विश्रामपुर में दशकों रहकर 1967 में अमेरिका लौटे थे विलियम विटकम, यहीं दफन करने की अंतिम इच्छा, बेटी तथा परिजन लाए अंतिम अवशेष
दैनिक भास्कर के लिए रिपोर्टिंग : परिष्ठ पत्रकार जॉन राजेश पॉल
रायपुर, विलियम कैथ विटकम (विली बाबा) ...जन्म 1924 (अमेरिका)... बचपन में ही परिवार के साथ रायपुर से 65 किमी दूर विश्रामपुर आ गए। विटकम चार दशक यहां रहने के बाद 1968 में वापस यूएस लौटे, लेकिन भारत जेहन में ही रहा। बीमार हुए तो अंतिम इच्छा जाहिर की कि विश्रामपुर में ही दफ्न किया जाए। परिजनों ने ऐसा ही किया। विली बाबा की अस्थियां और भस्म अब भारत माता की गोद में हैं। छत्तीसगढ़ के विश्रामपुर में विटकम और उनका परिवार लंबे अरसे तक रहा।
इस कस्बे के पुराने लोग अब भी विली बाबा को भूल नहीं पाए हैं। यही वजह थी कि विटकम की अंतिम यात्रा भी यहां ऐतिहासिक हो गई। अमेरिका में जब उन्होंने अंतिम सांस ली, तो परिजनों ने इच्छा के अनुरूप छत्तीसगढ़ में दफ्न करने की सरकारी प्रक्रिया शुरू कर दी। छत्तीसगढ़ डायसिस ने यहां का जिम्मा संभाला। विटकम की बेटी कैथ, दामाद और डेढ़ दर्जन रिश्तेदार खूबसूरत काफिन में उनकी अस्थियां व भस्म लेकर आए। पहले वे मुंगेली गए, वहां से डॉ. हैनरी के नेतृत्व में विश्रामपुर पहुंचे। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से मसीही समुदाय के लोग विली बाबा को अंतिम सलामी देने के लिए पहुंचे। अंतिम संस्कार की विधि में शामिल पादरी प्रणय टोप्पो के मुताबिक अंतिम संस्कार के समय हजारों आंखें अश्रुपूरित हो गई थीं। गौरतलब है कि विली बाबा की मृत्यु 17 जनवरी 2015 को हुई थी।
मीठी छत्तीसगढ़ी बोलते थे विटकम : विटकम हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहते थे। शादी-ब्याह या समारोह में जाते तो सबके साथ पंगत में बैठकर पत्तल में खाना खाते। वे उस जमाने में बेबी शो किया करते थे। जिसमें चाइल्ड केयर का संदेश होता था। उनके साथ काम कर चुके रंजीत फिलिप (75वर्ष ) ने बताया कि विटकम और उनका परिवार हिंदी और छत्तीसगढ़ी बहुत मीठी बोलते थे। आठ साल पहले आए, तब मिलते ही बोले - कइसे, मोला चिन्हथस? फिलिप के अनुसार विटकम ने गांव के कुछ बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भी भेजा। उनकी सोच उत्थान की थी। उनके समय में विश्रामपुर में कई लघु उद्योग चलते थे।
इस कस्बे के पुराने लोग अब भी विली बाबा को भूल नहीं पाए हैं। यही वजह थी कि विटकम की अंतिम यात्रा भी यहां ऐतिहासिक हो गई। अमेरिका में जब उन्होंने अंतिम सांस ली, तो परिजनों ने इच्छा के अनुरूप छत्तीसगढ़ में दफ्न करने की सरकारी प्रक्रिया शुरू कर दी। छत्तीसगढ़ डायसिस ने यहां का जिम्मा संभाला। विटकम की बेटी कैथ, दामाद और डेढ़ दर्जन रिश्तेदार खूबसूरत काफिन में उनकी अस्थियां व भस्म लेकर आए। पहले वे मुंगेली गए, वहां से डॉ. हैनरी के नेतृत्व में विश्रामपुर पहुंचे। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से मसीही समुदाय के लोग विली बाबा को अंतिम सलामी देने के लिए पहुंचे। अंतिम संस्कार की विधि में शामिल पादरी प्रणय टोप्पो के मुताबिक अंतिम संस्कार के समय हजारों आंखें अश्रुपूरित हो गई थीं। गौरतलब है कि विली बाबा की मृत्यु 17 जनवरी 2015 को हुई थी।
मीठी छत्तीसगढ़ी बोलते थे विटकम : विटकम हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहते थे। शादी-ब्याह या समारोह में जाते तो सबके साथ पंगत में बैठकर पत्तल में खाना खाते। वे उस जमाने में बेबी शो किया करते थे। जिसमें चाइल्ड केयर का संदेश होता था। उनके साथ काम कर चुके रंजीत फिलिप (75वर्ष ) ने बताया कि विटकम और उनका परिवार हिंदी और छत्तीसगढ़ी बहुत मीठी बोलते थे। आठ साल पहले आए, तब मिलते ही बोले - कइसे, मोला चिन्हथस? फिलिप के अनुसार विटकम ने गांव के कुछ बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भी भेजा। उनकी सोच उत्थान की थी। उनके समय में विश्रामपुर में कई लघु उद्योग चलते थे।
