मैंनें पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के एक मसिजीवी को हिन्दी ब्लॉग जगत मे आने और हिन्दी ब्लॉग बनाने के लिए कहा तो उन्होंनें तपाक से कहा कि ना बाबा ना, ब्लॉग प्लेटफार्म दो प्रकार के लोगों के लिए सार्थक है. एक तो वे जो पहले से ही किसी क्षेत्र में पूर्ण स्थापित हैं जैसे अमिताभ बच्चन और दूसरे वे जो बिगनर है या पहचान बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. जिनके मन में लेखन का कीडा कुलबुला रहा है और विचार व भावनायें शब्दों का रूप लेने के लिए उद्धत हैं किन्तु उनका श्रृंगार होना अभी शेष है उन शब्दों को सजाने के लिए यह आदर्श प्लेटफार्म है. दुर्ग के एक साहित्यकार नें भी कुछ दिन पहले मुझसे नामवर सिंह जी के ब्लॉग बवाल पर लगभग ऐसा ही कहा था. मैनें उनकी बातों पर नोटिस इसलिए नहीं लिया था क्योंकि वे इंटरनेट या ब्लॉग से पूर्णत: परिचित नहीं थे. अभी जिन मसिजीवी से मेरी चर्चा हुई उन्होंनें छत्तीसगढ़ सहित देश के विभिन्न हिन्दी ब्लॉगरों का नाम लेते हुए उनके ब्लॉग और विषयवस्तुओं की विवेचना भी की. मैं आश्चर्यचकित हो गया कि वे न केवल हिन्दी ब्लॉगिंग से परिचित हैं बल्कि ब्लॉग पोस्टों को गहराई से पढते भी हैं.
उन्होंनें स्वयं मेरा उदाहरण देते हुए बडे साफगोई से कहा कि 'तुम स्वयं अपने आप को लो, तुम पिछले दशकों से इक्का दुक्का पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हो तुम्हारा नाम क्षेत्रीय लोगों को याद भी नहीं था. जब से तुम हिन्दी ब्लॉग जगत में सक्रिय हुए हो तुम्हारा संपर्क क्षेत्र बढा है. पत्र-पत्रिकाओं द्वारा स्वाभाविक तौर पर सुलभ नेट में उपलब्ध रचनाओं को प्रकाशित करने के कारण तुम्हारी रचनांए लगभग लगातार प्रकाशित होने लगी है और तुम्हारा 'गुम' नाम फिर से क्षेत्रीय लेखकों-पाठकों के बीच सामने आ गया है. यदि तुम अपनी सक्रियता ऐसे ही बनाए रखोगे और अपनी भाषा को सुधारते रहोगे तो तुम्हारे लिए ब्लॉग सार्थक प्लेटफार्म होगा. वे और लोगों के संबंध में बोलते रहे और मैं सिर झुकाए सुनता रहा.
'भाषा को सुधारते रहो' के चेतावनी मिश्रित सुझाव पर मेरा ध्यान अटक गया. अभिव्यक्ति को प्रवाहपूर्ण रूप से पटल पर लाने के मेरे प्रयासों में भाषा की गलतियां मुझसे होती रही है. मुझे खुशी है कि हिन्दी ब्लॉग जगत के मित्रों ने मेरी भाषा की गलतियों को सुधारने मे सहयोग किया है. इस सम्बन्ध मे मेरे पहले सुधारक वर्तमान मे दिल्ली मे निवासरत छत्तीसगढ के यशश्वी पत्रकार और उर्दु के साहित्यकार भाई सैयद शहरोज़ क़मर रहे हैं. मेरे ब्लॉग पर भाई शहरोज़ ने अपनी टिप्पणी मे कहा कि फ़लां - फ़लां सुधार करो और चाहो तो इस टिप्पणी को डिलीट कर दो, मैने सुधार किये पर टिप्पणी को डिलीट नही किया ताकि सनद रहे. इसके बाद बहुत कम अवसर आये जब मुझे टिप्पणियों से सीख मिली हो, कभी उन टिप्पणियों पर भी चर्चा करुंगा. टिप्पणियां कम मिलने से निराशा जरूर होती है पर ऐसी टिप्पणियां जिससे हमारी दिशा प्रभावित होती हो एक ही काफी होती है.
