्रण पत्र के आधार पर)

देवबलोदा का शिव मंदिर (Dev Baloda)


सघन वन वल्लारियों से आच्छादित मेकल, रामगढ़ तथा सिहावा की पर्वत श्रेणियों से सुरक्षित एवं महानदी, शिवनाथ, खारून, जोंक, हसदो आदि कई छोटी बड़ी नदियों से सिंचित छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल में दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था।


इन नदियों के तट और घाटियों में न जाने कितनी सभ्यताओं का उदय, विकास और अस्त कालगति के अनुसार होता रहा, जिनके अवशेष अभी भी अनेक स्थानों पर बिखरे हुए हैं और उनके प्राचीन महत्व और गौरव की महिमा का गुणगान करते नहीं अघाते हैं। ऐसा ही एक प्राचीन स्थल दुर्ग के पास है- देव बलोदा। प्राचीनकाल में देव मंदिरों के लिए प्रसाद शब्द का प्रयोग किया जाता था। प्रसाद का अर्थ होता है वह स्थल जहां मन प्रसन्न हो। जिनकी रमणीयता से देवताओं और मनुष्यों के मन प्रसन्न होते हैं- वे प्रसाद है। इसीलिए प्रसाद या देवमंदिरों के निर्माण के लिए सुरम्य स्थलों का चुनाव किया जाता था। वराहमिहिर लिखते हैं कि वन, नदी, तालाब, पर्वत, झरनों के निकट की भूमि और उद्यान मुक्त नगरों में देवता सदा निवास करते हैं, इसलिए प्राचीनकाल में देव मंदिरों का निर्माण रम्य स्थानों पर कराया जाता था। छत्तीसगढ़ के प्राचीन मंदिर भी प्राय: ऐसे ही विशिष्ट स्थानों में स्थित हैं।

देव बलोदा रायपुर से लगभग 25 किमी की दूरी पर पड़ता है। भिलाई रेलवे स्टेशन से लगभग 2 मील की दूरी है। रायपुर से कुम्हारी, चरौदा जाते समय चरौदा के पहिले बायीं तरफ इंडियन ऑयल पेट्रोल पंप से थोड़ा-सा आगे जाने पर एक रास्ता देव बलोदा तक हमें पहुंचाता है। थोड़ी दूर तक पक्का सड़क मार्ग है फिर आगे जाने पर ऊबड़खाबड़ कच्चा रास्ता है। सी केबिन रेलवे ट्रैक को पार करते हुए फिर एक और रेलवे ट्रैक को पार करने पर बस्ती दिखाई देती है, वही देव बलोदा है। बस्ती के अंदर अनगिनत मकान हैं। घनी बस्ती के बीच ग्यारहवीं, बारहवीं शती का शिव मंदिर दिखाई देता है। यह मंदिर प्राचीन संस्मारक एवं पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है। इस मंदिर को भोरमदेव, खजुराहो तथा अजंता की गुफाओं से तुलना की जा सकती है।

यहां महाशिवरात्रि में प्रतिवर्ष एक बड़ा मेला भरता है। मेले के समय बाजार चौक में बहुत रौनक रहती है। मेला लगने पर आसपास के गांवों के लोग भी आते हैं। यह शिव मंदिर चारों तरफ से लोहे के जंगलों से घिरा है। एक लोहे के द्वार से मंदिर के प्रांगण में प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर के चारों तरफ हरे-भरे पेड़ लगे हैं और चारों तरफ बैठने के लिए लोहे की कुर्सियां बनी हैं। ग्रामवासी इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आते हैं। मंदिर के द्वार सुबह 6 बजे खोल दिए जाते हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया कि शाम सात बजे मंदिर में द्वार बंद कर दिए जाते हैं।

