छत्तीसगढ के रायपुर में प्रदेश के हिन्दी ब्लॉगरों का परिचय मिलन की चित्रमय खबरें आप पिछले दिनों से छत्तीसगढ के ब्लॉगरों के पोस्टों में देख रहे हैं. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया भी टिप्पणियों के माध्यम से वहां दर्शित हो रही है और हिन्दी ब्लागिंग के विकास के पदचाप को आप हम महसूस कर रहे है. इस सम्बन्ध मे संजीत त्रिपाठी जी के पोस्ट फिर मिलने की आशा के साथ छत्तीसगढ़ ब्लॉगर बैठक संपन्न, एक रपट पर उठाये गये कुछ मुद्दो पर मैं इस पोस्ट के माध्यम से अपने निजी विचार रखना चाहता हूं.
मेरे ब्लॉग सफर मे संपूर्ण आभासी दुनिया के भूगोल की ओर पीछे देखुं तो तब के पांच सौ के आंकडे के अंदर के हिन्दी ब्लाग जगत नें छत्तीसगढ के हर आने वाले ब्लागों का तहेदिल से स्वागत किया और प्रोत्साहन भी दिया. तब नारद एग्रीगेटर हुआ करता था और अनुप शुक्ल जी चिट़ठाचर्चा किया करते थे. हम तब से आजतक इस चिट़ठाचर्चा से नियमित पाठक नहीं रहे. ना ही हमने इसे कोई तूल दिया, हम तो ब्लागजगत में अनूप जी जैसे ही बातें लिये आये थे कि हम भी जबरै लिखबे यार ......... सो लिखते गये.
साथी ब्लॉगर उन दिनों नेटवर्किंग व गुटों की वैसी ही बातें करते थे जो आज मुझे ब्लाग जगत में सुनने देखने और पढने को मिलता है. मगर तब गुट सीनियर-जूनियर, मानवाधिकारवादी और गैरमानवाधिकारवादियों की होती थी. मेरे द्वारा नारद एग्रिगेटर के सम्बन्ध लिखे एक पोस्ट मे उन दिनो कुछ असहमति बन गयी थी और कुछ दिनो के लिये मेरे ब्लॉग को फ्लैग कर दिया गया था तब लगा था कि इन सीनियरो से दूर ही रहो तो ज्यादा अच्छा. उन दिनों मुझे नहीं पता कि किसी चिट़ठाचर्चा में मेरे ब्लाग का उल्लेख हुआ भी या नहीं. यदि हुआ भी है तो मुझे ध्यान नहीं. उन दिनो मै जब भी चिट़ठाचर्चा खोलता था उसमे कुछ विशेष लोगो के ब्लाग ही नजर आते थे. लोग सुलग सुलग जाते थे और दबी जुबान मे कहते थे कि यह तो गुटबाजी है. उन दिनो कुशवाहा नामक किसी ब्लागर भाई नें काफी के लब्बोलुआब के साथ अपने पसंद के लोगों के ब्लाग को उंचाईयां देने की भरसक कोशिस जब आरंभ की तब भी लोगो ने कहा कि सब गुटबाजी में मस्त हैं.
साथी ब्लॉगर उन दिनों नेटवर्किंग व गुटों की वैसी ही बातें करते थे जो आज मुझे ब्लाग जगत में सुनने देखने और पढने को मिलता है. मगर तब गुट सीनियर-जूनियर, मानवाधिकारवादी और गैरमानवाधिकारवादियों की होती थी. मेरे द्वारा नारद एग्रिगेटर के सम्बन्ध लिखे एक पोस्ट मे उन दिनो कुछ असहमति बन गयी थी और कुछ दिनो के लिये मेरे ब्लॉग को फ्लैग कर दिया गया था तब लगा था कि इन सीनियरो से दूर ही रहो तो ज्यादा अच्छा. उन दिनों मुझे नहीं पता कि किसी चिट़ठाचर्चा में मेरे ब्लाग का उल्लेख हुआ भी या नहीं. यदि हुआ भी है तो मुझे ध्यान नहीं. उन दिनो मै जब भी चिट़ठाचर्चा खोलता था उसमे कुछ विशेष लोगो के ब्लाग ही नजर आते थे. लोग सुलग सुलग जाते थे और दबी जुबान मे कहते थे कि यह तो गुटबाजी है. उन दिनो कुशवाहा नामक किसी ब्लागर भाई नें काफी के लब्बोलुआब के साथ अपने पसंद के लोगों के ब्लाग को उंचाईयां देने की भरसक कोशिस जब आरंभ की तब भी लोगो ने कहा कि सब गुटबाजी में मस्त हैं.
