4 अप्रैल - जयंती विशेष
बिलासपुर में द्वितीय जिला राजनीति परिषद का अधिवेशन सन् 1921 में हुआ जिसकी अध्यक्षता अब्दुल कादिर सिद्धीकी ने की। स्वागताध्यक्ष यदुनन्दन प्रसाद श्रीवास्तव तथा सचिव बैरिस्टर ई. राघवेंद्र राव थे। इसमें ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौहान, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान एवं पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने भाग लिया था। अधिवेशन शनिचरी पड़ाव में आए सर्कस पंडाल में हुआ था। प्रकाश व्यवस्था तब आटोलक्स, पेट्रोमेक्स तथा कोलमेन क्विक लाइट से करते थे। बिजली तब यहां थी नहीं । तेजस्वी वक्ता पं. माखन लाल चतुर्वेदी अधिवेशन को सम्बोधित कर रहे थे कि पेट्रोमेक्स बुझ गया। व्यवस्थापक उसे जलाने में जुटे थे कि उन्होंने कहा ‘जैसे यही बत्ती बुझ गई ऐसे ही अंग्रेजों की बत्ती बुझ जाएगी’ कुछ ही क्षणो में पेट्रोमेक्स जल गया तब उन्होंने कहा 'और जैसे फिर से प्रकाश फैल गया वैसे ही स्वतंत्रता का प्रकाश चतुर्दिक फैल जाएगा।' सहज रूप में कही गई मनपसंद इस बात पर कई मिनट तालियां बजती रही। जय-जय कार होने लगा। अंग्रेज इससे इतने कुढ़ गए कि उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया।
16 जून व 20 जून की पेशी दी गई। उस दिन फैसला सुनने करीब दो हजार लोग राष्ट्रीय झंडा लिए राष्ट्रीय गाने गाते और जयघोष करते श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान आदि के साथ अदालत पहुंचे। जिले भर के थानेदार और अनेक सिपाही यहां तैनात थे। पुलिस अधीक्षक मिटीएम कालिन्स शांति न रखने पर बल प्रयोग करने की धमकी दे रहे थे। श्रीयुत राघवेन्द्र राव पं. रविशंकर शुक्ल, दाउ घनश्याम सिंह गुप्त, पं. माधव राव सप्रे, पं. सुन्दरलाल शर्मा, मौलाना ताजुदीन, बैरिस्टर ज्ञानचंद वर्मा आदि उपस्थित थे। इंडिपेंडेंट, दैनिक प्रताप राजस्थान केसरी, तिलक, कर्मवीर आदि के प्रतिनिधि वहां पहुंच गए थे। 11.30 बजे मि. व्हाइट, डीआईजी द्वारा एक हिन्दुस्तानी अफसर के साथ चतुर्वेदीजी को मोटर से लाया गया। सुभद्राजी ने पंडितजी को फूलों का हार पहनाया। मि. पेजली सरकारी वकील बीमारी के कारण अनुपस्थित थे अत: पेशी 25 जून के लिए बढ़ा दी गई।
मजिस्ट्रेट श्री पारथी ने 5 जुलाई 1921 को 8 माह के कठोर कारवास की सजा सुनाई कुछ ही दिनों बाद मजिस्ट्रेट की मृत्यु हो जाने पर लोगों को लगा दैवी कार्य करने वाले को सजा देने का फल मिल गया। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने अदालत में अपना वक्तव्य अंग्रेजी में दिया था। बिलासपुर जेल से जो जानकारी मिल सकी उसके अनुसार चतुर्वेदी जी पर धारा 124/अ के तहत राजद्रोह का अभियोग लगाया गया था। नाम माखनलाल वल्द नन्दलाल, निवास स्थान थाना जबलपुर। क्रिमिनल केस नं. 39 तथा उनकी अवस्था 32 वर्ष थी। इनका कैदी नं. 1527 था। वे 1 मार्च 1922 को केंद्रीय जेल जबलपुर स्थानांतरित किए गए।
बिलासपुर जेल में ही उन्होंनें अपनी यह प्रसिद्ध कविता लिखी थी -
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूथा जाऊँ
चाह नहीं प्रेमी माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के
शव पर हे हरि डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इतराऊँ
मुझे तोड़ लेना बनमाली
उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक
उस महामानव को जिसने अगणित तरुणों को स्वतंत्रता समर में स्वयं को समर्पित करने की भव्य भावना की प्रेरणा दी। अभाव में आजीवन रहे पर उफ तक नहीं किया तथा लौह लेखनी से राष्ट्रीयता की ऋचाएं लिखी उन्हें शतश: नमन।
जमुना प्रसाद वर्मा एवं मुरलीधर मिश्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार श्यामलाल चतुर्वेदी जी द्वारा लिखे गए आलेख के अंश.
वाकई संजीव
जवाब देंहटाएंतोर ब्लॉग एखरे खातिर सजीव रथे
अतेक सुन्दर संस्मरण ला इहाँ लिखे हस
मैं कल या परसों इही कविता ला सुरता करत रेहेंव
अउ भाई जहाँ संजीवनी बूटी रैही त मुर्दा मा घलो
जान फूंका जाही. ये संस्मरण के त बाते अलग हे.
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जवाब देंहटाएंरोचक प्रसंग ।
जवाब देंहटाएंभारत के महान लाल को शत-शत् नमन् !
जवाब देंहटाएंउत्तम जानकारी एवं सुन्दर आलेख, माखनलाल चतुर्वेदी जी के कृतित्व के बारे में तो जानकारी है, व्यक्तित्व के बारे में आज आपसे मिली। आभार,
जवाब देंहटाएं''ek bharteey aatmaa'' kee yaad dilaane ke liye dhanyvaad.
जवाब देंहटाएंउन्होंने और कुछ न भी किया होता तब भी यह कविता उनका श्रेष्टतम योगदान होती !
जवाब देंहटाएंचाह नहीं मै सुरबाला के गहनों में गुथा जाऊ..................... वाह भाई जी अपने माखन लाल जी के ये पक्तिया पड़ा कर रोगते खड़े कर दिए, ऐसे थे हमारे पूर्वज , ये था उनका त्वरित ज्ञान और देश प्रेम का जश्बा
जवाब देंहटाएंइस महत्वपूर्ण ह्रदयस्पर्शी ज्ञान के लिए आप को साधुवाद
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