संदर्भ: भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष

लोकप्रियता की अजब पहेली राजेश खन्ना
कुछ अनछुए आत्मीय प्रसंग
विनोद साव

साल 1969 से 1974 तकरीबन पॉंच सालों का यह एक ऐसा दौर था जिसमें हमारे हिस्से में राजेश खन्ना आए। हम हाई स्कूल के छात्र फिल्मी दर्शक के रुप में राजेश खन्ना बैच के छात्र थे, जबकि वे हम स्कूल के लड़कों से दस-बारह साल बड़े रहे होंगे लेकिन हमारे वे एक ऐसे प्रिय पात्र हो गए थे कि वे हम सबको अपने साथ पढ़ने वाले किसी मित्र की तरह लगा करते थे। हम पर राजेश खन्ना का प्रभाव कितना गहरा था इसका एहसास तब हुआ जब हमें स्कूल की लड़कियॉं शर्मिला टैगोर और मुमताज की तरह दिखने लगी थीं। हमें ऐसा लगता कि हमारी सूरत किसी ऐसे हीरो से मिल रही है जिसे हमने ‘आराधना या ‘कटी पतंग’ में देखा हो। हमारे सिर के बालों के बीच थोड़ी बाॅयीं ओर मांग अपने आप निकलने लग गई थी। अपनी मुचमुची मुस्कान के साथ हम आॅखें झपका कर बातें करने में मशगूल हो जाते थे। हमने डबल सिलाई वाले शर्ट पहने। धोती और पाजामा के साथ नहीं बल्कि पेंट के उपर कुरता पहनने का नया शौक चर्राने लगा था, जिसे गुरु शर्ट कहा जाता था। उनके पहने कोट में पहली बार फ़र वाले कॉलर दीखने लगे थे। जिस लड़के के चेहरे पर खुरदुरी बरहट होती वह तो और भी राजेश खन्ना की तरह रुमानी लगा करता। हमारी आवाज में वही आत्मीयता और अपनापन आने लगा था जो उन दिनों सिनेमाहालों में गूंजा करती थी। यात्रा के समय हम ट्रेन में खिड़की के पास बैठते तब हमारे भीतर ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’ के बोल गूंजने लगते। तब राजेश नाम जो कि कचरे के अम्बार की तरह फैला हुआ नाम था अकस्मात ही चमकदार हो उठा और हर राजेश नामधारी इन्सान को हम राजेश खन्ना समझकर देखा करते थे। देश के हर लड़के के उपर राजेश खन्ना का भूत सवार था और हर लड़की के सपने में राजेश खन्ना।

‘अमरप्रेम’ का वह दृश्य याद आ रहा है जिसमें शर्मिला टैगोर से मिलने के लिए राजेश खन्ना पत्तल में समोसे और चटनी लेकर आया करते थे। वह बारह बजे का मैटिनी-शो था। इंटरवल करीब डेढ़ बजे के आसपास होना था। हम काॅलेज के मित्र फिल्म देख रहे थे। इस दृश्य का ऐसा असर पड़ा कि इंटरवल में हम तीन मित्र मिलकर दर्जन भर समोसे खा गए। हमने समोसे खाना भी राजेश खन्ना से सीखा।