लोगो ने मठाधीशी को उखाड फेंकने के लिये धीरे धीरे अपने अपने गुट बना लिये है और अब सभी गुट वाले अपने अपने गुट के ब्लॉग पोस्टों में कमेंट करने के लिए इस कदर बेताब नजर आते हैं कि यदि वे टिप्पणी नहीं करेंगें तो बहुत बडी आफत आ जायेगी जैसे टिप्पणी करना मतदान हो गया. गुटो का यह खेल किसी से छुपा नहीं है, आप स्वयं देखें ये गुट वाले अपने गुट के किसी भी ब्लागर के किसी भी हद तक के छिछोरे हरकतों को भी सांस्कारिक व सांवैधानिक सिद्ध करने पर तुले पिले नजर आते हैं. ऐसा प्रदर्शित करते हैं कि उनके गुट के सभी पोस्ट विश्व के नायाब पोस्टों में से एक है. पोस्ट पर पोस्ट लिखना विवादों को पैदा करने के लिये चैट व मोबाईल से अपने मनमाफिक टिप्पणियों की बाड पैदा करना ऐसे भावी मठाधीशो के लक्षण हैं.
ऐसी स्थिति में हमे तब के मठाधीश या अभी के नवोदित मठाधीशो से कुछ भी नहीं मिलने वाला ना ही हमें कोई फायदा होने वाला क्योंकि आज जिस तरह से खेमेबाजी और बौद्धिक एकजुटता कुछ लोग दिखा रहे हैं वो आगामी कल के मठाधीश होगें. और ऐसे मठाधीशो से भगवान बचाये. ये सिर्फ उन्हीं का साथ देते हैं जो या तो इनके पिछलग्गू हों. हम इनमें से कोई भी नहीं है इसलिये हमें ये कुछ भी फायदा पहुचाने वाले नहीं है उल्टा इनके ग्रुप के किसी ब्लागर को प्रतिटिप्पणी यदि हमने कर दी तो वे सभी आपको टिप्पणियों व पोस्टो से मानसिक यंत्रणा तो दे ही सकते हैं इसलिये हमें अपने भौगोलिक सीमा पर ज्यादा विश्वास है हम भविष्य को नहीं जानते हैं किन्तु हमने देखा है कि सत्ता जिसके पास भी आई है उसने अपनी मनमानी की है और उस ब्यवस्था को ढहाने के लिए पुनः कोई संगठित समूह आया है, यह तो समय चक्र है.
रही बात चिट़ठाचर्चा डाट काम एवं चिट़ठाचर्चा डाट ब्लॉगस्पाट डाट काम के संचालन के संबंध में तो मुझे नहीं लगता कि कोई नैतिक शास्त्रीयता है कि एक नाम के दो ब्लॉग या वेब पोर्टल नहीं हो सकते. मैं यहां संजीत त्रिपाठी से सहमत नहीं हूं चिट़ठाचर्चा कोई हिन्दी साहित्य की ऐतिहासिक पत्रिका सरस्वती नहीं है कि इसके नाम पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार हो. वर्तमान में पच्चीसों चर्चायें चल रही है जो व्यक्तिगत रूप से मुझे निरर्थक लगती है हो सकता है मेरे मन में यह धारणा इसलिये बन गई हो क्योंकि मुझे कभी भी इन चर्चाओं में महत्व नहीं दिया गया है. आप यह भी कह सकते हैं कि मैं इन चर्चाकारों से दुर्भावना रखता हूं किन्तु वर्तमान में तो इतने सारे सभी चर्चाकारों के प्रति दुर्भावना हो ऐसी बात नहीं हो सकती. हां मुझे लगता है कि अपने चेलो के कूडे पोस्टों की चर्चा करते हुए इन चर्चाओं में अच्छे पोस्ट भी एक जगह पर नजर आ जाती है यही एक फायदा इसमें है. इससे अतिरिक्त पाठक व प्रसंशक मिल जाते हैं और कुछ नही ना आलोचना ना ही समालोचना. किन्तु हिन्दी ब्लाग के विकास के लिये इसकी आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता. मेरी व्यक्तिगत पसंदगी नापसंदगी मायने नहीं रखती.
