बिनायक सेन पर पहला फैसला : सुनील कुमार

डॉ. बिनायक सेन पर छत्‍तीसगढ़ के रायपुर ट्रायल कोर्ट का सौ पृष्‍टीय फैसला आ गया है इसके बाद से देश-विदेश के पत्र-पत्रिकाओं व इंटरनेट पर इस फैसले के संबंध में एवं डॉ. बिनायक सेन के मानवता के क्षेत्र में योगदान के संबंध में लगातार आलेख प्रकाशित हो रहे हैं, स्‍थानीय समाचार पत्रों में भी विशेष संपादकीय लिखे गए हैं। इसी क्रम में दैनिक छत्‍तीसगढ़ के संपादक श्री सुनील कुमार जी का आलेख आज के छत्‍तीसगढ़ में पढ़ने को मिला जिसे हम अपने पाठकों के लिए यहां प्रस्‍तुत कर रहे हैं। श्री सुनील कुमार जी इन दिनों देश से बाहर गाजा की राह पर है, सहमति-असहमति के बीच प्रस्‍तुत है उनका आलेख बिनायक सेन पर पहला फैसला :- 

डॉ. बिनायक सेन को मिली उम्र कैद ने देश और दुनिया के बहुत से सामाजिक आंदोलनकारियों को हिला कर रख दिया है और छत्‍तीसगढ़ के एक जिले की अदालत के इस फैसले को बहुत से कानूनी जानकार खारिज ही कर दे रहे हैं कि यह एक कमजोर फैसला है।
करीब सौ पेज के इस फैसले को बुलवाकर पढऩे में वक्‍त लगा, और इसलिए मैं इन दिनों देश से बाहर रहते हुए इस पर आनन-फानन कुछ लिख नहीं पाया। एशिया से गाजा जा रहे कारवां में पिछले 20 से अधिक दिन हो गए और अभी सीरिया के एक बंदरगाह-शहर पर इजिप्‍त जाने की इजाजत का रास्ता देखते हम पड़े हैं। हमारे साथ हिंदुस्तान के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं और वामपंथी रूझान रखने वाले लोग भी हैं, और बिनायक सेन पर आए फैसले से सभी के चेहरों पर तकलीफ दिखती है। अदालत के इस नतीजे को लोग बेइंसाफी मानते हैं कि बिनायक ने राजद्रोह का कोई काम किया है। ऐसे में इतनी दूर बैठे आज की यह बात मैं अपनी निजी समझ की ही लिख रहा हूं, इससे अधिक यहां रहते मुमकिन नहीं है।  
डॉ. बिनायक सेन पर जब नक्‍सलियों की मदद का मुकदमा शुरू हुआ, तो छत्‍तीसगढ़ में कुछ लोगों को हैरानी थी कि गरीबों का इलाज करने वाला यह मानवाधिकार आंदोलनकारी कैसे यह गलती कर बैठा कि नक्‍सलियों की चिट्ठी जेल से बाहर पहुंचाते फंस गया। लेकिन बहुत से लोगों को यह भी लगा कि छत्‍तीसगढ़ में कुछ सामाजिक आंदोलनकारी, देश के बाकी बहुत से बड़े सामाजिक आंदोलनकारी लोगों के साथ मिलकर जिस तरह देश-प्रदेश के सरकारों पर हमला बोलते हैं, और जिससे नक्‍सलियों के हाथ मजबूत होते हैं, उसके चलते ये लोग ऐसा काम कर भी सकते हैं। डॉ. बिनायक सेन की गिरफ्तारी के पहले ही हि‹दुस्तान में बहुत से सामाजिक कार्यकर्ताओं के इस रूख पर आम लोग हैरान-परेशान थे, कि नक्‍सली हिंसा के खिलाफ उनका मुंह नहीं खुलता था, और सरकारी हिंसा के आरोपों पर भी मानवाधिकार संगठन उबल पड़ते थे। जिस तरह पिछले महीनों में अरुंधति राय ने खुलकर नक्‍सलियों की तारीफ में लिखा और कहा है, कुछ वैसा ही बहुत से और सामाजिक आंदोलनकारी समझते हैं। उनकी हताशा के पीछे भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं की नाकामयाबी है, जिनके चलते गरीब और उनका देश लुट रहे हैं, और सभी किस्म के ताकतवर तबके लूट रहे हैं। ऐसे माहौल में बहुत से संवेदनशील लोगों को नक्‍सली एक विकल्प लगते हैं, लोकतंत्र का ना सही, लोकतंत्र को और अधिक तबाह होने से बचाने के इलाज की तरह का विकल्प।
