उसने टीन शेड से बने अस्थाई शौचालय के लटकते दरवाजे को भेडकर अंदर प्रवेश किया । चूंउउउव करता हुआ दरवाजा खुला, चिखला से अपने पैर को बचाते हुए उसने दरवाजे में कुंडी लगाई और आगे बढी । शौचालय में मद्धिम रौशनी की बल्ब जल रही थी । टीन सेड को जोड जोड कर बनाये गए अस्थाई शौचालय के जोड से बाहर का दृश्य दिख रहा था । बाहर तार के बाड के इस पार सर्चलाईट की रौशनी छाई हुई थी । दो बंदूकधारी रेत के बोरों में दबे छिपे थे, उसने जोड के छेद में आंखें सटा दी, दो वर्दीवाले में से एक जोहन था ।
जोहन नें जेब से सितार जर्दे का पाउच निकाला और उसे मुह में उडेल लिया, साथी वर्दीवाला उससे कुछ बात कर रहा था । टीन शेड के जोड में सटी आंखें जोहन पर टिकी थी । शौचालय के दरवाजे में दस्तक हुई । ‘अरे जल्दी निकल गोई, सुत गेस का ?’ खिलखिलाती आवाज नें उसकी तंद्रा भंग कर दी । उसने कुंडी खोला और अपने मिट्टी निर्मित टीन शेड से ढकें ठिकाने में चली गई । लगभग आठ बाई पांच के उस संदूकनुमा घर में जमीन पर उसके बाबू, दाई और दो छोटे भाई सोये थे । बाजू में ही ईंटो से बना चूल्हा एवं जूठे बर्तन को तिरियाकर रखा गया था । उसने घर का फइरका बंद किया और छोटे भाई के चिरकट चद्दर को खींचकर उसके अंदर घुस गई । आंखों में जोहन का लम्बां तगडा वर्दी वाला रूप छा गया जिसे उसने अभी अभी देखा था । वह देर तक स्वप्नों में, डोंगरी पहाडों में जोहन के साथ करमा नाचती रही और सो गई ।
सबह उठकर उसने बर्तन साफ किये, रात के बचे आधा बंगुनिया पानी में नहाया और सार्वजनिक नल पांईट से जर्मन के बडे भगोनें में लड-झगड कर खिसियाते हुए पानी लाई ‘सरकार हर बोरिंग कोडा के लडई बढावत हे, बने रहे मोर सेंदर नदिया दई कोनों रोके न टोंके, ससन भर तंउर अउ दस बेर धौड के हौंला हौला पानी ल भर डर ।‘ बडबडाते हुए चूल्हे में लकडी जलाकर पसिया पकाने लगी ।
कुछ माह पहले ही वह अपने परिवार के साथ इस कैम्प में आई थी, अपने हंसते-खिलखिलाते तरूणाई को गांव में ही छोड कर । यहां आकर उसकी कुछ उम्र में बडी लडकियां सलेही बन गई थी जो आस पास के ही गांव के थे । अब जब वे चूल्हा चौंका से मुक्त होतीं तो कहीं एक जगह मिल बैठते और फुसफुसाहट के साथ किसी किसी सहेली के लाल होते मुख मंडल से हंसी फूटती फिर सब समवेत खिलखिलाने लगते । करमा और ददरिया के बंद फूट पडते । सहेलियां छेडछाड से लेकर नरवा में युवा मित्र के साथ आंख मिचौली के अनुभवों को बताती तो उसके पूरे शरीर में झुरझुरी फैल जाती । किशोरावस्था पर ग्रामीण बालाओं में चढती जवानी की कहानियां सभी को मदमस्त कर देती ।
