जिनके नाम पर बसा बिलासपुर : बिलासा दाई

बात पुरानी है । तब दोनों ओर घने जंगल थे । बीच में बहती ती अरपा नदी । नदी में पानी था भरपूर । जंगल में कहीं-कहीं गांव थे । छोटे-छोटे गांव । नदी किनारे आया एक दल । यह नाव चलाने वालों का दल था । इसके मुखिया थे रामा केंवट । रामा के साथ सात आठ लोग थे । अरपा नदी के किनारे डेरा लगा । सबने जगह को पसंद किया । नदी किनारे पलाश के पेड़ थे । आम, महुआ के पेड़ थे । कुछ दूरी पर छोटा सा मैदान था । शाम हुई । रामा ने सबको समझाया । उसके साथ उसकी बेटी थी । सुन्दर, जवान । नाम था बिलासा । बिलासा ने भात पकाना शुरू किया । सभी डेरों से धुंआ उठा । खाकर सब डेरों में सो गए ।
सबेरा हुआ । दल में हलचल हुई । रामा ने कहा आज हम यहीं रहेंगे । मछली मारेंगे । गरी जाल है हमारे पास । नाव भी है । चलो चलें अरपा माता के पास । उसी की गोद में खेलेंगे । यहीं जियेंगे यहीं मरेंगे । उससे मांगेगे जगह । जीने के लिए । वह मां है । हमें सब कुछ देगी ।
अरपा नदी बह रही थी । कल कल छल छल । साफ पानी था । मछलियों से भरी थी नदी । सबने अरपा दाई को नमन किया । पहले नदी का यश गान हुआ । फिर सबने हाथ में जल लिया । सदा साथ रहने का वचन सबने दिया । नदी तो मां थी । अब पहली नाव नदी में उतरी । छप छप की आवाज हुई । जाल चला । और धीरे-धीरे केंवट नदी के हो गए । अरपा ने सबको दुलार दिया । गांव बड़ा हुआ । दूसरे लोग भी बसने लगे । लुहार आये । बुनकर आ गए । कुछ किसान भी आ गये । रामा ने सबको बसा लिया । खेती भी होने लगी ।
बिलासा भी मछली मारती थी । नाव चलाती थी । वह शिकार भी करती थी । जंगली सूअर गांव में घुस आते । एक दिन गांव के जवान सब नदी पर गये थे । गांव में औरतें ही थी । सुअर घुर-घुर करने लगा । बिलासा ने भाले से सुअर को मार दिया । तब से उसका नाम फैलने लगा । गांव का युवक वंशी भी वीर था । वह नाव चलाने में कुशल था । खूब मछली मारता था । बिलासा की शादी वंशी से हो गई । दोनों खूब खुश थे । अरपा में वंशी के साथ बिलासा भी जाती । एक दिन वंशी शिकार के लिए गया था । शाम का समय था । बिलासा नदी से लौट रही थी । एक सिपाही वहां से गुजर रहा था । उसकी नीयत खराब हो गई । उसने बिलासा का हाथ पकड़ लिया । बिलासा लड़ गई सिपाही से । शोर सुनकर लोग आ गये । सिपाही से रामा ने कहा भाग जाओ । राजा अच्छा है । सिपाही खराब है । इसी से बदनामी होती है । राजा कल्याणसाय यह सब पता चला । उसने सिपाही को दंड दिया । राजा का मान था । कल्याणसाय का मान दिल्ली में भी था । तब जहांगीर दिल्ली का बादशाह था ।
कल्याणसाय की राजधानी रतनपुर में थी । वह शिकार खेलने जंगल में जाता था । उसके दरबार में गोपाल मल्ल था । वह ताकतवर था । राजा उसे साथ में रखता था । एक बार राजा शिकार के लिए निकला । हांका लगा । राजा घोड़े पर बैठकर सरपट दौड़ा । तब जंगल में जानवर बहुत थे । राजा शेर का शिकार करने निकला था । राजा था तो जंगल के राजा से ही भिड़ता । छोटे-मोटे जानवर भाग रहे थे । राजा भी भाग रहा था । घोड़े पर सवार । हाथ में भाला । कंधे पर धनुष । पीठ पर तरकश । भागते भागते राजा दूर निकल गया । जंगल बड़ा था । घना बहुत था । राजा भटक गया । साथ के सिपाही पिछड़ गये । राजा अकेला हो गया । शाम घिर आई । राजा को प्यास लगी । उसनेचारों ओर देखा । पलाश वन फैला था । लाल लाल