आरंभ Aarambha सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अगस्त, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

स्‍वामी विवेकानंद पथ का पथिक : स्‍वामी आत्‍मानंद

गांधी जी की लाठी लेकर आगे आगे चलते हुए एक बच्‍चे की तस्‍वीर को हम कई अवसरों में देखे होंगें, हमारी स्‍मृति पटल में वह चित्र गहरे से अंकित है, आप सभी को यह चित्र याद होगा । इस चित्र में गांधी जी की लाठी लेकर आगे आगे चलता बच्‍चा तब का रामेश्‍वर उर्फ तुलेन्‍द्र वर्मा और आज के स्‍वामी आत्‍मानंद जी हैं । मैं इस चित्र को देखकर रोमांचित हो उठता हूं कि यही स्‍वामी आत्‍मानंद हैं जिन्‍होंनें छत्‍तीसगढ में मानव सेवा एवं शिक्षा संस्‍कार का अलख जगाया और शहरी व धुर आदिवासी क्षेत्र में बच्‍चों को तेजस्विता का संस्‍कार, युवकों को सेवा भाव तथा बुजुर्गों को आत्मिक संतोष का जीवन संचार किया । बालक तुलेन्‍द्र का जन्‍म 6 अक्‍टूबर 1929 को रायपुर जिले के बदबंदा गांव में हुआ, पिता धनीराम वर्मा पास के स्‍कूल में शिक्षक थे एवं माता भाग्‍यवती देवी गृहणी थी । पिता धनीराम वर्मा नें शिक्षा क्षेत्र में उच्‍च प्रशिक्षण के लिये बुनियादी प्रशिक्षण केन्‍द्र वर्धा में प्रवेश ले लिया और परिवार सहित वर्धा आ गये । वर्धा आकर धनीराम जी गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम में अक्‍सर आने लगे एवं बालक तुलेन्‍द्र भी पिता के साथ सेवाग्रा

जोजवा पटवारी और डॉ.चंद्रबाबू नायडू

छत्तीसगढ शासन के शिक्षा विभाग के द्वारा स्कूल विद्यार्थियों के लिए छत्तीसगढी शब्द कोश बनाया जा रहा है इस कार्य में छत्तीसगढी भाषा के ज्ञानी लगे हुए हैं, उनके द्वारा प्रयास यह किया जा रहा है कि छत्तीसगढी शव्दों का हिन्दी व अंग्रेजी में सटीक विश्लेषण प्रस्तुत किया जा सके । शव्दकोश निर्माण टीम में लगे छत्तीसगढ के प्रसिद्ध कहानीकार डॉ.परदेशीराम वर्मा जी से आज हम मुलाकात करने उनके घर गए । चर्चा के दौरान उन्होंनें बतलाया कि वे कल तक इसी काम के चलते रायपुर में ही थे । हमने उत्सु्कता से इसकी प्रगति व प्रक्रिया के संबंध में पूछा, तो उन्होंनें बतलाया कि एक शव्द‍ का लगभग एक पेज में विश्लेषण किया जा रहा है । कई छत्तीसगढी शव्दों को सटीक हिन्दी व अंग्रेजी शव्दों में व्यक्त करना सामान्य बात नहीं है क्योंकि यहां के कई शव्द इतने गूढ अर्थ अपने में समेटे हैं कि इनका शब्दिक अर्थ एवं लाक्षणिक अर्थ व इनका अलग अलग समय में प्रयोग से निकलते अर्थों में जमीन आसमान का अंतर हो जाता है । इसका उदाहरण आज व कल के कुछ अखबारों में प्रकाशित भी हुआ है । डॉ.परदेशीराम वर्मा जी नें हमें इसका एक और उदाहरण बतलाया । वह शव्द

