छत्तीसगढ के शक्तिपीठ – 2
संपूर्ण भारत में देवी-देवताओं के मंदिर स्थापना एवं इससे जुडे कई अन्य मिथक कथाए किवदंतियों के रूप में व्याप्त हैं जिसमें एक ही भाव व कथानक प्राय: हर स्थान पर देखी जाती है, स्थान व पात्र बदल जाते हैं पर हमारी आस्था किसी प्रमाण की कसौटी में खरी उतरने का यत्न किये बिना उसे सहज रूप से स्वीकार करती है क्योंकि यही सनातन परंपरा हमें विरासत में मिली है और इन्हीं कथानकों के एक पात्र के रूप में आराध्य के सम्मुख प्रस्तुत मनुष्य के मन की श्रद्धा आराध्य को जागृत बनाती है । छत्तीसगढ के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से डोंगरगढ की बमलेश्वरी माता प्रसिद्ध है हम यहां उससे जुडी हुई दो जनश्रुतियां प्रस्तुत कर रहे हैं ।
छठी शताब्दि के अंत में कोसल क्षेत्र में छोटे छोटे पहाडों से घिरी एक समृद्ध नगरी कामाख्या थी जो राजा वीरसेन की राजधानी थी । राजा संतानहीन था राज्य के पंडितों नें राजा को सुझाव दिया कि महिष्मति क्षेत्र शैव प्रभावयुत जाग्रत क्षेत्र है वहां जाकर शिव आराधना करने पर आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी ।
राजा वीरसेन अपनी रानी के साथ महिष्मति की ओर प्रस्थान किया वहां जाकर राजा नें शिव आराधना की एवं उसी स्थान पर एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया । राजा की पूजा-आराधना से शिव प्रसन्न हुए, राजा–रानी को वरदान प्राप्त हुआ ।
वरदान प्राप्ति के बाद राजा-रानी अपनी राजधानी कामाख्या आये वहां रानी गर्भवती हुई और एक पुत्र को जन्म दिया । रानी नें शिव प्रसाद स्वरूप पुत्र प्राप्ति के कारण अपनी राजधानी के डोंगरी में माता पार्वती के मंदिर का निर्माण कराया । निर्माण में लगे श्रमिकों के द्वारा लगभग 1000 फीट उंची पहाडी में निर्माण सामाग्री चढाते समय बल व उत्साह कायम रखने के लिए जयघोस स्वरूप ‘बम-बम’ बोला जाता रहा फलस्वरूप माता पार्वती को मॉं बमलेश्वरी कहा जाने लगा ।
इसी राज्य में राजा वीरसेन के वंशज मदनसेन का पुत्र कामसेन जब राज्य कर रहा था उस समय की कथा भी डोंगरगढ में प्रचलित है जिसका उल्लेख भी सामयिक है ।
राजा गोविंदचंद की राजनगरी बिल्हारी (वर्तमान जबलपुर के समीप) थी वहां शंकरदास नाम का राजपुरोहित था । शंकरदास का पुत्र माधवनल बडा गुणी, विद्वान एवं संगीत में निपुण था, वीणा वादन में भी वह सिद्धस्थ था । बिल्हारी में उसकी वीणा के स्वरलहरियों को सुन-सुन कर रानी उस पर मोहित हो गई । राजा को इस संबंध में जानकारी हुई तो वह माधवनल को अपने राज्य से निकाल दिया । माधवनल तत्कालीन वैभवनगरी एवं माँ बमलेश्वरी के कारण प्रसिद्ध नगरी कामाख्या की ओर कूच कर गया ।
‘वाह रे संगीतप्रेमी राजा एवं सभासद बेसुरे संगीत पर वाह-वाह कह रहे हैं । नृत्य कर रही नर्तकी के बायें पैर में बंधे घुघरूओं में से एक घुंघरू में कंकड नहीं है एवं मृदंग बजा रहे वादक के दाहिने हांथ का एक अंगूठा असली नहीं है इसी कारण ताल बेताल हो रहा है । ऐसे अल्पज्ञानियों के दरबार में मुझे जाना भी नहीं है ‘
माधवनल जब कामाख्या पहुचा तब राजदरबार में उस समय की प्रसिद्व नृत्यांगना कामकंदला नृत्य प्रस्तुत कर रही थी, मधुर वाद्यों से संगत देते वादक व गायक सप्त सुरो से संगीत प्रस्तुत कर रहे थे । माधवनल राजदरबार में प्रवेश करना चाहता था किन्तु द्वारपालों नें उसे रोक दिया, व्यथित माधवनल नें द्वारापालों से कहा कि ‘वाह रे संगीतप्रेमी राजा एवं सभासद बेसुरे संगीत पर वाह-वाह कह रहे हैं । नृत्य कर रही नर्तकी के बायें पैर में बंधे घुघरूओं में से एक घुंघरू में कंकड नहीं है एवं मृदंग बजा रहे वादक के दाहिने हांथ का एक अंगूठा असली नहीं है इसी कारण ताल बेताल हो रहा है । ऐसे अल्पज्ञानियों के दरबार में मुझे जाना भी नहीं है ‘ और वह वहां से जाने लगा । द्वारपालों नें जाकर राजा को संदेश दिया , राजा नें सत्यता को परखा, तुरत माधवनल को राजदरबार में बुलाया । उसे उचित आसन देकर राजा नें अपने गले में पडे मोतियों की कीमती माला को सम्मान स्वरूप उसे प्रदान किया ।
