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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

छत्तीसगढ़ की ब्रांड एम्बेसडर पंडवानी गायिका तीजनबाई - विनोद साव


दोस्तों.. विगत ३१ अगस्त को छत्तीसगढ़ की मशहूर पंडवानी गायिका पद्मभूषण तीजन बाई सेवानिवृत्त हो गईं. वे भिलाई इस्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग तथा बाद में कीड़ा एवं सांस्कृतिक समूह में लंबे समय तक सेवारत रहीं. महाभारत की कथा कहने की एक दुर्लभ लोकविधा पंडवानी गायन में वे पारंगत हैं. अपनी इस विलक्षण कला के लिए वे जगप्रसिद्ध हैं. इसके लिए उन्हें पहले पद्मश्री मिला फिर पद्मभूषण से वे अलंकृत हुईं. तीजन बाई का जन्म दुर्ग जिले के पाटन तहसील के पास अटारी गांव में हुआ था. तीजा त्यौहार में जन्म लेने के कारण उनका नाम तीजन पड़ा था और वे तीज पर्व में सेवानिवृत्त हुईं हैं. मैं उनके बचपन से लेकर आज तक की कलायात्रा का साक्षी रहा हूं. उन पर मैंने एक जीवित किवदंती के आसपासशीर्षक से एक आलेख भी कभी लिखा था जो अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ था.

सही मायनों में तीजनबाई छत्तीसगढ़ की ब्रांड एम्बेसडरहैं. वे एक जीवित किवदंती के बन गईं हैं. वे छत्तीसगढ़ की अकेली हस्ती हैं जिन्हें देश की जनता जानती है और जिनकी विदेशों में भी पहचान है. एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजनबाई का जीवन बदल गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया।

उन्होंने सोवियत संघ में हुए भारत महोत्सवमें शिरकत की थी. फ़्रांस-पेरिस के एफिल टावर के नीचे भी उन्होंने अन्तराष्ट्रीय मंच में प्रस्तुति दी थी. वे मंचों से जब प्रोग्राम करके नीचे उतरतीं थीं तब लोग हज़ार और पांच-सौ के नोटों में उनके आटोग्राफ माँगा करते थे. उन्हें श्याम बेनेगल ने दूरदर्शन के प्रसिद्द धारावाहिक भारत एक खोजमें प्रस्तुत किया था. विगत दिनों मुंबई से रणवीर कपूर अपने एक निर्देशक इम्तियाज अली को लेकर तीजन बाई से मिलने भिलाई आए थे. उन्हें अपनी फिल्म के लिए साइन करना चाहते थे पर स्वास्थ्यगत कारण से वे उसमें शामिल नहीं हो सकीं. उनकी शिक्षा नहीं हुई पर उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें अनेक संस्थाओं द्वारा डाक्टरेटकी मानद उपाधि दी गईं है. उनकी सफल कलायात्रा और सेवायात्रा के लिए हमारी हार्दिक बधाइयाँ इस उम्मीद के साथ कि आगे भी छत्तीसगढ़ और उसकी विराट लोककला तीजनबाई के नाम से रौशन होती रहेगी.

तीजन पंडवानी की ‘हिज हाइनेस’ हो गईं:

उस समय महिला पंडवानी गायिकाएँ केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई ऐसी पहली महिला थीं जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया।  बाद में तीजनबाई की शैली का ज्यादा अनुसरण हुआ और ज्यादा से ज्यादा महिलाएं पंडवानी गायन के क्षेत्र में आने लगीं. पंडवानी को ग्लैमर से भर देने वाली तीजनबाई पंडवानी कला की ‘हिज हाइनेस’ हो गईं.
                                                                                                                       