राजेश खन्ना एक बार हमारे शहर दुर्ग आ गए थे कांग्रेस का चुनाव प्रचार करने। उनकी चुनावी आम सभा हमारे घर के पास पद्मनाभपुर स्थित मैदान में थी। शहर में यह पता चला कि वे लड़कियाॅ जो सोलह बरस की उमर में अपने जिस लवर बॉय राजेश खन्ना की दीवानी थीं, वे सभी उनके आगमन के समय चालीस-ब्यालीस बरस की हो गई थीं, लेकिन अपने प्रिय नायक के अपने शहर में आने की खबर ने उनमें झुरझुरी पैदा कर दी। उन्हें सहसा विश्वास नहीं हो पाया कि उनके दौर के रुपहले परदे का एक महानायक उनके शहर के किसी मैदान में अपनी आशिक अदाओं में बोलेगा। वे उस कालखंड में विचरण करते हुए कब उस चुनावी आम सभा के सामने आकर खड़ी हो गईं उन्हें खुद ही होश नहीं रहा था। ऐसी भारी भीड़ उन प्रौढ़ महिलाओं की दिखी थी जो अपनी किशोरावस्था में इस सम्मोहक नायक के लिए सिनेमाहालों की ओर भागा करती थीं। आज भागकर वे इस मैदान में पहुंच गई थीं। सुपर स्टार उस दिन सफेद कुरते और पाजामे में थे। अभिनेता के नहीं एक नेता के लिबास में। उन्होंने अपना भाषण देने के बाद जोर से आवाज लगाई ‘भाइयो...आप लोग अपना बहुमूल्य वोट साहू साहब को दें।’

‘कौन सा साहू... यहॉं तो सभी साहू हैं।’ उस समय दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस, भाजपा और बसपा तीनों प्रमुख दलों के उम्मीदवार साहू थे। तब उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी जागेश्वर साहू का हाथ उठाकर कहा ‘इन्हें अपना वोट दें ...यही है असली साहू...।’

मैं शाम को अपने कार्यालय से घर आया। तब मेरे छोटे बेटे अमिय ने पुलकते हुए बताया था कि ‘पापा हम तो आज राजेश खन्ना से मिले हैं। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरा।’ उसने सारा वृतांत कह सुनाया। वह चुनावी आमसभा के पास वाले स्कूल में छठवीं कक्षा का विद्यार्थी था। स्कूल से छुट्टी होने के बाद वह चुनावी मंच की ओर दौड़ गया था और मंच के सामने जाकर खड़ा हो गया। अपना भाषण देने के बाद राजेश खन्ना जब मंच की सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे तब पास खड़े एक मिडिल स्कूल के बच्चे को स्कूल यूनिफार्म में देखकर वे प्रफुल्लित हो गए और स्नेह से अपना हाथ उसके सिर पर रखते हुए आगे बढ़ गए थे।


कभी प्रतिष्ठित पत्रिका ‘धर्मयुग’ के बाल-जगत स्तंभ में बच्चों के लिए साक्षात्कार देते हुए उन्होंने बताया था कि ‘एक बार एक नाटक में उन्हें दरबान की भूमिका दी गई थी जिसमें एक छोटा सा डॉयलाग बोलने में उन्हें पसीना छूट गया था।’ आगे चलकर यही वो कलाकार है जिसकी प्यार से लबरेज आवाज को सुनने के लिए दर्शक हमेशा तरसते थे। तब उनकी फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ ने बच्चों का मन मोह लिया था। उनकी ज्यादातर फिल्में पारिवारिक और भावना प्रधान होती थीं। किसी भी किरदार में वे अपने दोस्ताना अंदाज में छा जाते थे। वे आज के नायकों की तरह अंडरवर्ड में स्टेनगन लेकर दौड़ने वाले हीरो नहीं थे। अपने समय के उम्दा निर्देंशकों ऋषिकेश मुखर्जी, वासु भट्टाचार्य, असित सेन, शक्ति सामन्त, दुलाल गुहा और यश चोपड़ा के वे चहेते नायक थे। वे सदाबहार देव आनंद की शैली के कलाकार थे। चाल-ढाल, पहनाव-ओढ़ाव, रुप सौन्दर्य और अन्दाज में रुमानी पन, संवाद अदायगी का अपना अलग ढंग - ये कुछ ऐसी समानताएँ थीं जो इन दोनों में एक जैसी थीं। दोनों की लबों पर किशोर कुमार की आवाज खूब फबती थी। देव साहब ने संगीतकार एस.डी.बर्मन को स्थापित किया तो राजेश खन्ना ने आर.डी.बर्मन को।

