हबीब तनवीर के ख्‍यात नाचा कलाकार गोविंद निर्मलकर लौटाएंगे पद्मश्री

आज के सांध्‍य दैनिक में इस समाचार को पढ़कर मैं सकते में आ गया अभी दो दिन पहले ही हबीब तनवीर जी की पुण्‍यतिथि पर साथी ब्‍लॉगरों नें पोस्‍ट लगाया और भाइयों नें टिप्‍पणियां भी की और ताने भी मारे कि हबीब जी की पुण्‍य तिथि छत्‍तीसगढ़ को याद रखना चाहिए. यद्धपि भाईयों को पता ही नहीं था कि छत्‍तीसगढ़ हबीब के सम्‍मान में पूरे एक सप्‍ताह का कार्यक्रम कर रहा है. और याद करने वाले दिल याद कर रहे हैं। खैर .... आवारा बंजारा का पोस्‍ट पढ़ नहीं पाये होंगें! इससे उबर ही नहीं पाया था कि यह समाचार नजर आया, तब हबीब तनवीर और गोविंद निर्मलकर पुन: स्‍मृति में छा गए।
दैनिक छत्‍तीसगढ़ के राजनांदगांव संवाददाता प्रदीप मेश्राम नें गोविंद निर्मलकर से मिलकर उनका दुख समाचार पत्र के मुख्‍य पृष्‍ट में ही उकेरा है. उन्‍होंनें लिखा है कि विश्‍व धरोहर बनने वाली, छत्तीसगढ़ संस्कृति से जुड़ी लोक नाट्य शैली 'नाचा' के कलाकार पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित गोविंदराम निर्मलकर अपना सम्मान और पदक लौटाना चाहते हैं। वे अपनी परेशानी का सबसे बड़ा कारण इस सम्‍मान को मानते हैं। वे कहते हैं - 'लोग यह समझते हैं कि पद्मश्री से सम्मानित होने के कारण मुझे दिल्ली से बहुत पैसा मिला होगा, इसलिए रिश्तेदार से लेकर पड़ोसी तक आर्थिक सहायता नहीं देते। जबकि हकीकत सरकार जानती है। मुझे सिर्फ दिल्ली आने-जाने के पैसे दिए गए थे। राष्ट्रपति से अवार्ड के अलावा और कुछ भी नहीं मिला।
गोविंद निर्मलकर जी को पद्म श्री मिलने के कुछ माह पहले ही मेरी उनसे भिलाई में बहुमत सम्‍मान के अवसर पर मुलाकात हुई थी इसके बाद पद्म श्री मिलने के बाद अलग-अलग कार्यक्रमों में चार पांच बार मुलाकात हुई है. उनसे चर्चा के दौरान प्राप्‍त जानकारी के अनुसार गोविंद निर्मलकर जी के बेटे उसे पद्म श्री मिलने के पहले ही छोड़ चुके थे वे अकेले अपनी पत्‍नी के साथ रहते थे. बाद में मैनें सूत्रों से यह सुना कि पद्म श्री के पुरस्‍कार राशि के चलते उसे बेटो नें अपने साथ रख लिया है पर पद्मश्री के हालात नहीं बदल पाये हैं. सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी को प्रदीप मेश्राम का यह रपट पुष्‍ट कर रहा है।
पद्मश्री पाने के पूर्व ही गोविंन्‍द राम निर्मलकर जी का आधा शरीर लकवाग्रस्त हो चुका है, उन्‍होंनें मुझे भी बतलाया था कि बीते एक बरस में उनकी माली हालत और भी खराब हुई है, उनके स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में न तो प्रशासन ने सुध ली है और न ही कोई जनप्रतिनिधि उन्‍हें पूछता है, न ही लोक नाट्य वाले। उन्‍होंनें पिछले दिनों हंसते हुए कहा था जिसे वे प्रदीप मेश्राम जी को भी कहते हैं कि भईया ये पदम सिरि अवार्ड मेरे लिए एक मुसीबत बन गया है। लोग मुझे पैसे वाला मानते हैं, जबकि मुझे राष्ट्रपति से सिफ एक प्रमाण-पत्र और पदक मिला है। बकौल प्रदीप खराब स्वास्‍थ्‍य की वजह से श्री निर्मलकर इन दिनों बिस्तर में पड़े रहते हैं। लगातार गिर रहे स्वास्‍थ्‍य की वजह से श्री निर्मलकर के ऊपर लगभग ढाई लाख रूपये का कर्ज चढ़ गया है, जिसे चुकाने की क्षमता उनके पास अब नहीं है।
हमारा भी मानना है कि कि इन हालातों में नाचा का यह चितेरा कहीं गुमनामी में ही अपना दम न तोड़ बैठे, राज्‍य सरकार को कम से कम उनके इलाज के लिए वित्‍तीय सहायता उनके घर जाकर देनी चाहिए। आशा है ऐसे समय में जब प्रदेश के मुख्‍यमंत्री राजनांदगांव जिले को अपना दत्‍तक जिला मानते हैं उसी जिले में हमारी संस्‍कृति लोक के ध्‍वजवाहक की विपन्‍नता में स्‍वयं पहुचकर उनकी सुधि लेंगें।
गोविंन्‍द राम निर्मलकर जी को जब पद्मश्री मिलने की घोषणा हुई तब हमने उनके कार्यों के संबंध में एक आलेख लिखा था जिसे आप आरंभ में यहां पढ़ सकते हैं.