तो अनूप जी के चिट्ठाचर्चा सहित सभी चर्चा के ठिकानें अपनी चर्चा निरंतर रखें और दिखा दे वक्त को कि आप सब अपने अपने चर्चा को सदियों तक निरंतर रखने में सक्षम हैं और छत्तीसगढ में लिये गए निर्णय व परिकल्पना के अनुसार चिट़ठाचर्चा डाट काम में भी चर्चा अनवरत हो. चर्चाकार कहां से आयेंगें इस बात की समस्या वर्तमान में अभी नहीं है क्योंकि ललित शर्मा जी वर्तमान में सक्रिय सभी चर्चा ब्लागों में सफलतापूर्वक चर्चा कर ही रहे हैं और वे इन सभी ब्लागों में चर्चा करते हुए भी इस पोर्टल में भी चर्चा करने में सक्षम होंगें. और जब कोई समस्या होगी तब का तब देखा जायेगा. मेरे ब्लॉगरों मित्रो आप सब रायपुर के मिलन की खुशियो को जीवंत रखे, वादो विवादो से दूर अपने आगामी पोस्टो मे क्या प्रकाशित करना है इसकी तैयारी के साथ.
संजीव तिवारी
तो अनूप जी के चिट्ठाचर्चा सहित सभी चर्चा के ठिकानें अपनी चर्चा निरंतर रखें और दिखा दे वक्त को कि आप सब अपने अपने चर्चा को सदियों तक निरंतर रखने में सक्षम हैं और छत्तीसगढ में लिये गए निर्णय व परिकल्पना के अनुसार चिट़ठाचर्चा डाट काम में भी चर्चा अनवरत हो. चर्चाकार कहां से आयेंगें इस बात की समस्या वर्तमान में अभी नहीं है क्योंकि ललित शर्मा जी वर्तमान में सक्रिय सभी चर्चा ब्लागों में सफलतापूर्वक चर्चा कर ही रहे हैं और वे इन सभी ब्लागों में चर्चा करते हुए भी इस पोर्टल में भी चर्चा करने में सक्षम होंगें. और जब कोई समस्या होगी तब का तब देखा जायेगा. मेरे ब्लॉगरों मित्रो आप सब रायपुर के मिलन की खुशियो को जीवंत रखे, वादो विवादो से दूर अपने आगामी पोस्टो मे क्या प्रकाशित करना है इसकी तैयारी के साथ.
संजीव तिवारी
आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संजीव भाई
जवाब देंहटाएंवही बात आज तक ख़त्म नहीं हुई है लोगों के मन से
"अपनी रेखा बड़ी करने के बजाय दूसरों की रेखा छोटी करने वाली"
बहुत अच्छी प्रतिक्रिया....... स्वागत योग्य
लगता है कि हम सभी हिन्दी वाले पक्के राजनीतिबाज़ होते हैं :) हमें भी तब तक मज़ा नहीं आता जब तक हमारे इर्द-गिर्द भी दो-चार लोग न हों, ठीक राजनीतिज्ञों की ही तरह...
जवाब देंहटाएंभाई तिवारी जी
जवाब देंहटाएंमै तो खैर ब्लॉग जगत के बारे में इतना नहीं जानता हूँ जितना आप जानते हैं . आपके विचार पढ़ने मिले बहुत अच्छे लगे और काफी हद तक आपके विचारो से सहमत हूँ . गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना ...
बहुत बढ़िया रिपोर्टिंग.....
जवाब देंहटाएंआको गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं,,,,,
आपकी स्पष्टवादिता अच्छी लगी !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रपट!
