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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

माया मिश्रा मेल ः असर छत्तीसगढ तक

उत्तर प्रदेश मे मायावती की जीत से छत्तीसगढ मे एक नया समीकरण बनता नजर आ रहा है . उत्तर प्रदेश मे माया की जीत को यहा के ब्राह्मण एक नये युग की शुरुआत के रूप मे देख रहे है
छत्तीसगढ के 99 प्रतिशत ब्राह्मण उत्तर प्रदेश से व 1 प्रतिशत राजस्थान से बरसो पहले आकर छत्तीसगढ मे बस गये थे और यहा की भाषा व सन्सकृति उत्तर प्रदेश की सरयु की पानी मे घुल कर महानदी, अरपा, शिवनाथ व खारून मे समहित हो गयी थी समय ने उन्हे पूरी तरह से छत्तीसगढया बना दिया था

यह सर्वविदित है कि छत्तीसगढ के मूल निवासी आदिवासी ही रहे है किन्तु अयोध्याकालीन धार्मिक इतिहास को प्रमाणिक माना जाय तो दण्कारण्य व कौशल क्षेत्र मे ऋषि मुनियो का निवास अर्वाचीन काल से रहा है खैर हम यहा इतिहास बताने के लिये नही लिख रहे है पर उत्तर प्रदेश के सरयू के किनारे निवासरत ब्राह्मणो का यहा पर आगमन मोरध्व्ज के काल से माना जाता है जो आज तक जारी है

पृथक छत्तीसगढ आन्दोलन अपने अन्तिम चरण मे था तो कुछ स्वार्थी तत्वो ने उस समय छत्तीसगढया गैरछत्तीसगढ शब्दो का एसा ताना बाना रचा जिससे छत्तीसगढ के ब्राह्मण मानसिक रूप से काफी आहत हुये थे और उनकी वेदना समय समय पर कभी सरकार मे प्रतिनिधित्व नही मिलने पर तो कभी छत्तीसगढ मे ब्राह्मणो की उपेच्छा होने के मसले पर फूटते रहती है छत्तीसगढ के आदिवासी एव ब्राह्मणो के बीच सम्बन्ध सदैव से मधुर रहे है उसमे अलगाववाद के बीज राजनीति ने बोया है जैसे उत्तर प्रदेश मे हालाकि यहा की परिस्थितिया उतनी बढी हुइ नही है किन्तु समय चक्र के चलते एसा आज नही तो कल हो जाने वाला था

उत्तर प्रदेश मे दलित व ब्राह्मणो के मेल से जो शक्ति का उदय हुआ है उसे पुराने लोग धार्मिक मान्यताओ से जोड कर देख रहे है हमारे एक परिचित ने माया मिश्रा के जीत को धर्म की जीत बतला रहे है उनके अनुसार कट्टरपन्थी ब्राह्मणो ने अपने बच्चो से माया के पैर छुवाये है क्योकि नारी की कोइ जाति नही होती सनातन मे एसे उदाहरण है, जब जब दलित व ब्राह्मण का मेल हुआ है भारत मे एश्वर्यशाली इतिहास लिखा गया है

छत्तीसगढ के ब्राह्मणो ने खुसुर पुसुर चालू कर दिया है आगामी विधानसभा चुनाव मे छत्तीसगढ मे भी यदि उत्तर प्रदेश के इतिहास को दोहराये तो इसमे आश्चर्य की बात नही होगी क्योकि अब शबरी और राम व कृष्ण और सुदामा का प्रेम छलकने लगा है समय ने पात्र बदल दिये है

टिप्पणियाँ

  1. मुआफ़ किजिएगा मैं कम से कम अगले विधानसभा चुनावों के लिए आपकी बात से सहमत नहीं हूं। हां उसके बाद की बात नही कही जा सकती अभी से

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  2. आप बिलकुल ठीक कह रहे है,उत्तर प्रदेश मे दलित व ब्राह्मणो के मेल से जो शक्ति का उदय हुआ है उसे पुराने लोग धार्मिक मान्यताओ से जोड कर देख रहे है इसी कारण ब्राह्मणो ने अपने बच्चो से माया के पैर छुवाये है।वो ये ही मान रहे है की माया एक शक्ति का रूप है,ये उनके प्रगाड़ प्रेम का सूचक है|
    वैसे मुझे चिट्ठा-चर्चा कम ही आती है मगर आपने साथ-साथ बहुत कुछ सीखने को मिलेगा,...
    सुनीता(शानू)

    जवाब देंहटाएं

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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