गांधी जी की लाठी लेकर आगे आगे चलते हुए एक बच्चे की तस्वीर को हम कई अवसरों में देखे होंगें, हमारी स्मृति पटल में वह चित्र गहरे से अंकित है, आप सभी को यह चित्र याद होगा । इस चित्र में गांधी जी की लाठी लेकर आगे आगे चलता बच्चा तब का रामेश्वर उर्फ तुलेन्द्र वर्मा और आज के स्वामी आत्मानंद जी हैं । मैं इस चित्र को देखकर रोमांचित हो उठता हूं कि यही स्वामी आत्मानंद हैं जिन्होंनें छत्तीसगढ में मानव सेवा एवं शिक्षा संस्कार का अलख जगाया और शहरी व धुर आदिवासी क्षेत्र में बच्चों को तेजस्विता का संस्कार, युवकों को सेवा भाव तथा बुजुर्गों को आत्मिक संतोष का जीवन संचार किया ।
बालक तुलेन्द्र का जन्म 6 अक्टूबर 1929 को रायपुर जिले के बदबंदा गांव में हुआ, पिता धनीराम वर्मा पास के स्कूल में शिक्षक थे एवं माता भाग्यवती देवी गृहणी थी । पिता धनीराम वर्मा नें शिक्षा क्षेत्र में उच्च प्रशिक्षण के लिये बुनियादी प्रशिक्षण केन्द्र वर्धा में प्रवेश ले लिया और परिवार सहित वर्धा आ गये । वर्धा आकर धनीराम जी गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम में अक्सर आने लगे एवं बालक तुलेन्द्र भी पिता के साथ सेवाग्राम जाने लगे । बालक तुलेन्द्र गीत व भजन कर्णप्रिय स्वर में गाता था जिसके कारण गांधीजी उससे स्नेह करते थे । गांधी जी उसे अपने पास बिठाकर उससे गीत सुनते थे । धीरे धीरे तुलेन्द्र को गांधी जी का विशेष स्नेह प्राप्त हो गया, जब वे तुलेन्द्र के साथ आश्रम में घूमते थे तब तुलेन्द्र उनकी लाठी उठाकर आगे आगे दौडता था और गांधी जी पीछे पीछे लंबे लंबे डग भरते अपने चितपरिचित अंदाज में चलते थे ।
बालक तुलेन्द्र का जन्म 6 अक्टूबर 1929 को रायपुर जिले के बदबंदा गांव में हुआ, पिता धनीराम वर्मा पास के स्कूल में शिक्षक थे एवं माता भाग्यवती देवी गृहणी थी । पिता धनीराम वर्मा नें शिक्षा क्षेत्र में उच्च प्रशिक्षण के लिये बुनियादी प्रशिक्षण केन्द्र वर्धा में प्रवेश ले लिया और परिवार सहित वर्धा आ गये । वर्धा आकर धनीराम जी गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम में अक्सर आने लगे एवं बालक तुलेन्द्र भी पिता के साथ सेवाग्राम जाने लगे । बालक तुलेन्द्र गीत व भजन कर्णप्रिय स्वर में गाता था जिसके कारण गांधीजी उससे स्नेह करते थे । गांधी जी उसे अपने पास बिठाकर उससे गीत सुनते थे । धीरे धीरे तुलेन्द्र को गांधी जी का विशेष स्नेह प्राप्त हो गया, जब वे तुलेन्द्र के साथ आश्रम में घूमते थे तब तुलेन्द्र उनकी लाठी उठाकर आगे आगे दौडता था और गांधी जी पीछे पीछे लंबे लंबे डग भरते अपने चितपरिचित अंदाज में चलते थे ।