पलाश के फूल दहक रहे थे । फागुन का महीना था । राजा कुछ पल के लिए प्यास भुल गया । लेकिन कब तक प्यासा रहता । उसे लगा कि करीब ही कोई नदी है । चिड़ियों का झुंड लौट रहा था । राजा आगे बढ़ा । सहसा घुर घुर की आवाज हुई । राजा संभल न सका । जंगली सूअर ने राजा को घायल कर दिया । घोड़ा भाग गया । राजा पड़ा था जंगल में । कराह सुनकर वंशी वहां पहुंचा । वह जंगल से लौट रहा था । वंशी राजा को गांव ले गया । बिलासा ने राजा की खूब सेवा की । राजा ठीक हो गया । खबरची दौड़ पड़े । राजधानी से सैनिक आये । मंत्री पहुँचे । बिलासा की सेवा से सब खुश थे । राजा ने कहा एक और पालकी लाओ । राजा अपनी सवारी में बैठकर रतनपुर गया । साथ में वंशी बिलासा भी गये । वे पालकी में सवार होकर गए । बिलासा की चर्चा चारों ओर फैल गई । उसका रूप भी वैसा ही था । वंशी भी कम नहीं था । दोनों रतनपुर गए । वहां तीर चलाकर बिलासा ने दिखाया । सब चकित रह गए । वंशी ने भाले का करतब दिखाया ।
राजा ने दरबार में दोनों को मान दिया । बिलासा को जागीर मिल गई । बिलासा खाली हाथ गई थी । लौटी जागीर लेकर । गांव के गांव उमड़ परे । जागीर मिली तो मान बढ़ गया । गांव बड़ा हो गया । गांव आपस में जुड़ गए । एक छोटा सा नगर लगने लगा गांव । राजा ने कहा यह नया नगर है । उसे बिलासा के नाम से जोड़ो । सदा नाम चलेगा । नए नगर को नाम मिला बिलासपुर । तब से इसका यही नाम है । अब यह बड़ा शहर है । जागीर पाकर बिलासा ने नगर को सजाया । वह एक टुकड़ी की सेनापति बन गई । वंशी शहर का मुखिया बन गया । बिलासा रतनपुर आती जाती थी । राजा ने दरबार में जगह दे दी ।
अचानक राजा का बुलावा आया । बुलावा दिल्ली से आया था । कोई मेला लगा था । सबको जाना था । करतब दिखाना था । कल्याणसाय की मां ने रोका । मां ने कहा बेटा मत जा । वहां कान चीर देते हैं । मुंदरी पहना देते हैं । मुगल भेष धराते हैं । नमाज पढ़ाते हैं बेटा । राजा ने कहा मां ऐसा मत कहो । जहांगीर का न्यौता है । वह अच्छा बादशाह है । खेल का मेला है । करतब दिखाना है । जाना होगा । राजा ने गोपाल मल्ल को साथ लिया । बिलासा साथ गई । साथ में गए भैरव दुबे । भैरव दुबे हथेली में सुपारी फोड़ते थे । कांख में दाबकर नारियल चटका देते थे । दिल्ली में सबने देखा । दांतों तले उंगली दबाकर लोगों ने देखा । बिलासा की तलवार चमक उठी । भैरव दुबे की ताकत देखते ही बनी । गोपाल मल्ल का डंका बज गया । छत्तीसगढ़ तब कोसल कहलाता था ।
कोसली राजा का नाम हो गया । जहांगीर खुश हो गया । इनाम देकर भेजा राजा को बादशाह ने । राजा आया रतनपुर । बिलासा को राजा ने तलवार भेंट की । वीर नारी की चर्चा घर घर होने लगी । गीतों में गाथा पहुँच गई । आज भी यह गीत गाते हैं ।
मरद बरोबर लगय बिलासा, लागय देवी के अवतार
बघवा असन रेंगना जेखर, सनन सनन चलय तलवार ।
बिलासा का नाम अमर है । उसके नाम पर बसे बिलासपुर में ही आज हाईकोर्ट है । यहां १९३३ में महात्मा गांधी आये । वे बिलासा के नगर में पधारे । जहां वे आये वह अब गांधी चौरा कहलाता है । वीर नारी का नाम अमर हो गया । सब उन्हें माता बिलासा कहते हैं । अरपा नदी के किनारे माता बिलासा की मूर्ति लगी है । माता बिलासा का यश फैला है चारों ओर । सब उसकी कथा सुनते हैं । इससे बल मिलता है ।
(नवसाक्षरों के लिए डॉ. परदेशीराम वर्मा जी द्वारा लिखित आलेख)

