[28 सितम्बर 2014]
टिकरी (अर्जुन्दा) में 05 मार्च 1910 को जन्मे जनकवि कोदूराम “दलित” जी की 47 वीं पुण्यतिथि उनके गृह गाँव टिकरी (अर्जुन्दा) के आम्बेडकर भवन में दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति और ग्राम टिकरी व अर्जुन्दा के उत्साही युवकों के संयुक्त तत्वाधान में 28 सितम्बर को मनाई गई. कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं. दानेश्वर शर्मा, लक्ष्मण मस्तुरिया, मुकुंद कौशल, डॉ.निर्माण तिवारी के साथ ही दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ.संजय दानी, सचिव संजीव तिवारी, रमाकान्तह बरडिया जी, दुर्ग के कविगण सूर्यकांत गुप्ता, उमाशंकर मिश्रा, संगवारी समूह के नवीन तिवारी अमर्यादित, जनकवि कोदूराम “दलित” जी के पुत्र कवि अरुण निगम तथा पुत्र-वधु कवियित्री श्रीमती सपना निगम और अर्जुन्दा-गुन्डरदेही के साहित्यकार केशव साहू, प्यारेलाल देशमुख, दिनेश्वर चंद्राकर आदि उपस्थित थे. आयोजन में जनकवि कोदूराम “दलित” जी की धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला निगम और उनके पोते अभिषेक निगम विशेष रूप से उपस्थित थे.
कार्यक्रम में सर्वप्रथम जनकवि कोदूराम ”दलित” के चित्र पर अतिथियों ने माल्यार्पण कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की और दीप प्रज्जवलित किया. ग्राम टिकरी में दुर्ग और रायपुर से पधारे अतिथि साहित्यकारों के स्वागत के साथ ही वरिष्ठ साहित्यकारों और स्व. कोदूराम “दलित” जी की धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला निगम को टिकरी गाँव के प्रवीण लोन्हारे और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पलता लोन्हारे ने शाल और श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया. प्रवीण लोन्हारे ने स्वागत भाषण दिया.
स्व. कोदूराम “दलित” जी के सुपुत्र अरुण निगम ने कहा कि जब दलित जी का निधन हुआ तब वे मात्र ग्यारह वर्ष के थे. बचपन के धुंधले से संस्मरण तो हैं किन्तु चूंकि दानेश्वर शर्मा जी ने दलित जी के साथ कई कवि सम्मेलनों के मंच साझा किये हैं और मुकुंद कौशल जी भी उनके शिष्य थे, अत: आज इन दोनों वरिष्ठ कवियों से दलित जी के कृतित्व और व्यक्तित्व के बारे में सुनना चाहेंगे. दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ.संजय दानी ने जनकवि कोदूराम “दलित” जी की जीवन यात्रा के बारे में बताया. उन्होंने समिति द्वारा दलित जी पर प्रतिवर्ष पुण्यतिथि कार्यक्रम के आयोजन की बात कही.
सुप्रसिद्ध कवि और गायक लक्ष्मण मस्तुरिया ने कहा कि उनकी दलित जी से मुलाकात नहीं हो पाई थी. मस्तुरिया जी ने पुण्यतिथि के अवसर पर अपनी कविताओं के माध्यम से भाव-सुमन समर्पित किये.
मुकुंद कौशल ने बताया कि प्राथमिक शाला के दिनों में शाला में ही गणेश पूजा का आयोजन होता था. पूरे ग्यारह दिनों तक शाला में सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ करते थे. गुरूजी बच्चों से नाटक और प्रहसन के साथ ही गहिरा नाच भी करवाते थे. गहिरा नाच में बच्चों को अपने लिखे दोहे देते थे. इन दोहों में सामाजिक चेतना , राष्ट्र निर्माण की भावना हुआ करती थी. उस समय का एक दोहा जो उन्होंने पढ़ा था आज भी याद है...हमर गाँव के कुछ ढोंगी मन लम्हा तिलक लगायं रे, हरिजन मन के छुआ मानयं, चिंगरी मछरी खायं रे . मुकुंद कौशल जी ने बताया कि उन दिनों वे बहुत छोटे थे लगभग पन्द्रह सोलह साल के, गुरूजी उन्हें कवि सम्मेलनों के मंचों पर ले गए. उन्होंने और भी बहुत से संस्मरण सुनाये. उन्होंोनें कहा कि गुरूजी की जयंती या पुण्ये तिथि पर इस गाँव में विशाल आयोजन होना चाहिए जिसमें आसपास के गाँव के सभी लोग आयें. उन्होंने ग्रामवासियों को हरसंभव सहयोग देने के प्रति आश्वस्त किया.
