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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

सरकारी दामांद अउ उपरी कमई : पीएमटी पेपर लीक (त्‍वरित टिप्‍पणी)

पहला पीएमटी पेपर लीक मामला अभी शांत नहीं हुआ था कि अब दूसरा मामला सामने आ गया। डाक्‍टर की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षा के रूप में प्रदेश में आयोजित इस परीक्षा पर अब सामान्‍य जनता का विश्‍वास उठ गया है। पिछले दो दिनों में रायपुर व बिलासपुर क्राईम ब्रांच के द्वारा डीबी भास्‍कर के सहयोग से किए गए खुलाशे में दर्जनों मुन्‍ना भाई पकड़े गए हैं। पीएमटी के पेपर पांच से बारह लाख तक में बेंचे गए और योजना इतनी तगड़ी बनाई गई कि पेपर खरीदने वाले किसी अन्‍य को यह बात ना बतला सके इसलिए उन्‍हें तखतपुर में लगभग बंधक बनाकर रखा गया, उनके मोबाईल ले लिये गए और परीक्षार्थियों के मूल अंकसूची जमा करा कर  लीक पेपर देकर तैयारी करवाई जा रही थी। सभी समाचार-पत्रों नें इसे विस्‍तृत रूप से कवर करते हुए छापा है जिससे आप सब वाकिफ हैं इस कारण समाचार पर विशेष प्रकाश डालने की आवश्‍यकता नहीं है। इस कांड के नेपथ्‍य से उठते विचारों पर चिंतन व विमर्श आवश्‍यक है।

पिछले दिनों किसानों की खस्‍ताहाली व छत्‍तीसगढ़ में घटते जोंत के रकबे में कमी होने पर कलम घसीटी करते हुए मुझे मेरे दिमाग में एक छत्‍तीसगढ़ी गीत पर ध्‍यान बार बार जा रहा था। 'मोर राजा दुलरवा बेटा तैं नगरिहा बन जाबे' छत्‍तीसगढ़ का लोक आदिकाल से अपने बेटों को किसान बनाने का स्‍वप्‍न देखता रहा है। लोक के इसी आकांक्षा ने अतिवृष्टि व अल्‍प वृष्टि और भीषण अकाल से जूझने के बावजूद छत्‍तीसगढ़ को धान का कटोरा बनाया था । समयानुसार धीरे धीरे लोक मानस में किसनहा बनने से ज्‍यादा सरकारी नौकरी करने की लालसा में वृद्धि होती गई। तनखा के अतिरिक्‍त 'उपरी कमई घलो हावय' की लालच नें गांव वालों को भी खेतों से दूर करना शुरू कर दिया। गांव से शहर आये और नौकरी करके बेहिसाब 'उपरी कमई' से अपने घर भरे अभिभावकों के मानस नें अपने बच्‍चों के लिए और सुनहले ख्‍वाब देखे। प्रतिभावन बच्‍चे अपनी क्षमता से बिना अभिभावकों के सहयोग से अपना रास्‍ता पा गए किन्‍तु औसत व कमजोर बच्‍चों के लिए अभिभावकों नें अपना दिमाक चलाना आरंभ कर दिया। अभिभावकों में पूत सपूत तो क्‍या धन संचय कहने वाले अभिभावक बिरले होते हैं, और ऐसे अभिभावकों के बच्‍चे भी अपना रास्‍ता स्‍वयं चुनते हैं। नौकरी करके पैसा कमाने वाले अधिकतर व्‍यक्ति अपने बच्‍चों के भविष्‍य के लिए अपनी तरह ही सरकारी नौकरी (सरकारी दांमांद) का रास्‍ता चुनता है, वह बैठे-बिठाए कमाई के अतिरिक्‍त व्‍यवसाय या कोई उद्यम कर पैसा कमाने की सीख अपने पुत्रों को दे ही नहीं सकता वह सरलतम रास्‍ता आपने बच्‍चों को पकड़ाता है। 

ऐसे में सरकारी नौकरी के लिए लाखो रूपयों के घूस की व्‍यवस्‍था करना और रोजगार की निश्चिंतता वाले क्षेत्र डाक्‍टर या इंजीनियर बनाने के लिए पैसे खर्च करना अभिभावकों का 'दायित्‍व' होता है। इस 'दायित्‍व' को अभिभवक कर्ज की तरह आवश्‍यक मानकर निभाते हैं, अपने कमजोर बच्‍चों को मैनेजमेंट कोटे से इंजीनियरिंग/मेडिकल कालेजों में भर्ती करवाते हैं और लाखों खर्च करते हैं। पीएमटी का वर्तमान कांड भी अभिभावकों के इसी मोह का परिणाम है। एक आम आदमी अपनी पूरी उम्र बारह लाख रूपये कमाने के लिए होम कर देता है और पीएमटी के एक पेपर के लिए लोग बारह लाख नगद यूं ही दे रहे थे। ऐसे एक दो नहीं सैकड़ों लोग है जो भावी पीढ़ी को भ्रष्‍टाचार रूपी गंदी नाली का रसास्‍वादन पहली ही सीढ़ी से करवा रहे थे। ऐसे बच्‍चे आगे चलकर क्‍या अन्‍ना हजारे का साथ दे पायेंगें। इस पीएमटी कांड के लिए मूलत: अभिभावकों का मोह ही जिम्‍मेदार हैं ऐसा भास्‍कर नें अपने त्‍वरित टिप्‍पणी में भी लिखा है। अभिभावकों के साथ ही सरकार भी इस मामले में कम दोषी नहीं है, पीएमटी परीक्षा पहले भी एक बार रद्द हो चुकी थी उसके बावजूद सरकार नें इसे गंभीरता से नहीं लिया और बच्‍चों के साथ खिलवाड़ कर दिया। 

