विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
चेथ्थुल ठेठ देसी खेल है, इस पर हमारा कॉपीराइट भी है। यह अलग बात है कि इस में निपुण परदेसिया लोग ही हैं। कमोबेश पृथ्वी के हर हिस्से में यह खेल अपने आदिम स्वरुप में विद्यमान है। मुझे यह खेल बचपन में बहुत पसंद था, शायद इसलिए कि इस खेल के लिए सहमति आपको जोखिम के प्रति सचेत करती है।
पिछले दिनों अनुपम ने इसे याद दिलाया था, अनुपम का चेथ्थुल अनुपम था सो उसके ही बात को लमाया जाय।
अनुपम के यहां हांथो की छोटी ऊँगली को जोड़कर चेथ्थुल खेला जाता था। जैसे ही पहले के छीनी उंगली का संबंध दूसरे के छीनी अंगुली से अलग होता, एक झन्नाटेदार रहपट चेथी पर पड़ता। मेरे यहां चेथ्थुल जोरदार घोष के साथ आरंभ होता और जो चेथ्थुल कहने के बाद भी अपने सिर के पीछे हाथ नहीं रखता, उसके चेथी पर अनचेतहा थप्पड़ पड़ता। यह खेल जहाँ चाहे जिस प्रकार से खेला जाता हो यह सिर के पिछले हिस्से में झन्नाटेदार थप्पड़ मारने का खेल है।
चेथ्थुल नंदाने वाला खेल नहीं है, इसका स्वरुप भर बदला है। आज भी लोग चारो तरफ चेथ्थुल खेल रहे हैं। राजनीति में ही ले लीजिये, पिछले दिनों भूपेश ने अमित के साथ तो अजीत ने भूपेश के साथ चेथ्थुल खेला जिसकी गूंज तो आपने भी सुनी होगी। अभी-अभी मोदी ने भी काला धन वालो के साथ चेथ्थुल खेला और चेथी खजुवाते लोग लाइन में लग गए। कलेक्टर का तहसीलदार को और तहसीलदार का बाबू-पटवारियों को चेथ्थुल मारना आम है। खास तो यह है कि अपनी गलती अपने मातहत पर डालना चेथ्थुल है। इसके साथ ही कर्तव्यविमुख लोगों को याद दिलाने का नाम भी चेथ्थुल है।
यह खेल फेसबुक में भी बदस्तूर जारी है, यहां हमारे एक बड़े भैया हैं। वे हमारे साथ चेथ्थुल खेलते हैं, खेल का नियम है कि छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ी बोलते रहना है। जैसे ही आप छत्तीसगढ़ी बोलना बंद करोगे बड़े भैया आपके चेथी में जोरदार चेथ्थुल मारेंगे।
- तमंचा रायपुरी
चेथ्थुल के बहाने आपने बड़े भैया को झन्नाटेदार चेथ्थुल दिया है ---खैर तमंचा की गोली बगिया गया है |
जवाब देंहटाएंGood info ..www.freemeinfo. Com
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