भूमि अधिग्रहण अधिनियम : “लोक प्रयोजन” का व्यूह सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

भूमि अधिग्रहण अधिनियम : “लोक प्रयोजन” का व्यूह

दिल्ली से अधिवक्ता मित्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार रिट पिटीशन नं २२४/२००७, कर्नाटक भूमिहीन किसान संगठन व अन्य विरुद्ध भारत सरकार व अन्य दिनाक ११ मई को न्यायाधिपति आर वी रविंद्रन व एच एस बेदी के बेंच में नियत ईस प्रकरण की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधिपति के जी बालकृशनन ने प्रकरण मे निहित विधि के प्रश्न “लोक प्रयोजन” पर कहा कि केंद्र व राज्य शासन को लोक प्रयोजन के मसले पर प्रस्तुत पिटीशनो पर भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अन्य उपबंधों के तहत प्रस्तुत पिटीशनो से ज्यादा गम्भीरता पुर्वक अपने दायित्वों को समझना चाहिये इस संबंध मे न्यायालया ने सभी राज्यो के मुख्य सचिव व कृषि मंत्रालय को नोटिस भेजा है ।

मै इस समाचार को छत्तीसगढ के नजरिये से देखते हुये अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता हूं यहा शासन ने लोक प्रयोजन शब्द को अपने हित मे अर्थान्वयन करवाने के लिये जो व्यूह रची यह देखे :-

छत्तीसगढ में अभी टाटा के संयंत्र के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जारी है जहा अधिग्रहण पूरी तरह से विवादित है नक्सलियो की जन अदालत की तर्ज पर ग्राम सभा मे प्राप्त किसानों की स्वीकृति व १३ लकीरों मे छिन चुकी आदिवासियो की भूमि पर आप रोज पढ रहे होंगे हम इस संबध मे कुछ भी नही कहेंगे ।

नये राज्य की राजधानी के लिये भारी मात्रा मे किये जा रहे भूमि अधिग्रहण के मसले पर हम कुछ नजर दौडायें, नया रायपुर विकास प्राधिकरण द्वारा नये रायपुर का मास्टर प्लान प्रकाशित किया जा चुका है एवं उस पर दावा आपत्ति भी स्वीकार करने का समय समाप्त हो चुका है । नया रायपुर विकास प्राधिकरण एवं छ.ग. शासन के द्वारा नये रायपुर के लिये भी अधिग्रहित की जाने वाली भारी मात्रा में भूमि को टाटा संयंत्र की भांति विवाद से परे रखने के लिए रणनीति के तहत आज दिनांक तक भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी नहीं की गई है बल्कि भूमि अधिग्रहण के पिछले द्वार से प्रवेश की कार्यवाही आपसी सहमति के जरिये की जा रही है यह शासन की भूमि अधिग्रहण के पचडे से बचने की एक सोची समझी चाल है । हुडा (हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण) के नीतियों पर अमल करते हुए छ.ग. शासन, वहां आई व्यावहारिक दिक्कतों को प्रशासनिक तौर पर दूर करने के उददेश्य से आपसी समझौते पर ही ज्यादा जोर दे रही है क्योंकि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत भूमि अधिग्रहण् में विभिन्न राज्य सरकारें सर्वोच्च न्यायालय के कटघरे में है एवं जनता भी अधिग्रहण के रास्ते में नित नये रोडे अटका रही है । ऐसे में विकास की धारा को विवादों से गंदला करने के बजाय दूसरे वैकल्पि रास्तों को प्रभावी बनाना सरकार की विवशता है ।

नया रायपुर विकास प्राधिकरण द्वारा नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम के तहत प्रकाशित डाफट, भूमि अधिग्रहण के पूर्व किसानों के अटकलों पर एवं छुटपुट उठते विरोधों को दबाने का एक अस्त्र के रूप में प्रयोग है । छोटे किसान जिनके रोजी-रोटी का साधन उसकी भूमि है, पर शासन पिछले चार वर्षो तक विक्रय पंजीकरण नहीं करने का
आदेश तो दे ही चुकी थी । समाचारों में रोज छपता रहा कि किसी की बेटी का ब्याह तो किसी का और अन्य अहम आवश्यकता की पूर्ति उनके स्वयं की भूमि को विक्रय नहीं कर पाने के कारण हो नहीं पाई थी, सरकार के इस मार से किसान पहले से ही आधा हो गया था आपसी सहमती का चोट ऐसे ही समय में गरम लोहे पर हथौडा मारने वाला काम था, अब वे सभी किसान इस डर से राजीनामा कर पैसा ले लिए कि पता नहीं कल क्या तुगलकी फैसला हो और उन्हें फिर पांच साल तक बिना पैसे का गुजारा करना पडे ।

ऐसा करके शासन अधिकांशत: जमीन अधिग्रहित कर लेगी बाकी बचे जमीन राज्य शासन द्वारा अधिनियम के तहत अधीसूचना जारी कर डंडे के जोर पर छीन ली जायेगी । क्योंकि तब बहुसंख्यकों का विरोध सरकार को नहीं झेलना पडेगा और बिना विवाद काम निपट जायेगा । इस चाल का एक और पेंच है चीफ कमिशनर देहली एडमिनिस्ट्रेशन बनाम धन्ना सिंह 1987 के केस में न्यायालय नें मास्टर प्लान के लिए अधिग्रहण को लोक प्रयोजन की कोटि का माना है तो मास्टर प्लान यदि स्वीकृत हो गया तो सरकार की दिक्कते अपने आप सुलझ जायेगी । यहा नये रायपुर परिक्षेत्र मे आने वाले गाव के लोग समझ रहे है कि अभी तो धारा 4 की अधिसूचना तो जारी ही नही हुयी है जब जारी होगी तो लोक प्रयोजन की आपत्ति लगायेगे मगर तब तक देर हो चुकी होगी लोक प्रयोजन सिद्ध हो चुका होगा, यही है अधिनियम को अपने पक्ष मे करने का गुपचुप तरीका । हमने इस स्थिति को भांप कर 5 मइ 2007 तक गांवो के किसानो को जोडा और मास्टर प्लान ड्राफ्ट पर आपत्ति लगाया है हमारे साथ 400 से 500 लोगो ने आपत्ति लगाया है पर वे सभी सरकार की मंशा को समझ रहे है हमें नही लगता ।