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
नया वर्ष स्वागत करता है , पहन नया परिधान ।
सारे जग से न्यारा अपना , है गणतंत्र महान ॥
बेहद साहसिक अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई
जवाब देंहटाएंसंजीव जी आपसे मुलाक़ात होते होते रह गयी :)
जवाब देंहटाएंलेकिन इस पोस्ट और उसके लिंक को देखकर हिन्दी ब्लोगजगत के स्वर्णिम इतिहास की कुछ झलक मिल गयी
बेहद संतुलित।
जवाब देंहटाएंअपनी जगह सही।
संजीव जी,
जवाब देंहटाएंहमें नहीं लगता है कि इससे ज्यादा अच्छी कोई पोस्ट हो सकती है। आपने इतनी अच्छी तरह से लिखा है कि हम तो लाजवाब हो गए हैं। इतनी अच्छी पोस्ट के लिए बधाई
बहुत सुन्दर प्रस्तुति....आप को गणतन्त्र दिवस की शुभकामनायें.....
जवाब देंहटाएंपढ़कर अच्छा लगा संजीव, पता नहीं ऐसा लगा कि तुम कुछ और भी कहना चाहते हो मगर रुक गये.
जवाब देंहटाएंमैं ब्लाग जगत में बहुत नया हूं और यह सब तुम्ही ने मुझे सिखाया है. ब्लाग की दुनिया में रोज ढेरों पोस्ट आती हैं, और लंबे समय तक साहित्य, दर्शन और इतिहास पढने का मेरा अपना तर्जूबा है इस कारण अच्छे और अधकचरा की समझ भी है. मैने देखा ब्लागजगत में कुछ भी अधकचरा छपने पर भी तारीफ भरी टिप्पणीयां की जाती हैं और कुछ बहुत उम्दा पोस्टें जो सचमुच तारीफ की हकदार होती हैं खाली रहती हैं. एक घटिया पोस्ट पर 30-40 टिप्पणी चिपकते ही लिखने वाला अभीभूत हो जाता है और अगली पोस्ट... गुट्बाजी ब्लागों का स्तर गिरा रही हैं.
मैनें देखा यहां स्वस्थ आलोचना तो होती ही नहीं, खराब लिखने वाले की पीठ थपथपाना उसे और खराब लिखने को प्रोत्साहित करना ही तो है.
तुम्हारी यह पोस्ट बहुत सारे इशारे करती है. लोग समझ पायें तो बहुत अच्छा और नहीं तो तुम्हारी अगली पोस्ट शायद और ज्यादा...
इसको कहते हैं वरि्ष्ठता, पोस्ट मे सागर जैसी गहराई और छत्तीसगढ के सम्मान की रक्षा के प्रति आपका दृढ निश्चय झलक रहा है। आप इसी तरह से 36गढ के ब्लागरों का हौसला बढाते रहें तो अवश्य ही भविष्य मे ब्लाग जगत को एक नई दि्शा मिलेगी तथा 36 गढ के ब्लागर सक्षम हैं। बढते चलिए,
जवाब देंहटाएंअग्रस्त चतुरो वेदा: पृष्ठत: सशरं धनु।
इदं ब्राहमिदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ॥
आपके जज्बे को मेरा बारम्बार प्रणाम है।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
इसे कहते हैं खरी खरी
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख ,हिंदी में गट बजी के कारण ही हो रहा हिंदी का बंटाधार ,और फेर छत्तीसगर्िह मन में भी एखर बहुत हवे मनभेद ले माटी भेद तक के विचार ,
हटाएंसोज्झे सरल निष्कपट ब्लॉग , ,जय जोहर ,जय हो छत्तीसगर्िह
संजीव भाई सिर्फ़ दो शब्द ..........निर्भीक और निष्पक्ष ....सब कह डाला
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
