कामरेड कमला प्रसाद : संगठन और लेखन के बीच खड़ा कलाकार - विनोद साव

कुशल संगठन कर्मी, प्रगतिशील लेखक संघ के मुखपत्र ‘वसुधा’ के संपादक, लेखक कामरेड कमला प्रसाद का विगत 25 मार्च 2011 को अवसान हो गया। दुर्ग भिलाई से उनकी अनेक स्मृतियॉं जुड़ी थी। उन्हें याद करते हुए विनोद साव जी का यह आलेख यहॉं प्रस्तुत है -
संगठन और लेखन के बीच खड़ा कलाकार
विनोद साव

ऐसे कई लोग जीवन में आते हैं जिनसे हमारी कोई विशेष अंतरंगता नहीं होती, कोई निकट परिचय नहीं होता पर वे फिर भी अच्छे लगते हैं। कोई अपने व्यक्तित्व से अच्छा लगता है तो कोई अपनी कार्य प्रणाली से। कमला प्रसादजी मेरे लिए ऐसे ही लोगों में से थे। मैं कह भी नहीं सकता कि एक लेखक के रुप में वे कितना मुझे जानते थे। उनसे मेरा कोई व्यक्तिगत सम्बंध नहीं था। न कोई पत्र-व्यवहार था। न ही उनकी पत्रिका ‘वसुधा’ में मेरी कोई रचना छपी थी। रचना छापे जाने के बाबत उनसे कोई बातचीत भी कभी नहीं हुई थी। पर बीते दिनों में उनका एक पत्र प्राप्त हुआ था जिसमें उन्होंने बंगाल पर लिखी गई मेरी रचना ‘शस्य श्यामला धरती’ को स्वीकृत करते हुए लिखा था ‘प्रिय विनोद, तुम्हारी रचना हम वसुधा के नये अंक के लिए ले रहे हैं, इसे अन्यत्र मत भेजना।’ मुझे बड़ी खुशी हुई क्योंकि ‘वसुधा’ में यह पहली बार छपने का अवसर आ रहा था। एक लम्बे अंतराल के बाद स्वीकृति मिलने के कारण यह रचना ‘अक्षरपर्व’ में पहले ही स्वीकृत हो चुकी थी, अतः ललित सुरजन जी को फोन किया कि ‘अक्षरपर्व के लिए मैं अंडमान-निकोबार पर लिखा गया दूसरा यात्रा वृत्तांत भेज रहा हॅू, कृपया बंगाल वाली रचना को न छापें, इसे वसुधा के लिए छोड़ दें।’ तब हमेशा मेरा उत्साहवर्द्धन करने वाले ललित भैया ने अपनी चिर-परिचित खनकती आवाज में हॅसते हुए कहा था ‘ठीक है।’ कमला प्रसाद का वह स्वीकृति पत्र मेरे लिए उनका पहला पत्र था और वही अंतिम भी रहा।
कमला प्रसादजी को पहली बार मैंने भोपाल में देखा था जब मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा भवभूति अलंकरण एवं वागीश्वरी सम्मान समारोह का आयोजन वर्ष 1998 में रखा गया था। उस वर्ष भवभूति अलंकरण प्रसिद्ध कथाकारा मालती जोशी को मिलना था। मेरे उपन्यास ‘चुनाव’ को वागीश्वरी पुरस्कार के लिए चुना गया था और मुझे आमंत्रित किया गया था। नाटक के लिए परितोष चक्रवर्ती चुने गए थे। पुरस्कार डाॅ. नामवरfसंह द्वारा दिया जाना था। तब आयोजकों से मेरा कोई परिचय नहीं था और मैं आशंकित मन से समारोह में उपस्थित हुआ था। विश्राम गृह में कुछ लोग बैठे हुए थे जिनमें रायपुर से वहॉं पहुंचे हुए प्रभाकर चौबेजी ने देखकर जैसे ही किलकती आवाज में मुझे पुकारा तब आयोजकों के समूह ने मुझे पहचाना था। उनमें कमला प्रसाद, शिव प्रसाद श्रीवास्तव और राजेन्द्र शर्मा थे। मुझे आश्चर्य हुआ था कि पुरस्कार समिति के निर्णायकगणों को तब न मैं अच्छे से जानता था और न वे मुझे जानते थे, इन सबके बावजूद भी मुझे पुरस्कार कैसे मिल गया था।
मैंने कमला प्रसाद जी से कहा कि ‘परसाई ग्रन्थावली का सम्पादन कर आपने बहुत महत्वपूर्ण काम किया है।’ अपने सामने बैठे एक युवक से इस तरह के प्रशंसा भरे शब्दों को सुनकर उन्होंने विनम्र व्यंग्य से कहा था कि ‘अब आप कह रहे हैं तो लग रहा है विनोदजी कुछ काम हुआ है अन्यथा ऐसे लगता है कि अब तक कुछ किया ही नहीं।’ कमला प्रसाद स्वयं एक अच्छे लेखक थे। उनके ललित निबन्धों का एक संग्रह आया था जिनमें कई जगह बड़ी व्यंग्योक्तियॉं उभरती हैं। पर वे व्यंग्य को जोर देकर ललित निबन्ध कहने के पक्षधर थे। कोई उन्हें अपने व्यंग्य संग्रह भेंट करता तब भी संग्रह को उलट पुलटकर देखते हुए वे तत्काल कह देते थे कि ‘अच्छा यह आपके ललित निबन्धों का संग्रह है!’