मंदिर एक ऊंची जगती पर निर्मित है। मंदिर के मंडप में प्रवेश करने के लिए सात सोपानों की व्यवस्था है। मंडप खुले रूप में है। वितान स्तंभ के सहारे हैं। इसके बाद अंतराल है और अंतराल के बाद गर्भगृह है। गर्भगृह के बाहर दोनों तरफ दो आले हैं जिसमें अलग-अलग रूप में गणेश जी विराजमान हैं। गांव वाले उनकी पूजा करते हैं। स्तंभों में भी विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। छत की तरफ देखने पर किसी देवता की आकृति उत्कीर्ण दिखाई देती है। गर्भ गृह के सामने छोटा-सा लोहे के द्वार है। गर्भ गृह के चारों तरफ सुंदर अलंकरण दिखाई देता है। द्वार के ऊपर गणेश जी की मूर्ति स्थापित है और उसके ऊपर सरस्वती जी की। ऊपर की ओर सात विभिन्न देवी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।

गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए 5 सोपान नीचे उतर कर पहुंचा जा सकता है। बीचोंबीच शिवलिंग प्रतिष्ठित है, पास ही त्रिशूल गड़ा है। शिवलिंग के ऊपर दो नाग फन हैं, जो अलग-अलग नागों के हैं। गर्भगृह में आले में पार्वती स्थापित है। आले के ऊपर लगे पत्थर पर साईं बाबा, पार्वती, शीतला माता, बजरंग बली स्थापित है। कोने में त्रिशूल रखा है। ग्राम के बच्चों के साथ मैं भी गर्भगृह में उतरी।

गर्भगृह के द्वार के दायीं तथा बायीं तरफ शिव की मूर्ति उत्कीर्ण है। शिव की मूर्ति चतुर्भुजी है। एक हाथ में डमरू, एक हाथ में त्रिशूल, एक हाथ वरद मुदा में तथा एक हाथ में आयुध लिए खड़े हैं। सिर पर जटाजूट है। कानों में कुंडल, गले में हार है। पास में नंदी और नाग का अंकन है। दोनों ही तरफ दो-दो स्त्री मूर्तियां हैं। बाह्य विन्यास में अधिष्ठान में मोल्डिंग है जिसमें गजधर, अश्वधर, फिर नरधर है। मंदिर की बाह्य दीवारों पर एक के ऊपर एक पांच पंक्तियों में अनेक तरह के दृश्य उत्कीर्ण है। दीवार की सबसे नीचे की पंक्ति हाथियों के अंकन से भरी है। इनमें कहीं-कहीं दो हाथी एक दूसरे की तरफ सूंड किए हैं तो किसी दृश्य में एक के पीछे एक हाथी है तो किसी अन्य दृश्य में हाथी एक दूसरे की तरफ पीठ किए हैं।

एक स्थान पर रीछ का आखेट करते हुए दिखाया गया है जो बहुत ही आकर्षक है। दीवारों में कई दृश्यों में रीछ का रूप उत्कीर्ण किया गया है जिन्हें मारने के लए शिकारी हाथों में बरछा लिए हुए हैं। वहां के ग्रामीणों से पूछने पर पता चला कि इस क्षेत्र में प्राचीनकाल में रीछ बहुतायात से थे। दीवारों पर अनेक मिथुन मूर्तियां भी दर्शायी गई हैं। घुड़सवारों की विभिन्न दृश्यावलियां हैं। एक दृश्य में दो बैलों को लड़ते हुए दिखाया गया है। किसी-किसी दृश्य में शिव को त्रिशूल और उमरू लिए हुए दिखाया गया है। एक दृश्य में गणेश नृत्य मुद्रा में हैं। एक चित्र में रथ पर सवार हाथ में धनुष-बाण लिए योध्दा का है। शिव अनेक स्थलों पर डमरू, त्रिशूल, कमंडलू लिए अंकित है। एक दृश्य में मूर्ति में शरीर मानव का और मुख पशु का है। मंदिर के प्रवेश द्वार के सोपान के दोनों तरफ एक ही तरह के दृश्य दिखाई देते हैं। दोनों तरफ द्वारपाल का अंकन है। एक दृश्य में सोपान के दोनों तरफ पालकी कंधे पर उठाए दो व्यक्ति हैं। एक दृश्य में पालकी में बैठा व्यक्ति स्पष्ट दिखाई दे रहा है परंतु दूसरे दृश्य में पालकी में बैठे व्यक्ति का अस्पष्ट अंकन है। पीछे कोई खड़ा है। हर तरफ की दीवार में दो-दो आले हैं जो रिक्त हैं। तीन व्यक्तियों की दृश्यावली रोचक है मध्य में स्त्री खड़ी है, उसके दूसरी तरफ नृत्य करते हुए और एक तरफ डमरू बजाते हुए नृत्य-गान का दृश्य है। उसके पास वाले दृश्य में पांच व्यक्ति विविध प्रकार के आयुधों को लिए हुए दिखाए गए हैं। इनमें एक का मुख अस्पष्ट है एक का सिर नहीं है। एक मूर्ति पशु पर सवार अष्ट भुजी है। ज्यादातर दृश्य नृत्य-गान तथा आखेट के हैं।