ब्लागिंग जजबा और उत्साह की निरंतरता

इंटरनेट में जब से गूगल नें ब्लाग के सहारे सृजनात्मकता को बढावा देनें का काम शुरू किया है एवं हिन्दी की सुगमता से परिचित हुआ हूं, यू समझिये कुछ अतिउत्साहित सा हूं, पर इससे मेरे सामान्य कार्य व्यवहार में दिक्कतें बढ गई हैं, ब्ला‍ग के लिये चिंतन, कार्य योजना एवं इस कडी को निरंतर आगे बढाने की लालसा नें कष्ट भी दिये हैं, इसका सबसे बडा कारण समय है । ब्लाग लिखने के साथ साथ ब्लागों को पढना व समसामयिक गतिविधियों में सहभागिता, दोस्तों से इस विषय में आनलाईन चर्चा इन सबके लिये अतिरिक्त समय की आवश्यकता व कमी को महसूस कर रहा हूं । ब्लागिंग पूर्णतया स्वांत: सुखाय अव्यावसायिक कार्य व्यहवहार है बल्कि यह कहें कि इसके लिये हमें इंटरनेट बिलों के रूप में पैसे भी नियमित खर्च करने पडते हैं, मतलब घर फूंकों तमाशा देखो वाला काम । हमारे जैसे अति अल्प आय वर्ग के लिये तो यह उक्ति सौ फीसदी सहीं बैठती है । कुछ मित्र कहते हैं कि तीन सौ से आठ सौ रूपये प्रति माह के अनुपात में साल के चार से दस हजार रूपये व्यय करके तो तुम अपने बच्चों के लिए कोई अच्छा सा आर्थिक निवेश अपना सकते हो व ज्ञान पिपासा के लिये इसके लगभग आधे

लोकगीतों में छत्तीसगढ की पारंपरिक नारी

छत्तीसगढ आरंभ से ही धान का कटोरा रहा है यहां महिलायें पुरूषों के साथ कंधे में कंधा मिलाते हुए कृषि कार्य करती रही हैं । कृषि कार्य महिला और पुरूष दोनों के सामूहिक श्रम से सफल होता है जिसके कारण हमेशा दोनों की स्थिति समान ही रही है, खेतों में दोनों के लिए अलग अलग कार्य नियत हैं । नारी और पुरूष के श्रम से ही छत्तीसगढ में धान के फसल लहलहाये हैं । इसकी इसी आर्थिक समृद्धि के कारण वैदिक काल से लेकर बौद्ध कालीन समयों तक छत्तीससगढ सांस्कृतिक व सामाजिक रूप से भी उन्नति के शिखर में रहा है । छत्तीसगढ के बहुचर्चित राउत नाच में एक दोहा प्राय: संपूर्ण छत्तीसगढ में बार बार गाया (पारा) जाता है जो छत्तीसगढ में नारियों की स्थिति को स्पष्ट‍ करती है और इस दोहे को नारी सम्मान व समानता के सबसे पुराने लोक साक्ष्य के रूप में स्वीकारा जा सकता है । ‘नारी निंदा झन कर दाउ, नारी नर के खान रे । नारी नर उपजावय भईया, धुरू पहलाद समान रे ।।‘ यह दोहा नारी के सम्मान को उसी तरह से परिभाषित करती है जिस तरह से संस्कृत के यत्र नारी पूज्यंतें तत्र .... वाक्यांशों का महत्व है । छत्तींसगढ की पारिवारिक परंपरा के इतिहास पर नजर