तब तीजन ने पानी पिलाना बंद किया :
भिलाई इस्पात संयत्र में तीजनबाई की नियुक्ति प्रबंध निदेशक संग्मेश्वरम के कार्यकाल में हुई थी. संगमेश्वरम साहब की ये आदत थी कि वे किसी भी आगन्तुक से दो बातें पूछते थे, पहला ‘‘आपने कारखाना देखा है या नहीं..यदि नहीं तो जरूर देखिये..दूसरा..अमुक साहित्यकार, संगीतकार, कलाकार, खिलाड़ी जो हमारे संयंत्र में काम करते हैं आप उन्हें जानते हैं कि नहीं..?’’ उन्हें जब ये जानकारी हुई कि सामुदायिक विकास विभाग में तीजनबाई पानी पिलाने का काम कर रही है तब तत्कालीन अधिकारीयों को उन्होंने हडकाया और आदेश दिया कि ‘तीजन बाई से पानी मत पिलवाना।‘ साथ ही तीजनबाई से भी कहा कि ‘तुम पानी नहीं पिलाना. इससे पहले कि मेरी नौकरी जाये मैं तुम्हारी नौकरी समाप्त कर दूंगा.’ उस दिन से तीजनबाई ने अफसरों को पानी पिलाना बंद किया और बड़े बड़े उस्तादों को अपनी प्रतिभा की बानगी से पानी पिलाना शुरू कर दिया था.

एक्के घांव में निपटा देंव :
यह वह समय था जब दूरदर्शन पर प्रसिद्द फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल का महान धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ खूब देखा जा रहा था. मैंने एक दिन पहले ही दूरदर्शन पर भारत एक खोज देखा. जिसमें महाभारत के युद्धपर्व में कीच्चक वध का प्रसंग था. तीजनबाई अपने तमूरे को लेकर सन भाई कहते हुए कैमरे के सामने आई और भीमसेन जैसी मुद्रा बनाकर ताल ठोंक कर अपना ज़न्नाटेदार शाट देते हुए निकल गई. देखने वाले उसकी ओजपूर्ण भाव-भंगिमाओं को किंकर्तव्यविमूढ़ होकर देखते रह गए.

दूसरे दिन मैं भिलाई के सामुदायिक विकास विभाग में किसी से मिलने गया तब दफ्तर में सन्नाटा था और एक खाली कुर्सी पर मैं बैठ गया था. थोड़ी थकान थी तो मैंने ऑंखें बंद कर ली थीं.. और जब ऑंखें खुलीं तो खुलीं की खुलीं रह गई .. मेरे सामने वही चेहरा था जिसे कल टी.वी.पर मैंने देखा था. बड़े चेहरे पर काजर पारी हुई बड़ी बड़ी ऑंखें, माथे में बीचोंबीच मीनाकुमारी ब्रांड बड़े आकार की टिकली. बड़ी नाक में एक बड़ी फूल्ली, और मुस्कराहट में भीगे तथा पान से रचे हुए उसके होंठ. मुझे लगा कि मैं फिर एक बार ‘भारत की खोज’ सीरिअल तो नहीं देख रहा हूं. अब तक जिस    दरअसल जिस खाली कुर्सी पर मैं बैठ गया था वह तीजन बाई की थी. मैंने धारावाहिक वाली बात उन्हें बताई. तब उन्होंने बम्बई में शूटिंग का सारा वृत्तांत कह सुनाया छत्तीसगढ़ी में कि बस ओतके बर श्याम बेनेगल हा मोला आठ दिन बार बलाए रहिस..में काए करतेंव बम्बई में आठ आठ दिन. मेंहा श्याम बेनेगल ला एक्के घांव में निपटा देंव.
०००                                                             लेखक संपर्क : 9009884014 



टिप्पणियाँ

  1. तीजनबाई जी को रविन्द्र भवन में लोकरंग उत्सव में जब पहली बार सुना-देखा तो यह एक सुखद अनुभव था मेरे लिए . ..
    छत्तीसगढ़ ही नहीं देश की शान हैं वे ...

    जवाब देंहटाएं

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