मंदिर के भीतर चार स्तंभों पर उत्कीर्ण मूर्तियां तथा प्रवेश द्वार के चौखट पर शिल्प का श्रेष्ठ काम किया गया है और उन पर की गई पॉलिश भी उत्कृष्ट है। मंदिर के समीप ही पत्थरों से बांधा गया एक तालाब है। मंदिर से सात सोपान उतरने पर तालाब तक पहुंचा जा सकता है। कुंड में असंख्य मछलियां विचरण करती दिखाई दे रही थी। तालाब के आसपास हरे भरे पेड़ लगाए गए हैं। मंदिर के प्रांगण में खेल रहे बच्चों और पूजा करने आए ग्रामीणों से जब तालाब के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि जब कभी तालाब का पानी कम होता है तो नीचे उतरने के लिए सीढ़िया दिखाई देती हैं। सीढ़ियों की संख्या लगभग बाईस है और तालाब में सुरंग जैसा एक छेद है जो आरंग तक जाता है ऐसा लोक-विश्वास है। वहां के लोगों को उनके अनुसार तालाब में पानी भी वहीं से आता है।

मंदिर के सामने बने खुले मंडप में चार स्तंभ है और बीच में नंदी स्थापित है। सामने पुरुष मूर्ति है। पास में ही एक छोटे स्तंभ में सती मूर्ति हाथ जोड़े खड़ी है, पास ही त्रिशूल गड़ा है।सामने एक शीतला माता का मंदिर है। उस मंदिर में पाषाण की अनेक भगवानों की मूर्तियां रखी हुई हैं। शीतला माता के मंदिर के पास एक क्वार्टर बना है, जहां चौकीदार रहता है। मंदिर के आसपास बड़े-बड़े पेड़ लगे होने के कारण और तालाब के पानी के कारण हरियाली और शीतलता मन को मोह लेती है। मंदिर के बाहरी दीवार पर उकेरे दृश्यों में मन मानो कहीं खो जाता है।

डॉ.मोना जैन

अपने ब्‍लॉग में गूगल एडसेंस (adsense) कैसे लगायें

आपको ज्ञात ही होगा कि, गूलग नें हिन्‍दी ब्‍लॉगरों के लिए गूगल एडसेंस के द्वारा खोल दिए हैं. बहुत से हिन्‍दी ब्‍लॉगर साथी अपने ब्‍लॉग में गूगल एडसेंस लगाने की विधि की जानकारी हमसे लगातार पूछ रहें हैं. हम अपने साथियों के लिए अपने ब्‍लॉग में एडसेंस लगाने की क्रमबद्ध जानकारी इस पोस्‍ट में देनें का प्रयास कर रहे हैं. जिससे कि आप अपने ब्‍लॉग में गूगल एडसेंस आसानी से लगा पायेंगें.


