छत्तीसगढ़ के प्राय: हर गांव में देवी शक्ति के प्रतीक के रूप में महामाई के लिए एक स्थल निश्चित होता है. जहां प्रत्येक नवरात में ज्योति जलाई जाती है एवं जेंवारा बोया जाता है. सभी गांवों में नवरात्रि के समय संध्या आरती होती है. ज्यादातर गांवों में यह आरती हिन्दी की प्रचलित देवी आरती होती है या कहीं कहीं स्थानीय देवी के लिए बनाई गई आरती गाई जाती है. मेरी जानकारी के अनुसार एक गांव को छोड़ कर कहीं अन्य मैदानी छत्तीसगढ़ के गांव में छत्तीसगढ़ी भाषा में महामाई की आरती नहीं गाई जाती. जिस गांव में छत्तीसगढ़ी में महामाई की आरती गाई जाती है वह गांव है बेमेतरा जिला के बेरला तहसील के शिवनाथ के किनारे बसा गांव खम्हरिया जो खारून और शिवनाथ संगम स्थल सोमनाथ के पास स्थित है.
इसके दस्तावेजी साक्ष्य एवं स्थापना के लिए यद्यपि मैं योग्य नहीं हूं किन्तु वयोवृद्ध निवासियों से चर्चा से यह सिद्ध होता है कि यह परम्परा बहुत पुरानी है. वाचिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी गाए जा रहे इस महामाई की आरती का जो ज्ञात प्रवाह है उसके अनुसार लगभग 500 वर्ष से यह इसी तरह से गाई जा रही है. यह आरती कब से गाई जा रही है पूछने पर गांव वाले बतलाते हैं कि लगभग चार पांच सौ साल पहले से यानी चार पांच पीढ़ी से लगातार यह परम्परा चली आ रही हो, इसके अनुसार इसे पांच सौ वर्ष से निरंतर माना जा सकता है यह भी हो सकता है कि यह उससे भी पहले चली आ रही गायन परम्परा हो.
खम्हरिया में गाई जाने वाली आरती में यद्धपि बीच के बोल आरती से नहीं लगते क्योंकि इसमें देवी के गुणगान का बखान नहीं दिखता और ना ही प्रार्थना के भाव प्रत्यक्षत: नजर आते सिवा बार बार के टेक ‘महामाई ले लो आरती हो माय’ को ठोड़ दें तो. किन्तु पारंपरिकता एवं देसज भाव इस आरती के महत्व को प्रतिपादित करती है. इस आरती में निहित शब्दों और उनके अर्थों में तारतम्यता भी नहीं नजर आती. इस गांव में गाई जाने वाली आरती में पांच पद हैं जो सभी एक दूसरे से अलग अलग प्रतीत होते हैं. खम्हरिया गांव में गाई जाने वाली छत्तीसगढ़ी महामाई की आरती इस प्रकार है -
खम्हरिया में गाई जाने वाली आरती में यद्धपि बीच के बोल आरती से नहीं लगते क्योंकि इसमें देवी के गुणगान का बखान नहीं दिखता और ना ही प्रार्थना के भाव प्रत्यक्षत: नजर आते सिवा बार बार के टेक ‘महामाई ले लो आरती हो माय’ को ठोड़ दें तो. किन्तु पारंपरिकता एवं देसज भाव इस आरती के महत्व को प्रतिपादित करती है. इस आरती में निहित शब्दों और उनके अर्थों में तारतम्यता भी नहीं नजर आती. इस गांव में गाई जाने वाली आरती में पांच पद हैं जो सभी एक दूसरे से अलग अलग प्रतीत होते हैं. खम्हरिया गांव में गाई जाने वाली छत्तीसगढ़ी महामाई की आरती इस प्रकार है -
महामाई ले लो आरती हो माय
गढ़ हिंगलाज में गड़े हिंडोला
लख आये लख जाए
लख आये लख जाए
माता लख आए लख जाए
एक नइ आवय लाल लगुंरवा
जियरा के परान अधार
महामाई ले लो आरती हो माय
महामाई ले लो आरती हो माय
गढ़ हिंगलाज म उतरे बराईन
आस पास नरियर के बारी
झोफ्फा झोफ्फा फरे सुपारी
दाख दरूहन केकती केंवरा
मोगरा के गजब सुवास
महामाई ले लो आरती हो माय
बाजत आवय बांसुरी अउ
उड़त आवय घूर
माता उड़त आवय घूर
नाचत आवय नन्द कन्हैंया
सुरही कमल कर फूल
महामाई ले लो आरती हो माय
डहक डहक तोर डमरू बाजे
हाथ धरे तिरसूल बिराजे
रावन मारे असुर संहारे
दस जोड़ी मुंदरी पदुम बिराजे
महामाई ले लो आरती हो माय
अन म जेठी कोदई अउ
धन म जेठी गाय
माता धन म जेठी गाय
ओढ़ना म जेठी कारी कमरिया
ना धोबियन घर जाए
माता ना धोबियन घर जाए
महामाई ले लो आरती हो माय
