संदर्भ: भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष : 2

बच्चों के प्रिय हीरो थे दारासिंह

- विनोद साव
 
भारतीय सिनेमा में दारासिंह का भी एक जमाना रहा जब वर्ष 1960 से 1970 के बीच फिल्मों में उनकी मांग खूब थी। वे अखाड़े से आए हुए पहलवान थे। उन्होंने फ्री-स्टाइल कुश्ती की अपनी स्वतंत्र शैली बना ली थी जिसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिल गई थी और वे इस कुश्ती के एक अपराजेय नायक थे। उन्हें ता-उम्र कोई पराजित नहीं कर सका। यह कभी नहीं सुना गया कि दारासिंह किसी दंगल में हार गए हों। वे कुश्ती की हर प्रतियोगिता में हमेशा विजय प्राप्त करते थे। तब अपने आप को बलवान समझने वाले आदमी के लिए यह मुहावरा भी चल पड़ा था कि ‘अपने आप को बड़ा दारासिंह समझता है।’ दारासिंह कुश्ती के दूसरे पहलवानों से भिन्न थे उनका कद साढ़े छह फुट का था। उनका रंग एकदम गोरा था। बाल घुंघराले थे और नाक-नक्श एकदम तराशे हुए से। उनके रोम रोम से उनकी चुस्ती फुर्ती एकदम साफ झलका करती थी। कुश्ती के रींग में वे किसी चीते की तरह उछल कर अपने प्रतियोगी पर वार किया करते थे। तब हम लोग प्रायमरी मिडिल स्कूल के छात्र थे और वे कई बार दुर्ग भिलाई में कुश्ती की प्रतियोगिता में भाग लेने आया करते थे। अपने सुंदर व्यक्तित्व के कारण वे फिल्मों के सफल नायक भी हो गए थे।

बहुत पहले एक बार दुर्ग में शहीद भगत fसंह उच्चतर माध्यामिक शाला की स्थापना के लिए दारासिंह राशि जुटाने आए थे कुछ पहलवानों को लेकर तब टिकट पर एक कुश्ती प्रतियोगिता रखी गई थी। उस दिन मैं दुर्ग रेलवे स्टेशन में अपने किसी रिश्तेदार को छोड़ने गया था। प्लेटफार्म पर संतराबाड़ी, दुर्ग के सरदार भाइयों का बड़ा समूह वहॉं बाजे गाजे के साथ उपस्थित। बम्बई-हावड़ा एक्सप्रेस का आगमन हुआ और प्लेटफार्म पर सरदारों ने भांगड़ा नाचना शुरु कर दिया था। दारासिंह जिन्दाबाद की गूंज होने लगी थी। लोगों ने देखा कि फस्ट क्लास कम्पार्टमेंट से दारासिंह निकले। उनका विराट व्यक्तित्व बाहर आया, वे उंचे पूरे गोरे बदन पर लाल रंग का चुस्त टी-शर्ट

पहने हुए थे और अपने सिर के घुंघराले बालों के साथ वे बेहद खूबसूरत दिख रहे थे। उन्हें देखते ही प्लेटफार्म में भगदड़ गच गई और इस भगदड़ में सिक्ख भाइयों का भांगड़ा शुरु हो गया था और देखते ही देखते वहॉं रंग आ गया था।

दारासिंह अकेले पहलवान हैं जो फिल्मों में हीरो का रोल पा गए थे। रुप रंग में सुंदर होने का उन्हें यह लाभ मिला कि वे लगभग दस बरस तक स्टंट फिल्मों के सफल नायक रहे। उस समय की युवा अभिनेत्रियां निशि, सोनिया साहनी और मुमताज उनकी नायिका बनीं। मुमताज जैसी खूबसूरत और भाव प्रवण अभिनेत्री जिनकी सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ जोड़ी बाद में लोकप्रिय हुई थी उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत दारासिंह की नायिका बनकर की थी। दारासिंह की फिल्मों में केवल मारधाड़ नहीं होते थे बल्कि नायिकाओं के साथ उनके प्रेम दृश्य भी होते थे। उनके गीतों को ज्यादातर महेन्द्र कपूर गाते थे। मुकेश और मोहम्मद रफी की आवाज भी उनके लिए ली गई थी। दारासिंह की एक फिल्म ‘हम सब उस्ताद है’ में उनके साथ शेख मुख्तार और किशोर कुमार ने काम किया था। इस फिल्म में पूरे समय दारासिंह और शेख मुख्तार के बीच लड़ाई चला करती थी और इन दृश्यों के बीच में किशोर कुमार गाने गाया करते थे। प्यार बाॅटते चलो और अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो - जैसे पांच कर्णप्रिय गीत इस फिल्म में किशोर कुमार ने गाये थे और फिल्म हिट हो गई थी। ‘सिकन्दरे आजम’ में उन्होंने सिकंदर बने पृथ्वीराज के साथ पोरस की चुनौतीपूर्ण भूमिका की थी।

बच्चों और किशोरों में दारासिंह ज्यादा लोकप्रिय हुए थे। उनकी फिल्में जब हाउसफूल चला करती थीं तब उनमें प्रायमरी मिडिल स्कूल पढ़ने वाले छात्रों की भीड़ अधिक हुआ करती थी। फिल्मों में उनकी बहादुरी के दृश्य देख देखकर बच्चे खूब ताली बजा कर मजा लिया करते थे। वे अक्सर किसी शैतान की गुफाओं में घुस जाते थे और उसका अंत कर लोगों को उसके दमन और अत्याचार से बचाने वाले महानायक बन जाते थे। बच्चों के बीच दारासिंह की वैसी ही इमेज बन गई थी जो कॉमिक्स की दुनियॉं में महा-मृत्युंजय या फैंटम की थी, टीवी धारावाहिकों में शक्तिमान या स्पाइडर मेन की थी। धार्मिक फिल्मों में हनुमान और भीम की थी। वे सामाजिक फिल्मों से भी ज्यादा अपनी धार्मिक फिल्मों में छाप छोड़ते थे। हनुमान और भीमसेन के रुप में वे ज्यादा लोकप्रिय हुए थे। शंकर की भूमिका भी उन्होंने की थी।

दारासिंह में अपने पंजाब के प्रति बड़ा प्रेम था। उनकी संवाद अदायगी में पंजाबी भाषा का प्रभाव था। टीवी पर उनके साक्षात्कार पंजाबी में होते थे। अपने फिल्मों में जीये चरित्र की तरह उनमें देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी थी। वे अपने वास्तविक जीवन में भी एक सहृदयी इंसान और सच्चे देशभक्त लगा करते थे। वे राज्य सभा के सदस्य हो गए थे। देवानंद, शम्मीकपूर जैसे अनेक जनप्रिय-नायकों की तरह दारासिंह ने भी अपनी अंतिम साॅस एक ऐसे समय में ली है जब हम भारतीय फिल्मों के सौ वर्ष मना रहे हैं।
विनोद साव, मुक्तनगर, दुर्ग, छत्तीसगढ
मो. 9407984014


20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।
संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com

3 टिप्‍पणियां:

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...