रायपुर प्रेस क्‍लब में पहुचे ब्‍लागर्स

कल हम रायपुर में अपना व्‍यावसायिक कार्य निबटा कर कुछ समय के लिये फ्री हुए तो हमने सोंचा कि ब्‍लागरी मीटिंग कर ली जाय, हमारी मीटिंग होती है भाई संजीत के घर में पर महोदय अब सचमुच में आवारा बंजारा हो गए हैं पत्रकार का झोला फिर से थाम लिया है और वो भी सिटी कवर कर रहे हैं सो दिन भर रायपुर की गलियां नापते हैं, हमें घर में मिलते ही नहीं । तो हमने सोंचा बडे भाई मानस जी से मिला जाय, खाडी प्रवास से आये हैं जय जोहार हो जायेगा, पर उनका मोबाईल लगा नहीं । फिर हमने हिम्‍मत कर के  हमारे प्रदेश के छत्तीसगढ़ पत्रकार महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष और अब हमारे हिन्‍दी ब्‍लाग जगत मुखर मुखिया, रायपुर प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष अनिल पुसदकर जी से मिलने का मन बनाया । सो हम  संजीत जी को खोजकर उनके साथ प्रेस क्‍लब के लिये रवाना हो गए । अनिल पुसदकर जी प्रेस क्‍लब में पत्रकार बंधुओं के साथ बैठे थे, शायद एक मीटिंग तय थी जिसका समय हो रहा था, हमने फोन पर ही एपांइंटमेंट ले लिया था, सो हमनें डरते झेंपते प्रेस क्‍लब में प्रवेश किया, कारण यह कि संजीत व अनिल भाई, दो दो पत्रकार व ब्‍लागर उसमें भी पत्रकारों के प्रदेश मुखिया से म

कवि गोष्ठियों को ‘’भजन मंडलियॉं’’ मत बनाइये

तुलसीदास : ’’कीरति भनिति भूति भलि सोई, सुरसरि सम सब कहँ हित होई (वही कीर्ति, रचना तथा सम्‍पत्ति अच्‍छी है, जिससे गंगा नदी के समान सबका हित हो)’’ सम सामयिक चेतना की छंद धर्मी, स्व . रामेश्वर गुरू तथा स्व. विश्वंभर दयाल अग्रवाल पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त मासिक पत्रिका ‘’संकल्प रथ’’ के जुलाई 2008 के संपादकीय में आदरणीय राम अधीर जी वर्तमान परिवेश में देश के गली कूचों पर धडा धड आयोजित होते कवि सम्मेलनों के संबंध में देश के ख्यात कवियों व साहित्य कारों के विचार कि आज के कवि सम्मेलन तो ‘’लाफ्टर शो’’ हो गए हैं, पर कहते हैं - ’’मुझे उनकी बातों से सहमत होना पडता है, किन्तु ऐसी खरी-खोटी टिप्पणी करने वाले ये गीतकार दो कौडी के हास्य कवियों के साथ मंचों पर क्यों बैठते हैं ? इसके पीछे उनकी धन-लोलुपता है । जबकि चुटकुलेबाजी में माहिर और विदेशों तक में जाने वाले कवियों नें हिन्दी कविता को द्रौपदी बनाकर रख दिया है । ऐसी दशा में नामवर गीतकारों को ऐसे मंचों का बहिष्कार करना चाहिये । जिन पर बहुत ही घटिया दर्जे के हास्य कवियों का जमवाडा हो । परन्तु , नहीं उन्हें तो पैसा चाहिये । मैं जहां तक समझता हूं हास

अधिवक्‍ता संघ की मासिक बुलेटिन अब हिन्‍दी ब्‍लाग में

हिन्‍दी की बढती लोकप्रियता व इंटरनेट की सर्वसुलभता को देखते हुए प्रिंट मीडिया का रूझान अब आनलाईन प्रकाशन की ओर बढ रहा है । विगत दिनों छत्‍तीसगढ अधिवक्‍ता संध की एक इकाई दुर्ग अधिवक्‍ता संध नें विधि विषयों पर केन्द्रित एक मासिक बुलेटिन के प्रकाशन का निर्णय लिया जिससे कि सदस्‍यों से नियमित संपर्क भी बना रहे एवं विधिक गतिविधियों से सदस्‍य परिचित भी होते रहें । इस बुलेटिन के लिए जब अधिवक्‍ताओं से लेख आदि आमंत्रित किये जा रहे थे तब मैंनें ‘विधि एवं सूचना क्रांति’ शीर्षक से एक लेख इस बुलेटिन हेतु प्रेषित किया, संपादकों से चर्चा के दौरान पता चला कि उन्‍हें ब्‍लाग के संबंध में सामान्‍य जानकारी है और वे कुछ ब्‍लागों से परिचित भी हैं इसलिये उन्‍होंनें इस बुलेटिन को ब्‍लाग के माध्‍यम से आनलाईन करने का सुझाव दिया, हमने संघ को सहायता प्रदान की और इस बुलेटिन का एक ब्‍लाग बना दिया । मुझे तब बहुत खुशी हुई जब इस पत्र के पिंट प्रति के विमोचन समारोह के लिए निर्धारित तिथि दिनांक 29 जुलाई 2008 को जिला न्यायालय परिसर में स्थित संघ के ग्रंथालय में इस ब्‍लाग को भी समारोहपूर्वक जारी किया गया और दुर्ग अधिवक

