पिछले दिनों छत्तीसगढ के एक आईएएस के घर आयकर विभाग को मिली अनुपातहीन सम्पत्ति और भोपाल के आईएएस दम्पत्ति के घर के कोने कोने से मिले करोडो के नोटों को देखकर, सुनकर, पढकर मन कुछ अशांत रहा है इसी बीच आज अनिल पुसदकर जी के पोस्ट नें मन में एक जोरदार भूचाल उठा दिया है बडे भाई अनिल पुसदकर जी नें अपने पोस्ट में एक लडकी का उल्लेख किया है जिसके पिता की सडक दुर्घटना में चार दिन पहले ही मृत्यु हो चुकी है और उसके भाई का दोनों गुरदा खराब है, वह लडकी सुबह लोगों के लिये टिफिन बनाकर अपनी पढाई कर रही है. बीमार भाई का इलाज पिता के निजी संस्थान में हाड-तोड नौकरी के बूते हो रही थी और जब पिता की मृत्यु दुर्घटना से हुई तब भी वे अपने बेटे के लिए दवाई लेने जा रहे थे. .................. अनिल भाई नें अपने पोस्ट पर अनेकों अनसुलझे सवाल प्रस्तुत किये हैं.
धन का एकतरफा प्रवाह बार बार हमें बेचैन करता है एक तरफ ऐसे आईएएस है जिनके पास नोटों का अंबार है, बिस्तर मे नोट, किचन के डिब्बो मे नोट, कचरा पेटी मे नोट, नोट ही नोट. दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जो दाने दाने को मोहताज हैं. यै ईश्वर तेरा कैसा न्याय है जिसके पास धन है उसे और .. और.. और धनिक बना रहा है. मेहनत करने वाले जी तोड मेहनत करने के बाद भी किस्मत के अस्तित्व को बरबस स्वीकार रहे हैं. मन में उमडते इन विचारों के बीच मुझे मेरी एक पुरानी कविता याद हो आई, उसे आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं. शायद आपको पसंद आये और मेरे मन को सुकून -
पूरे पांच साल बाद
वो भव्य माल के
उद्धाटन समारोह में आये
मुस्काये
फिर मुझे देख
चकराये
अरे तुम अभी तक !
मैंने दिग्विजय की तरह
स्वीकृति मुस्कान बिखेरी
उसने अपने बढते औकाती ग्राफ का
वाकया सुनाया
अदद पांच साल में मेरा पेट
तीस से सौ हो गया
चार बार इनकम टैक्स का छापा पडा है
अभी चांवल घोटले में पैरोल से हूं
सीबीआई की भी नजरों में हूं
अब आगे भगवान जाने क्या होता है
उसने बडी मासूमी से
प्रायमरी वाली दोस्ती की सहजता से कहा
देश, प्रदेश आदि के बाद
बात इमारत व मुझ तक पहुंची
उसने भव्य माल को निहारते हुए कहा
’पच्चीस करोड में कितना कमाये
क्या बनाये, कितना दबाये‘
'एक अदद बीबी एक बच्चा
बीबी के घर, गहनों की लिप्सा
मध्यम वर्गीय भूख,
बच्चे के महगे खिलौनों की मांग
के बीच भी
औकात से कम वेतन में
हम कर्मठता के साथ मालिक का
यह भवन बनाये
मजे से जी रहे हैं मित्र
आज नहीं तो कल
हमारे भी दिन आबाद होंगें
इसी संतोष का स्वप्न सजाये'
मैंने अपने पिचके गाल
धंसे आंखों वाले मुख मंडल में
चमक बरकरार रखते हुए कहा .
संजीव तिवारी
इन लोगों के लिये कुछ कहते नहीं बन रहा, इतनी नफ़रत बड़ती जा रही है, बेचारे लोगों को बेचारगी से कोई बचा नहीं सकता है।
जवाब देंहटाएंहमें बाजार में अपने सूत्रों से जो भी खबरें मालूम होती हैं अब उन पर सहज ही विश्वास हो जाता है कि फ़लां आई.ए.एस. ने इस डील में इतने अंदर किये और ढ़िकाने ने इतने...। पर क्या करें सिस्टम है... और इसे तोड़ने के लिये अनिल कपूर "काला बाजार" फ़ेम जैसा कोई असल किरदार चाहिये जो यह सब तोड़ सके। असल जिंदगी में कोई हीरो नहीं है सब जीरो हैं।
मार्मिक रचना. यह सब देखकर भगवान् के न्याय और मानव के ज़िंदा होने पर शक होना स्वाभाविक ही है.
जवाब देंहटाएंमध्यवर्गीय हठधर्मी है कि तंगी में भी खुश रह लेता है. दूसरी तरफ, पैसा तो पर उसे रखने की जगह नहीं..
जवाब देंहटाएंक्या कहें...बस्स!! सटीक रचना..सब कुछ कहती!
जवाब देंहटाएंआज नहीं तो कल
जवाब देंहटाएंहमारे भी दिन आबाद होंगें
उम्मीद कायम है
बी एस पाबला
रस्तोगी जी "काला बाजार" टाइप का कैरेक्टर नहीं चलेगा, "हिन्दुस्तानी" (कमल हासन) वाला कैरेक्टर चाहिये होगा अब तो। राठौर पर चाकू चलाने वाला उत्सव का तरीका अपनाये बिना नेताओं-अफ़सरों की अकल ठिकाने नहीं आने वाली…
जवाब देंहटाएंपुसदकर जी के ब्लाग पर टिप्पणी की थी उसे ही फेर बदलकर कह रहा हूँ की मैं चार हज़ार साल तक काम करूं तो भी उतना नहीं कमा सकूंगा जितना उस एक अकेले के पास है हालांकि मेरी नौकरी अच्छी खासी है , फिर वे ग्रामीण जो ७० /= या ८०/= रुपये रोजी पर खटते हैं उनका क्या ? ...एक बात और कई बार छापा मारने वालों की संपत्ति भी सुनी देखी है हमने !
जवाब देंहटाएंतो कवि बनते जा रहे हो .. मै भी सोच रहा हूँ एक कवि प्रशिक्षण केन्द्र खोल ही दूँ जहाँ आई ए एस को भी लिख्नना -पढना सिखाऊँ ।
जवाब देंहटाएं... अब भ्रष्टाचारियों को भी ईनाम दिया जाना चाहिये क्योंकि वे इतने बडे-बडे कारनामे जो कर रहे हैं!!!!
जवाब देंहटाएंटॉल्स्टॉय की कहानी याद आती है - एक आदमी को कितनी जमीन चाहिये?! दो गज!
जवाब देंहटाएंare filhal ye sab chhoro bhaiya, badhai kabool karo
जवाब देंहटाएं;)
मार्मिक रचना,सटीक.......,
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