लोकतांत्रिक संस्थाओं की विफलता के बावजूद हमारा मानना है कि इलाज जम्हूरियत के भीतर से ही निकल सकता है, और ना कि इसे तबाह करके। लेकिन अदालत ने यह पाया है कि डॉ. बिनायक सेन ने नक्‍सलियों की चिट्ठी जेल से बाहर लाकर उनके हरकारे का काम किया और इसलिए उ‹हें उम्रकैद की सजा दी।
यह पहली बात हमें सही लगती है कि उन्‍होंनें किसी तरह से नक्‍सलियों की मदद की होगी, लेकिन इसके लिए राजद्रोह के जुर्म के तहत उन्‍हें उम्रकैद देना जायज नहीं लगता। हमारे पाठकों को याद होगा कि कुछ महीनों पहले जब अरुंधति राय ने कश्मीर को लेकर एक बयान दिया था और जिसे लेकर उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाने की शुरुआत हो चुकी है, तब भी हमने राजद्रोह को लेकर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले की याद दिलाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था कि जब कोई व्यय्ति देश की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए लोगों को हथियारबंद बगावत की नीयत से भडक़ाए, तो ही उसे बहुत ही दुर्लभ मामलों में राजद्रोह माना जाए। हमारे साथ चल रहे एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे भी एक दूसरे प्रदेश में राजद्रोह का मुकदमा झेल रहे हैं, जो कि आगे ही नहीं बढ़ रहा है बरसों से। लेकिन छत्‍तीसगढ़ की अदालत के फैसले को कमजोर मानते हुए भी हमें लगता है कि दुनिया के बहुत से हिस्सों से उठती यह मांग सही नहीं है कि सरकार डॉ. बिनायक सेन को तुरंत रिहा करे। दूसरे देशों में बैठे, और भारत में भी बसे बहुत से लोगों का यह मानना है कि यहां की अदालतें सरकारी दबाव के तहत काम करती हैं। मैं यह तो मान सकता हूं कि बहुत सी अदालतें इंसाफ से परे एक अंदाज में किसी दबाव में काम कर सकती हैं, लेकिन आम तौर पर तो यह गैरसरकारी ताकतवर तबके का दबाव अधिक होता है, ना कि सरकार का। अदालतों के तो बहुत से फैसले सरकारों के खिलाफ ही जाते हैं, और छत्‍तीसगढ़ में नक्‍सल मोर्चे की बात करें, तो बिनायक से साथी सामाजिक कार्यकर्ताओं की पिटीशन पर अदालती फैसले या अदालती हुक्‍म तो सरकार के खिलाफ ही जाते दिखते हैं। सरकार की जांच एजेंसियां जरूर मामला अदालत में पेश करती हैं, लेकिन पूरा देश गवाह है कि किस तरह आए दिन अदालतें जांच एजेंसियों के खिलाफ फैसले देती हैं।
लेकिन बिनायक सेन के मामले पर लौटें तो इस पर अदालती फैसला अभी ट्रायल कोर्ट का है, निचली अदालत का। ऐसी निचली अदालतों के  नजरिए की एक सीमा होती है, और ये अपने सामने रखे गए सबूतों के आगे-पीछे कुछ नहीं देखतीं/देख सकतीं। ऐसे में बिनायक सेन के हाथों नक्‍सलियों की मदद होने का सुबूत मौजूद बताए जाते हैं। 100 पेज के करीब के अदालती फैसले में बहुत सी दूसरी कमजोरियां दिखाई पड़ती हैं, लेकिन ट्रायल कोर्ट में उनसे बिनायक सेन को मदद नहीं मिल सकता। अभी बिनायक और सरकार, दोनों के सामने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने के रास्ते खुले हैं और यह लड़ाई आखिर तक चलेगी ही।