(विधि से सम्बधित मेरे प्रयोग व पूरा लेख आप मेरे कानून सम्बन्धी चिठ्ठे http://jrcounsel4u.blogspot.com मे देख सकते है)

टिप्पणियाँ

  1. बेनामी19 मई, 2007 17:14

    संजीव जी; आपकी चिंता बाजिव है और आप केवल चिंता ही नहीं कर रहे बल्कि आवाज भी उठा रहे हैं. साधुवाद आपको और आपकी कोशिशों को.

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  2. संजीव तिवारी जी,आप की चिन्ता वाजिब है सरकारी तंत्र हमेशा गरीब को दबाने मे लगा रह्ता है।उसे किसानों की बेबसी से कोई सरोकार नही है।यह बात अक्सर उस के काम करने के तरीके से पता लग जाती है।आप का लेख सच मे सोचने को मजबूर करता है।बहुत ही साफ सुथरें ढंग से इस लेख को रखने हेतु आप बधाई के पात्र हैं।

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  3. बेनामी19 मई, 2007 18:45

    माफ करें क्या आपका प्रयाश सच्मुच लोगो को फ़ायदा पहुचाना है या इसके पूर्व ही लोगों के द्वारा खारून नदी को खरीदने का जो गुधेली प्रोजेक्ट
    वाला प्रयास किया गया था उसके कंसलटेंट आप ही थे, जो चंद इंडस्टिलिस्ट को फायदा पहुंचाने वाला काम था,
    धन्य हो भास्कर का जिसने आपके योजना को पूरा होने से पहले ही चर्चा में ला दिया । और खारून बच गयी नहीं
    तो शिवनाथ की तरह वो भी किसी उधोगपति के चुंगुल में होती यदि आप जनता के लिए भी कुछ करें तो अच्छा
    होता । भूमिअधिग्रहण में बहुत लोगों को मदद की आवश्यकता है ।

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  4. महानुभाव आप कौन है मै समझ नही पा रहा हू नदी को कोई कैसे खरीद सकता है मीडिया के प्रोपोगंडा मे सब हां हां बोलते है गुधेली प्रोजेक्ट सरकार के सुखे पडे नहरो मे पानी ला कर बेरला ब्लाक के किसानो को पानी देने का प्रोजेक्ट था कोई नदी खरीदने का नही ईसमे यदि कोई उध्योगपति सहयोग करने के लिये तैयार है तो आपत्ति क्यो, यदी आप ईस सम्बंध मे जानना चाहते है तो छ ग शासन के पास मेरी फ़ाईल पडी है सुचना के अधिकार के तहत निकलवा कर पढे सब स्पस्ट हो जायेगा हमारे पहल से ही बेरला ब्लोक मे नहरो के लायनिग का काम चालू हो चुका है जाये देखे, ब्यर्थ व अनर्गल टिप्पणी ना करे तो अच्छा

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  5. ज़ायज़ चिंता! साधुवाद!!

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  6. संजीव जी आपने कभी सच का दामन नही छोड़ा है हमे आपके चिट्ठे पर गर्व है,..क्यूँकि आप बेखटक अपनी बात जनता के सम्मुख रखते है,..सरकार की इस नीति का खामियाजा भी गरीब जनता को ही भुगतना पड रहा है,.ऐसा नही की इससे आम आदमी परेशान नही है वरन परेशान है सारी की सारी अर्थव्यवस्था गड़्बड़ा जाती है,...
    हो सकता है आपका लेख ऐक नई क्रातिं ले आये...बहुत-बहुत शुभ कामनाए आप ऐसे ही अपनी आवाज़ बुलन्द रखें...
    सुनीता चोटिया(शानू)

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  7. आप बहुत अच्छा कर रहे हैं. इन चीज़ों पर बहस ज़रूरी है.

    जवाब देंहटाएं
  8. सजीव जी आज बार-बार आपको टिप्पणी दे रहे है मगर जाने क्यूँ जा नही रही है,..हम ये कोशिश बार-बार नही करते मगर आपका लेख हमे मजबूर करता है,..आप गरीब जनता की आवाज़ है ऐर हम आपकी आवाज़ मे आवाज़ मिलाकर और बुलन्द करना चाहते है,...ताकी आपकी आवाज़ को कोई कमजोर ना समझे,..आपकी कलम में वो तेज़ धार है जो सीधे दिल पेर असर करती है,..आप अपना कार्य बखूबी करते रहिये,...हमारा पूरा समर्थन आपके साथ है,..
    सुनीता चोटिया (शानू)

    जवाब देंहटाएं
  9. आपका उत्साह अच्छा लगता है. पर विकास के लिये अगर अधिग्रहण जरूरी हो तो किया जाना चाहिये. आप विकास में बाधक न बनें - बस. अगर व्यापक औद्योगिक विकास आर्थिक उन्नति का वाहक है तो अधिग्रहण में कोताही या देरी नहीं होनी चाहिये.
    हम लोग किसी मुद्दे पर असहमत हो सकते हैं न?

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