स्मरण:

मन्ना-डे नहीं रहे

सिने संगीत में शास्त्रीय राग की एक लौ बुझी
-विनोदसाव


भारतीय सिने संगीत के बहुचर्चित गायकों में से एक मन्ना डे नहीं रहे। आज सबेरे 24 अक्टूबर को उनका बंगलोर में अवसान हुआ। उनका नाम प्रबोध चन्द्र डे था लेकिन वे मन्नाडे के नाम से जाने गए। मन्ना डे के अवसान के साथ ही रफी, मुकेश, किशोर की समृद्ध गायन परंपरा का अंत हुआ। बंगाल की धरती में पले बढ़े जिन तीन गायकों ने हिंदी व बांग्ला फिल्मों में बड़ी ख्याति अर्जित की उनमें तलत महमूद, हेमंत कुमार और मन्ना डे थे। तलत महमूद बांग्ला फिल्मों में तपन कुमार के नाम से गाते थे और लोकप्रिय थे। हिंदी साहित्य के कथाकार कुमार अंबुज ने मन्नाडे पर एक कहानी लिखी है जिसका षीर्शक है ’एक दिनमन्ना-डे’।

मन्ना डे का स्वर और उनका गायन अपनी एक विशिष्ठ भंगिमा लिये हुआ था। उनकी आवाज में भी तलत महमूद की तरह का रेशमी अहसास था।वे शास्त्रीय गीतों के बड़े जानकार और गायक थे। कहा जा सकता है कि सुगमसंगीतों से भरे फिल्मी जगतमें ये मन्नाडे ही थे जिन्होंने अपने हजारों सुगमगीतों के बीच बड़ी संख्या में शास्‍त्रीय गीत भी गाये। उनके गाये गीतों में शास्त्रीय संगीत के राग से भरा ’लागा चुनरी में दाग छुपाउँ कैसे’ अद्भुत ताल से भरा गीत था। फिल्मों में उनकी साख उनके द्वारा गाये गये शास्त्रीय गीतों से बनी। इसीलिए उनके बारे में संगीतकार अनिल विश्वास ने एक बार कहा था कि मन्ना डे हर वह गीत गा सकते हैं, जो रफी, किशोर या मुकेश ने गाये हों, लेकिन इनमें से कोई भी मन्ना डे के हर गीत को नहीं गा सकता है।

मन्ना-डे की आवाज विशेष ने जहॉ उन्हें शास्त्रीय गीतों के गायन में एक तरफा उँचाई दी वहीं उनकी आवाज की इस अनोखी भंगिमा ने उनके गायन की सीमा रेखा भी खींच दी थी। उनकी आवाज में एक किस्म का वार्द्धक्य पनथा, जिस तरह से एस.डी.बर्मन की आवाज में था। यद्यपि बर्मनदा की आवाज फिल्मों में उनके बुढ़ापे में ही सुनाई दी थी इसलिए वार्द्धक्यपन से भरीउनकी आवाज को उसी रुप में ही सुना और स्वीकारा गया, लेकिन मन्ना-डे में यह अनोखापन उनकी युवावस्था में ही आ गया था, इसका खामियाजा उन्हें यह भुगतना पड़ा कि वे अपने समय में ज्यादा लीजेन्ड्री हीरो के गायक नहीं बन पाये। उनकी आवाज की रसिकता कोई कम नहीं थी पर वह ’यूथ’ या युवकों की आवाज नहीं थी।बलराज साहनी की आवाज में फिल्म ’वक्त’ का यह गीत ’ओ मेरी ज़ोहराजबी..तुझे मालूम नहीं।’ देश के तमाम रिटायर्ड बूढ़ों का सबसे प्रिय गीत था। संगीत सभाओं में वृद्ध श्रोतागण सबसे ज्यादा मन्नाडे, तलत, हेमंत कुमार और एस.डी.बर्मन के गीतों की फरमाइश भेजते थे। ये सभी गायक बंगाल के थे जिनकी आवाज में आरंभ से ही अपने किस्म की प्रौढ़ता और वार्द्धक्य पन थी। इसलिए भी अपने समय के महानायकों या सूपर-स्टारों के गीत उन्हें कम मिले और उन्होंने ज्यादातर चरित्र अभिनेताओं और हास्य कलाकारों के लिए गीत गाए। प्राण या महमूद के लिए अपनी आवाजें दीं। धार्मिक फिल्मों में आकाशवाणी से गूंजनेवाले गीतों के लिए उनकी आवाज चुनी गई। यद्यपि राजकपूर ने उनकी कला की कद्र करते हुए अपने लिए कई गीत उनसे गवाए जिन्हें जमकर लोकप्रियता भी मिली। ’मेरा नाम जोकर’ में नीरज का लिखा बहुप्रसिद्ध गीत ’ए भाईजरा देखकेचलो’ उनका सबसे जीवन्त गीत रहा। ’चोरी चोरी’ के लगभग सभी गीत राजकपूर ने मन्नाडे से गवाए थे। शायद उनकी आवाज की इस विशेष भंगिमा के कारण ही प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंशराय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिये मन्ना डे का चयन किया था।

मन्नाडे को अपनी आवाज के इस वार्द्धक्यपन की समझ थी और दूरदर्शन पर पिछले दिनों एक साक्षात्कार में उन्होंने हॅसते हुए अपनी इस विशेषता को स्वीकारा था और बताया था कि ’लोग कहते थे कि कैसा गायक है बूढ़ों जैसा गाता है। सुनकर मैं झेंप उठता था लेकिन बाद में मैंने अपनी इसी विशेषता को संगीतात्मकता की ओर मोड़ा था।’ साक्षात्कार के समय उनकी जीवन संगिनी अद्भुतसौंदर्य की धनी केरल की सुलोचना कुमारन भी साथ थीं। वे रवीन्द्र संगीत की जानकार थीं।

भारत शासन ने भी मन्नाडे की कला का सम्मान करते हुए उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण तो दिए ही साथ ही कुछ बरसों पहले उन्हें दादा साहब फाल्के का सर्वोच्च सम्मान भी देकर उन की प्रतिभा व योगदान को सराहा है।

हिंदी फिल्मों में पार्श्वभगायन के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी ने एक बार कहा था। आप लोग मेरे गीत को सुनते हैं लेकिन अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूंगा कि मैं मन्ना डे के गीतोंको ही सुनता हूं।


20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जन्मे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में प्रबंधक हैं। मूलत: व्यंग्य लिखने वाले विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, ज्ञानोदय, अक्षरपर्व, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में भी छप रही हैं। उनके दो उपन्यास, चार व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वे उपन्यास के लिए डॉ. नामवरसिंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी पुरस्कृत हुए हैं। आरंभ में विनोद जी के आलेखों की सूची यहॉं है।
संपर्क मो. 9407984014, निवास - मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001
ई मेल -vinod.sao1955@gmail.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. मन्नाडे नही रहे जानकर स्तब्ध रह गया,
    ईश्वर उनकी आत्मा को शांती प्रदान करे,,,,

    RECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन २४ अक्तूबर का दिन और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. मन्ना दे बहुत ही ही लोकप्रिय गायक हैं । उनका गाया हुआ " कौन आया मेरे मन के द्वारे " गीत मुझे बहुत पसन्द है । उन्हें विनम्र श्रध्दाञ्जलि ।

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    उत्तर
    1. अपनी फेवरेट बुक्स के नाम बदलिए! कुछ साहित्यिक किताबो के नाम डालिए जिन्हें आपने पढ़ा हो!

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  4. मन्ना डे को विनम्र श्रद्धांजलि

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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