दिन में उसके दाई बाबू जंगल जाते और चार चिरौंजी, हर्रा बहेरा, इकट्ठा कर घर लाते । खाखी वर्दी वाले दिन भर कैम्प में गस्त करते, तार के कांटों से घिरे स्वस्फूर्त ? बंधन में परदेशी वर्दीवालों से बचकर रहने की हिदायत दे किशोर व जवान लडकियों की मांए दहशत के बावजूद चेहरे पर सरकार के दिये आवश्यक रूप से लगाए जाने वाले मुस्कान को चिपकाये रहतीं ।
उसका मन होता कि पल्ला दौंड कर डोंगरी में चढ जाये या किसी विशाल महुआ के वृक्ष के थिलिंग में चढकर दूर दूर तक फैले जंगल में टेढी-मेढी रेखाओं सी नजर आती सडक पर चींटी जैसे रेंगते इक्का दुक्का वाहनों को घंटों निहारे । पर अब वह बडी हो गई है, दाई उसे बार बार समझाती है ‘अक्केल्ला् मत निंगे कर ।‘ वर्दी में जोहन को देखकर उसका मन भंवरा नाचने लगता था, अब वह जवान हो गई है ।
जोहन जंगल इलाके का था वह हल्बी व छत्तीसगढी में बोलना जानता था इस कारण कैम्प के सभी लोगों से वह प्रतिदिन पांव-पैलगी करते रहता था । वनवासी अपने बीच के ‘साहेब’ की आत्मियता से अपनी जमीन छोडने का दुख बिसराने का प्रयास करते । युवा जोहन स्टेनगन थामें पूरे कैम्प में चौकडी भरते रहता । कैम्प के सभी युवा लडकियों का वह हीरो था ।
उस रात को भी उसके आंखों में जोहन छाया था वैसे ही लाईट गुल हो गई, सन्नाटा मीलों तक पसरा था । वर्दीवालों की आवाजें तेज हो गई फिर जनरेटर चलने की आवाज के साथ सर्चलाईट पुन: चमकने लगे । ‘ठांय ।‘ की आवाज नें उंघते वर्दीवालों को चौंका दिया, उन्हेंर कुछ समझ में आता तब तक पूरे सर्चलाईट गोली से उड चुके थे । अंधेरे में भगदड मच गई । दादा लोगों की टोली कैम्प् में घुस आई थी । चीख-पुकार, गालियों के संग गोलियों के आदान प्रदान और आर्तनाद से वह सिहर उठी । अपने भाई को अपने छाती में छिपाकर चद्दर में अपने पूरे शरीर को ढांप कर चुरू-मुरू दुबक गई । घंटो तक बाहर का माहौल वैसे ही बना रहा, उसकी बंद आंखें बाहर के दृश्यों को आवाजों से महसूस करती रही । दहशत में नींद हवा हो गई थी, दाई-बाबू भी जाग गए थे पर सभी अनजान बने दुबके थे ।
सुबह धीरे-धीरे हिम्मत करते हुए लोग अपने अपने घरों से बाहर निकलने लगे । बाहर का दृश्य देखकर सभी का टट्टी सटक गया । अपने परिजनों का जला व गोलियों से बिंधा लाश देख कर करेजा कांप गया । मौत का भय यहां भी ताण्डव करता नजर आया ।
दो-तीन दिन खुसुर-फुसुर के बाद दाई बाबू कैम्प से महुआ बीनने निकलकर बाहर दूर सडक में उसका और बच्चों का इंतजार करने लगे । वह बच्चों को घुमाने के बहाने कैंम्प से टसक गई और इंतजार करते दाई बाबू के पास पहुचकर कैम्प को दूर से प्रणाम किया जैसा उसने कैम्प् में आने के पहले अपने गांव के बूढा देव को किया था । ‘जीव रही त कहूं कमा खा लेबो नोनी के दाई ।