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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

विदाई समारोह में भावुक हुए सीजे यतींद्र सिंह, बोले-छत्तीसगढ़ में ही बनाऊंगा घर

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस यतींद्र सिंह बुधवार को रिटायर हो गए। विदाई समारोह में वे भावुक हो गए। एक बार नहीं, कई बार। हालत यह हो गई कि वे स्पीच तक पूरी नहीं कर सके और फफक-फफक कर रो पड़े। उन्होंने जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए माफी मांगी। छत्तीसगढ़ की तारीफ की। बोले-यह राज्य प्राकृतिक संपदा से भरपूर है। भविष्य में वे यहीं घर बनाएंगे। 22 अक्टूबर 2012 को यहां ज्वॉइन करने के बाद से जस्टिस सिंह ने ई-फाइलिंग, ऑनलाइन ऑर्डरशीट, फास्ट ट्रैक कोर्ट, जजों की संपत्ति सार्वजनिक करने जैसे कई बड़े फैसले लिए। उनकी जगह सीनियर जज नवीन सिन्हा को एक्टिंग चीफ जस्टिस बनाया गया है।

चीफ जस्टिस यतींद्र सिंह... विधि के क्षेत्र में एक जानी-पहचानी शख्सियत। जाना-पहचाना इसलिए कि उन्होंने अपने काम के जरिए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को अलग पहचान दिलाई। ठीक दो साल के कार्यकाल के बाद उन्होंने इस पेशे से विदाई ली। बुधवार को हाईकोर्ट में उनका ओवेशन हुआ। पूरे समय अपने लोगों से अपनी बात। कभी कोई अनुभव याद आता तो गला रुंध जाता, कभी आवाज धीमी पड़ जाती। अपने विदाई समारोह में चीफ जस्टिस यतींद्र सिंह रह-रहकर भावुक होते रहे। अंतिम समय हालत यह हुई कि वे अपनी स्पीच तक पूरी नहीं दे सके और फफक-फफक कर रो पड़े। उन्होंने बेहद विनम्रता से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए वहां मौजूद लोगों से माफी मांगी।

चीफ जस्टिस यतींद्र सिंह ने 22 अक्टूबर 2012 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ज्वॉइन किया था। दो साल के कार्यकाल के बाद जब उनकी विदाई हुई तो ओवेशन में हर कोई उन्हें सुनने पहुंचा था। स्पीच की शुरुआत उन्होंने अलविदा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट... से की। स्पीच के दौरान हर अनुभव को याद करते हुए हरेक व्यक्ति को धन्यवाद दिया और जानी-अनजानी गलतियों के लिए क्षमा भी मांगी। सीजे ने ईश्वर के प्रति अटूट आस्था व्यक्त करते हुए कहा कि उसके ढंग निराले हैं। करने करवाने वाला वही है। हम निमित्त मात्र हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ को कई खूबियों वाला बताते हुए कहा कि भविष्य में वे यहीं अपना घर बनाएंगे।

सायोनारा, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट... नमस्ते, जय जोहार - बतौर चीफ जस्टिस मेरी नियुक्ति में हुई देर से मैं नाखुश था। छत्तीसगढ़ में पोस्टिंग की सुगबुगाहट नहीं थी। अचानक कहा गया कि आप छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के सीजे बनाए गए हैं। मित्रों और सहयोगियों ने मुझे ज्वाइनिंग करने की सलाह दी। लेकिन मैंने इसे स्वीकार किया। आखिरकार यह मेरी पदोन्नति थी। आज महसूस होता है कि सही निर्णय था। छत्तीसगढ़ प्राकृतिक रूप से सुंदर जगह है। वन संपदा, बांधों से भरपूर... जहां रहने का सपना हर किसी का हो सकता है। इस दिशा में मैं भी प्रयासरत हूं। यहां के लोग, वकील और जज सादा जीवन, उच्च विचार वाले हैं। अमू्मन न्यायपालिका से संबंधित बातों में परिवर्तन, बदलाव पर कोई बात नहीं करना चाहता। पर यहां के साथियों ने नया आइडिया लागू करने में सदा सहयोग ही दिया। शायद इसीलिए परिणाम भी दूसरी कोर्ट की तुलना में बेहतर रहे। यह पहला कोर्ट है जहां सिर्फ हाईकोर्ट बल्कि जिला कोर्ट के जजों की भी संपत्ति का ब्योरा ऑनलाइन है।

