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कांपती है जिन्दगी
बिखरती है सासें
और ... बिरजू की रोटी
पिस जाती है धूल मे धूल.
नाक में गिर आये एनक को
फिर से अपने जगह में स्थापित करने के लिए मैं
अपनी उंगली बढाता हूं.
कंपनी का बुलडोजर
फिर मंगत की रोटी की ओर झपटता है.
रूकती है एक कंटेसा मुस्कुराता हूं मैं
अपनी टोपी उतार
सलाम करता हूं उसे, वह ...
मशीनी शक्ति से समतल हुए टूटती सासों को देखता है
उसे उपलब्धियॉं नजर आती है
बहुमंजिला नायाब इमारत के रूप में
वह आयातित हम पर हावी भाषा में
मुझे बधाई देता है
और कंटेसा सूखे जुबान वालों की
भीड को चीरती हुई निकल जाती है .
मैं धूल से भर आये अपने बालों को झाडता हूं ...
मनहूस धूल.
आंखों में उड/पड आये कंकड को
रूमाल के कोने से
निकालने का भरसक प्रयत्नं करते हुए
फिर बुलडोजर चालक को इतनी सहजता से आदेश देता हूं
जैसे मैनें बुधारो के बढे पेट और
संतू के कटे हांथ को देखा ही नहीं है
जैसे मैं उस कंटेसा वाले का भाई हूँ/बेटा हूं
कब तक ? कब तक होता रहेगा यह प्रयोग .. ?
मेरे शक्ति का/मेरे साहस का
मेरे मानस का .. ?
कब तक सोता रहेगा मेरा मन
इन झूठे मायावी अइयासी के आवरणों को ओढ
आखिर कब तक जो कभी जागता था
भगत सुभाष आजाद बन कर .. ?
संजीव तिवारी
काश!! फिर एक बार जागता!
जवाब देंहटाएंजागेगा जरूर!
जवाब देंहटाएंदेर है अधेर नही , महाशिवरात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंजागेगा........ ज़रूर जागेगा ....... महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आपको बधाई.... व शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंकब तक सोता रहेगा मेरा मन
जवाब देंहटाएंइन झूठे मायावी अइयासी के आवरणों को ओढ
.... बहुत खूब, प्रभावशाली रचना!!!
संजीव भाई,
जवाब देंहटाएंकविता अन्दर कहीं गहरे उतर गई , जो आपने कहा वह मुझ तक पहुंचा ,बड़ी बात है !
महाशिवरात्रि के पावन पर्व की शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना के लिए बधाई!
शंकर जी की आई याद,
बम भोले के गूँजे नाद,
बोलो हर-हर, बम-बम..!
बोलो हर-हर, बम-बम..!!
aapne jaga hi diya hai :)
जवाब देंहटाएंसोए भाग जगाती अच्छी कविता के लिए बधाई.
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