‘ बाबू के शव्दे नें मौत के भय से सुकुरदुम हुए पूरे परिवार को बल दिया और वे सडक पर आ रही बस को रोककर उसमें चढ गए । कहां जाना है यह बाबू भी तय नहीं कर पाये थे, अभी तो यहां से निकलना जरूरी था । एक शहर फिर दूसरा शहर फिर ........ इन पांच जिन्दगियों नें कई कई शहरों को पार कर, कंटेनरों में भरा कर आसाम के बर्मा से सटे एक गांव तक का सफर तय किया ।
यहां नदी किनारे चार पांच चिमनी वाले ईंट भट्ठे में बहुतायत छत्तीसगढिया मजदूर थे । दाई बाबू नें ईंट भट्ठे के खोला में जब अपना मोटरा रखा तब उनके आंखों में खुशी को झांकती हुई वह झाडू उठा कर कमरे में झाडू लगाने लगी । नदी किनारे फैले जंगल अपने से लग रहे थे, आजू बाजू के लोग भी अस्सीं कोस नव बासा में भी अपने थे । चिंता और भय झाडू के चलते ही दूर आसमान में उड चला ।
अब वह भी दाई बाबू के साथ भट्ठे में काम करने लगी । बाबू नें रास्ते में उसे बताया था कि उस दिन और लोगों के साथ जोहन की भी मौत हो गई थी । अब उसे रात में जोहन के सपने नहीं आते, सभी सहेलियां छूट गई । यहां आकर वह कुछ गुमसुम सी हो गई है । उसका खिलता यौवन ठहर सा गया है, अल्लडता जब्बं हो गई है, परिपक्वता छा गई है ।
एक साथ बीस ईंट को सिर में लेकर गहरे भट्ठे से जब वह निकलती तब दूर से उसके संपूर्ण शरीर को गिद्ध की तरह निहारते मुंशी को वह कनखिंयों से देखती और एक हाथ में साडी के पल्लू को पकड कर अपने ढपे स्तनों को और ढापती । कभी कभी वर्दी वाले लोगों का दल भट्ठे पर आता और मजदूरों की ओर हाथ दिखा कर मुंशी से कुछ फुस-फुसाता फिर चला जाता । यह दल वैसे ही शक्ल सूरत के होते जैसे उसने अपने गांव और कैम्प के वर्दीवालों का देखा था । उसने एक अधेड छत्तीसगढी महिला से शंका से पूछा ‘नागा पुलिस अउ मिजो पुलिस ? का इंहों दादा मन के राज हे ?’ ‘ नहीं नोनी, का लिट्टे क उल्फा कहिथे दाई, दादा ये येमन इंहा के फेर हमन ला कुछू नि करे ।‘ अधेड महिला नें बताया था । उसके मन में पुन: भय का प्रवेश हो जाता है पर वह अपने लोगों से बात कर आश्वस्थ हो जाती है ।
कुछ माह ऐसे ही चलता रहा, एक दिन वर्दीवालों का फरमान मुंशी नें पढ सुनाया जिसका सार यह था कि यह जमीन उनकी है यहां कोई दूसरे प्रदेश का आदमी नहीं रह सकता, पांच दिन के अंदर अपने घर भाग जाओ नहीं तो गोली से उडा देंगें । बाजू भट्ठे के एक बुजुर्ग मजदूर नें दाई बाबू को शाम को आकर समझाया ‘भाग जाना ठीक हे बाबू, इंहा बात कहत बंदूक चलथे, परदेश के सोंहारी ले तो अपन घर के पेज पसिया बने ।‘ वह यहां की परिस्थिति से तो वाकिफ नहीं थी पर वह ऐलान का मतलब समझती थी, फरमान की ताकत जानती थी । कहां जायेंगें वे, कहां है उनका घर ?