समाचार पत्रों से ही यह ज्ञात हुआ कि इस परीक्षा की जिम्‍मेदारी जिस सचिव स्‍तर के अधिकारी की थी वे व्‍यापम के अध्‍यक्ष हैं। सरकार नें इन्‍हें विशेष अनुरोध के साथ आसाम कैडर से छत्‍तीसगढ़ बुलाया और महत्‍वपूर्ण विभाग सौंपे क्‍योंकि ये एक दबंग भाजपा नेत्री के दामांद थे यानी सरकारी दामांद जी ने एक बार पेपर लीक हो जाने के बावजूद कोई विशेष सतर्कता नहीं बरती बल्कि छुट्टियों में थे। उनके निचले स्‍तर के अधिकारियों कर्मचारियों के संबंध में इसे पढ़ने के बाद कुछ कहना शेष रह ही नहीं जाता। सरकार इस कांड के बाद भले परीक्षार्थियों को आने-जाने का खर्च व रूकने का खर्च दान कर दे किन्‍तु उसकी अक्षमता के दाग धुलने वाले नहीं हैं। समाचार पत्रों ने यहां तक लिखा कि तखतपुर में जिस धर्मशाला में फर्जीवाड़ा अंजाम दिया जा रहा था उसे भाजपा के नेता ने बुक कराया था। सरकार को, खासकर मुख्‍यमंत्री को अपने इस फजीहत पर गंभीरता से सोंचना चाहिए और पार्टी के नाम पर प्रदेश में हो रहे बाहरी घुसपैठ पर ध्‍यान देना चाहिए। हमारे पास जनसंपर्क विभाग के ऐसे आंकड़े भी उपलब्‍ध है जिनमें सरकार नें भाजपा शासित प्रदेश या भाजपा के नेताओं के अनुशंसित पत्र-पत्रिकाओं को लाखों रूपये चना-मुर्रा की तरह बांटे हैं और प्रदेश में संवेदनशीलता से प्रकाशित हो रहे पत्र-पत्रिकाओं को ढेला भी नहीं दिया है। इसे बतलाने का आशय यह है कि प्रदेश में भाजपा के नाम ऐसे काम हो रहे हैं जिससे जनता दुखी है। पीएमटी कांड के मास्‍टर मांइंड व अन्‍य मुख्‍य सदस्‍य पकड़े गए हैं और आगे उनसे पूछताछ होगी, नये खुलाशे होंगें। सरकार को गंभीरता से इस कांड से सीख लेनी चाहिए।

इस कांड के बाद बार बार परीक्षा आयोजित होने से परीक्षार्थियों नें अपने मनोबल व उत्‍साह में कमी की बात कही है जिससे मैं सहमत नहीं हूं, उनके लिए तो यह और अच्‍छी बात है। उन्‍हें बार-बार अभ्‍यास का मौका मिल रहा है। इस कांड में जो परीक्षार्थी तखतपुर में पकड़े गए हैं उन्‍हें ताउम्र व्‍यापम की परीक्षा से वंचित किया जाना चाहिए एवं उनके अभिभावकों को कानूनी दायरे में लाते हुए उन पर भी कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए। 

संजीव तिवारी

टिप्पणियाँ

  1. आप जानते हैं कि इस मसले में मैं क्या क्या कह सकता हूं ! पर कह नहीं सकूंगा !

    दो बार परीक्षाएं रद्द हुईं आगे एक या अनेक बार फिर से निशुल्क आयोजित करना पड़ेंगी तो फिर एक संस्था बतौर व्यापमं को अब तक हो चुकी और आगे होने वाली आर्थिक क्षति की भरपाई कौन करेगा ?

    हजारों ईमानदार छात्र और उनके अभिभावक हलाकान परेशान हुए, उनका समय व्यर्थ हुआ,परीक्षा केन्द्र तक की यात्राओं वगैरह के खर्चों के अलावा उनके मनोबल पर जो नकारात्मक असर हुआ इसकी भरपाई कौन करेगा ?

    विश्वसनीय छतीसगढ की छवि पर आये इस दाग को कौन धोने वाला है ?

    पकडे गए छात्र अभिभावक और हटाये गए वीर शिरोमणि नौकरशाहों का बाल भी बांका हो पायेगा कभी ?

    इस मुद्दे पर अनशन करने आएगा कोई ? :)

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  2. और अब एक संयोग की चर्चा ...
    व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक त्रिपाठी उर्फ 'त्रिवेदी' की जगह अब चौबे जी उर्फ 'चतुर्वेदी जी' लाये गए हैं :)

    जवाब देंहटाएं
  3. कठोर कार्रवाई और विश्‍वास-अर्जन आवश्‍यक है.

    जवाब देंहटाएं
  4. न जाने कितने वर्षों से चल रहे इस प्रकार के रहस्‍य का पर्दाफाश होने तक कितने प्रतिभावानों को झेलना पडा होगा .. और कितने समाज में झूठ मूठ की प्रतिष्‍ठा हासिल कर चुके होंगे .. अभी भी यत्र तत्र चल ही रहा है !!

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