अपनी परछाई पर
दूसरों को चलने दो
प्रकाश की देन
सबके लिए होती है।
आज के भाग दौड़ के जीवन में रोजमर्रा की आपाधापी में अक्सर जीवन के सूत्र खोजने के लिए हम पाश्चात्य जगत के ख्यातिलब्ध विद्वानों की अमर वाणियों का सहारा खोजते हैं पर यह भूल जाते हैं कि जीवन की सफलता के सूत्र हमारे आस-पास बिखरे हैं। हमारे आस-पास ऐसी महान विभूतियों की उपस्थिति है जिनसे हम जीवन दर्शन का गूढ़ रहस्य सरल शब्दों में जानकर अपने जीवन को तनावों और उलझनों से दूर कर सकते हैं। इस आलेख के आरम्भ में आपने जो सशक्त अभिव्यक्ति का रसास्वादन किया ये किसी विदेशी विद्वान के विचार नही है। जनसेवा में दशकों से निस्वार्थ मन से जुटे डा. कृष्णमूर्ती जनस्वामी की यह अभिव्यक्ति है जो उन्होंने अपनी पुस्तक अन्तरवार्ता के माध्यम से हम सब के सामने रखी है।
माँ के बाद
सबसे सम्मानित वृद्ध होते हैं
इसलिए नही कि वे असहाय हैं या
उनकी अपेक्षा की पूर्ति तुमसे न हो पा रही हो। नही ।
उनमे तुम अपना ही भविष्य आंक कर देखो,
जिसके निर्माण में तुम अपनी उम्र झोंक दे रहे हो।
इस पुस्तक के विषय में ज्यादा कुछ अब तक नही लिखा गया है जो आश्चर्य उत्पन्न करता है। वर्ष २०१२ में प्रकाशित इस पुस्तक में सफल जीवन के ३५० सूत्र हैं जो जनस्वामी जी के दीर्घ जीवन अनुभव पर आधारित हैं। इस पुस्तक में जीवन के सभी पहलुओं के बारे में यथार्थ से जुड़े जीवन सूत्र हैं जो युवाओं से लेकर वृद्धों सभी के लिए उपयोगी हैं। इस पुस्तक के अंशों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है।
उपलब्धियों का उपभोग
लक्ष्य से विमुखता है
तुम जहाँ थे
वहीं पहुँच जाओगे।
जनस्वामी जी के ऐसे उदगार के सामने आज के मैनजेमेंट गुरु धूल चाटते प्रतीत होते हैं। कम शब्दों में वे मानो सारा जीवन दर्शन दे जाते हैं।
दूसरों को चलने दो
प्रकाश की देन
सबके लिए होती है।
आज के भाग दौड़ के जीवन में रोजमर्रा की आपाधापी में अक्सर जीवन के सूत्र खोजने के लिए हम पाश्चात्य जगत के ख्यातिलब्ध विद्वानों की अमर वाणियों का सहारा खोजते हैं पर यह भूल जाते हैं कि जीवन की सफलता के सूत्र हमारे आस-पास बिखरे हैं। हमारे आस-पास ऐसी महान विभूतियों की उपस्थिति है जिनसे हम जीवन दर्शन का गूढ़ रहस्य सरल शब्दों में जानकर अपने जीवन को तनावों और उलझनों से दूर कर सकते हैं। इस आलेख के आरम्भ में आपने जो सशक्त अभिव्यक्ति का रसास्वादन किया ये किसी विदेशी विद्वान के विचार नही है। जनसेवा में दशकों से निस्वार्थ मन से जुटे डा. कृष्णमूर्ती जनस्वामी की यह अभिव्यक्ति है जो उन्होंने अपनी पुस्तक अन्तरवार्ता के माध्यम से हम सब के सामने रखी है।
माँ के बाद
सबसे सम्मानित वृद्ध होते हैं
इसलिए नही कि वे असहाय हैं या
उनकी अपेक्षा की पूर्ति तुमसे न हो पा रही हो। नही ।
उनमे तुम अपना ही भविष्य आंक कर देखो,
जिसके निर्माण में तुम अपनी उम्र झोंक दे रहे हो।
इस पुस्तक के विषय में ज्यादा कुछ अब तक नही लिखा गया है जो आश्चर्य उत्पन्न करता है। वर्ष २०१२ में प्रकाशित इस पुस्तक में सफल जीवन के ३५० सूत्र हैं जो जनस्वामी जी के दीर्घ जीवन अनुभव पर आधारित हैं। इस पुस्तक में जीवन के सभी पहलुओं के बारे में यथार्थ से जुड़े जीवन सूत्र हैं जो युवाओं से लेकर वृद्धों सभी के लिए उपयोगी हैं। इस पुस्तक के अंशों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है।
उपलब्धियों का उपभोग
लक्ष्य से विमुखता है
तुम जहाँ थे
वहीं पहुँच जाओगे।
जनस्वामी जी के ऐसे उदगार के सामने आज के मैनजेमेंट गुरु धूल चाटते प्रतीत होते हैं। कम शब्दों में वे मानो सारा जीवन दर्शन दे जाते हैं।
जिसके पास ज्ञान है, उसे सिर्फ
उचित समय पर ही, बोलना चाहिए
और उचित समय वह है, जब सब भ्रमित अज्ञानी
थक चुके होते हों, समाधान करना तब आसान होता है।
एक और जीवन सूत्र
जल्दी उठो,
थोड़ा अकेले रहो, अपनी हर बात को सोचो
मन के विकास पर मनन करो।
जिस मार्ग से आपका मन गुजरेगा वह स्वयं
व्यापक व चौड़ा तथा ज्यादा जनोपयोगी होता चलेगा।
यह पुस्तक हमेशा अपने पास रखने योग्य है। जाने कब मन निराशा की खाई में गोते लगाने लगे और हमारा जीवन मार्ग अवरुद्ध हो जाए।
जे. एफ. प्रकाशन, बूढापारा, रायपुर द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य है केवल १०० रूपये। अधिक जानकारी के लिए आप लेखक से उनके मोबाइल पर संपर्क कर सकते हैं ०९४२५५-०१९३५
मेरी बड़ी इच्छा है कि इस पुस्तक के कुछ अंशों को लेखक के स्वर में इस वेबसाईट के माध्यम से प्रस्तुत किया जाए।
पुस्तक का अवलोकन करना चाहूँगा आपके इस समीक्षा का आभार और लेखक को बधाई
जवाब देंहटाएंगहरी विचार श्रंखला..अनुभव से उत्प्रेरित..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत समीक्षा पढ़ने के बाद से...अब इसे पढ़ने की भी इच्छा हो रही है ...
जवाब देंहटाएं