छत्तीसगढ पर लिखी गई मोटी मोटी किताबों को एयरवेज के विमान से लाकर मैं डिब्रूगढ के सितारा होटल में बैठकर छत्तीसगढ की आदिवासी अस्मिता पर एक बडा लेख लिखने में मशगुल हूं, मेरे सुपरवाईजर नें मुझे उनसे परिचय कराया है, वे लगभग 25 किलोमीटर पैदल चल कर शहर आये हैं । पेट्रोलियम प्रोडक्ट के मेरे कंपनी के टैंकरों की खेप सुल्फा से लेनदेन के बाद आज छत्तीसगढ के लिए रवाना होने वाली है पर वे पांचों अपने मोटरा के पास बैठे हैं मेरे आग्रह पर भी किसी भी ट्रक में सवार नहीं हो रहे हैं, शाम हो रही है और मुझे भी आज ही परिवार सहित आसाम छोड देना है ।
(यह कहानी, परिस्थितियां और इसके पात्र पूर्णतया काल्पनिक हैं )
संजीव तिवारी
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
लेबल
संजीव तिवारी की कलम घसीटी
समसामयिक लेख
अतिथि कलम
जीवन परिचय
छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में
पुस्तकें-पत्रिकायें
छत्तीसगढ़ी शब्द
Chhattisgarhi Phrase
Chhattisgarhi Word
विनोद साव
कहानी
पंकज अवधिया
सुनील कुमार
आस्था परम्परा विश्वास अंध विश्वास
गीत-गजल-कविता
Bastar
Naxal
समसामयिक
अश्विनी केशरवानी
नाचा
परदेशीराम वर्मा
विवेकराज सिंह
अरूण कुमार निगम
व्यंग
कोदूराम दलित
रामहृदय तिवारी
अंर्तकथा
कुबेर
पंडवानी
Chandaini Gonda
पीसीलाल यादव
भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष
Ramchandra Deshmukh
गजानन माधव मुक्तिबोध
ग्रीन हण्ट
छत्तीसगढ़ी
छत्तीसगढ़ी फिल्म
पीपली लाईव
बस्तर
ब्लाग तकनीक
Android
Chhattisgarhi Gazal
ओंकार दास
नत्था
प्रेम साईमन
ब्लॉगर मिलन
रामेश्वर वैष्णव
रायपुर साहित्य महोत्सव
सरला शर्मा
हबीब तनवीर
Binayak Sen
Dandi Yatra
IPTA
Love Latter
Raypur Sahitya Mahotsav
facebook
venkatesh shukla
अकलतरा
अनुवाद
अशोक तिवारी
आभासी दुनिया
आभासी यात्रा वृत्तांत
कतरन
कनक तिवारी
कैलाश वानखेड़े
खुमान लाल साव
गुरतुर गोठ
गूगल रीडर
गोपाल मिश्र
घनश्याम सिंह गुप्त
चिंतलनार
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग
छत्तीसगढ़ वंशी
छत्तीसगढ़ का इतिहास
छत्तीसगढ़ी उपन्यास
जयप्रकाश
जस गीत
दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति
धरोहर
पं. सुन्दर लाल शर्मा
प्रतिक्रिया
प्रमोद ब्रम्हभट्ट
फाग
बिनायक सेन
ब्लॉग मीट
मानवाधिकार
रंगशिल्पी
रमाकान्त श्रीवास्तव
राजेश सिंह
राममनोहर लोहिया
विजय वर्तमान
विश्वरंजन
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
वेंकटेश शुक्ल
श्रीलाल शुक्ल
संतोष झांझी
सुशील भोले
हिन्दी ब्लाग से कमाई
Adsense
Anup Ranjan Pandey
Banjare
Barle
Bastar Band
Bastar Painting
CP & Berar
Chhattisgarh Food
Chhattisgarh Rajbhasha Aayog
Chhattisgarhi
Chhattisgarhi Film
Daud Khan
Deo Aanand
Dev Baloda
Dr. Narayan Bhaskar Khare
Dr.Sudhir Pathak
Dwarika Prasad Mishra
Fida Bai
Geet
Ghar Dwar
Google app
Govind Ram Nirmalkar
Hindi Input
Jaiprakash
Jhaduram Devangan
Justice Yatindra Singh
Khem Vaishnav
Kondagaon
Lal Kitab
Latika Vaishnav
Mayank verma
Nai Kahani
Narendra Dev Verma
Pandwani
Panthi
Punaram Nishad
R.V. Russell
Rajesh Khanna
Rajyageet
Ravindra Ginnore
Ravishankar Shukla
Sabal Singh Chouhan
Sarguja
Sargujiha Boli
Sirpur
Teejan Bai
Telangana
Tijan Bai
Vedmati
Vidya Bhushan Mishra
chhattisgarhi upanyas
