पारंपरिक छत्‍तीसगढ़ी गीत हिन्‍दी अनुवाद सहित : हो गाड़ी वाला रे....

हो गाड़ी वाला रे .... 
पता ले जा रे, पता दे जा रे, गाड़ी वाला
पता ले जा, दे जा, गाड़ी वाला रे .... 
तोर गॉंव के, तोर नाव के, तोर काम के, पता दे जा
पता ले जा, दे जा, गाड़ी वाला रे .... 
का तोर गॉंव के नाव दिवाना डाक खाना के पता का
नाम का थाना कछेरी के पारा मोहल्‍ला जघा का
का तोरे राज उत्‍ती बुड़ती रेलवाही का हावे सड़किया
पता ले जा, दे जा, गाड़ी वाला रे .... 
मया नि चीन्‍हे देसी बिदेसी मया के मोल ना तोल
जात बिजात ना जाने रे मया मयारू के बोल
काया माया सब नाच नचावे मया के एक नजरिया
पता ले जा, दे जा, गाड़ी वाला रे ....
जियत जागत रहिबे रे बैरी भेजबे कभू ले चिठिया
बिन बोले भेद खोले रोवे जाने अजाने पिरितिया
बिन बरसे उमडे घुमडे़ जीव मया के बैरी बदरिया
पता ले जा, दे जा, गाड़ी वाला रे .... 

हिन्‍दी अनुवाद-

ओ गाडीवाले ! तुम अपना पता दे जावो और मेरा पता ले जावो. तुम्‍हारा गॉंव कौन सा है? तुम्‍हारा नाम क्‍या है? और तुम क्‍या काम करते हो? इन सबका पता दे जावो!
तुम्‍हारे गॉंव का नाम क्‍या है और डाकखाना कहॉं है? थाना और कचहरी व मोहल्‍ला का क्‍या नाम है? तुम्‍हारे राज्‍य के पूर्व और पश्चिम में कौन से राज्‍य हैं? तुम्‍हारे गॉंव जाने के लिए रेललाईन है या सड़क? गाड़ीवाले तुम अपना पता दे जावो!
प्रेम देशी विदेशी नहीं पहचानता और न ही प्रेम का मोल भाव होता है. प्रेम जाति बंधन को भी नहीं मानता. प्रेम तो केवल प्रेम के बोल को पहचानता है. प्रेम की एक नजर काया-माया(दार्शनिकता) को नचाती है. गाड़ीवाले तुम अपना पता दे जावो!
जीते जागते रहे तो कभी पत्र जरूर भेजना. बिना बोले ही मेरी प्रीत जाने अनजाने मेरे मन का भेद खोल रही है. प्रेम की यह पावन घटा बिन बरसे नहीं मानेगी. ओ ! गाड़ीवाले तुम अपना पता दे जावो और मेरा पता ले जावो !

इस गीत का आडियो वर्तमान में हमारे पास नहीं है, सिंहावलोकन वाले आदरणीय राहुल सिंह जी ऐसे पारंपरिक गीतों को नेट में सहेजने हेतु प्रयासरत हैं. हमें विश्‍वास है कि जैसे राहुल भईया नें दिल्‍ली 6 में उपयोग किए गए पारंपरिक गीत का दुर्लभ आडियो अपने ब्‍लॉग में प्रस्‍तुत किया था वैसे ही इन गीतों का आडियो भी समय पर सिंहावलोकन में प्रस्‍तुत करेंगें.

इस गीत का वीडियो भाई युवराज गजपाल नें अपने यू ट्यूब चैनल में यहॉं लगया है, युवराज भाई नें सीजी नेट पर भी बहुत से पारंपरिक व दुर्लभ छत्‍तीसगढ़ी गीतों को संजोया है. मेरा आग्रह है आप इस गीत को अवश्‍य सुनें एवं यू ट्यूब में युवराज भाई के इस चैनल को सबस्‍क्राईब करें.


 


फोटो गूगल सर्च से साभार

19 टिप्‍पणियां:

  1. 1982 के आस पास ये आकाशवाणी जगदलपुर से बजनें वाले सर्वाधिक हिट गीतों में से एक रहा है ! पुरानी यादें ताज़ा करवानें के लिये आपकी जितनी भी तारीफ करूं कम होगी !

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  2. संजीव भाई !

    एह गीत ला पता जब भी मिले ...
    इस गीत पता जरूर देना !
    आपके द्वारा किया गया अनुवाद मस्त है न भय्या !