भाषा को निरंतर सीखने के मेरे इस ब्लॉगिया स्कूल से मुझे अभी भी बहुत कुछ सीखना है. मेरे पिछले पोस्ट में ही गिरिजेश राव जी की टिप्पणी नें इसे सिद्ध कर दिया है. मैं गिरिजेश राव जी का आभारी हूं जिन्होने मेरी भाषा संबंधी गलतियों की ओर ध्यान दिलाया. वर्तमान मे सम्पूर्ण हिन्दी ब्लॉग जगत भाषा और साहित्य मे उनकी टिप्पणियो पर भरोसा करता है और वे इनसे सम्बधित पोस्टो मे अपनी बिना लाग लपेट टिप्पणियां करते भी है.
जैसा कि मेरे लिये मेरे साहित्यकार मित्र नें कहा कि ब्लॉग बिगनरों का प्लेटफार्म है उसी रूप में मैं इसे स्वीकार भी कर रहा हूं. चूंकि सीखने का क्रम दौर ए कब्र भी जारी रहता है इसलिये आशा है मेरे जैसे ब्लॉगर मित्र, भाई शहरोज़ एवं गिरिजेश राव जी की टिप्पणियों से दिशा प्राप्त करते रहेंगे और बिगनरों के इस दौड मे ताजगी बनी रहेगी. आप अमिताभ बच्चन नहीं हैं तो क्या हुआ उनकी नजर में बिगनर ही सही. अमिताभ बच्चन कहां हमारे ब्लॉग में टिपियाने आयेंगें. हैप्पी ब्लॉगिंग मित्रो.
संजीव तिवारी
(गिरिजेश राव जी का चित्र क्वचिदन्यतोअपि..........! ब्लॉग से साभार)
उन्होंनें स्वयं मेरा उदाहरण देते हुए बडे साफगोई से कहा कि 'तुम स्वयं अपने आप को लो, तुम पिछले दशकों से इक्का दुक्का पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हो तुम्हारा नाम क्षेत्रीय लोगों को याद भी नहीं था. जब से तुम हिन्दी ब्लॉग जगत में सक्रिय हुए हो तुम्हारा संपर्क क्षेत्र बढा है. पत्र-पत्रिकाओं द्वारा स्वाभाविक तौर पर सुलभ नेट में उपलब्ध रचनाओं को प्रकाशित करने के कारण तुम्हारी रचनांए लगभग लगातार प्रकाशित होने लगी है और तुम्हारा 'गुम' नाम फिर से क्षेत्रीय लेखकों-पाठकों के बीच सामने आ गया है. यदि तुम अपनी सक्रियता ऐसे ही बनाए रखोगे और अपनी भाषा को सुधारते रहोगे तो तुम्हारे लिए ब्लॉग सार्थक प्लेटफार्म होगा. वे और लोगों के संबंध में बोलते रहे और मैं सिर झुकाए सुनता रहा.
'भाषा को सुधारते रहो' के चेतावनी मिश्रित सुझाव पर मेरा ध्यान अटक गया. अभिव्यक्ति को प्रवाहपूर्ण रूप से पटल पर लाने के मेरे प्रयासों में भाषा की गलतियां मुझसे होती रही है. मुझे खुशी है कि हिन्दी ब्लॉग जगत के मित्रों ने मेरी भाषा की गलतियों को सुधारने मे सहयोग किया है. इस सम्बन्ध मे मेरे पहले सुधारक वर्तमान मे दिल्ली मे निवासरत छत्तीसगढ के यशश्वी पत्रकार और उर्दु के साहित्यकार भाई सैयद शहरोज़ क़मर रहे हैं. मेरे ब्लॉग पर भाई शहरोज़ ने अपनी टिप्पणी मे कहा कि फ़लां - फ़लां सुधार करो और चाहो तो इस टिप्पणी को डिलीट कर दो, मैने सुधार किये पर टिप्पणी को डिलीट नही किया ताकि सनद रहे. इसके बाद बहुत कम अवसर आये जब मुझे टिप्पणियों से सीख मिली हो, कभी उन टिप्पणियों पर भी चर्चा करुंगा. टिप्पणियां कम मिलने से निराशा जरूर होती है पर ऐसी टिप्पणियां जिससे हमारी दिशा प्रभावित होती हो एक ही काफी होती है.
भाषा को निरंतर सीखने के मेरे इस ब्लॉगिया स्कूल से मुझे अभी भी बहुत कुछ सीखना है. मेरे पिछले पोस्ट में ही गिरिजेश राव जी की टिप्पणी नें इसे सिद्ध कर दिया है. मैं गिरिजेश राव जी का आभारी हूं जिन्होने मेरी भाषा संबंधी गलतियों की ओर ध्यान दिलाया. वर्तमान मे सम्पूर्ण हिन्दी ब्लॉग जगत भाषा और साहित्य मे उनकी टिप्पणियो पर भरोसा करता है और वे इनसे सम्बधित पोस्टो मे अपनी बिना लाग लपेट टिप्पणियां करते भी है.