इस कस्बे के पुराने लोग अब भी विली बाबा को भूल नहीं पाए हैं। यही वजह थी कि विटकम की अंतिम यात्रा भी यहां ऐतिहासिक हो गई। अमेरिका में जब उन्होंने अंतिम सांस ली, तो परिजनों ने इच्छा के अनुरूप छत्तीसगढ़ में दफ्न करने की सरकारी प्रक्रिया शुरू कर दी। छत्तीसगढ़ डायसिस ने यहां का जिम्मा संभाला। विटकम की बेटी कैथ, दामाद और डेढ़ दर्जन रिश्तेदार खूबसूरत काफिन में उनकी अस्थियां व भस्म लेकर आए। पहले वे मुंगेली गए, वहां से डॉ. हैनरी के नेतृत्व में विश्रामपुर पहुंचे। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से मसीही समुदाय के लोग विली बाबा को अंतिम सलामी देने के लिए पहुंचे। अंतिम संस्कार की विधि में शामिल पादरी प्रणय टोप्पो के मुताबिक अंतिम संस्कार के समय हजारों आंखें अश्रुपूरित हो गई थीं। गौरतलब है कि विली बाबा की मृत्यु 17 जनवरी 2015 को हुई थी।
मीठी छत्तीसगढ़ी बोलते थे विटकम
विटकम हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहते थे। शादी-ब्याह या समारोह में जाते तो सबके साथ पंगत में बैठकर पत्तल में खाना खाते। वे उस जमाने में बेबी शो किया करते थे। जिसमें चाइल्ड केयर का संदेश होता था। उनके साथ काम कर चुके रंजीत फिलिप (75वर्ष) ने बताया कि विटकम और उनका परिवार हिंदी और छत्तीसगढ़ी बहुत मीठी बोलते थे। आठ साल पहले आए, तब मिलते ही बोले - कइसे, मोला चिन्हथस? फिलिप के अनुसार विटकम ने गांव के कुछ बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भी भेजा। उनकी सोच उत्थान की थी। उनके समय में विश्रामपुर में कई लघु उद्योग चलते थे।
बेटी का आभार छत्तीसगढ़ी में
विटकम की बेटी ने ठेठ छत्तीसगढ़ी में लोगों का आभार जताया। उन्होंने कहा- सब्बो भाई-बहिनी मन ला जोहार। मोर पिता अमेरिका में 29 नवंबर 1924 को जन्म भले ले रिहिस, लेकिन ओला यहां से जाएके बाद भी वो सांति नहीं मिलिस जो यहां वो पात रिहिस। आप मन ओकर सेवा मा जो सहयोग करे हवव ओकर सेति म ह आप सब्बो झन ला गाडा-गाडा धनबाद देत हवं।
मानव जाति को समर्पित
सेंट इम्मानुएल चर्च की सचिव स्मृता निहाला और दिलीप दास ने विटकम फैमिली के साथ बिताए दिनों को याद किया और बताया कि पूरा परिवार मानव जाति को समर्पित था। शायद इसीलिए विटकम को 2007 में फिर विश्रामपुर आने का मौका मिला। तब उन्होंने उस बंगले का जीर्णोद्वार के बाद लोकापर्ण किया था, जिसमें वे रहा करते थे। विटकम और उनकी पत्नी के साथ नर्स के रूप में सेवाएं देने वाली लिली अमोन वानी (83) के अनुसार वे सुपरमैन की तरह थे।
विनोबा भावे से प्रभावित
विटकम के पिता तिल्दा अस्पताल में डाॅक्टर थे, लेकिन उन्होंने कृषि पर काम किया। गांव के पुराने लोग बताते हैं कि उन्होंने पूरा जीवन लोगों के जीवन स्तर ऊपर उठाने पर बिता दिया। विटकम विनोबा भावे से प्रभावित थे। सेंट इम्मानुएल चर्च विश्रामपुर की जुबली में उनके बुलावे पर भावे आए थे तथा कार्यक्रम को संबोधित भी किया था। उनके स्वदेश लौटने के पहले 1967 में भयंकर अकाल पड़ा, तब उन्होंने किसानों और गरीबों की बड़ी सेवा की थी।
उन्होंने धान बीजा किसानों को मुफ्त में बंटवाया। विदेश से तेल, गेहूं, मक्के का आटा, दूध पाउडर, दलिया, बिंस आदि मंगवाकर बंटवाए। इसके बाद उस जमाने में उन्होंने काम क बदले अनाज योजना शुरू की।
दैनिक भास्कर से साभार : दस्तावेजीकरण के उद्देश्य से
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