जो लोग सोचते हैं कि बिनायक सेन को सरकार को अभी छोड़ देना चाहिए, ऐसे एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संगठनों को भारत के कानून की जानकारी कुछ कम दिखाई पड़ती है। छत्‍तीसगढ़ की सरकार इस मामले में सिर्फ इतना कर सकती है कि वह हाईकोर्ट में इस मामले को मजबूती से ना लड़े और बिनायक सेन के वकीलों को जीत जाने का मौका दे दें। लेकिन क्‍या  कोई सरकार तब ऐसा कर सकती है जब उसके निहˆथे लोग हर बरस सैकड़ों की गिनती में मारे जा रहे हों, सैंकड़ों जवान मारे जा रहे हों, नक्‍सलियों के हाथों? ऐसे में अगर डॉ. बिनायक सेन और कुछ दूसरे लोगों की किसी भी दर्जे की भागीदारी नक्‍सलियों के साथ पकड़ाती है, तो कोई भी सरकार उसे अनदेखा कैसे कर सकती है? अपनी जनता को कोई सरकार क्‍या  जवाब दे सकती है कि मुश्किल से निचली अदालत तक पहुंच पाए इस मामले में वह उन सामाजिक आंदोलनकारियों पर रहम क्‍यों कर रही है जो रोज नक्‍सलियों की मदद करते बयान, सरकार के खिलाफ देते हैं?  
मैं तो अभी हिन्‍दुस्‍तान से परे बैठा हूं, इसलिए इंटरनेट पर जाने-पहचाने लोगों और संगठनों के बयानों से परे बहुत अधिक इस मामले पर आए इस फैसले के बारे में लोगों की प्रतिक्रिया पता नहीं है। मैंने हमारे दोस्त संदीप पांडे से भी बार-बार पूछा कि क्‍या  वे बिनायक सेन पर कुछ लिख पाए हैं, तो अब तक वे भी कुछ लिख नहीं पाए। ऐसे में अपनी पुरानी जानकारियों और अपनी पिछले की सोच को लेकर ही यह लिख रहा हूं।
जिन लोगों के मानवाधिकारों को लेकर डॉ. बिनायक सेन और उनके जैसे बाकी साथी आंदोलन करते हैं, उन्‍हीं की तरह की न्‍याय- प्रक्रिया से उन्‍हें भी गुजरना ही है। हिन्‍दुस्‍तान के लोकतंत्र में जब तक कोई सरकारों और अदालतों को प्रभावित करने की ताकत न रखे, उसे तो कटघरे और जेल के लिए तैयार रहना ही पड़ता है। बिनायक सेन के बारे में इतना जरूर है कि उन्‍हें देश के सबसे दिग्‍गज वकील नसीब थे और हैं भी आगे की लड़ाई के लिए। जिन लोगों के हकों के लिए बिनायक और उनके साथी अक्‍सर सडक़ों पर रहते हैं, उनमें से शायद ही किसी को इतनी वकीली मदद नसीब हो पाती हो। बिनायक सेन को मैं खुद बरसों से जानता हूं, और मुझे खुशी होगी गर वे ऊपर की अदालतों से बरी होकर निकलें। लेकिन भारत के लोकतं˜त्र का जो ढांचा है, उसके तहत यह सिलसिला इतना लंबा चलता ही है। बिनायक के मामले में तो उनके वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट तक कई बार दौड़ लगाकर उनके हक हासिल करने की कोशिश भी की थी।  
फिलहाल छत्‍तीसगढ़ में और ऐसे बहुत से दूसरे प्रदेशों में मानवाधिकार आंदोलनकारियों के सामने का वक्‍त है, लेकिन यह वक्‍त लोगों को यह समझाने का भी है कि लोकतं˜त्र की अपनी सीमाएं होती हैं और जिन लोगों का भरोसा शांति पर है, उ‹हें सावधान भी रहना चाहिए। दरअसल लोकतं˜त्र से नाराजगी और बगावत के बीच कई बार बहुत बारीक फासला रह जाता है। ऐसे में लोगों को इस सरहद को पार नहीं करना चाहिए। भारत जैसे देश में लोकतंत्र की नाकामयाबी के कुछ मामलों को देखकर कई लोगों का खून कई बार उबल सकता है, और ऐसे बहुत से लोगों से मेरी मुलाकात इन दिनों हो भी रही है, लेकिन लोकतंत्र की मरम्मत भीतर से ही हो सकती है, उसे बुलडोजर से ढहाकर नहीं। फिलहाल दूर बैठे इतनी सी आधी-अधूरी ही।


