छत्तीसगढ के कलचुरियों का शासनकाल शनै: शनै: महाकोशल से कोसल तक सीमित हो गया, इनके राजाओं नें कोसलराज की सामरिक शक्ति के विकास के साथ ही आर्थिक और समाजिक उन्नति के लिए हर संभव प्रयास किया और राज्य के वैभव को बढाया इसीलिए प्रजाप्रिय हैहयवंशियों का राज्यकाल कोसल में स्वर्णयुग के रूप में देखा जाता है । इनके राज्य क्षेत्र में चहुओर उन्नति हुई, बेहतर प्रशासन के लिए संगठनात्मक ढांचे पर काम किया गया जिसके कारण ही छत्तीसगढ गढ, गढपतियों एवं रियासतों के मूल अस्तित्व को बनाए हुए अपना स्वरूप ग्रहण कर सका ।
शिक्षा एवं व्यापार-विनिमय में उन्नति के साथ ही प्रजा की स्वमेव उन्नति हुई । कृषि प्रधान इस राज में धान की पैदावार, खनिजों व प्राकृतिक स्त्रोतों से प्राप्त संसाधनों आदि का समुचित विनिमय हुआ एवं आर्थिक समृद्धि सर्वत्र दृष्टिगोचर हुई । श्रम को पूजने की परंपरा का विकास हुआ जिसमें रतनपुर, शिवरीनारायण, जांजगीर व चंद्रपुर के मंदिरों एवं अन्य स्थापत्य अवशेष इतिहास के साक्षी के रूप में आज भी उपस्थित हैं ।
कलचुरी राज के क्षरण के संबंध में रतनपुर-बिलासपुर से ज्ञात किवदंतियों को यदि आधार मानें, जिसका कुछेक इतिहासकारों नें उल्लेख भी किया है, तो एक कहानी सामने आती है । तखतपुर नगर के निर्माता राजा तखतसिंह के पुत्र राजसिंह के गद्दीनशीन होने की अवधि की एक महत्वपूर्ण घटना ही इसका सार है ।
कलचुरी नरेश राजसिंह का कोई औलाद नहीं था वह एवं उसकी महारानी इसके लिए सदैव चिंतित रहते थे । मॉं बनने की स्वाभविक स्त्रियोचित गुण के कारण महारानी राजा की अनुमति के बगैर राज्य के विद्वान एवं सौंदर्य से परिपूर्ण ब्राह्मण दीवान से नियोग के द्वारा गर्भवती हो गई और एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नामकरण कुंवर विश्वनाथ हुआ, समयानुसार कुंवर का विवाह रीवां की राजकुमारी से किया गया ।
आगाता गच्छानुत्तरायुगानि यत्र जामय: कृणवन्नजामि । उपवृहि वृषभार्याबहुमन्यमिंच्छस्व सुभगे पतिमत् ।। (सत्यार्थ प्रकाश) 'विवाहोपरांत यदि ऐसा संकट का समय आ जाए कि विधवा स्त्री, पुत्र की कामना से अकुलवधु के काम करने पर उतारू हो जाए तो वह कुलवधु किसी समर्थ पुरूष का हाथ ग्रहण करके संतान उत्पन्न कर ले । ऐसी आज्ञा पति अपनी पत्नी को, नपुंसक होने पर दे दे।'
यह विषय विशद है, श्रुति-स्मृति व पुराणों में अनेकों उदाहरण हैं, तर्क-वितर्क एवं कुतर्क भी हैं ।
राजा राजसिंह को दासियों के द्वारा बहुत दिनो बाद ज्ञात हुआ कि विश्वनाथ नियोग से उत्पन्न ब्राह्मण दीवान का पुत्र है, तो राजा अपने आप को संयत नहीं रख सका । ब्राह्मण दीवान को सार्वजनिक रूप से इस कार्य के लिए दण्ड देने का मतलब था राजा की नपुंसकता को आम करना । नपुंसकता को स्वाभाविक तौर पर स्वीकार न कर पाने की पुरूषोचित द्वेष से जलते राजा राजसिंह नें युक्ति निकाली और ब्राह्मण पर राजद्रोह का आरोप लगा दिया, उसके घर को तोप से उडा दिया गया, ब्राह्मण भाग गया ।
दीवान जैसे महत्वपूर्ण ओहदे पर लगे कलंक पर कोसल में अशांति छा गई । ब्राह्मण दीवान एवं महारानी के प्रति राजा की वैमनुष्यता की भावना नें राजधानी में खूब तमाशा करवाया । इस पर गोपाल मिश्र नें एक किताब लिखा है जिसका शीर्षक भी ‘खूब तमाशा’ ही है । (हमें यत्न के बावजूद यह किताब प्राप्त नहीं हो पाई सो बुजुर्गों से कही-सुनी को ही आधार माना)