कुछ दिनों पहले भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष पर शाहरुख खान ने एक सम्मान समारोह का आयोजन करवाया था और उसमें राजेश खन्ना के साथ दिलीपकुमार और कई मशहूर कलाकारों को बुलाया गया था। बूढ़े हो चुके, मंच पर शांतचित्त बैठे राजेश खन्ना को जब बोलने के लिए आमंत्रित किया गया तब वहॉं उनके खड़े होते ही हर्ष और उल्लास की एक लहर दौड़ गई। उन्होंने अपनी फिल्म ‘दाग’ की वह भावपूर्ण कविता सुनायी ‘आज मैं हूँ जहॉं कल कोई और था, यह भी इक दौर है और वह भी इक दौर था... मेरे दोस्त मैं तो कुछ भी नहीं।’ यह यश चोपड़ा निर्देशित ‘दाग’ के एक दृश्य की लम्बी कविता का अंश है जिसमें नगर निगम में मेयर के चुनाव जीतने के बाद जब उनके सम्मान में कार्यक्रम रखा जाता है वहॉं यह कविता नायक द्वारा सुनाई जाती है। उसी कविता को जब आज वे अपने सम्मान में सुना रहे थे तब समारोह स्थल तालियों और सीटियों से गूँज उठा था। यह दिखा कि आज भी उनके चाहने वालों में एक अतृप्ति और छटपटाहट बाकी है, वह प्यास बाकी है जो उनके समय में थी। आज भी चैनलों में और आर्केस्ट्रा पार्टियों में सबसे ज्यादा उनके सिने गीतों को देखे सुने जाने की उद्दाम लालसा भरी है। दिल अभी पूरी तरह भरा नहीं है।

आज उनके प्रशंसक भी साठ बरस के आसपास हैं और राजेश खन्ना सत्तर के करीब। पिछले बरस मुम्बई गया था। जब टूरिस्ट बस में घूम रहे थे तब बस अचानक राजेश खन्ना के मकान के सामने रुक गई थी। गाइड ने बताया कि ‘काका कभी कभी काला चश्मा पहने यहॉं अपनी छत पर बैठकर अखबार पढ़ते रहते हैं।’ उनके मकान का नाम ‘आशीर्वाद’ है। इस मकान को उन्होंने राजेन्द्र कुमार से खरीदा था तब इस मकान का नाम ‘डिम्पल’ था। सिनेमा की नायिका डिम्पल नहीं राजेन्द्र कुमार की बेटी का नाम भी डिम्पल था। कुँआरे राजेश खन्ना ने जब इस मकान को खरीदा तब मकान का नाम बदलकर ‘डिम्पल’ से ‘आशीर्वाद’ कर दिया। तब उन्हें मालूम नहीं था कि उनके जीवन में कोई डिम्पल नाम की नायिका आवेगी और उनके साथ ब्याही जावेगी।


हमारी टूरिस्ट बस उस मकान ‘आशीर्वाद’ के सामने खड़ी थी। हम बस की खिड़कियों से झांककर देख रहे थे। सामने अरब सागर में अठखेलियॉं करती उसकी लहरें और समुद्र के सामने एक उजड़ा हुआ-सा मकान। फिल्म ‘दाग’ में गाई गई उनकी कविता की तरह। शिखर पर पहुंचना आसान होता है पर वहॉं टिके रहना कितना कठिन। राजेश खन्ना ने अपने एक छोटे संस्मरण में यह लिखा था कि ‘मुझे यह भय सताने लगा था कि आज जिस शिखर पर मैं हूँ और कल कहीं उस शिखर से उतार दिया जाउँ तब मेरे लिए जीना कितना भयावह होगा। इस भय से मैं अँधेरी रात में अपने घर के सामने समुद्र में घुस गया था, उसमें डूब जाना चाहता था। पर मरना भी मेरे हाथों में नहीं था।’