पहले तो मीट के लिए सबों को बधाई। एक ब्लॉगर्स मीट की सफलता सिर्फ इस बात को लेकर नहीं है कि उसमें कितने ब्लॉगर शामिल हुए बल्कि इस बात में भी है कि उस मीट के जरिए कितने नए लोग जुड़ पाए। जो आम ऑडिएंस की हैसियत से आए और ब्लॉगिंग करने का जज्बा लेकर वापस जा रहे हैं। आपने संख्या बताकर इसके महत्व को समझा है,शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंअब दूसरी बात कि छत्तीसगढ़ में जो कार्यकारिणी बन रही है वो चिठ्ठाचर्चा वाले मामले पर विचार बनेगी। मुझे ये बात समझ में ही नहीं आ रही है। क्या ये मसला छत्तीसगढ़ तक सीमित है या सिर्फ इसलिए कि आपलोगों ने एक कार्यकारिणी बना लिया है तो इस नाते मसले का निबटारा कर लेगें या फिर इस लिए कि पाबलाजी सहित बाकी के लोग छत्तीसगढ़ के हैं। अगर वर्चुअल स्पेस के मामले को इस तरह फीजिकल प्रजेंस के तहते निबटाने की आप कोशिश कर रहे हैं तो माफ कीजिएगा कि आपलोग बहुत ही खतरनाक दिशा में कदम रख रहे हैं। ब्लॉगिंग की दुनिया में बहुत ही गलत रिवायत को बढ़ावा दे रहे हैं। ये पूरी बहस वर्चुअल स्पेस की बहस को लेकर है। इसे फिजीकल प्रजेंस के तहत जजमेंट देने के बजाय वर्चुअल स्पेस पर ही इस मामले में लोगों से राय ली जानी चाहिए।
आप लोग अभी तक इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि जब हम सारी बहसें,कवायदें वर्चुअल स्पेस में आकर कर रहे हैं तो उससे कूद-कूदकर विजिवल जोन में क्यों आ जा रहे हैं। मेरी अपनी समझ है कि जैसे-जैसे हम आजाद माध्यम को सांस्थानिक रुप देने जाएंगे वैसे-वैसे इसमें जड़ता आती चली जाएगी। उपरी तौर पर हमें लगेगा कि हम संगठित हो रहे हैं,हमें इसकी ताकत का एहसास भी होगा लेकिन आगे जाकर इसके भीतर सरकारी या कार्यालयी सिस्टम की तरह ही ब्यूरोक्रेसी पैदा होगी।
आप सबसे व्यक्तिगत अपील है कि हमलोग बहुत ही शुरुआती दौर में हैं। इस तरह के मसले को पंचायती औऱ कानूनी लफड़ों में न डालकर फीलिग्स के स्तर पर समझने की कोशिश करें और अपना फैसला उसी के हिसाब से लें। एक इंसान जिसने ऑफिस और गृहस्थी की हील-हुज्जतों के बीच के समय को चुराकर कुछ खड़ा किया,लोगों को जोड़ा,भावनात्मक स्तर पर उससे जुड़ता चला गया।आप आज उस पर पंचायती करने लग गए हैं। इस तरह की जबरिया संस्कृति आनेवाले ब्लॉगरों को किस तरफ ले जाएगी,इसका आपको अंदाजा होना चाहिए। जब इस नाम से डोमेन लिया जा रहा था तो क्या पता नहीं था कि इस नाम से ऑलरेडी पहले कोई बंदा काम कर रहा है। फिर उसमें टांग फसाने की जरुरत क्यों पड़ गयी? इतनी समझदारी लेकर भी काम नहीं किया जा सकता क्या? मैं तो मानता हूं कि हम चाहे या न चाहें,वर्चुअल स्पेस में हमें अपना दिल हर हाल में बड़ा करके काम करना होगा। तभी इसे हम एक संभावना का माध्यम के तौर पर विस्तार दे सकेंगे।
बाकी आपलोग हमसे ज्यादा दिमागवाले हैं,जो बेहतर समझें,करें।
गुटबाजी और मठाधीशी--तब से सुनते आ रहे हैं जब मात्र १०० लोग थे और अब १८०००. कुछ नहीं बदला और न बदलेगा तो बेहतर है इसे नजर अंदाज कर जो बेहतर लगे खुद को, वो किया जाये.