इस तमाशे से व्यथित कुंवर विश्वनाथ नें आत्महत्या कर ली, वृद्ध राजा राजसिंह की मृत्यु भी शीध्र हो गई । पुरातन मान्यताओं के अनुसार निरपराध/सापराध नियोग पर श्राप के फलस्वरूप इसके उपरांत रतनपुर से कलचुरियों का विनाश आरंभ हो गया । राजसिंह के बाद सभी कलचुरी राजा पुत्रविहीन रहे । रत्नपुर के कलचुरी वंश के अंतिम स्वतंत्र राजा रघुनाथ सिंह को भी असमय पुत्र-मृत्यु का दुसह दुख झेलना पडा और ऐसी ही परिस्थिति में कटक विजय हेतु निकले मराठा सेनापति भास्कर पंथ नें सामान्य प्रतिरोध के बाद छत्तीसगढ के राज को रत्नपुर में कब्जा कर, प्राप्त कर लिया । इसके बाद छत्तीसगढ में मराठा शासनकाल का युग आरंभ हुआ ।
छत्तीसगढ इतिहास के आईने में - 1
छत्तीसगढ इतिहास के आईने में - 2
(किवदंतियों व ऐतिहासिक लेखों-ग्रंथों के आधार पर)
संजीव तिवारी
अच्छा लेख। संजीव, लेख अगर धारावाहिक हो तो पिछली कड़ियों के हाइपरलिंक उसी पोस्ट में देने पर पाठक को सहूलियत होगी।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह रोचक जानकारी।
जवाब देंहटाएंबाक्स मे लिखी सामग्री को फायरफाक्स से पढते नही बन रहा है।
आपको व आपके पूरे परिवार को नया साल बहुत-बहुत मुबारक हो...नये साल से नियमित पोस्ट पढ़ने का विचार बनाये थे मगर नेट महाशय नाराज हो कर बैठ गये...:)
जवाब देंहटाएंसंजीव जी,
जवाब देंहटाएंआपके ब्लाग पर आकर सुकून मिलता है. छत्तीसगढ़ को जानने का यह अच्छा मंच है.मेरे नए ब्लाग cgreports.blogspot.com को पहले ही दिन आपने देखा और सराहा, आभारी हूं. छत्तीसगढ़ के बाकी ब्लाग्स के साथ इसकी सूचना भेजना चाहता हूं, उपाय बताएं. जल्द ही आपको सरोकार ब्लागस्पाट भी अपडेट होता मिलेगा.
सादर.
राजेश अग्रवाल
priya sanjeev tiwaree
जवाब देंहटाएंchhatisgarh ke vishay mein aap nirantar jankaariyaan dekar hamaaraa gyaanvardhan karate rahte hain,achha lagtaa hai.dhanyaad.
ashok lav,dwarka,new delhi.
क्या नियोग के सुख और कर्तव्य पालन के बाद विनाश होना जरुरी है?
जवाब देंहटाएंक्या नियोग के सुख और कर्तव्य पालन के बाद विनाश होना जरुरी है?
जवाब देंहटाएंक्या नियोग के सुख और कर्तव्य पालन के बाद विनाश होना जरुरी है?
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जवाब देंहटाएंसती प्रथा और रतनपुर के प्रसंग पर मन में आता है कि कर्ता के लिए
जवाब देंहटाएंक्या नियोग के सुख और कर्तव्य पालन के बाद विनाश होना जरुरी है?
महाभारत में भी यही पैटर्न रहा है.
सती प्रथा और रतनपुर के प्रसंग पर मन में आता है कि कर्ता के लिए
जवाब देंहटाएंक्या नियोग के सुख और कर्तव्य पालन के बाद विनाश होना जरुरी है?
महाभारत में भी यही पैटर्न रहा है.
सती प्रथा और रतनपुर के प्रसंग पर मन में आता है कि कर्ता के लिए
जवाब देंहटाएंक्या नियोग के सुख और कर्तव्य पालन के बाद विनाश होना जरुरी है?
महाभारत में भी यही पैटर्न रहा है.
सती प्रथा और रतनपुर के प्रसंग पर मन में आता है कि कर्ता के लिए
जवाब देंहटाएंक्या नियोग के सुख और कर्तव्य पालन के बाद विनाश होना जरुरी है?
महाभारत में भी यही पैटर्न रहा है.
जातिगत विद्वेष और अहमन्यता से प्रेरित हो कर यह लेख लिखा गया है ।
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