बस्तर मे आदिवासियों का माटी तिहार और उल्लास

बस्तर के आदिवासियों का जीवन तथा सारा अस्तित्व जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत माटी से ही जुड़ा होता है। माटी के बिना वह स्वयं की कल्पना नहीं कर सकता। बस्तर के आदिम जनों का मानना है कि माटी जन्म देने वाली मां से भी ज्यादा पूजनीय है, स्नेहमयी है क्योंकि वही जीवन का आधार है। गांव का प्रत्येक व्यक्ति माटी की कीमत समझता है, तभी तो बस्तर का प्रत्येक ग्रामीणजन माटी किरिया को सबसे अधिक महत्व देता है। उसके लिए माटी की कसम से बढ़कर इस पृथ्वी में दूसरी कसम नहीं है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि यहां का आदिम समाज मुख्यतः कृषि पर आधारित है।
चैत्र माह के प्रारंभ होते ही बस्तर के आदिम जन माटी तिहार या बीज पूटनी नामक त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हें। बीज बोने के पूर्व यहां के ग्रामीण जन इस त्योहार को सदियों से मनाते आ रहे हैं। इस दिन ग्रामीण जन अपनी माटीदेव की पूजा अर्चना करते हैं तथा अपने खेत के लिए बीज धान निकालकर पलास के पत्तों से पोटली बनाकर रख लेते हैं। इन छोटे-छोटे बीज के पोटली को ग्रामवासी माटी देव स्थल एकत्र करके अपने माटीदेव की पूजा करते हैं। इस दिन सामूहिक रूप से बलि दिये गये जीवों को पकाकर आपस में वितरित करते हें। जिसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं।
इस त्योहार की एक प्रमुख विशेषता है कि इस उत्सव में स्त्रियां भाग नहीं लेती और नही इसका प्रसाद ग्रहण करती है। यह परंपरा कुंवारी लड़कियों पर भी लागू होता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व ही ग्रामीण अपने-अपने घरों से बीज की पोटली बांधकर निकल पड़ा है आने वाले वर्ष में अच्छी फसल की कामना के लिए। सुबह से ही रास्ते में रोड़ा बनाकर प्रत्येक आने जाने वालों से पैसे, अनाज, सब्जी आदि एकत्र करते हैं। इस बीच अश्लील शब्दों का प्रयोग निरंतर जारी रहता है जो कि इस त्योहार की अपनी एक अलग परंपरा है। इस उत्सव में बच्चे,बूढ़े, जवान सभी सम्मिलित होते हैं सिवाय महिला एवं लड़कियों को छोड़कर किंतु दंतेवाड़ा जिले के कुछ क्षेत्रों में महिला एवं युवतियों को भी रास्ते में रोड़ा लगाये देखा जा सकता है। अनाज, पैसे एकत्र करने का सिलसिला शाम ढले तक तथा कभी-कभी दूसरे दिन तक चलता रहता है। इस एकत्र किये हुए पैसे तथा अनाज को सामूहिक रूप से आयोजित भोज में सम्मिलित कर लिया जाता है।
बीज पूटनी त्योहार के एक दिन पूर्व गांव के समस्त बड़े-बूढ़े मिलकर अपने पारंपरिक हथियारों से लैस होकर पास के जंगलों में पारद (शिकार) करने निकल जाते हैं। तथा शिकार से प्राप्त जंगली जीवों को लेकर माटी को समर्पित करते हैं तथा प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं किंतु अब न तो घने वन हैं और न ही वन्य जीव जहां ग्रामीण अपने परंपरा के निर्वाह के लिए एक चूहा भी पकड़ सकें। वैसे भी वन्य जीवों के शिकार पर शासन ने प्रतिबंध किया हुआ है। ग्रामीण सिर्फ खानापूर्ति के लिए पास के जंगलों में घूम आते हैं तथा प्रतीक स्वरूप मुर्गा अथवा मुर्गी के अण्डों को बलि देकर अपने पारंपरिक उत्सव का निर्वहन कर लेते हैं। इसके अलावा गांव में जो भी कास्तकार होते हैं सभी से चंदा स्वरूप कुछ पैसे लेकर बाजार से बलि के लिए बकरा खरीद लेते हैं तथा अपने परंपरा का निर्वहन कर लेते हैं। 
पूजा-अर्चना में लगने वाले पूजन सामग्री के अलावा चूड़ी-फुंदड़ी, मदिरा भी होते हैं जिसके अर्पण पश्चात ग्रामीणजन भी ग्रहण करते हैं। पूजा-पाठ के बाद माटी देव स्थल के पास ही छोटा गड्ढा किया जाता है जिसे पानी और मिट्टी से कीचड़मय बना दिया जाता है तथा पूजा के पश्चात धान की छोटी-छोटी पोटलियों को पुजारी की गोद में डाल दिया जाता है फिर प्रारंभ होता है कीचड़, मिट्टी से लथपथ अश्लील गालियों की बौछार और साथ ही होली सा माहौल। इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से खेत में बिहड़ा तथा अच्छी फसल होने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी। माटीदेव उनकी फसल की रक्षा करेंगे। इसके बाद रात्रि में सभी ग्रामीणों के द्वारा लाये गये धान की पोटलियों को पुजारी के निवास स्थान में ले जाया जाता है तथा दूसरे दिन गांव के बड़े-बुजुर्ग के साथ मिलकर स्वयं पुजारी, जिन ग्रामीणों के यहां से धान लाया गया होता है, पहुंचाता है और बदले में पारिश्रमिक बतौर रूपये लेता है। माटी त्योहार के बाद पुजारी द्वारा पहुंचाये गये इस धान की पोटली के साथ ही धान की बुवाई तक पोटलियों को सुरक्षित रखा जाता है। 
इस तरह प्रथम दिन पारद से लेकर पूजा-अराधना के पश्चात घर-घर धान पहुंचाये जाने तक तीन दिनों तक माटी त्योहार प्रत्येक गांव में चलता है। माटी त्योहार के एक हफ्ते के बाद आमा तिहार मनाते हैं। इस त्योहार में बस्तर के आदिमजन बिना इष्ट देवी-देवताओं को चढ़ाये आम खाने की शुरूआत नहीं करते। इस दिन आम तोड़कर पहले अपने इष्ट देवी-देवताओं को समर्पित करता है तत्पचात आम खाना प्रारंभ करता है। बस्तर के ग्रामीणजन वर्ष भर उत्सव मनाता है। शायद ही कोई माह किसी पर्व या उत्सव के बिना रहता है। सभी के केन्द्र में अभावों के बावजूद खाना-पीना तथा हंसी खुशी होती है। सभी पर्वों में पशु-पक्षियों की बलि तथा मदिरा, सल्फी का वृहत आयोजन होता है। देवी-देवताओं की कल्पना लोक में खोया बस्तर का आदिम समाज दिल को दहला देने वाली गरीबी में भी कितना खुश नजर आता है, वह इन उत्सवों में देखा जा सकता है।

नई दुनिया के बस्तर संस्करण से साभार

6 टिप्‍पणियां:

  1. परंपराओं के बारे में सुन्दर सामग्री ।

    जवाब देंहटाएं
  2. यह त्योहार धान की फसल में से बीजों को अगली बुआई के लिए सुरक्षित रखने के रिवाज को अभिव्यक्त करता है।

    जवाब देंहटाएं
  3. महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने को मिली ।

    जवाब देंहटाएं
  4. ...प्रभावशाली व महत्वपूर्ण जानकारी !!!!

    जवाब देंहटाएं
  5. aisa lag raha hai jaise aap kuchh din vaha bitaa kar aaye ho..

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...