नृत्य-संगीत माधवनल के वीणा के संगत के साथ पुन: प्रारंभ हुआ । अपने कीर्ति के अनुरूप कामकंदला नें नृत्य का बेहतर प्रदर्शन किया, माधवनल नृत्य को देखकर मुग्ध हो गया, आनंदातिरेक में अपने गले में पडे मोतियों की माला को कामकंदला के गले में डाल दिया । राजा के द्वारा दिये गए पुरस्कार की अवहेलना को देख राजा क्रोधित हो गए एवं उसे अपने राज्य से बाहर निकल जाने का आदेश दे दिया ।
माधवनल, कामकंदला से प्रथम दृष्टि में ही मोहित हो गया था एवं कामकंदला भी योग्य वीणावादक को पहचान गई थी । माधवनल, कामाख्या से अन्यत्र नहीं गया बल्कि पहाडी कंदराओं में जाकर रहने लगा । कामकंदला छुप-छुप कर रात्रि के तीसरे पहर में उससे मिलने जाने लगी, प्रेम परवान चढने लगा ।
राजभवन में राजकुमार मदनादित्य भी कामकंदला के रूप पर मोहित था । कामकंदला राजकुमार की इच्छा के विरूद्ध हो राजदंड नहीं पाना चाहती थी इसलिए उससे भी प्रेम का स्वांग करती थी । माधवनल के आने के दिन से राजकुमार को कामकंदला के प्रेम में कुछ अंतर नजर आने लगा था । राजकुमार को पिछले कई दिनों से रात्रि में पहाडियों की ओर से वीणा की मधुर स्वर लहरियॉं सुनाई देती थी, उसके मन में संशय नें जन्म लिया और वह अंतत: जान लिया कि कामकंदला उससे प्रेम का स्वांग रचती है व किसी और से प्रेम करती है फलत: उसने कामकंदला को कारागार में डाल दिया एवं माधवनल के पीछे सैनिक भेज दिया ।
माधवनल के मन में कामाख्या के राजा व राजकुमार के प्रति शत्रुता भर गई वह कामकंदला को अविलंब प्राप्त करने के साथ ही मदनादित्य को सबक सिखाना चाहता था । इसके लिए वह उज्जैनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य के पास गया वहां उसने वीणा वादन कर महाराज को प्रसन्न किया एवं अपनी व्यथा बताई ।
राजा विक्रमादित्य नें माधवनल का सहयोग करते हुए कामाख्या नगरी पर आक्रमण किया, तीन दिनों तक चले युद्ध में कामाख्या नगरी पूर्ण रूप से ध्वस्त हो गई । मदनादित्य परास्त हो गया, कामकंदला कारागार से मुक्त हो माधवनल को खोजने लगी । राजा विक्रमादित्य नें भावविह्वल कामकंदला से विनोद स्वरूप कह दिया कि माधवनल युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हो गया । कामकंदला इतना सुनते ही ताल में कूदकर आत्महत्या कर ली इधर माधवनल को जब ज्ञात हुआ तो वह भी अत्यंत दुख में अपने प्राण त्याग दिया ।
विक्रमादित्य प्रतापी व धर्मपरायण राजा थे वे अपने विनोद में ही किये गए इस भयंकर कृत्य के कारण अति आत्मग्लानी से भर गए एवं उपर पहाडी पर मॉं बमलेश्वरी के मंदिर में कठिन तप किये । मॉं प्रसन्न हुई, राजा को साक्षात दर्शन दिया और वरदान स्वरूप प्रेमी युगल माधवनल-कामकंदला को जीवित कर दिया ।
राजा वीरसेन द्वारा स्थापित एवं राजा विक्रमादित्य द्वारा पूजित देवी मॉं बमलेश्वरी, छत्तीसगढ के राजनांदगांव जिले की नगरी डोंगरगढ में विराजमान हैं । यह जागृत शक्तिपीठ तंत्र एवं एश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी बगुलामुखी के स्वरूप में मानी जाती है ।
(प्रचलित मौखिक एवं अप्रमाणित फुटपातिये पुस्तकों के आधार पर अपने शव्दों में पुर्नरचित)
संजीव तिवारी
डोंगरगढ के चित्र और अन्य जानकारी देखें : http://joshidc.googlepages.com/dongargadh
छत्तीसगढ़ का समृद्ध इतिहास जितना पढ़ती जा रही हूँ उतनी उत्सुकता बढ़ती जा रही है अपने देश में आकर अगर वहाँ नहीं गए तो यात्रा अधूरी रह जाएगी.