सबसे पहले अपना ब्‍लॉगर में लागईन होईये. डेशबोर्ड खुलेगा, आप अपने जिस ब्‍लॉग में गूगल एडसेंस लगाना चाहते हैं उसके दाहिनें तरफ एक छोटा एरो की दिखेगा. उसे क्लिक करने पर नीचे दिए गए चित्रानुसार एक विकल्‍प पट्टी खुलेगी. जिसमें अर्निंग विकल्‍प को क्लिक करें.

चित्र क्र.1
अब नीचे दिए गए चित्रानुसार पेज आयेगा जिसमें साईनअप फार एडसेंस को क्लिक करें -


चित्र क्र. 2
इसके बाद नीचे दिखाये गए चित्रानुसार पेज खुलेगा जिसमें दो विकल्‍प हैं. पहला- यदि आप अपने मौजूदा जीमेल एकाउन्‍ट से लागईन होना चाहते हैं तो एवं दूसरा- यदि आप मौजूदा जीमेल एकाउन्‍ट से अलग नया एकाउन्‍ट बनाना चाहते हैं तो-  


चित्र क्र. 3

 पहला विकल्‍प चुनें, आगे के पेजों में अपनी व्‍यक्तिगत जानकारी व पता आदि भरें. आगे के क्रम में , अपने ब्‍लॉग का यूआरएल भरें व उसकी भाषा हिन्‍दी भरें. इसे पूर्ण करने के बाद गूगल लगभग 24 घंटे का समय आपके ब्‍लॉग एवं एडसेंस एकाउन्‍ट को एप्रूव करने का समय लेगा.     
चित्र क्र. 4
गूगल से एडसेंस एप्रूवल मेल आने के बाद अपने ब्‍लॉगर एकाउन्‍ट में पुन: लागईन हों एवं उपर दिए गए क्रम एक को दुहरायें. ब्‍लॉगर आपको गूगल एडसेंस लागईन पेज में रिडायरेक्‍ट करेगा. वहां लागईन हों एवं नीचे दिए गए चित्रानुसार 'माई एड' को क्लिक करें-


चित्र क्र. 5
यहॉं नये एड बनाने के लिए एक बटन दिया गया है जिसे क्लिक करने पर विज्ञापन के विभिन्‍न विकल्‍प दिए गए है इसमें से अपने पसंद के किसी विकल्‍प को चुनें एवं नीचे दिए गए 'सेव एण्‍ड गेट कोड' बटन को क्लिक करें- 


चित्र क्र. 6
अब एक विन्‍डो खुलेगा जिसमें से कोड को सलेक्‍ट कर कापी कर लेवें एवं विन्‍डो बंद कर देवें-


चित्र क्र. 7
अब पुन: अपने ब्‍लॉगर डेशबोर्ड में आयें, यहां चित्र क्रमांक एक में दिखाए गए विकल्‍प पट्टी में से 'लेआउट' विकल्‍प चुनें. नीचे दिए गए चित्र के अनुसार पेज खुलेगा-


चित्र क्र. 8
यहॉं, जहॉं आप विज्ञापन लगाना चाहते हैं वहॉं की पट्टी में दिए गए  'एड ए गैजट' लिंक को क्लिक करें. इसे क्लिक करने पर एक विन्‍डो खुलेगा उसमें से 'एचटीएमएल/जावा' विकल्‍प को चुनें. पुन: एक नया विन्‍डो खुलेगा उसमें एडसेंस से प्राप्‍त कोड को पेस्‍ट कर दें. आपके ब्‍लॉग में विज्ञापन गूगल के एप्रूवल के बाद दिखने लगेगा.