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  3. कई वर्षों के बाद आज अपनी मातृभूमि की भाषा पढने को मिली , अच्छा लगा |
    यिक पुराना गीत जिसे ५० साल पूर्व सुना था यदि दुबारा मिल जाय तो कृतध्न होऊंगा |
    कुछ इस प्रकार है .....तिरियाले डोंगा ला केंवट-आ रे ,
    झिन जाबे नदिया के पार ||
    धन्यवाद् |
    डॉ. ग़ुलाम मुर्तजा शरीफ
    अमेरिका

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  4. pyare geet ka sundar anuvaad.ise mai apni anuvaad patrikaa me prakashit karoongaa.

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  5. I have uploaded this song in youtube. You can find here

    http://www.youtube.com/user/gajpaly#p/u/16/IGU-4ZZFG4c

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  6. जय जोहार्……। बिहनिया बिहनि्या ले अतेक सुग्घर गीत सुनके आनन्द आ गे। अभी बरसात आ गे हे। बरसाती भैया के जमाना मा चौपाल कार्यक्रम मा बहुत गीत सुनन। "आगे असाढ़ गिर गे पानी… भीग गे ओरिया भीग गे छान्ही……॥ नरवा तिर मा सुग्घर सुन्दरी…… मन भावत हवे मोला लाली के लुगरी जैसन गीत नन्दा गे हे। बढ़िया लागिस।

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  7. बहुत बढ़िया रहा ..बैलगाडी देख बचपन की याद आ गयी

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  8. गीत, अनुवाद व संगीत, तीनो ही अत्यधिक प्रभावशाली । बिलासपुर के दिन याद आ गये ।

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  9. सुन्दर!
    आपके द्वारा अनुवादित गीत की दार्शनिकता से भी परिचय हुआ....
    आपका प्रयास सार्थक हो!.... इसी मंगल कामना के साथ...

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  10. मुझे भी यह गीत अच्छा लगता है। एक गीत की इन दिनों और धूम मची है.. अरपा पैरी के धान.. महानदी... कभी इसके बारे में भी जरूर लिखना भाई संजीव।

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  11. अस्‍सी के दशक में बुधवार को दोपहर साढे बारह बजे आकाशवाणी के राचपुर केद्र से प्रसारित सुरसिगांर कार्यक्रम का सरताज गीत , इस मीठी याद के लिऐ संजीव जी धन्‍यवाद उस जमाने में मैं गैर छतीसगढी भिलाई क्‍ै झंकार रेडियो श्रौता संघ का अध्‍यक्ष था उस जमाने मे झीमिर झीमिर बरसे पानी.., तै जबाब दे दे टूरी..., मैं बिलासपुरिया तै रायगढीया तौर मौर जोडी जमै है घलौ बढीया .....
    संजीव जी बस ऐसा ही लिखे यार धन्‍यवाद
    सतीश कुमार चौहान भिलाई

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  12. भाई आपने मेरी समस्या का हल कर दिया //छत्तीगढ़ी का यह ऐसा गीत है जो मुझे सबसे ज्यादा प्रिय है और रहा है.मैं अक्सर गुनगुनाया करता हूँ..लेकिन इधर कई पंक्तियाँ भूल गया था..आपने और भाई राहुल ने ये काम बहुत बढया किया
    मतलब के छत्तीस गढ़िया सब ले बढया !

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  13. maja aage sun ke.
    bane gana lagaye has.

    hamar dharohar la sanjo ke rakhana bahut jaruri he.

    ihi hamar chinhari he.

    johar le

    saheb bandgi saheb

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  14. ... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति, बधाई!!!

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  15. गीत, अनुवाद व संगीत, तीनो ही अत्यधिक प्रभावशाली...!

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  16. bahut bahut dhanyavad...Bharat ki vishal sanskriti me se ek boond apne Chhatishgarh ki ki bhasha me dikhai....bahut bahut shukriya...

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  17. बहुत अच्छा संजीव जी। वाह। सच बताऊं तो मजा तो छत्तीसगढ़ी में ही आ रहा है। हिन्दी में दिया अच्छा किया, मतलब समझ में आ रहा था। पर जो मजा असली में वह दूसरे में कहां। बहुत ही शानदार। बहुत खूब। क्या कहने।

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  18. छत्तीसगढ़ी लोकगीतों के वेब पर जारी करने का आप का और सिंहावलोकन वाले राहुल जी का कार्य सराहनीय है. आपने जो गीत का ऑडियो चाहा है वो मई आपको ईमेल कर रहा हूँ.
    साधुवाद

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  19. मैं जब भी यह गीत सुनता हूँ मुझे फणीश्वर नाथ रेणु के हिरामन की याद आती है ...।

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