उनके मकान के सामने एक छोटी लॉन है। मकान का मुख्य प्रवेश द्वार खुला हुआ था और भीतर सुपर-स्टार की एक बड़ी पोट्रेट लगी हुई थी जो बाहर से भी साफ दिखलाई दे रही थी। पोट्रेट में वे अपनी उसी मुस्कान पर थे जिस पर उनके लाखों चाहने वाले फिदा थे। इस चित्र में वे अपना गुरु कुरता पहने हुए हैं। पेंट के उपर इस कुरते को पहनने का चलन उन्हीं से हुआ था। यह चित्र उनकी सबसे सार्थक फिल्म ‘आनंद’ से लिया गया है ‘जिंदगी कैसी है पहेली’ वाला गीत गाते हुए दृश्य। हिन्‍दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार, हर दिल अजीज अभिनेता जिसने लोकप्रियता की एक इतिहास बदल देने वाली उंचाई को प्राप्त किया था, उस राजेश खन्ना की दगी में आज ये कैसी पहेली छाई हुई है इसे कोई नहीं बूझ पा रहा है।


विनोद साव, मुक्तनगर, दुर्ग, छत्तीसगढ
मो. 9407984014


20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।
संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com

10 टिप्‍पणियां:

  1. एक बहुत ही खूबसूरत और सहेजने वाली पोस्ट । सच में उस दौर की बात ही और थी

    जवाब देंहटाएं
  2. विनोदजी, बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है आपने और एकदम सार्थक. सच बात है कि जब राजेश खन्ना की आराधना और हाथी मेरे साथी जैसी फ़िल्में आयीं तो मैं ४-५वी कक्षा में थी. हमारी क्लास में जो elite क्लास की लड़कियां थी, वो सब राजेश खन्ना के नाम पर बेहोश होने की एक्टिंग करती थी, कुछ कहती थी कि वो राजेश खन्ना से ही शादी करेंगी. हमारे जैसी औसत लड़कियां बस चुपचाप उनको निहारकर ईर्ष्या से मर मर जाती थी कि हाय हम भी खूबसूरत होते तो राजेश खन्ना जैसे अभिनेता की पलक झपकाने की अदा पर सार्वजनिक रूप से मर मिटते.

    जवाब देंहटाएं
  3. bahut hi rochak aur aanand dene wali rochak sansmaran hai ye superstar rajesh khanaa ki ..........badhai ..

    जवाब देंहटाएं
  4. एक लम्बा सफर, अपने चाहने वालों के बीच..

    जवाब देंहटाएं
  5. राजेश खन्ना का पाँच साल का समय महानायक अमिताभ बच्चन के पचीस साल के समय के बराबर है लेकिन तब बहुत दुख होता है जब वे एक विज्ञापन में कहते हैं कि बाबू मोशाय तुम मेरे फैन नहीं ले जा सकते और एक विशेष कंपनी के फैन दिखने लगते हैं यह राजेश के गौरव को नहीं विडंबना को कहता है और राजेश इसे समझ नहीं पाये। विनोद जी ने सफलता के शिखर पर पहुँचे व्यक्ति की मानसिकता का जो वर्णन किया वो भी अद्भुत है। उनका नाम पहली बार तब सुना जब विनोद कुमार शुक्ल जी के घर एक बार बैठा हुआ था शायद २ जनवरी को, उन्होंने बताया कि विनोद साव की इच्छा थी कि इस बार उनका जन्मदिन साथ ही सेलिब्रेट करें, उनका कहा हुआ हर शब्द बहुत महत्वपूर्ण होता है इसलिए ये याद रह गया है।
    अच्छे लेख के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. aap hindi mein lipi kaun si use karte hain....how do u write in hindi?

    जवाब देंहटाएं
  7. विनोद भाई आपका मेसेज मिला था लेकिन इस लेख को पढ़ नहीं पाया था । आज पढ़ा जब राजेश खन्ना जी नहीं रहे ।
    संजीव , इसका लिंक फेसबुक में दे दिया है , अपना अधिकार समझकर । साभार ।

    जवाब देंहटाएं
  8. संग्रहणीय आलेख है .आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन सावजी,आपने उन दिनों की याद दिलाई जिन्हें याद करना सबसे सुंदर सपनों जैसा है मगर जिनके पास रिटर्न टिकट नहीं है

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...