क्षमा करें मित्रों मैं मित्रों के कुछ सामूहिक ब्लॉगों, जिनसे मैं बतौर लेखक जुडा था, से अपने आप को अलग कर रहा हूँ, वैसे भी मैं इन सामूहिक ब्लॉगों में कोई पोस्ट लिख नहीं पा रहा था जिसके कारण इनसे जुडे रहने का कोई औचित्य ही नहीं रह गया था, मैं हृदय से इन सामूहिक ब्लॉगों से जुडा हूँ और भविष्य में भी जुडा रहूँगा.
पाबला जी का आज एक मेल आया है "एक जानकारी है कि ब्लॉग बंद किए जा रहे गूगल द्वारा कईयों के" जिससे प्रतीत हो रहा है कि गूगल अपने मुफ्तिया झुनझुने में से कुछ झुनझुने कम करने वाला है या फिर सेवाशुल्क लगाने वाला है ऐसी स्थिति में अपनी लम्बी ब्लॉग सूची को 'मैंटेन' करना भी समय खपाउ काम हो गया है, सो सूची कम कर रहे हैं. पुन: क्षमा मित्रों.
जंगल के बीच आदिम समाज में सामूहिकता का आनंद और संस्कार से साक्षात्कार का क्रम अभी जारी है -
सामूहिक शब्दों को बुनते हुए ...
संजीव तिवारी
सामूहिकता का सौंदर्य अद्भुत होता है। इस पर एक पोस्ट लिखने की मेरा सालों से मन है। लेकिन आप तो ’एकला चलो रे’ की अलख जगा दिये। :)
जवाब देंहटाएंकुछ न करने से अलग हो जाना अच्छा है।
जवाब देंहटाएंsabse badi bat hai samay.
जवाब देंहटाएंisiliye maine shuru se hi tay kar ke rakha hai ki kam se kam samuhik blog se judne ka..
चलिये, कोई बात नहीं. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंआदिवासी स्त्रियों का यह समूह चित्र जैसे रंगों क़ी बारिश है .पेंटिंग करने के लिए मन मचल गया. इस चित्र के लिए धन्यवाद .हम इसे कैनवास पर लायें ! अगर आपको ऐतराज न हों तो !
जवाब देंहटाएंnice shot........."
जवाब देंहटाएंAatmnirikshan karne ko majboor karati post..
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