विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
पीपली लाईव क हीरो ओंकार दास उर्फ नत्था, फिल्म के प्रमोशन के बाद भिलाई वापस आने पर अपनी पत्नी से फिल्मी स्टाईल में मिलते हुए.
चित्र http://zaraidharbhi.blogspot.com से साभार
निवेदन : शीर्षक को पढने के बाद .... रघुवीर यादव का डायलाग याद मत करिए .
चित्र http://zaraidharbhi.blogspot.com से साभार
बम्बइया होगे बू्जा हां
जवाब देंहटाएंलजावत नईए।
जोहार ले साहेब
ललित भईया हर सिरतोन गोठियावत हवे. ये बूजा हा तभे लजाही जब "हलकान हो गेंव दाई" सुनही.
जवाब देंहटाएंपत्नी का भाव विभोर आलिंगन , मुझे तो बहुत पसन्द आया :)
जवाब देंहटाएंआपने तो मना करके बरबस याद दिला दी -बहुत खराब आदत ! मुला यी मिलन तो चौचक है -वहीं थे क्या तिवारी जी जो ई धाँसू तस्विरिया खींच लिए ....?
जवाब देंहटाएंकितना मधुर है यह आलिंगन
जवाब देंहटाएं@धन्यवाद ललित, पाबला, हबीब, अली भैया.
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द भैया :)
याद आ गया. इसीलिये रघुवीर यादव ने "वो" डायलोग बोला था. हा हा हा. मस्त तस्वीर है.
जवाब देंहटाएंबड़ी भावप्रधान, बहुत कुछ कहता चित्र।
जवाब देंहटाएंnivedan kar ke aapne spcly vo dilog yad karwa diya
जवाब देंहटाएं;)
ये हुई न बात!!
जवाब देंहटाएंपूरे भाव छलक आये मधुर मिलन के तस्वीर में.
गौर से देखिए। पति-पत्नी दोनों के चेहरे पर सार्वजनिक रूप से गले मिलने का संकोच भाव साफ दिखता है। यह स्टाईल फिल्मी नहीं,शुद्ध देसी है।
जवाब देंहटाएंफोटू, केमरा वाले फिलम में नत्था को घेरे रहे और सिनेमा से बाहर आने पर ओंकार के लिए हाजिर हैं. जिंदगी तो चलती है, चलती रहेगी, 'फेर ए बेर्रा केमरा ल तो अब तोप देव ग, एको घरी बर तो ग'
जवाब देंहटाएंनत्था जी तो बम्बइयया हो गऐ मैडम भी अगर हो जाऐ तब ...........फोटो संभालकर रखे, बाद में ज्यादा अच्छा उपयोग होगा .... सतीश कुमार चौहान
जवाब देंहटाएंपति की सफलता पर पत्नी का विभोर हो गले मिलना पत्नी के लिए सातवें आसमान की सैर के समान है। खेल के मैदान में भी तो यह देखा जा सकता है कि कड़े संघर्ष से मिली सफलता पर खिलाड़ी आलिंगनबद्ध हो जाते हैं बिना किसी बंधन के।
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण मिलन है।
जवाब देंहटाएंअगर हमारे नत्था जी के स्थान पर ऐश्वर्या राय और अभिषेक बच्चन इस प्रकार भावपूर्ण आलिंगन कर रहे होते तो शायद सभी को अच्छा लगता और इतनी बातें भी न होती.........
जवाब देंहटाएंअरे इतनी पाबन्दी भी ठीक नहीं अब मिलने भी दो इन्हें........!!