सुनील कुमार 
संपादक, छत्‍तीसगढ़ 

5 टिप्‍पणियां:

  1. विचारणीय आलेख पढवाने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. इस लेख को पढ़ कर अपनी भी आँखें खुली रह गयी ...शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  3. ANY BLIND CAN JUDGE THAT MR VINAYAK SEN IS PRO NAXAL AND SUPPORTS NAXAL MOVEMENT BY LIVING IN CITY.
    HE DESERVE THE SENTENCE AS PER THE LAW.
    THOSE WHO ARE COMMENTING ADVERSE ON THE LAW ARE REALLY BELIVE IN INDIAN JUDICARY?

    जवाब देंहटाएं
  4. इच्छा तो है पर कमेन्ट करना मुश्किल लग रहा है आखिर को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबको कहां होती है !

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

लेबल

संजीव तिवारी की कलम घसीटी समसामयिक लेख अतिथि कलम जीवन परिचय छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत - मेरी नजरों में पुस्तकें-पत्रिकायें छत्तीसगढ़ी शब्द Chhattisgarhi Phrase Chhattisgarhi Word विनोद साव कहानी पंकज अवधिया सुनील कुमार आस्‍था परम्‍परा विश्‍वास अंध विश्‍वास गीत-गजल-कविता Bastar Naxal समसामयिक अश्विनी केशरवानी नाचा परदेशीराम वर्मा विवेकराज सिंह अरूण कुमार निगम व्यंग कोदूराम दलित रामहृदय तिवारी अंर्तकथा कुबेर पंडवानी Chandaini Gonda पीसीलाल यादव भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष Ramchandra Deshmukh गजानन माधव मुक्तिबोध ग्रीन हण्‍ट छत्‍तीसगढ़ी छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म पीपली लाईव बस्‍तर ब्लाग तकनीक Android Chhattisgarhi Gazal ओंकार दास नत्‍था प्रेम साईमन ब्‍लॉगर मिलन रामेश्वर वैष्णव रायपुर साहित्य महोत्सव सरला शर्मा हबीब तनवीर Binayak Sen Dandi Yatra IPTA Love Latter Raypur Sahitya Mahotsav facebook venkatesh shukla अकलतरा अनुवाद अशोक तिवारी आभासी दुनिया आभासी यात्रा वृत्तांत कतरन कनक तिवारी कैलाश वानखेड़े खुमान लाल साव गुरतुर गोठ गूगल रीडर गोपाल मिश्र घनश्याम सिंह गुप्त चिंतलनार छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ वंशी छत्‍तीसगढ़ का इतिहास छत्‍तीसगढ़ी उपन्‍यास जयप्रकाश जस गीत दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति धरोहर पं. सुन्‍दर लाल शर्मा प्रतिक्रिया प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट फाग बिनायक सेन ब्लॉग मीट मानवाधिकार रंगशिल्‍पी रमाकान्‍त श्रीवास्‍तव राजेश सिंह राममनोहर लोहिया विजय वर्तमान विश्वरंजन वीरेन्‍द्र बहादुर सिंह वेंकटेश शुक्ल श्रीलाल शुक्‍ल संतोष झांझी सुशील भोले हिन्‍दी ब्‍लाग से कमाई Adsense Anup Ranjan Pandey Banjare Barle Bastar Band Bastar Painting CP & Berar Chhattisgarh Food Chhattisgarh Rajbhasha Aayog Chhattisgarhi Chhattisgarhi Film Daud Khan Deo Aanand Dev Baloda Dr. Narayan Bhaskar Khare Dr.Sudhir Pathak Dwarika Prasad Mishra Fida Bai Geet Ghar Dwar Google app Govind Ram Nirmalkar Hindi Input Jaiprakash Jhaduram Devangan Justice Yatindra Singh Khem Vaishnav Kondagaon Lal Kitab Latika Vaishnav Mayank verma Nai Kahani Narendra Dev Verma Pandwani Panthi Punaram Nishad R.V. Russell Rajesh Khanna Rajyageet Ravindra Ginnore Ravishankar Shukla Sabal Singh Chouhan Sarguja Sargujiha Boli Sirpur