जवाब देंहटाएंयह जानकारी बहुत अच्छी लगी .छत्तीसगढ़ से जुडी हुई इतनी पुरानी जानकारी विरले ही सुनने को मिलती है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया उम्दा जानकारी आभार
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति तो निश्चित ही पूरी दुनिया को राज्य की समृद्ध विरासत और सस्कृति के विषय मे बता रही है। आखिर लोग राज्य के उजले पक्ष को भी तो जाने।
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढ़ कि प्रमुख धर्मस्थलियों में से एक माता बमलेश्वरी मंदिर एवं ऐतिहासिक जनश्रुतियों से हमें अवगत करने के लिए धन्यवाद संजीवा जी! वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण जानकारी है जिसे शायद कम ही लोग जानते होंगे. कम से कम मैं तो इनसे वाकिफ नहीं था. आपकी सोच निश्चय ही सराहनीय है. आप हमें हमारे छत्तीसगढ़ कि वास्तविकता से समय समय पर हमें अवगत काराते रहते हैं, इसके लिए भी सधन्यवाद आभार!
जवाब देंहटाएंपर मुझे इस लेख में एक त्रुटी नज़र आई: "राजा विक्रमादित्य नें माधवनल का सहयोग करते हुए कामाख्या नगरी पर आक्रमण किया, तीन दिनों तक चले युद्ध में कामाख्या नगरी पूर्ण रूप से ध्वस्त हो गई । मदनादित्य परास्त हो गया, कामकंदला कारागार से मुक्त हो [b]मदनादित्य[/b] को खोजने लगी । राजा विक्रमादित्य नें भावविह्वल कामकंदला से विनोद स्वरूप कह दिया कि माधवनल युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हो गया।........."
शायद यहाँ "मदनादित्य" के स्थान पर "माधवनल" होना चाहिए. माफ़ी चाहता हूँ अगर मैं गलत हूँ तो!
ऐसे ही हमें ऐतिहासिक घटनायों से अवगत काराते रहे. शुभ कामनाएं!
गुप्ता जी, टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । आपने त्रुटी को सहीं पकडा है, इसमें माफी चाहने वाली कोई बात नहीं हैं । गलती मेरी है, मैंनें सुधार कर लिया है । आभार ।
जवाब देंहटाएंसंजीव
बताइए भला, छात्र जीवन में हर शारदेय नवरात्र में आधी रात को लोकल ट्रेन में लटक कर हम मित्रों के साथ डोंगरगढ़ जाते रहे हैं और हमें यह सब कथाएं मालूम ही न थी!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका कि यह जानकारी अब आपके कारण उपलब्ध हो गई!
मुझे बड़ा विचित्र लगता है - पुरुष प्रधान भारत में मातृ शक्ति का इतना व्यापक विस्तार और फॉलोइंग देख कर। कैसे हुआ होगा यह?
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक जानकारी। हम एक बात पूछना चाहते है क्या डोगरा क्राफ्ट के बारे मे आप कुछ बता सकते है।
जवाब देंहटाएंमाँ बगुलामुखी नहीं। …माँ बगलामुखी.... अंतिम पंक्ति
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