पिछले लगभग साल भर से मोबाईल में गूगल रीडर से मित्रों के ब्लॉग पढ़ रहा हूँ. इसके पहले ब्लॉग का फीड सब्सक्राईब कर मेल से पोस्ट पढ़ते रहा हूँ जिनमें ज्ञानदत्त पाण्डेय जी, अरविन्द मिश्रा जी, प्रवीण पाण्डेय जी, सतीश पंचम जी, सतीश सक्सेना जी जैसे कई ब्लॉगरों के पोस्ट मेरे मेल बाक्स में आते हैं। मुझे लगता है कि हिन्दी ब्लॉगजगत में कई बार टिप्पणियों के कारण विवाद उठते हैं एवं आभासी गुटबाजियॉं पैदा होती है। इसी कारण मैं पिछले दो सालों से बहुत कम टिप्पणियॉं कर रहा हूँ। पोस्टों में आये टिप्पणियों को बिना पढ़े पोस्ट पठन का आनंद लेने के लिए, गूगल रीडर का प्रयोग कर रहा हूँ। गूगल रीडर से पोस्ट पढ़ने का एक फायदा और है कि यह कम बाईट्स के नेट कनेक्शनों के माध्यम से भी खुल जाता है। गूगल बाबा नें ब्लॉग फालोवर को रीडर से जोड़ कर बहुत अच्छा काम किया है इससे हम उन ब्लॉग के पोस्ट भी देख सकते हैं जिन्हें हम फालो करते हैं। गूगल रीडर के तकनीकि पहलुओं पर कभी विस्तृत रूप से लिखूंगा, अभी मेरे द्वारा कल रीडर पर पढ़े गए कुछ पोस्ट स्मृति में छाप छोड़ गए जिनके संबंध में कुछ घुटर-घूं -
डिजिटल इन्सपिरेशन में अमित अग्रवाल जी दिन में तीन-चार तकनीकि पोस्ट ठेलते हैं जो बड़े काम की होती है कल का एक पोस्ट हमारे साथियों के काम की है इस लिए उसका उल्लेख मैं यहॉं करना चाहता हूँ। हममे से अधिकतम ब्लॉगर्स फेसबुक उपयोग करते हैं जहां हमारे मित्रों की संख्या सैकड़ों से अधिक है, ऐसे में यदि कोई फेसबुक मित्र यदि हमारे मित्र सूची से अपने आप को अलग कर ले या फिर वह अपना फेसबुक अकाउंट डिलीट कर दे तो हमें ज्ञात नहीं हो पाता कि कौन मित्र हमारे फेसबुक से अलग हुआ सिर्फ अंकों में दर्शित मित्र संख्या से हम यह जान पाते हैं। इसे जानने के लिए अमित नें ट्वैटी फीट नामक एक वेब एप्लीकेशन का उपयोग बतलाया है पूरा पोस्ट आप अमित जी के ब्लॉग में पढ़ें और अपने अनफ्रैंड एक्सफ्रैंड के नाम जानें।
सोंच वाले संजय कृष्ण जी नें गाजीपुर में गुरूदेव शीर्षक से बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट लिखी है। साहित्य के नोबेल प्राप्त गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर जी की 150 वीं जयंती के अवसर पर उन्हें याद करते हुए संजय जी नें गुरूदेव के गाजीपुर में रहकर लिखी गई कविताओं का उल्लेख किया है। गुरूदेव नें अपने गाजीपुर प्रवास-निवास के संबंध में स्वयं लिखा है उसे भी यहां प्रस्तुत किया गया है । आगे की जानकारियों में गुरूदेव के गाजीपुर प्रवास व उनके रिश्तेदार गगनचंद्र राय के गंगा तीरे निवास पर रहते हुए 'नौका डूबी' उपन्यास के कथानक के तृतीयांश के लेखन का प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत किया है। विभिन्न संदर्भों का उल्लेख करते हुए संजय जी नें कलकत्ता-गाजीपुर-शोलापुर-इग्लैण्ड के रास्ते जहाज म्योसेलिया व टेम्स में गुरूदेव द्वारा मानसी की कविताओं को सृजन करना बतलाया है।