इसमें कोई शक नहीं कि कमला प्रसाद एक कुशल संगठन कर्मी थे। साहित्य जगत में दिल्ली के बाद साहित्य का दूसरा बड़ा गढ़ पिछले कुछ दशकों से भोपाल ही माना जाता रहा है... और भोपाल के आयोजनों के केन्द्र में कमला प्रसाद और उनके मित्र रहे हैंे। चाहे वे एक संगठन कर्मी के रुप में मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन से जुड़े रहे हों या मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ से या मध्यप्रदेश कला एवं संगीत अकादमी के अध्यक्ष के रुप में रहे हों या प्रगतिशील लेखक संघ के मुखपत्र ‘वसुधा’ के सम्पादक के रुप में रहे हों। वे जहॉं भी रहे उन्होंने अपनी सक्रियता और प्रभाव से अपनी भरपूर उपस्थिति दर्ज की। वे दिखते अच्छे थे, बोलते अच्छे थे। कार्यक्रमों के कुशल संचालक थे। साहित्य और संगीत के बड़े समारोहों के आयोजन में उन्हें दक्षता हासिल थी और वे लोगों के बीच छा जाने वाले व्यक्तित्व हो गए थे।
मध्य भारत में परसाई की परम्परा के संवाहक लेखकों का एक अच्छा खासा ‘इंटलेक्चुअल इकूप’ (बौद्धिक समूह) तैयार हो गया था। इनमें प्रमोद वर्मा, कान्ति कुमार जैन, भगवत रावत, मलय, धनंजय वर्मा, कमला प्रसाद, रमाकांत श्रीवास्तव जैसे लोग थे। इन सब पर हरिशंकर परिसाई का गहरा प्रभाव रहा। परसाई जबलपुर में थे और ये सभी लोग जबलपुर को अपना केन्द्र माना करते थे। वहॉं अध्ययन-अध्यापन के सिलसिले में आया जाया करते थे। ये सब परसाई की प्रेरणा से गतिमान होते थे और अपने प्रतिबद्ध विचारों के लिए जाने जाते थे। एक ख़ास बात और थी की यह पूरी मंडली न केवल संगठन कर्म में जुटी रही बल्कि गाहे बगाहे इन लोगों ने आलोचना विधा पर काम किया। fहंदी आलोचना को समृद्ध किया। ये सभी व्यक्तित्व संपन्न थे। इनमें वाक् पटुता थी और व्यवहारवादी थे। इन्होंने मध्य प्रदेश में प्रगतिशील आन्दोलन को गति दी थी। बाद में भले ही परिवेश बदला और दूसरी स्थितियॉं बनीं पर इन सबने अपने तई कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। कमला प्रसाद ने ‘वसुधा’ का सम्पादन भार सम्हाला जिसके संस्थापक परसाईजी थे। इस पीढ़ी में सशक्त कहानीकार ज्ञानरंजन हुए थे जिन्होंने जबलपुर से ‘पहल’ निकाली थी। कुछ शहर होते हैं जो किसी कालखण्ड में हस्तियॉं पैदा करते हैं - एक समय में कलकत्ता ने अनेक समजासुधारक पैदा किए। इलाहाबाद हुआ जिन्होंने कई साहित्यकारों और विचारकों को मुखरित होने का अवसर दिया। वैसे ही जबलपुर था जहॉं लेखकों और संस्कृति कर्मियों का जमावड़ा हुआ।
ऐसे कई संगठन कर्मियों के बारे में यह मान्यता बनती है कि ‘वे संगठन में नहीं गए होते तो एक अच्छे लेखक हो सकते थे। संगठन के नाम पर उन्होंने अपने लेखन की बलि चढ़ा दी।’ ऐसा कमला प्रसाद और उनके कुछ मित्रों के बारे में भी कहा जा सकता है। उन्होंने जरुर कोशिश की होगी संगठन और लेखन के बीच खड़े होने की, संतुलन बनाने की।
ऐसे समय में जब सूचना और तकनीक माध्यमों के कारण संवेदना और विचार का संकट गहरा रहा है यह हल्ला हमारे बुद्धिजीवी कर रहे हैं। तब कमला प्रसाद द्वारा निरन्तर निकाली जाने वाली त्रैमासिक पत्रिका ‘वसुधा’ को आगे भी निकालने की कोशिश होनी चाहिए वरना फिर किसी सार्थक संवाद की पत्रिका के बन्द हो जाने का खतरा मंडरावेगा।

विनोद साव
मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
मो. 9407984014
20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में सहायक प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं।

6 टिप्‍पणियां:

  1. कमला प्रसाद जी के बारे में 'कबाड़खाना' ब्‍लॉग पर पढ़ा था जब उनका निधन हुआ था। आज आपने और विस्‍तार से उनके बारे में बताया। इसके लिए बहुत धन्‍यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पे आने से बहुत रोचक है आपका ब्लॉग बस इसी तह लिखते रहिये येही दुआ है मेरी इश्वर से
    आपके पास तो साया की बहुत कमी होगी पर मैं आप से गुजारिश करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे भी पधारे
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पे आने से बहुत रोचक है आपका ब्लॉग बस इसी तह लिखते रहिये येही दुआ है मेरी इश्वर से
    आपके पास तो साया की बहुत कमी होगी पर मैं आप से गुजारिश करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे भी पधारे
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  4. अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
    बस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
    और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...