22 टिप्‍पणियां:

  1. निर्मलकर जी के बारे में करुण पोस्ट। इतने महान कलाकार के साथ ये दुर्दिन जुड़ा है। निश्चित तौर पर सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिेए जिससे कलाकारों को आर्थिक मदद हासिल हो सके।

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  2. बड़े दुख की बात है, सम्मान दे दिये, हो गया। इति श्री। यदि सर्वसम्मति से कुछ एकत्र कर आर्थिक सहयोग प्रदान किया जावे तो कैसा रहेगा। बून्द बून्द मे घड़ा भरे को ध्यान मे रखते हुए।

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  3. जब सरकार किसी को पद्मश्री उसके योगदान की सराहना के रूप में देती है तो यूं खाली गाल बजाने से क्या फ़ायदा. शाल-दुशालों से पेट भी भरता है क्या!

    10 लाख करोड़ सालाना का बजट पेश करने वाली केंद्र सरकार क्यों इन गिनती के मूर्धन्य गौरवदाताओं को पेंशन नहीं देती. आख़िर इनकी पेंशन से देश की ग़रीबी और कितनी बढ़ जाएगी!

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  4. कलाकारों की यह स्थिति देख कर मन दुखी हो जाता है ।

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  5. मेल से प्राप्‍त टिप्‍पणी -

    बेहतर हो की उनके लिए एक सहायता कोष खोल दिया जावे, जिससे की उन्हें स्वतंत्र एवं सम्मानपूर्वक जीवन जीने में आसानी हो सके. प्रतिमाह सौ सौ रूपये देने वाले सौ डेढ़ सौ सहायातार्थी ही तो चाहिए। पहला नाम मेरा ही जोड़ लीजिये.


    Satyendra K.Tiwari.
    Wildlife Photographer, Naturalist, Tour Leader
    H.NO 139, P.O.Tala, Distt Umariya.
    M.P. India 484-661
    To know more about Bandhavgarh visit following links.
    http://www.flickr.com/photos/satyendraphotography
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  6. बज में प्राप्‍त टिप्‍पणी - शर्मनाक कहने से भी कुछ नहीं होगा क्योंकि शर्म अब आती किसको है - Dr. Mahesh Sinha

    हमारी साहित्‍य बिरादरी ही इतनी सड चुकी हैं की ऐसे समाचार कोई आश्‍चर्य हैं निर्मलकर अब सरकार के वोट के लिऐ नाच नही सकते, न ही सरकार के लिऐ स्‍तुतीगान कर सकते हैं, सरकारी विज्ञप्ति जैसी रचना
    लिख सकते हैं, तो इस सरकार के किस काम के.
    सतीश कुमार चौहान भिलाई

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  7. ई मेल से प्राप्‍त टिप्‍पणी -

    निश्चित रूप से एक उर्जावान कलाकार की ये स्थिति दुर्भाग्यजनक है |उम्मीद है शासन इस पर सकारात्मक पहल करेगी और एक राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा करेगी|

    Regards,
    Rupesh Sharma

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  8. कलाकारोँ की ओर आपने ध्यान आकृष्ट किया ।
    प्रशंसनीय ।

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  9. आभार आपका एक उर्जावान कलाकार की पीड़ा को ब्लाग में लिखकर बेहद सराहनीय काम किया है आपने...मुझे बताईयेगा सहायता कोष में मैं भी कुछ करना चाहूंगा..

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  10. संजीव भाई,
    हबीब तनवीर के ग्रुप से जुड़े ज्यादातर लोगों की यही दशा है। दीपक तिवारी की दशा भी ज्यादा ठीक नहीं है। एक बार जब मैंने फिदाबाई का साक्षात्कार किया था तब भी लाचारी सामने ही आई थी।

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  11. बड़ा गज़ब का पोस्ट है.....शुभकामनाएं..

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  12. कलाकारों के विषय में आपका यह लेख चिंतनीय है,और कलाकारों की स्थिति दयनीय है...