लेख चोरों से अपने ब्‍लाग को बचायें

पिछले कई पोस्टों में आपने पढा होगा कि फलां ब्लागर्स की कविता फलां नें कापी कर अपने ब्लाग में पोस्ट किया या फलां नें ब्लाग पोस्ट को कापी कर फलां पत्रिका में अपने नाम से छपवा लिया । हम अपने जुगाडू तंत्र से कई दिनों से इसका हल ढूढने में लगे थे, हमारे मित्रों नें बतलाया था कि एचटीएमएल में कापी प्रोटेक्ट करने के भी कोड होते हैं, पर वह हमें मिल नहीं रहा था पिछले दिनों हमें नेट सर्च में इसके दर्शन हो गये और हमने इसका प्रयोग प्रथमत: अपने ही ब्लाग पर किया । इस कोड को स्थापित करने के बाद पोस्ट टेक्स्ट में कर्सर कापी कमांड को स्वीकार करने के लिए सलेक्ट ही नहीं होता जिससे टेक्स्ट कापी ही नहीं हो पाता और हमारा लेख कापी के पेस्ट के सहारे चोरी नहीं हो पायेगा । यदि आप भी इसे आजमाना चाहते हैं तो हम इसे क्रमिक रूप से आपके लिये प्रस्‍तुत कर रहे हैं :- 1 . ब्लागर्स में लागईन होंवें - लेआउट - एडिट एचटीएमएल 2. सुरक्षा के लिहाज से संपूर्ण डाउनलोड टैम्पलेट से डाटा सहेज लेवें । 3. एचटीएमएल बाक्स में नीचे चित्र में दिये गये कोड को खोजें - 4. उस कोड को हटाकर नीचे चित्र में दिये गये संपूर्ण कोड को टाईप

कहां है घर ? : कहानी

उसने टीन शेड से बने अस्थाई शौचालय के लटकते दरवाजे को भेडकर अंदर प्रवेश किया । चूंउउउव करता हुआ दरवाजा खुला, चिखला से अपने पैर को बचाते हुए उसने दरवाजे में कुंडी लगाई और आगे बढी । शौचालय में मद्धिम रौशनी की बल्ब जल रही थी । टीन सेड को जोड जोड कर बनाये गए अस्थाई शौचालय के जोड से बाहर का दृश्य दिख रहा था । बाहर तार के बाड के इस पार सर्चलाईट की रौशनी छाई हुई थी । दो बंदूकधारी रेत के बोरों में दबे छिपे थे, उसने जोड के छेद में आंखें सटा दी, दो वर्दीवाले में से एक जोहन था । जोहन नें जेब से सितार जर्दे का पाउच निकाला और उसे मुह में उडेल लिया, साथी वर्दीवाला उससे कुछ बात कर रहा था । टीन शेड के जोड में सटी आंखें जोहन पर टिकी थी । शौचालय के दरवाजे में दस्तक हुई । ‘अरे जल्दी निकल गोई, सुत गेस का ?’ खिलखिलाती आवाज नें उसकी तंद्रा भंग कर दी । उसने कुंडी खोला और अपने मिट्टी निर्मित टीन शेड से ढकें ठिकाने में चली गई । लगभग आठ बाई पांच के उस संदूकनुमा घर में जमीन पर उसके बाबू, दाई और दो छोटे भाई सोये थे । बाजू में ही ईंटो से बना चूल्हा एवं जूठे बर्तन को तिरियाकर रखा गया था । उसने घर का फइरका बंद क

जनहित में जारी

त्र्यंबक शर्मा जी से साभार