कुछ वर्ष उपरांत धनीराम वर्मा जी रायपुर वापस आ गए एवं रायपुर में 1943 में श्रीराम स्टोर्स नामक दुकान खोलकर जीवन यापन करने लगे, बालक तुलेन्द्र नें सेंटपाल स्कूल से प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल की परीक्षा पास की और उच्च शिक्षा के लिए साइंस कालेज नागपुर चले गए । वहां उन्हें कालेज में छात्रावास उपलब्ध नहीं हो सका फलत: वे रामकृष्ण आश्रम में रहने लगे । यहीं से उनके मन में स्वामी विवेकानंद के आदर्शों नें प्रवेश किया बाद में उन्हें कालेज के द्वारा छात्रावास उपलब्ध करा दिया गया पर तब तक विवेक ज्योति नें उनके हृदय में प्रवेश कर परम आलोक फैला दिया था । तुलेन्द्र नें नागपुर से प्रथम श्रेणी में एमएससी(गणित) उत्तीर्ण किया, फिर दोस्तों की सलाह पर आईएएस की परीक्षा में सम्मिलित भी हुए वहां उन्हें प्रथम दस सफल उम्मीदवारों में स्थान मिला पर मानव सेवा एवं विवेक दशर्न से आलोकित तुलेन्द्र नौकरी से बिलग रहते हुए, मौखिक परीक्षा में सम्मिलित ही नहीं हुए । वे रामकृष्ण आश्रम की विचाधारा से जुडकर कठिन साधना एवं स्वाध्याय में रम गए ।
स्वामी आत्मानंद जी के चार भाई थे जिनमें से छोटे भाई, प्रसिद्ध भाषाविद व विवेक ज्योति के संपादक डॉ.नरेन्द्र देव वर्मा, स्वामी जी के जीवनकाल में ही स्वर्ग सिधार गए थे । शेष तीन में से स्वामी श्री त्यागानंद जी महाराज अपने बडे भाई के पदचिन्हों पर चलते हुए, वर्तमान में इलाहाबाद रामकृष्ण आश्रम के प्रमुख हैं । स्वामी श्री निखिलात्मकानंद जी महाराज छत्तीसगढ के वनवासी क्षेत्र में शिक्षा संस्कार की ज्योति जलाते हुए छत्तीसगढ के नारायणपुर आश्रम के प्रमुख हैं । सबसे छोटे भाई डॉ.ओम प्रकाश वर्मा शिक्षाविद हैं और विवेकानंद विद्यापीठ, रायपुर के प्रमुख हैं ।
सन 1957 में रामकृष्ण मिशन के महाध्यक्ष स्वामी शंकरानंद नें तुलेन्द्र की प्रतिभा, विलक्षणता, सेवा व समर्पण से प्रभावित होकर ब्रम्हचर्य में दीक्षित किया व उन्हें नया नाम दिया - स्वामी तेज चैतन्य । अपने नाम के ही अनुरूप स्वामी तेज चैतन्य नें अपनी प्रतिभा व ज्ञान के तेज से मिशन को आलोकित किया । अपने आप में निरंतर विकास व साधना सिद्धि के लिये वे हिमालय स्थित स्वर्गाश्रम में एक वर्ष तक कठिन साधना कर वापस रायपुर आये । स्वामी विवेकानंद के रायपुर प्रवास को अविश्मर्णीय बनाने के उद्देश्य से रायपुर में विवेकानंद आश्रम का निर्माण कार्य आरंभ कर दिया । इस कार्य के लिये उन्हें मिशन से विधिवत स्वीकृति नहीं मिली किन्तु वे इस प्रयास में सफल रहे एवं आश्रम निर्माण के साथ ही रामकृष्ण मिशन, बेलूर मठ से संबद्धता भी प्राप्त हो गई ।
आज हम जिस विवेकानंद आश्रम का भव्य व मानवतावादी स्वरूप देख रहे हें वह उन्हीं स्वामी तेज चैतन्य की लगन व निष्ठा का प्रतिफल है जिन्हें बाद में स्वामी आत्मानंद के नाम से पुकारा गया । स्वामी जी छत्तीसगढ की सेवा में इस कदर ब्रम्हानंद में लीन हुए कि मंदिर निर्माण हेतु प्राप्त राशि भी अकालग्रस्त ग्रामीणों को बांट दी । बाग्ला देश से आये शरणार्थियों की सेवा, शिक्षा हेतु सतत प्रयास, कुष्ट उन्मूलन