आईये इस बिरले आरती को विश्लेषित करते हैं, आरती के पहले पद में हिंगलाज गढ़ में माता के पालने में झूलने और माता के दर्शन हेतु लाखों लोगों के आने जाने का उल्लेख आता है. लोक लंगुरे के नहीं आने से चिंतित है क्योंकि लंगूर माता के जियरा के प्राण का आधार है यानी प्रिय है. दूसरे पद में गढ़ हिंगलाज की सुन्दरता का वर्णन मिलता है जिसमें नारियल के बाग, सुपाड़ी के पेंड़, दाख, दारू, केकती, केंवड़ा के फूल के साथ ही मोंगरा के फूलों के सुवास का वर्णन है ऐसे स्थान पर बराईन के उतरने का उल्लेख लोक करता है. पारंपरिक छत्तीसगढ़ी जस गीतों में बराईन पान बेंचने वाली का उल्लेख कई बार आता है. जिसके आधार पर यह प्रतीत होता है कि बराईन एक महिला तांत्रिक है किन्तु देवी उपासक है उसकी झड़प यदा कदा लंगुरे से, जो 21 बहिनी के भईया लंगुरवा है, से होते रही है. यह महिला तांत्रिक उस गढ़ हिंगलाज में उतरती है. तीसरे पद में लोक कृष्ण को पद में पिरोता है कि वह बांसुरी बजाते हुए नाचते हुए जब आता है तो उसके नाचने से धूल उड़ती है और वह हाथ में कमल का फूल लिए आता है. चौंथे पद में संगीत का चढ़ाव तेज हो जाता है और गायन में भी तेजी आ जाती है इसमें देवी के रूप का वर्णन आता है डहक डहक डमरू बज रहा है, तुम्हारे हाथ में त्रिशूल है, तुमने रावण को मारा है और असुरों का संहार किया है. तुम्हारी अंगुलियों में दस जोड़ी अंगूठी है. तुम कमल के आसन में विराजमान हो. पांचवे पद में लोक शायद माता को अर्पित करने योग्य वस्तु का वर्णन करते हुए संदेश देना चाहता है वह कहता है कि अन्न में मुख्य कोदो है जो छत्तीसगढ़ के बहुसंख्यक गरीब जनता का अन्न है. धन में वह गाय को प्रमुख स्थान देता है, कपड़े मे प्रमुख स्थान वह भेड़ों के रोंए से बने काले कम्बल को देता है क्योंकि वह धोबी के घर कभी धुलने के लिए नहीं जाता यानी इसे धोने की आवश्यकता ही नहीं.
इन पांचों पदों को जोड़ने का प्रयास मैं बचपन से करते रहा हूं, पहले पद में हिंगलाज माता का वर्णन दूसरे में गढ़ हिंगलाज का वर्णन, तीसरे पद में कृष्ण का वर्णन, चौंथे में माता का स्वरूप वर्णन और अंतिम में चढ़ावा हेतु वस्तु का वर्णन आता है जिसमें कृपा के पद को हटा दें तो तारतम्यता बनती नजर आती है, यह भी हो सकता है कि इस आरती में पहले और पर रहे होंगें जो हटा दिए गए होंगें या भुला दिए गए हों.
गांव वालों का कहना है कि ये आरती रतनपुर के महामाई की आरती है, उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण जीवन यापन हेतु पहले रतनपुर राज्य आए फिर अन्य गढ़ों में फैलते गए, गढ़पतियों के द्वारा पहले से बसे गांव ब्राह्मणों को दान में दिए गए तो कुछ ब्राह्मण उपयुक्त स्थल में अपना स्वयं का गांव बसा लिया. इसी क्रम में रांका राज के अधीन इस गांव को बसाने वाले कुछ ब्राह्मण अपने सेवकों के साथ यहां आये और शिवनाथ नदी के तट का उपयुक्त उपजाउ जमीन को चुनकर अपना डेरा डाल लिया. तब रतनपुर की देवी महामाया ही उनके स्मृति में थी उन्होनें ही नदी के किनारे देवी का स्थापना किया और तब से यही आरती गाई जा रही है. बाद के दिनों में शिवरीनारायण होते हुए उड़ीसा के मांझी लोग नदी के तट पर आकर बस गए धीरे धीरे गांव स्वरूप लेने लगा और आज लगभग 1500 की जनसंख्या वाला यह गांव, बेमेतरा जिले का आखरी गांव है.
संजीव तिवारी
पावन, रोचक.
जवाब देंहटाएंउम्दा आलेख अऊ बढ़िया जानकारी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक जानकारी
जवाब देंहटाएंमाँ को सादर नमन-
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-
नवरात्रि / विजय दशमी की शुभकामनायें-
(१५ दिन की छुट्टी पर हूँ-सादर )
सही में ये तो अब्बड़ सुग्घर बात आये के आरती हा महतारी भाखा मा होते... ई जानकारी दे बर आपला सादर धनबाद हे ... जय जोहर !
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढ के हर मंदिर म आरती अपनेच भाखा म होतिस तव नीक लागतिस । खम्हरिया ले भभरे लाइक खभर मिलिस हे ।खम्हरिया हर मोर फूफू-दाई के ससुरार ए श्री व्यास नारायण दुबे जी हर मोर फूफा जी ए ।
जवाब देंहटाएंसंजीव जी, बधाई। छत्तीसगढ़ की इस खोजपूर्ण जानकारी के लिए आपका धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंSughghar aarati pranam
जवाब देंहटाएंअच्छा है!
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