वरिष्ठत कवि दानेश्वर शर्मा ने बताया कि प्राथमिक शाला में अध्ययन के समय दलित जी उनके गुरूजी थे. कोदूराम “दलित” जी का जन्म पाँच मार्च उन्नीस सौ दस को ग्राम टिकरी में हुआ था. उनकी कविताओं में देश की आजादी का आव्हान के साथ-साथ आजादी के बाद भारत के नव-निर्माण की भावना भी. आजादी के पूर्व जब देशवासियों को कुछ भी कहने का अधिकार नहीं था तब गुरूजी बच्चों में राउत दोहों के माध्यम से आजादी के लिये जूझने को प्रेरित करते थे. उदहारण के तौर पर उन्होंने बताया ‘गाँधी जी के छेरी भैया, में में में नरियाय रे, एखर दूध ला पी के संगी बुढ़वा जवान हो जाये रे...’ कवि दानेश्वर शर्मा ने अपने बारे में बताया कि वे पहले केवल हिन्दी में लिखते थे, गुरूजी ने कहा कि छत्तीसगढ़ी में लिखो तो पहले तो उनहोंने कहा कि नइ बने गुरूजी, फिर बाद में उन्होंने छत्तीसगढ़ी में लिखना शुरू किया. पहली कविता बेटी कि बिदाई पर लिखी “कइसे के बेटी तोला मयं भेजवं, अँचरा के मोती ला दहरा मा फेंकवं “ इस गीत को एच.एम.व्ही. कंपनी ने रिकार्ड किया, साथ ही और भी गीत जैसे तपत कुरु भाई तपत कुरु बोल रे मिट्ठू तपत कुरु...आदि श्रीमती मंजुला दास गुप्ता की आवाज में रिकार्ड किये गए. अपनी अमरीका यात्रा का संस्मरण सुनाते हुए शर्मा जी ने बताया कि अमरीका में एक कार्यक्रम में वे किसी मित्र से छत्तीसगढ़ी में बात कर रहे थे तब एक महिला ने पूछ कि आप किस भाषा में बात कर रहे हैं, मैंने कहा कि छत्तीसगढ़ी में, तब उस महिला ने भाषा से प्रभावित होकर वायस आफ अमेरिका के लिये एक इंटरव्यू लिया. गुरु जी ने छत्तीसगढ़ी में लिखने की प्रेरणा देकर मुझे कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया. कवि दानेश्वर शर्मा ने दलित जी के बहुत से संस्मरण सुनाये. संस्मरण सुनते हुए वे कई बार भाव-विभोर हो उठे. उन्होंने टिकरी वासियों से कहा कि आप लोग जब भी गुरूजी का कोई कार्यक्रम करेंगे, मैं जरुर आऊंगा.
कार्यक्रम के अध्यक्ष ताराचंद मेश्राम (पूर्व प्राचार्य) ने अपने उदबोधन में कहा कि श्री कोदूराम “दलित” जी कि वजह से ही आज उनका परिवार शिक्षित है और उच्च पदों पर विराजमान है. ऐसे धरोहर को पाकर पूरा गाँव अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा है.
कार्यक्रम में टिकरी, अर्जुन्दा और आसपास के ग्रामीण और साहित्यकार काफी उत्साह के साथ भारी संख्या में उपस्थित थे. कार्यक्रम का सफल सञ्चालन अर्जुन्दा के गीतकार मिथिलेश शर्मा ने अपने चुटीले अंदाज में किया. आभार प्रदर्शन रितेश देवांगन ने किया. ग्राम टिकरी अर्जुन्दा के राकेश मेश्राम, श्रीमती लता मेश्राम, जितेन्द्र सुखदेवे, श्रीमती अमृता सुखदेवे, हरिशंकर साहू, सुभाष देशमुख, डिगेंद्र साहू, ढालू विश्वकर्मा, छगन देवांगन, गिरिधर देवांगन, योगेन्द्र साहू, भुवन सिन्हा, डिलेश्वर साहू, गजानंद सिन्हा, राजू देशमुख,निर्मल सिन्हा, वेद सिन्हा, सुभाष, गजेन्द्र सहित अनेक युवाओं ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी सहभागिता दी.
- अरूण कुमार निगम
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनमन।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (07-10-2014) को "हमे है पथ बनाने की आदत" (चर्चा मंच:1759) (चर्चा मंच:1758) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंSaarthak prastuti ..... !!!
जवाब देंहटाएंSaarthak prastuti ..... !!!
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