आदि समाजहित के कार्य जी जान से जुटकर करते रहे । शासन के अनुरोध पर वनवासियों के उत्थान हेतु नारायणपुर में उच्च स्तरीय शिक्षा संस्कार केन्द्र की स्थापना भी इस महामना के द्वारा की गई । इसके साथ ही इन्होंनें छत्तीसगढ में शिक्षा संस्कार, युवा उत्थान व प्रेरणा के देदीप्यमान नक्षत्र के रूप में चतुर्दिक छा गए । छत्तीसगढ को सुसंस्कृत करने हेतु कृत संकल्पित इस युवा संत को 27 अगस्त 1989 को भोपाल से सडक मार्ग द्वारा रायपुर आते हुए राजनांदगांव के समीप एक दुर्घटना नें हमसे सदा सदा के लिए छीन लिया ।
आज हम जिस विवेकानंद आश्रम का भव्य व मानवतावादी स्वरूप देख रहे हें वह उन्हीं स्वामी तेज चैतन्य की लगन व निष्ठा का प्रतिफल है जिन्हें बाद में स्वामी आत्मानंद के नाम से पुकारा गया । स्वामी जी छत्तीसगढ की सेवा में इस कदर ब्रम्हानंद में लीन हुए कि मंदिर निर्माण हेतु प्राप्त राशि भी अकालग्रस्त ग्रामीणों को बांट दी । बाग्ला देश से आये शरणार्थियों की सेवा, शिक्षा हेतु सतत प्रयास, कुष्ट उन्मूलन आदि समाजहित के कार्य जी जान से जुटकर करते रहे । शासन के अनुरोध पर वनवासियों के उत्थान हेतु नारायणपुर में उच्च स्तरीय शिक्षा संस्कार केन्द्र की स्थापना भी इस महामना के द्वारा की गई । इसके साथ ही इन्होंनें छत्तीसगढ में शिक्षा संस्कार, युवा उत्थान व प्रेरणा के देदीप्यमान नक्षत्र के रूप में चतुर्दिक छा गए । छत्तीसगढ को सुसंस्कृत करने हेतु कृत संकल्पित इस युवा संत को 27 अगस्त 1989 को भोपाल से सडक मार्ग द्वारा रायपुर आते हुए राजनांदगांव के समीप एक दुर्घटना नें हमसे सदा सदा के लिए छीन लिया ।
रामकृष्ण मिशन - विवेकानंद आश्रम, रायपुर के संबंध में संजीत त्रिपाठी जी के आवारा बंजारा में विस्तृत रिपोर्ट भी देखें ।
संजीव तिवारी
बहुत आभार भाई-बड़ी गजब की जानकारी लाये है. चित्र हमेशा से देखा, जाना कभी नहीं. स्वामी आत्मानंद के बारे में जानना अद्भुत रहा. सारा श्रेय आपको!!
जवाब देंहटाएंबधाई हो संजीव जी. आपने उस बच्चे के बारे में बताकर बहुत लोगों की जिज्ञासा को शांत किया है. अच्छा लगा पढ़कर.
जवाब देंहटाएंस्वामी विवेकानंद आज के युग के पथ-प्रदर्शक दार्शनिक थे। उन की व्याख्याओं को जनता में अधिकाधिक लाना समाज निर्माण का बड़ा काम है।
जवाब देंहटाएंस्वामी आत्मानंद के बारे में जानकारी देने के लिए आभार।
bahut badhiya janakari or rochak alekh . sanjeev ji dhanyaqaad.
जवाब देंहटाएं"wonderful post and thanks for detailed description"
जवाब देंहटाएंRegards
यह तो अच्छा बताया इस चित्र के पात्र तुलेन्द्र/आत्मानद के विषय में। वास्तव में ज्ञानवर्धन हुआ। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंउन गुणी महामना को मेरा सादर चरणस्पर्श !! छ्त्तीसगढ के सुवासीत गौरव पुष्प को संपुर्ण समुदाय़ के समक्ष प्रगट करने के लिये आपका आभार !!