जवाब देंहटाएंकिसी के कहने, सुनने, दुहाई से कुछ नहीं होता. होता वो है जो हो जाता है. वो ही सत्य है और आगे चलता है.
आपने अपने मन की साफ साफ और खरी खरी कही, अच्छा लगा.
शुभकामनाएँ.
विनीत कुमार की टिप्पणी से महसुस हुआ कि अब वर्चुअल स्पेस वाले फीजिकल प्रजेंस का महत्व पहचान रहे हैं :-)
जवाब देंहटाएंजबरिया संस्कृति की बातें जबरिया लिखने वाले जानें,बेहतर है
बिना किसी लाग-लपेट के सीधे दिल से निकली आवाज़ को आपने शब्दों का रूप दे दिया है...बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहमने कल ही लिखा:
जवाब देंहटाएंपांच साल से अधिक समय तक चिट्ठाचर्चा नाम के ब्लाग से जुड़े रहने के चलते इससे जुड़े डोमेन से लगाव सहज/स्वाभाविक बात है लेकिन यह लगाव मेरे लिये मात्र कौतूहल की बात ही रही। दोस्तों ने इसके फ़ायदे गिनाये तब भी। जब छत्तीसगढ़ के साथियों ने इसे लिया तब भी मेरी रुचि इस बात तक ही रही कि देखें कैसी चर्चा करते हैं साथी लोग। कल संजीत की पोस्ट पर इसका जिक्र देखकर अच्छा लगा कि कुछ लोग हैं जो ऐसा सोचते हैं।
चिट्ठाचर्चा से मेरा जुड़ाव किसी बड़े तीस मार खां टाइप उद्देश्य के चलते नहीं है। न ही मुझे हिन्दी सेवा जैसा कोई मासूम भ्रम है कि इसके चलते हम हिन्दी की स्थिति में कोई उचकाऊ सेवा कर रहे हैं। अपनी बोल-चाल की भाषा होने के चलते इसमें अभिव्यक्ति से मुझे सुख मिलता है। मजा आता है। आनन्द मिलता है। पैसा-कौड़ी की कोई चाह इससे नहीं है मुझे। न ही कोई अन्य व्यापारिक उद्देश्य। अपने आनन्द के लिये जब समय मिलेगा तब चर्चा करते रहेंगे। जब तक मिलेगा करते रहेंगे।
हमेशा की तरह आगे भी चिट्ठाचर्चा से जुड़े किसी भी मसले पर कोई भी निर्णय साथी चर्चाकारों की आमसहमति से ही होगा। लेकिन इस चिट्ठाचर्चा.कॉम नाम से जुड़ा कोई भी नैतिक/सामाजिक अधिकार का रोना हम नहीं रोयेंगे। कानूनी/व्यवसायिक अधिकार तो बनते ही नहीं। चिट्ठाचर्चा.कॉम जिसके नाम से लिया गया वह हमसे बाद की पीढ़ी का है। अपने से छोटों की उन्नति की किसी भी राह में रोड़ा बनकर हम अपनी नजर में छोटे नहीं होना चाहेंगे।
संजीत की पोस्ट पर लिखी बात फ़िर से कह रहा हूं:
जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा.कॉम जिन लोगों ने खरीदा उनसे अनुरोध है कि वे इसका सही में चर्चा करने में उपयोग करके दिखायें। चर्चा में वह काम करके दिखायें जो इससे पहले कभी नहीं हुये। किसी नीलामी में भाग लेने का हमारा कोई इरादा नहीं है।
संजीव जी, आपकी कमी पूरी मीट में खलती रही| पूरे समय स्कूल के समय की गुटबाजी वाले दिन याद आते रहे| संजीत ने खड़े होकर अपने विचार रखे और बेबाक होकर सब कहा तो लगा कि चलिए किसी में तो हिम्मत है सच कहने की|
जवाब देंहटाएंकिसी एक व्यक्ति के व्यापारिक उद्देश्यों और निजी खुन्नस को छत्तीसगढ़ से जोड़कर पेश करना सरासर गलत है|
मै अब तक सोच रहा हूं कि किसने इस भव्य आयोजन का खर्च उठाया और क्यों हम पर इतना खर्चा? मैंने ब्लॉगर मीट के बारे में काफी पढ़ा है| ब्लॉगर सार्वजनिक पार्क में बैठते है और फिर मूंगफली में ही बैठक हो जाती है| यहां तो जो समोसा हमने खाया वह भी नहीं पचा| किसी ने आयोजन के लिए योगदान तक नहीं मांगा हमसे| पता नहीं किस धन्ना सेठ का पैसा लगा था इसमे और सेठ जी ने पैसा क्यों लगाया था?