fb
feedburner
kapalik
romancing with life
sanskrit
ssie
अगरिया
अजय तिवारी
अधबीच
अनिल पुसदकर
अनुज शर्मा
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
अमिताभ
अलबेला खत्री
अली सैयद
अशोक वाजपेयी
अशोक सिंघई
असम
आईसीएस
आशा शुक्ला
ई—स्टाम्प
उडि़या साहित्य
उपन्यास
एडसेंस
एड्स
एयरसेल
कंगला मांझी
कचना धुरवा
कपिलनाथ कश्यप
कबीर
कार्टून
किस्मत बाई देवार
कृतिदेव
कैलाश बनवासी
कोयल
गणेश शंकर विद्यार्थी
गम्मत
गांधीवाद
गिरिजेश राव
गिरीश पंकज
गिरौदपुरी
गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’
गोविन्द राम निर्मलकर
घर द्वार
चंदैनी गोंदा
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
छत्तीसगढ़ पर्यटन
छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण
छत्तीसगढ़ी व्यंजन
जतिन दास
जन संस्कृति मंच
जय गंगान
जयंत साहू
जया जादवानी
जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड
जुन्नाडीह
जे.के.लक्ष्मी सीमेंट
जैत खांब
टेंगनाही माता
टेम्पलेट डिजाइनर
ठेठरी-खुरमी
ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं
डॉ. अतुल कुमार
डॉ. इन्द्रजीत सिंह
डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव
डॉ. गोरेलाल चंदेल
डॉ. निर्मल साहू
डॉ. राजेन्द्र मिश्र
डॉ. विनय कुमार पाठक
डॉ. श्रद्धा चंद्राकर
डॉ. संजय दानी
डॉ. हंसा शुक्ला
डॉ.ऋतु दुबे
डॉ.पी.आर. कोसरिया
डॉ.राजेन्द्र प्रसाद
डॉ.संजय अलंग
तमंचा रायपुरी
दंतेवाडा
दलित चेतना
दाउद खॉंन
दारा सिंह
दिनकर
दीपक शर्मा
देसी दारू
धनश्याम सिंह गुप्त
नथमल झँवर
नया थियेटर
नवीन जिंदल
नाम
निदा फ़ाज़ली
नोकिया 5233
पं. माखनलाल चतुर्वेदी
पत्रकार
परिकल्पना सम्मान
पवन दीवान
पाबला वर्सेस अनूप
पूनम
प्रशांत भूषण
प्रादेशिक सम्मलेन
प्रेम दिवस
बलौदा
बसदेवा
बस्तर बैंड
बहादुर कलारिन
बहुमत सम्मान
बिलासा
ब्लागरों की चिंतन बैठक
भरथरी
भिलाई स्टील प्लांट
भुनेश्वर कश्यप
भूमि अर्जन
भेंट-मुलाकात
मकबूल फिदा हुसैन
मधुबाला
महाभारत
महावीर अग्रवाल
महुदा
माटी तिहार
माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह
मीरा बाई
मेधा पाटकर
मोहम्मद हिदायतउल्ला
योगेंद्र ठाकुर
रघुवीर अग्रवाल 'पथिक'
रवि श्रीवास्तव
रश्मि सुन्दरानी
राजकुमार सोनी
राजमाता फुलवादेवी
राजीव रंजन
राजेश खन्ना
राम पटवा
रामधारी सिंह 'दिनकर’
राय बहादुर डॉ. हीरालाल
रेखादेवी जलक्षत्री
रेमिंगटन
लक्ष्मण प्रसाद दुबे
लाईनेक्स
लाला जगदलपुरी
लेह
लोक साहित्य
वामपंथ
विद्याभूषण मिश्र
विनोद डोंगरे
वीरेन्द्र कुर्रे
वीरेन्द्र कुमार सोनी
वैरियर एल्विन
शबरी
शरद कोकाश
शरद पुर्णिमा
शहरोज़
शिरीष डामरे
शिव मंदिर
शुभदा मिश्र
श्यामलाल चतुर्वेदी
श्रद्धा थवाईत
संजीत त्रिपाठी
संजीव ठाकुर
संतोष जैन
संदीप पांडे
संस्कृत
संस्कृति
संस्कृति विभाग
सतनाम
सतीश कुमार चौहान
सत्येन्द्र
समाजरत्न पतिराम साव सम्मान
सरला दास
साक्षात्कार
सामूहिक ब्लॉग
साहित्तिक हलचल
सुभाष चंद्र बोस
सुमित्रा नंदन पंत
सूचक
सूचना
सृजन गाथा
स्टाम्प शुल्क
स्वच्छ भारत मिशन
हंस
हनुमंत नायडू
हरिठाकुर
हरिभूमि
हास-परिहास
हिन्दी टूल
हिमांशु कुमार
हिमांशु द्विवेदी
हेमंत वैष्णव
है बातों में दम
छत्तीसगढ़ की कला, साहित्य एवं संस्कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख
लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा
विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...