जवाब देंहटाएंवाकई .....आपने बड़ी जिज्ञासा शांत की है.
जवाब देंहटाएंsanjeev bhai,
जवाब देंहटाएंbahut achchhi jankari ke sath swami aatmanand ko smarnanjali di gai hai..mujhe unke charon bhaiyon ke name is lekh se pata chala hai,unhe meri hardik shrddhanjali arpit hai.
prof. ashwini kesharwani
Ravindra Ahar has left a new comment on your post
जवाब देंहटाएंकेयूर भूषण जी ने देशबन्धु में अपने लेख में उनके पिता धनीरामजी के बारे में लिखा था उसमें भी श्री तुलेन्द्र का जिक्र इस प्रकार किया थाः
एकबार तुलेन्द्र की मां ने कस्तूरबा से शिकायत कर दी कि तुलेन्द्र उनकी बात नहीं मानता है। सहयोग से बा ने यह बात गांधीजी को बता दी। रात्रि प्रार्थना के बाद गांधीजी बच्चों को बिठाकर कहानियां सुनाया करते थे। उस रात गांधीजी ने बच्चों को माता-पिता की बात न मानने से संबंधित एक कहानी सुनाई। कहानी समाप्त होते ही तुलेन्द्र ने बापूजी के पैर पकड़ लिए, ‘बापूजी आप मेरे को ही डांट रहे हैं, ऐसा कहकर वह रोने लगा इस पर बापू जी ने बड़े प्रेम से उसे पुचकारा। उसे बापू बहुत चाहते थे। सेवाग्राम में वह बापू की लाठी लेकर आगे-आगे चलता था। सेवाग्राम में अब भी उसके यह छायाचित्र लगे हुए हैं।’
Test
जवाब देंहटाएंसंजीव भाई , मैं स्वामी आत्मानंद को अपने पारिवारिक पाठशाला के समय से आकाशवाणी रायपुर से सुनता रहा हूँ.....कदाचित आपको भी स्मरण हो की एक ५ मिनट का प्रेरक प्रसंग कार्यक्रम जो प्रातः काल रामचरित मानस के तत्काल बाद प्रसारित होता था..उसमें अधिकांशतः स्वामी जी के ही विचार प्रसंग हुआ करते थे......आपने वहां विचरण करा मुझे व्यक्तिशः विमुग्ध कर दिया....धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसंजीव भाई.....आपने स्वामी आत्मानंद जी का लेख पोस्ट कर मुझे पारिवारिक पाठशाला के उन दिनों का स्मरण करा दिया जब आकाशवाणी रायपुर से प्रातःकाल रामचरितमानस के प्रसारण के तत्काल पश्चात एक ५ मिनट का प्रेरक प्रसंग कार्यक्रम प्रसारित होता था ...और उसमें अधिकांशतः स्वामी जी का ही प्रसंग होता था........
जवाब देंहटाएंमैं अपनी विकसित होती बुद्धि से जो भी समझता....किन्तु कई बार ....यह जरुर कल्पना करता था की आकाशवाणी से कहीं स्वामी जी ही तो नहीं बोल रहें हैं..यद्यपि कालांतर में यह स्पष्ट हुआ कि वह लाल रामकुमार रेडियो jocky की आवाज होती थी.....जीवन ....लेख प्रसंग स्वामी जी के होते थे....! धन्यवाद..उन प्रेरणा के पलों को स्मरण करने के लिए.
... बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति ... आपने बहुत कुछ एक छोटी-सी पोस्ट के माध्यम से अभिव्यक्त कर दिया है ... बहुत कुछ जानने व समझने को मिला, आभार !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपको
जवाब देंहटाएंघन्यवाद आपको
जवाब देंहटाएंसंजीव जी आपके इस post पर मतांतर हैं,कृपया मेरे Facebook account पर नजर डालें...thanks
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