मेरे रीडर में कल की पोस्टों में 'सबद' में जार्ज लुई की कथा : 6 रोमांचित करती है, रेत की किताब अंतहीन पृष्ट को पढ़ते हुए तत्कालीन परिस्थितियों में कथा शिल्प का साक्षात्कार अच्छा लग रहा है, अनुवादक का श्रम सार्थक है। मनोरमा ब्लॉग में श्यामल सुमन जी नें अपनी कविता संवेदना ये कैसी में आस्था पर वर्तमान परिवेश में प्रश्न उठाते हुए सार्थक चिंतन प्रस्तुत किया है। गिरीश पंकज जी की गजलें भी व्हाया रीडर मुझे मिलती ही रहती है कल बेहतरीन गजल उन्होंनें प्रस्तुत किया है 'आकर हम बेहद पछताए बस्ती में, कितने हो गए जोग पराए बस्ती में। कोई तो इक चेहरा हो मुस्कान भरा, कब तक पंकज ही मुस्काए बस्ती में।' वाकई पंकज भईया की मुस्कान कमाल की है, सुकून देने वाली है। किन्तु गिरीश भईया के मुस्कान के साथ ही भाई नवीन प्रकाश नें छत्तीसगढ़ ब्लॉग में एक प्रमेय प्रस्तुत कर दिया है जिसका हल उन्होंनें मांगा है, ब्लॉग पावर ऐसे ही मुद्दों पर प्रभावी होते रहे हैं।
सिंहावलोकन में बड़े भाई राहुल सिंह जी नें 'पंडकी' पर लिखा है जिसकी आवाज बचपन से हमारे कानों में गूंजती रही है। ऐसे विषयों को पढ़ते हुए एक अजब आत्मिक आनंद प्राप्त होती है क्योंकि वह आपके जीवन से जुड़ी होती है। गांव में रहते हुए 'मंझनी-मंझना' पंडकी के 'खोंधरा' को डोंगरी के किसी पेड़ पर पाना और उसमें पड़े ताजे अंडो को खुशी से निहारना, चिल्लाना, साथ में विचर रहे गोबरहेरिन या लकड़हारे की इत्तला कि अंडा मत छूना 'पया जाही' ........। राहुल भईया का सौभाग्य है कि सीमेंट के इस बीहड़ में भी पंडकी नें उनके घर के गमले में अंडे दिये और उनका पोस्ट उसी से निकला। पंडकी मैंना वाला लोक गीत, डेनियल ......... (जीभ नई लहुटत हे गा) के संग मुहावरों में पंडकी को खोजना अच्छा लगा। रेणु के परती परिकथा से पंड़ुक विमर्शीय भूमिका के साथ भाई एकांत की कविता पंड़ुक को पढ़ना अच्छा लगा। राहुल भईया के पास ऐसे ही सेते पोस्ट बहुत सारे हैं, धीरे-धीरे बाहर आयेंगें उनका इंतजार रहेगा।
लाईव राईटर से गूगल रीडर के बहाने एक पोस्ट ठेलने का मन बहुत दिनों से था आज मौका मिला, इसे चिट्ठा चर्चा ना समझें इसलिए हमने ब्लॉग-पोस्टों के लिंक नहीं दिये हैं, पोस्ट मालिक यदि इसे पढ़ रहें हों तो समझ लेवें कि हमने उनके पोस्ट में (जिनका उल्लेख हमने यहां किया है) टिप्पणी की है :) :)
शेष शुभ ....
संजीव
पंडकी के अंडा म जिव पर गे कस लगत हे संजीव भाई.
जवाब देंहटाएंमोबाइल पर इस तरह पोस्ट देखना अगली मुलाकात में आपसे सीखने की कोशिश करूंगा. शीर्षक का 'गूलग' सुधार लें (मुझे लगा कि मेरी टोका-टाकी के लिए आपने ऐसा रख छोड़ा है.)
जवाब देंहटाएंअच्छी तकनीकी जानकारी मिली. इस मामले में तो मुझे कुछ समझ ही नहीं आता. ख़ुशी होती है कि कोई तो है अपने इलाके में..(दो-एक और भी हैं) मुझे भी यह सब समझाना है फिर सोचता हूँ, संजीव तिवारी है न, जब भी ज़रुरत पड़ेगी ले लेंगे जानकारी. बेगारी भी करवा लेंगे. बधाई इस पोस्ट के लिए.
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी। कृपया इसकी प्रयोग विधि भी डालें तो अच्छा रहेगा।
जवाब देंहटाएंगूगल रीडर का का प्रयोग मैं भी करता हूँ, लैपटॉप में भी और मोबाइल में भी।
जवाब देंहटाएंमेरे पास तो दिन में बाईस घण्टे कम्प्यूटर बगल में रहता है, सो मोबाइल पर गूगल रीडर देखा नहीं। पर लगता है देर सवेर यह तकनीक का उपभोक्ता बन ही जाऊंगा।
जवाब देंहटाएंहम तो मोबाईल पर गूगल रीडर का भरपूर उपयोग करते हैं, और अच्छा लगता है तो शेयर भी कर लेते हैं, बस टिप्पणी की सुविधा उसमें नहीं है बाकी तो ठीक ही है।
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