    इस और ध्यान आकृष्ट कराने के लिए आभार!

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  13. ई मेल से प्राप्‍त टिप्‍पणी -

    Ye pradesh ka durbhagya hai aise uchh star ke lok kalakaron ko durdin dekhna pad raha hai lekin ek baat hai ki aakhir kab tak sarkari madad ke liye baat johte rahenge sahityakaron aur lok kalakaron ko apni aarthik sthii sudharne hetu prayas karna hoga bhale hi aisa koi saamuhik prayas hi kyon na ho

    pawan upadhyay

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  14. निर्मलकर जी का पद्मश्री लौटाना वाजिब है । इसलिये कि इस दुनिया में सिर्फ सम्मन से पेट नहीं भरता । पद्मश्री मिलने से पूर्व जब उन्हे बहुमत सम्मान भिलाई मे दिया जाना था , मै विनोद मिश्र और शायर मुमताज उनके गाँव मोहला उन्हे आमंत्रित करने गये थे और अपनी आँखों से उनकी खस्ता आर्थिक हालत देख कर आये ।
    संजीव .. उनके झोपड़े मे जब हम लोग़ ज़मीन पर बैठे और उनके ढेर सारे प्रमाणपत्र और विदेशों में खिंचवाये फोटो देखे तो उनकी हलत देख कर मन भर आया । झोपड़े की दीवार जिस पर बरसो से रंग नही लगा था उस पर शशिकपूर के साथ उनका एक फोटो टंगा था ।
    घर में कोई नही बच्चे सब अलग हो गये , हमे बाहर से चाय मंगवाकर उन्होने पिलाई ।
    और आत्मीय इतने कि पूछो मत .
    सच है ... यह एक पद्मश्री देख कर ऐसा लगा था कि इस सम्मान की इज़्ज़त रह गई है वरना इसे तो कोई भी प्राप्त कर सकता है ..
    अब इस से एक वक़्त का चूल्हा भी न जले तो क्या फ़ायदा इस सम्मान से ?

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  15. लेकिन यह बताओ कि छत्तीसगढ का नाम उन्होने ऊंचा किया या नही ? और यह सरकार छत्तीसगढ़ की है या नही ? और बरसों से जब कोई कलाकार विदेसों में छत्तीसगढ़ और भारत का नाम ऊंचा कर रहा है तो यह सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है या नही? क्या कहूँ बस एक शेर याद आ रहा है...
    " जो लोग मसीहा थे हिमालय पे बस गये
    हमने तो सूली से रोज़ उतारी है ज़िन्दगी "

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  16. बेनामी20 जून, 2010 11:04

    जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
    ============

    उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

    आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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  17. .... अब क्या कहें ... ये दुर्भाग्य ही है ...
    सार्थक पोस्ट!!!

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  18. गोविन्दराम निर्मलकर शायद ठीक कर रहे हैं. आपके लेख से एक बात तो साफ़ हुई की मर्म भी गर्म कर सकता है. आज सरकार को ऐसे कलाकारों की ज़रुरत ही नहीं है जिनकी रगों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति की साँसें बहती और बसती हैं. उन्हें चाहिए तलुए चाटने वाले लोग जो मंत्री के भाई होने के नाम पर ही कलाकार बने बैठे हैं. थू.. है ऐसे लोगों पर . अब तो कलाकारों के लिए कोई आन्दोलन छेड़ना ही होगा.

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  19. सत्येन्द्र के टिवारी जी से सहम्त हूँ अगर ऐसा सहायता कोश बना है तो मेरा भी नाम 100\प्म जोड लें। लानत है ऐसी सरकारी व्यवस्था पर। और क्या कह सकते हैं धन्यवाद।

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  20. जनाब यही तो समस्या है हिन्दुस्तान की। कुछ लोगों की आदत होती है देश, समाज और व्यवस्था को कोसने की मेरी वैसी मंशा तो नहीं है लेकिन हकीकत यही है। क्या किया क्या जाए। जिनसे हम रोशन हैं जिन से हमारी पहचान है हम उन्हीं को भूलते जा रहे हैं। ऐसा किसी एक कलाकार के साथ हो तो बात अलग है सबके साथ ऐसा ही हो रहा है। इस विषय में गंभीरता से सोचने और कुछ निर्णायक करने की जरूरत है। आपने इस बात को उठाया आपको बधाई।

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  21. भाई जी आपका शुभ कामना संदेश पा कर मन प्रसन्न हुआ । धन्यवाद ।
    आप की लेखन शैली काफ़ी प्रभावोत्पादक है ।
    उज्जवल भविष्य के लिये अनंत शुभ कामनाएं ।

    -आशुतोष मिश्र

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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