-
दे दे बुलउवा राधे को : छत्तीसगढ में फाग संजीव तिवारी छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । यहां के ...
-
यह आलेख प्रमोद ब्रम्हभट्ट जी नें इस ब्लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्पणी के रूप मे...
-
8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया ...
ओह, यही सच है? बड़ा कष्टदायक है। मैने झारखण्डी करमा देखी है भदोही में भट्टा मजूर जवान होती लड़की, तीस साल पहले। जाने कहां होगी।
जवाब देंहटाएंपर यह पढ़ कर उसके लिये परेशानी सी होती है।
अच्छा लिखा है लेकिन कई जगह पर भाषा ना समझपाने का कष्ट भी--
जवाब देंहटाएं‘भाग जाना ठीक हे बाबू, इंहा बात कहत बंदूक चलथे, परदेश के सोंहारी ले तो अपन घर के पेज पसिया बने ।‘ लेकिन जानता हूं कि भावार्थ क्या बन रहा था।
सुंदर, अति उत्तम।।।।
आपका लेखन इतना सजीव है कि सब चित्र आँखों के सामने प्रकट हो जाते हैं. सहज सरल लेकिन प्रभावशाली छाप छोड़ जाता है.
जवाब देंहटाएंन जाने कितने लोग अपने घर से बेघर होकर दरदर की ठोकरें खाते हुए एक नया घर ढूँढ रहे हैं। कष्टदायक स्थिति को बताती एक भावपूर्ण कहानी!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
अच्छी कहानी, कहीं कहीं समझने में थोडी तकलीफ़ पेश आयी लेकिन भाव समझ में आते रहे ।
जवाब देंहटाएंआभार,
badhai sanjoo.raipur aao to milo press club me
जवाब देंहटाएंसंजीव भाई बहुत बढिया , साहित्य समाज का दर्पण है, आपकी इस कहानी में छत्तीसगढ के आंचलिक परिवेश से कथानक आरंभ हो रहा है, मध्य भाग में कहानी पूरे देश की ज्वलंत समस्या से जुड जाती है,कथ्य के साथ साथ शिल्प भी बहुत शानदार है,पर सबसे प्रबल भाव पक्ष है,इसी तरह लगे रहिए...आपकी कहानी साबित करती है कि कलम कभी खामोश नहीं रहती , विसंगतियो को दूर करने , अंधेरे को चीरने के लिए लगी रहती है....
जवाब देंहटाएंएक भावपूर्ण कहानी....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा विषय चुना है. अपने ही देश में बेगाने हैं लोग - किन-किन तानाशाहों से लडेंगे बेचारे और कब तक?
जवाब देंहटाएंsach kitna bhayanak !
जवाब देंहटाएंkahani gumsum bana gai.......
परिस्थितियाँ इतने अच्छे से बयान की हैं आपने कि ऐसा लग रहा है कि हम कहानी को देख रहे हैं.
जवाब देंहटाएं"बंधन में परदेशी वर्दीवालों से बचकर रहने की हिदायत दे किशोर व जवान लडकियों की मांए दहशत के बावजूद चेहरे पर सरकार के दिये आवश्यक रूप से लगाए जाने वाले मुस्कान को चिपकाये रहतीं ।"
कितनी खूबसूरती से मजबूरी को बता दिया है. हालांकि कहीं कहीं शब्द समझने कि दिक्कत है पर कहानी का मूल रूप बनाये रखने के लिए आवश्यक भी है.
nice script,
जवाब देंहटाएंlekin ek baat bataye sanjeev ji,
situation ka jo aapne yaha chitrann kiya hain , real me situation ishse bhi " Bhayaanak" hai. jishki yatharta bhi aapke iss kalpnik kalpanaa se bahut hi kathorr hain.