Teejan Bai Telangana Tijan Bai Vedmati Vidya Bhushan Mishra chhattisgarhi upanyas fb feedburner kapalik romancing with life sanskrit ssie अगरिया अजय तिवारी अधबीच अनिल पुसदकर अनुज शर्मा अमरेन्‍द्र नाथ त्रिपाठी अमिताभ अलबेला खत्री अली सैयद अशोक वाजपेयी अशोक सिंघई असम आईसीएस आशा शुक्‍ला ई—स्टाम्प उडि़या साहित्य उपन्‍यास एडसेंस एड्स एयरसेल कंगला मांझी कचना धुरवा कपिलनाथ कश्यप कबीर कार्टून किस्मत बाई देवार कृतिदेव कैलाश बनवासी कोयल गणेश शंकर विद्यार्थी गम्मत गांधीवाद गिरिजेश राव गिरीश पंकज गिरौदपुरी गुलशेर अहमद खॉं ‘शानी’ गोविन्‍द राम निर्मलकर घर द्वार चंदैनी गोंदा छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय छत्‍तीसगढ़ पर्यटन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य अलंकरण छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंजन जतिन दास जन संस्‍कृति मंच जय गंगान जयंत साहू जया जादवानी जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड जुन्‍नाडीह जे.के.लक्ष्मी सीमेंट जैत खांब टेंगनाही माता टेम्पलेट डिजाइनर ठेठरी-खुरमी ठोस अपशिष्ट् (प्रबंधन और हथालन) उप-विधियॉं डॉ. अतुल कुमार डॉ. इन्‍द्रजीत सिंह डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव डॉ. गोरेलाल चंदेल डॉ. निर्मल साहू डॉ. राजेन्‍द्र मिश्र डॉ. विनय कुमार पाठक डॉ. श्रद्धा चंद्राकर डॉ. संजय दानी डॉ. हंसा शुक्ला डॉ.ऋतु दुबे डॉ.पी.आर. कोसरिया डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद डॉ.संजय अलंग तमंचा रायपुरी दंतेवाडा दलित चेतना दाउद खॉंन दारा सिंह दिनकर दीपक शर्मा देसी दारू धनश्‍याम सिंह गुप्‍त नथमल झँवर नया थियेटर नवीन जिंदल नाम निदा फ़ाज़ली नोकिया 5233 पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकार परिकल्‍पना सम्‍मान पवन दीवान पाबला वर्सेस अनूप पूनम प्रशांत भूषण प्रादेशिक सम्मलेन प्रेम दिवस बलौदा बसदेवा बस्‍तर बैंड बहादुर कलारिन बहुमत सम्मान बिलासा ब्लागरों की चिंतन बैठक भरथरी भिलाई स्टील प्लांट भुनेश्वर कश्यप भूमि अर्जन भेंट-मुलाकात मकबूल फिदा हुसैन मधुबाला महाभारत महावीर अग्रवाल महुदा माटी तिहार माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह मीरा बाई मेधा पाटकर मोहम्मद हिदायतउल्ला योगेंद्र ठाकुर रघुवीर अग्रवाल 'पथिक' रवि श्रीवास्तव रश्मि सुन्‍दरानी राजकुमार सोनी राजमाता फुलवादेवी राजीव रंजन राजेश खन्ना राम पटवा रामधारी सिंह 'दिनकर’ राय बहादुर डॉ. हीरालाल रेखादेवी जलक्षत्री रेमिंगटन लक्ष्मण प्रसाद दुबे लाईनेक्स लाला जगदलपुरी लेह लोक साहित्‍य वामपंथ विद्याभूषण मिश्र विनोद डोंगरे वीरेन्द्र कुर्रे वीरेन्‍द्र कुमार सोनी वैरियर एल्विन शबरी शरद कोकाश शरद पुर्णिमा शहरोज़ शिरीष डामरे शिव मंदिर शुभदा मिश्र श्यामलाल चतुर्वेदी श्रद्धा थवाईत संजीत त्रिपाठी संजीव ठाकुर संतोष जैन संदीप पांडे संस्कृत संस्‍कृति संस्‍कृति विभाग सतनाम सतीश कुमार चौहान सत्‍येन्‍द्र समाजरत्न पतिराम साव सम्मान सरला दास साक्षात्‍कार सामूहिक ब्‍लॉग साहित्तिक हलचल सुभाष चंद्र बोस सुमित्रा नंदन पंत सूचक सूचना सृजन गाथा स्टाम्प शुल्क स्वच्छ भारत मिशन हंस हनुमंत नायडू हरिठाकुर हरिभूमि हास-परिहास हिन्‍दी टूल हिमांशु कुमार हिमांशु द्विवेदी हेमंत वैष्‍णव है बातों में दम

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को ...