20 टिप्‍पणियां:

  1. संजीव, बहुत बढ़िया चित्रण हे एमा
    बिलासपुर नाव पड़े के. ये इतिहास ला
    हम जानबे नई करत रेहेन. पढ़े च कहाँ हन जी.
    मैं न जब भी तोर आरंभ मा पोस्ट डले हे कहिके
    देख्थों त पढ़े बिन नई रही सकौं. बहुत सुन्दर

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  2. बहुत अच्छी जानकारी दी...

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  3. Bane sugghar jankari dey sanjiv bhai, bilasa dai ke shaurya ka pranam, bharat me nari man ghalo purushochit karya karat rihise.
    aabhar

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  4. बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद

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  5. ड़ा परदेसी राम जी और आपका आभार संजू इस जानकारी को सबसे बांतने का।

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  6. बहुत अच्छी जानकारी ,आभार,धन्यवाद

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  7. मित्र आज कोई टिप्पणी नहीं !

    ( संभव है कुछ दिन आपको दिखाई ना दूं ...कोई टिप्पणी भी ना कर सकूं ! मुझे जहां काम हैं शायद वहां नेटवर्क नहीं होगा ! कोशिश करूंगा कि इस दौरान किसी छुट्टी के दिन आपसे सलाम दुआ कर पाऊं ! आपके नियमित पाठक बतौर मेरी गुमशुदगी को अन्यथा मत लीजियेगा )

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  8. नवसाक्षर साहित्य लेखन कार्यशाला मेमैने भी वर्मा जी के साथ नवसाक्षरो हेतु साहित्य लिखा है । यह कथा वर्म जी के मुख से ही सुनी थी । सबसे अच्छी बात यह कि हमे गर्व होन चाहिये हमारे प्रदेश मे एक शहर एक साधारँण महिला के नाम से है।

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  9. बिलासपुर का नामकरण कैसे हुआ आज पता चला और आपने इतनी अच्छी जानकारी दी...कि पढ़ती चली गई...

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  10. * बढ़िया पोस्ट। उम्दा जानकारी!
    * एक स्त्री की ताकत और जज्बे का बयान करता आलेख।

    ....अरपा कल - कल छल - छल बह रही थी......

    और अब ?

    * अरपा का अब / इस समय क्या हाल है! बिलासपुर की इस सूखी नदी को देखना बड़ा अजीब - सा लगता है संजीव जी।

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  11. बहुत ही रोचक जानकारी दी आपने । बिलासपुर में वर्षभर रहना हुआ है, अच्छा लगा कि वीरों की नगरी में रह आये हैं।

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  12. bahut hi achchhi jankari mili padkar bahut badiya laga,chattisgarh ke aour sahro ki jankari bhi dijiye ho sake to durg ki bhi

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  13. निसंदेह गौरव की बात है कि शहर का नाम एक ऐसी महिला के नाम पर है जिसने अपना स्वयं का व्यक्तित्व बनाया और लोगों को प्रेरित किया.उनके शौर्य को नमन!

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  14. बहुत बहुत धन्यवाद आपको बिलसा माई की कहानी आज मुझको पड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है

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  15. बहुत सुंदर जानकारी संजीव भैया।

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  16. संकलनकर्ता का सहृदय आभार.........

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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