चित्र क्र. 9
इस प्रकार से आप अपने ब्‍लॉग से गूगल एडसेंस के माध्‍यम से अतिरिक्‍त कमाई कर सकेंगें. इसके लिए गूगल एडसेंस के कार्यक्रम नीति व नियम एवं शर्तों का पालन करना आवश्‍यक होगा. हिन्‍दी ब्‍लॉग एवं गूगल एडसेंस के संबंध में अन्‍य जानकारी के संबंध में हम आगामी पोस्‍टों में जानकारी देते रहेंगें. यह जानकारी मेरे ब्‍लॉग झॉंपी में भी उपलब्‍ध है.
संजीव तिवारी

छत्तीसगढ़ में ई स्टैम्प (eStamp) की वापसी या निरस्तीकरण

छत्तीसगढ़ में नान ज्यूडिशियल स्टाम्प के पारम्परिक कागजी स्टाम्प के साथ ही ई—स्टाम्प की सुविधा पिछले वर्ष से आरम्भ की गई है। इससे संपत्तियों के पंजीकरण में देय मुद्रांक शुल्क (स्टाम्प ड्यूटी) की उप्लब्धता सहज हुई है वहीँ कम राशि के स्टाम्प की हो रही कालाबाजारी बंद हुई है। तथाकथित रूप से नान ज्यूडिशियल स्टाम्प के पारम्परिक कागजी स्टाम्प वेंडरों पर आरोप लगाया जाता था कि वे, 10-50 रू. के स्टाम्प मांगने पर मूल्य से ज्यादा रकम खरीददार से वसूलते थे। ई—स्टाम्प केन्द्रों के खुल जाने से जनता को शपथ—पत्र एवं अनुबंध आदि के लिए, दिन प्रतिदिन लगाने वाले 10 रू. एवं 50 रू. के स्टाम्प खरीदने में सुविधा हो रही है। इसी के साथ ही ई—स्टाम्प केन्द्रों में स्टाम्प पेपर खरीदने से इसके तेलगी (नकली) होने का खतरा भी नहीं होता।


ई—स्टैम्प के फायदे एवं इसकी सहज उपलब्धता को देखते हुए मैं लगातार आवश्यक मुद्रांक शुल्क का भुगतान इसी के माध्यम से कर रहा हूं। पिछले महीनें मै दुर्ग के ई—स्टाम्प केन्द्र से अपने मुवक्किल के लिए अलग—अलग नाम से 50000/— रू. का दो स्टाम्प खरीदा। उक्त स्टाम्प बैंक मार्टगेज के लिए क्रय किया गया किन्तु किसी कारणवश उक्त स्टाम्प का उपयोग नहीं हुआ।

ई—स्टैम्प के वापसी के संबंध में दुर्ग कार्यालय में कोई दिशानिर्देश नहीं होने के कारण आईजी रजिस्ट्रेशन एण्ड स्टाम्प छ.ग. के कार्यालय में फोन किया। सौभाग्य से आईजी महोदया डॉ.एन.गीता (IAS) से बात हुई, उन्होंनें बताया कि ई—स्टैम्प की वापसी के संबंध में नियमावली है। उन्होंनें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए त्वरित रूप से नियमावली की प्रति भी उपलब्ध करा दी एवं इस संबंध में एक र्सकुलर सभी जिले के कलेक्टर आफ स्टाम्प को तत्काल जारी भी कर दिया।


छत्तीसगढ़ शासन नें ई—स्टाम्प केन्द्रो के सुविधापूर्ण संचालन के लिए भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 10, 74, 75 एवं सहपठित धारा 2 (26) द्वारा प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए 'छत्तीसगढ़ स्टाम्प (ई—स्टाम्प प्रमाण—पत्रों के माध्यम से स्टाम्प शुल्क का संदाय) नियम — 2015' बनाया है। इस नियमावली के कुल 15 भागों में 59 नियम है जिसमें ई—स्टाम्प के निर्गम प्रक्रिया एवं निरस्तीकरण एवं वापसी आदि के संबंध में नियम है।



इसके बावजूद प्रश्न जीवंत हैं कि,
क्या अब हमारा आवेदन जमा हो पायेगा?
जमा हुआ तो क्या रकम वापस हो पायेगा?
क्या ई—स्टाम्प का अस्तित्व असंदिग्ध बना रहेगा?

संजीव तिवारी

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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...