घटना... जिसने दुखी किया - फुलकोर्ट ने तय किया था कि कंडोलेंस (तीन माह में एक बार) सोमवार की शाम 4.15 बजे ही होंगे। ऐसा निर्णय बार की विनती परामर्श के बाद लिया गया था। लेकिन बार ने ही इसका उल्लंघन किया। हमारे पेशे में संस्थान का समय कीमती होता है। बार ने वादा नहीं निभाया, शायद इसी वजह से मुझे कठोर निर्णय लेना पड़ा। हालांकि बार की भलाई के लिए मेरा सहयोग हमेशा मिलता रहेगा।

सीख दी - वहमित्र ही होता है जो आपकी खामियां आपके सामने कहता है। वह दुश्मन होता है जो मुंह पर तारीफ और पीछे बुराई करता है। कबीर ने कहा है- "निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।'

बार-बेंच पर - एलेवेशनके लिए नाम सुझाने में सिर्फ सहयोगी जजों ने, बल्कि बार के अधिवक्ताओं ने भी मदद की। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने दो बार इस पर चर्चा की। मेरे ख्याल से देश के किसी भी न्यायालय में एसा नहीं होता। यहां के वकील समझदार हैं। बार और बेंच का रिश्ता महत्वपूर्ण है। इनके बेहतर तालमेल के लिए समय-समय पर कार्यक्रम किए गए। उम्मीद है यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।

...और मनोबल बढ़ाया - मैं वकीलों से नाराज होता था, उन्हें डांटता था कि उन्होंने केस की तैयारी ठीक से नहीं की। डाक्यूमेंट्स ठीक से नहीं बनाए। साधारण सा कारण यह था कि एक अच्छे निर्णय में केस के वकील की तैयारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। मैं चाहता हूं कि आप सभी केस की तैयारी अच्छे से करें, ताकि दिए जाने वाले फैसले वादातीत रहें।

खुद पर - अपने व्यवहार के बारे में अगर मैं कुछ बताऊं तो यह अन्याय होगा। कभी-कभी मैं अपने सहयोगियों के प्रति कठोर आलोचक हो जाता हूं। वकीलों से नाराज हो जाता हूं। अनपेक्षित परिणाम आने की वजह से शायद ऐसा हुआ हो। अगर किसी का दिल दुखाया हो तो मुझे क्षमा करें। जहां तक आलोचना की बात है, तो आलोचना हाउस के भीतर चहार दीवारी के अंदर, आपके सामने की गई। पीठ पीछे कभी कुछ नहीं कहा गया।

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के नाम ऊपर ले जाबो... - सीजे ने छत्तीसगढ़ी में स्पीच देकर सबको हतप्रभ कर दिया "मोला शक नइ की हमन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के नाम ऊपर ले जाबो अउ एक अइसन इंसान बनबो जेखर ऊपर हमर जम्मो भारतवासी गरब करही। एखर पहिली कि मोर सुरता भुला जाय, मैं कहना चाहत हौं कि हफ्ता बाद मैं इलाहाबाद चले जाहौं, मै ऊहां कुछ महीना रुकहूं। आए वाले साल नोएडा चले जाहूं। आप मन जब कभी इहां आहौ, मोर मेहमान बनके नहीं, मोर अपन बनके मोर साथ रइहौ। एखर साथ मय आप मन ले विदा लेत हौं। जय हिंद। सीजे ने दोनों शहरों में अपना पता भी बताया।

दैनिक भास्‍कर से साभार रिपोर्टिंग : अनुपम सिंह

टिप्पणियाँ

  1. यतींद्र सिंह जी जैसे जज को तो ४-५ साल के लिए सुप्रीम कोर्ट का जज होना था तो न्याय व्यवस्था में बदलाव संभव था.
    बहरहाल उन्हें उनके नए जीवन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  2. सरल - सहज हैं संस्कारी हैं छत्तीसगढ के लोग
    संकोची - भोले - अल्हड हैं छत्तीसगढ के लोग ।
    बाहर से जो पहुना आता मान बहुत देते हैं वे
    सबको कुटुम मानकर चलते छत्तीसगढ के लोग ।
    भले ही कोई करे उपेक्षा लडते नहीं किसी से वे
    जान बूझ कर चुप रहते हैं छत्तीसगढ के लोग ।
    नर हो चाहे नारी डट - कर मेहनत वे करते हैं
    पुरुषार्थी हैं कर्म - वीर हैं छत्तीसगढ के लोग ।
    मेहनत करता है किसान जो भरता सबका पेट
    भुइयॉ के भगवान हैं भैया छत्तीसगढ के लोग ।
    यहॉ की माटी मम्हाती है देवदारु चन्दन जैसी
    'शकुन'यहीं बस जा अच्छे हैं छत्तीसगढ के लोग ।

    जवाब देंहटाएं

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