पूरे मीट में जबरदस्त ब्लॉगर की जगह जबरदस्ती ब्लॉगर की भीड़ थी| चुनाव रैली की तरह खीच कर लाये गए ब्लॉगर दिख रहे थे| जिनके ब्लाग नहीं है उन्हें भी ब्लॉगर बताया गया| लगता था जैसे बल-प्रदर्शन की तैयारी थी| शायद यहाँ दबाव ही था जो बहुत से ब्लॉगर चिढ कर प्रस्तुति दे रहे थे|
दिनेश जी ने लिखा है कि प्रेस विज्ञप्ति की तरह मीट की रपटे आ रही है| कोई आत्मीयता नहीं झलक रही है | उनका कहना सही है| लगता था कि किसी ने हमारा प्रयोग कर लिया है| अगली बार मै ऐसी मीट में जाना चाहूंगा जो किसी पार्क में घास के मैदान पर होगी और जिसमे हम सब आर्थिक योगदान से चना बूट खायेंगे| कम से कम कोई हमें पुतरियो तरह नचाकर आकाओं से पैसे तो नहीं ऐंठ पायेगा|
आपकी कमी बहुत खल रही थी संजीव जी| सही मायने में छत्तीसगढ़ की पहली ब्लागर मीट की अब भी बेसब्री से प्रतीक्षा है|
true.
जवाब देंहटाएं@ पंकज अवधिया जी
जवाब देंहटाएंआपके अपने विचार हैं मुझे तो कोई ऐसी भव्य आयोजन की बात नहीं लगी . आपको मैंने फोन पर सूचना दी थी और आपका अपनी व्यस्तता के बावजूद इसमे सम्मिलित होना सुखद था.
हर किसी को खुला मंच दिया गया था जैसाकि आपने संजीत के बारे में स्वयं लिखा है . अगर आपका कोई संशय इस आयोजन के बारे में था तो आप वहीं सार्वजनिक मंच या आपसी बात में पूछ सकते थे .
स्थान प्रैस क्लब का था जोकि अनिल और अन्य पत्रकारों के इसमें शामिल होने के कारण सौजन्य से उपलब्ध था . नाश्ते के इंतेजाम आपस(ब्लॉग) के कुछ लोगों के सौजन्य से था .
इलाहाबाद, मुंबई और दिल्ली में भी जो आयोजन हुए वो किसी पार्क में नहीं हुए थे
पुनः आपके आगमन का धन्यवाद करते हुए अगर आपकी और कोई शंका है तो उसके समाधान के लिए उपस्थित हैं
पंकज अवधिया जी की बातों पर मैं भी अपनी अगली एक पोस्ट में प्रतिक्रिया देना चाहूँगा क्योंकि छत्तीसगढ़ की प्रत्येक छोटी बड़ी ब्लॉगर बैठक में मेरी उपस्थिति रही है।
जवाब देंहटाएंबी एस पाबला
मठाधीशों ने सोचा भी न होगा कि इस 4 साल की अवधि में सारे चेले चपाटी छोड़ जाएगें और चर्चा की चर्चा भी न होगी। आखिर ब्लॉग जगत की "वाट" लगाने में जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, उनके ब्लॉग ही अस्ताचल की ओर हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख ,हिंदी में गट बजी के कारण ही हो रहा हिंदी का बंटाधार ,और फेर छत्तीसगर्िह मन में भी एखर बहुत हवे मनभेद ले माटी भेद तक के विचार ,
जवाब देंहटाएंसोज्झे सरल निष्कपट ब्लॉग , ,जय जोहर ,जय हो छत्तीसगर्िह