छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माता व वरिष्ठ रंगकर्मी संतोष जैन का मानना है छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रोत्साहित करने राज्य सरकार सब्सिडी दे। तथा महाराष्ट्र की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी स्थानीय भाषा की फिल्मों को अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करने छबिगृह संचालकों को निर्देशित किया जाये। जिस तरह महाराष्ट्र में मराठी फिल्मों को नहीं दिखाने पर टॉकीज के लायसेंस रद्द करने की कार्रवाई की जाती है। छत्तीसगढ़ में भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को बढ़ावा देने अंचल के छबिगृहों में यह व्यवस्था लागू की जाये। श्री जैन ने 'देशबन्धु' के कला प्रतिनिधि से बातचीत में ये बातें कही। उन्होंने ये भी सुझाव दिया कि छालीवुड में बनने वाली फिल्मों का प्रदर्शन दिल्ली दूरदर्शन से किया जाये। क्योंकि छत्तीसगढ़ में सात-आठ जिले ही ऐसे हैं जहां छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रदर्शित किया जाता है। पूरे भारत में छत्तीसगढ़ी में बनने वाली फिल्मों का प्रचार प्रसार हो इसके लिए दिल्ली दूरदर्शन से यहां की फिल्में प्रसारित हो ऐसा प्रयास किया जाये। इस मुद्दे को छत्तीसगढ़ सिने एवं टीवी एसोसिएशन द्वारा प्रमुखता से उठाया जायेगा।
- छालीवुड में ढर्रे पर बन रही फिल्मों में बदलाव लाने क्या गाइड लाइन बनाने की जरूरत है?
देखिए हमारे यहां छत्तीसगढ़ी फिल्मों का मार्केट छोटा है। इसलिए फिल्म निर्माता जोखिम उठाने से घबराते हैं। फिल्मों में लगा पैसा वापस हो पायेगा कि नहीं ये ज्वलंत प्रश् है। इसलिए ज्यादातर लोग एक ही तरह की फिल्म बनाने की सोचते हैं। पर जैसे-जैसे विस्तार होगा नये-नये विषयों पर छत्तीसगढ़ी फिल्में देखने को मिलेगी। वैसे छत्त्तीसगढ़ी फिल्मों में 'मया' के बाद एक बार फिर निर्माता उत्साहित हैं। कई नई फिल्में आने वाले समय में प्रदर्शित होगी। तीन वर्षों में 50 फिल्में छत्तीसगढ़ी में बनी जिनमें 46 फिल्मों को सेंसर बोर्ड ने पास किया। हमारे छालीवुड में सुलझे हुए फिल्म निर्माताओं की कमी नहीं है। बस थोड़ा प्रोत्साहन चाहिए।
आपने कॅरियर की शुरूआत के बारे में बताएं? रंग कर्म में आपकी दिलचस्पी कब से हैं?
मैंने अपने कॅरियर की शुरूआत रंगकर्मी के रूप में की। नाटकों से लगाव रहा। मैंने 'मुर्गीवाला' नाटक तैयार किया। महाराष्ट्र मंडल में उन दिनों जब मुक्तिबोध राष्ट्रीय नाटय समारोह का आयोजन होता तब हमारी टीम ने इस नाटक का मंचन किया। जिसे दर्शकों ने काफी सराहा। भिलाई, दुर्ग, राजनांदगांव, रायपुर सहित अन्य स्थानों पर नाटक मंचन करने का मौका मिला। अब तक 25 से 30 नाटकों में हिस्सा ले चुका हूं। फिर दूरदर्शन से जुड़ा और इसके लिए छत्तीसगढ़ी में पहला धारावाहिक 'भोर के तारा' मैंने बनाया। दिल्ली दूरदर्शन से डीडी भारती पर 'पैजानिया' धारावाहिक शीघ्र ही प्रसारित होगा। छत्तीसगढी फ़िल्म 'बंधना' का निर्देशन मैंने किया है जो कि स्थानीय ग्रामीण परिवेश पर आधारित फिल्म है। जल्द ही इसे प्रदर्शित करने की तैयारी की जा रही है। ईरा फिल्म के बैनर तले 'जय बम्लेश्वरी मइया' छत्तीसगढ़ी फिल्म बनी थी। जिसे दर्शकों ने काफी सराहा। कई वृत्त चित्र, टेलीफिल्म का निर्माण भी किया। कोशिश यही रहती है नयेपन के साथ संदेश परक फिल्में दर्शकों तक पहुंचाया जाये। जिसमें छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति समाहित हो तथा स्थानीय लोक कलाकारों की प्रतिभा का भरपूर दोहन हो।
- छत्तीसगढ़ में बेहतर फिल्म निर्माण के लिए किस तरह के प्रयास हो रहे हैं?
इसमें कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ में फिल्म निर्माण की काफी संभावनाएं हैं। पहले भी फिल्म निर्माण से जुड़े लोगों ने प्रयास किया कि हमारे यहां बेहतर फिल्मों का निर्माण हो। जोगी के शासनकाल में फिल्म विकास निगम का गठन किया गया। परेश बागबाहरा इसके अध्यक्ष रहे। संगठित होकर फिल्म निर्माण से जुड़े कई पहलुओं को जानने की कोशिश हुई। पर दो तीन साल बाद गतिविधियां थम सी गई। एक बार फिर हम संगठित हुए हैं। और ये बड़ी खुशी की बात है कि सिनेमा व टेलीविजन से जुड़े फिल्म निर्माता, कलाकार व तकनीकी सहयोगी, रंगकर्मियों ने मिलकर हाल ही में छत्तीसगढ़ सिने एवं टीवी एसोसिएशन का गठन किया। प्रेम चंद्राकर अध्यक्ष, मनोज वर्मा सचिव बनाये गये। छालीवुड से जुड़े फिल्म निर्माता सतीश जैन के अलावा हमारे एसोसियेशन में कई समर्पित कलाकार भी शामिल हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब एक बार फिर हम संगठित होकर अपनी बात शासन तक पहुंचायेंगे। तथा छालीवुड में बेहतर काम हो यह प्रयास होगा। मेरा ये भी मानना है कि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बनाने के साथ ही यहां के साहित्य और फिल्मों को भी पर्याप्त प्रोत्साहन देने की जरूरत है। अभी तक जो प्रोफेशनल काम नहीं हो पाया अब इस इंडस्ट्री में होने की उम्मीद है। हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं बस उन्हें मौका देने की जरूरत है।
मेरे फाईल से समाचार पत्र का पुराना कतरन ... देशबंधु से साभार सहित
आंचलिक फिल्मों को सच्चा प्रोत्साहन दर्शकों से ही मिलेगा.
जवाब देंहटाएंआर्थिक नींव पर सांस्कृतिक विरासत स्थापित करना कहीं अनर्थ न कर बैठे।
जवाब देंहटाएंJahaan Rahul Singh jii kii baat mein dam hai wahin Praveen Pandey jii kii aashankaa ki aarthik neenw par saanskritik wiraasat sthaapit karnaa kahin anarth na kar baithe, nirmuul nahin hai. Saawdhaanii baratane kii aawashyakataa hogii.
जवाब देंहटाएं