

भ्रष्टाचार और जनलोकपाल बिल की चर्चा तो इस मार्च में पूरे एक पखवाड़े होते रही उससे परे की कुछ छोटी-छोटी बातों को देखें, जिनको देखना मेरे वहां जाने का एक मकसद था तो अमरीका एक बड़ी दिलचस्प जगह भी है। लॉस एंजल्स के एक इलाके में जब हम एक संगीत स्कूल के बगल से गुजर रहे थे तो वहां फुटपाथ पर खड़े हुए संगीत के छात्र प्रैक्टिस कर रहे थे। जो काम आमतौर पर संगीत शाला के भीतर होना चाहिए वह काम वे सोच-समझकर अहाते के बाहर, सडक़ से लगकर क्यों कर रहे थे यह पूछने का मतलब उनके रियाज में खलल डालना होता। एक दूसरे कॉलेज के बगल से जब हम गुजरे तो उसका अहाता इतना बड़ा था कि वहां कैम्पस की इफाजत के लिए बहुत सारी गाडिय़ां पुलिस पेट्रोल गाड़ी की तरह खड़ी थीं। और निजी सुरक्षा का यह हाल अमरीका में सभी जगह जहां साधारण संपन्न लोगों के घरों के बाहर भी ऐसी तख्तियां लगी हैं कि वहां निगरानी का काम कौन सी सुरक्षा एजेंसी देखती है। इन तख्तियों के अलावा घरों में हिफाजत के लिए कोई लंबे-चौड़े इंतजाम नहीं दिखते हैं। एक बहुत बड़े जैन मंदिर से गुजरते हुए जब हम वहां रूके तो पता लगा कि सभी जैन सम्प्रदायों का वह एक मिला-जुला मंदिर है और उसमें हजारों लोग आते हैं। वहां पर अलग-अलग जैन सम्प्रदाय के लिए अलग-अलग मंदिर बनाना मुमकिन नहीं होता इसलिए सबने मिलकर यह मंदिर बनाया है। इसी तरह एक इस्लामिक इंस्टीट्यूट में जब हम पहुंचे तो वहां नमाज का वक्त नहीं था इसलिए लोग नहीं थे लेकिन वहां की एक महिला कर्मचारी ने वहां के हॉल तक ले जाकर इस भ्रष्टाचार-विरोधी पदयात्रा को शुभकामनाएं दीं। उसने यह भी कहा कि हम चाहते हैं तो दांडी मार्च-2 के बारे में अपने पर्चे वहां नोटिस बोर्ड पर लगा दें और नमाज के वक्त वहां आकर हम लोगों को इस बारे में बता भी सकते हैं।




लोग अजगर से लेकर शेर तक पाल लेते हैं और जब हम सान फ्रांसिस्को की गांधी प्रतिमा पर पहुंचे तो स्केट बोर्ड पर वहां से निकल रहे एक नौजवान के कंघे पर कई फीट लंबा काकातुआ जैसा रंग-बिरंगा पंछी बैठा हुआ था। बहुत से लोग ऐसे भी दिखे जो पहियों वाली कुर्सियों पर चल रहे थे या नेत्रहीन थे और किसी छड़ी के सहारे चल रहे थे। इनमें से कुछ लोगों के पास ऐसे प्रशिक्षित कुत्ते थे जिन पर मार्गदर्शक कुत्ता होने के बिल्ले लगे थे और वे इनको राह दिखाने या मदद करने का काम कर रहे थे।
क्रमश: .....
सुनील कुमार
सुनील कुमार