जैसा कि मेरे लिये मेरे साहित्यकार मित्र नें कहा कि ब्लॉग बिगनरों का प्लेटफार्म है उसी रूप में मैं इसे स्वीकार भी कर रहा हूं. चूंकि सीखने का क्रम दौर ए कब्र भी जारी रहता है इसलिये आशा है मेरे जैसे ब्लॉगर मित्र, भाई शहरोज़ एवं गिरिजेश राव जी की टिप्पणियों से दिशा प्राप्त करते रहेंगे और बिगनरों के इस दौड मे ताजगी बनी रहेगी. आप अमिताभ बच्चन नहीं हैं तो क्या हुआ उनकी नजर में बिगनर ही सही. अमिताभ बच्चन कहां हमारे ब्लॉग में टिपियाने आयेंगें. हैप्पी ब्लॉगिंग मित्रो.
संजीव तिवारी
(गिरिजेश राव जी का चित्र क्वचिदन्यतोअपि..........! ब्लॉग से साभार)
बिगनर की दौड़ में ही जगह मिलती रहे तो भी काफी है हमारे लिए...
जवाब देंहटाएं"भाषा को सुधारते रहो"
जवाब देंहटाएंबहुत ही जरूरी है यह!
भले ही वो साहित्यकार बंधु ब्लॉग को स्थापित साहित्यकारों के लिए नकारें, मगर इतना तो वे समझते ही होंगे कि अपनी रचनाओं को तमाम दुनिया में सस्ता सुंदर सरल तरीके से हर हमेशा के लिए पहुँचाने के लिए इंटरनेट के अलावा कोई और साधन नहीं है. आज नहीं तो कल, भले ही वे ब्लॉग माध्यम का सहारा न लें, मगर मिलते जुलते - रचनाकार या हिन्दयुग्म या अभिव्यक्ति.ऑर्ग जैसे मंचों का सहारा लेना ही पड़ेगा. भविष्य का बड़ा पाठकवर्ग इन्हीं माध्यमों से आएगा.
जवाब देंहटाएंयाद है, आपने एक बार किसी मजदूर को बुरी तरह डपट दिया था क्योंकि उसने छतीसगढ़ी के बजाए हिंदी में पूछ लिया था की 'अंकल टाइम क्या हुआ है?'
जवाब देंहटाएंआज आप ही फ़ालतू में बिग्नर, प्लेटफोर्म, नोटिस जैसे शब्दों को जबरिया घुसेड़ रहे हैं! क्या हिंदी में अभिव्यक्ति के लिए शब्द नहीं हैं? कहाँ गया आपका भाषा को भ्रष्ट होने से बचाने का जज़्बा... उपदेश देना सरल है.
मेरे हिसाब से भाषा ऐसी हो जो सबकी समझ मे आ जाए। जैसे अखबारी भाषा सबके लिए होती है। अगर हम इस भाषा मे शुद्धिकरण के नाम पर अगर क्लि्ष्ट शब्दों का समावेश करते हैं तो आम आदमी से दुर होकर विशेष वर्ग की भाषा हो जाती है। जब मै अखबार मे पहली बार एक संवाददाता के तौर पर लिखने लगा तो जय शंकर "नीरव" जी ने मुझे यही गुरु मंत्र दिया था।
जवाब देंहटाएंसंजीव भाई -आभार
@ललित शर्मा
जवाब देंहटाएंआम आदमी, आम इंसान, साधारण लोगों, मंच, गौर किया, ध्यान दिया क्या क्लिष्ट शब्द हैं?
भाई आप गलती पर हैं… अमिताभ भी आयेंगे एक दिन हिन्दी ब्लॉग्स पर टिपियाने… देख लेना…
जवाब देंहटाएंaie bhai log, amitabh ko jab aane ka hoga to aayenga, filhal to apan aa gayela hai mumbaiya bhasha lekar ;)
जवाब देंहटाएंkhair, dar-asal bhasha ki bhasha ki ashuddhiyan pathak ke paath padhe jane ke pravaah ko todta hai badhit karta hai, is se pathak ka mann khinn hone lagta hai yahi karan hai ki sidhi, saral aur pravahmayi bhasha ke lekhak hi sabse jyaada pathe jate hai. rahi baat sudhar ki to vo to anvarat jari hi rahegi hamesha. hamara bhi yahi hal hai, sabhi sampadako se kabhi kabhi daant bhi khate rahein hain apni galtiyon k liye
हमें तो आप अच्छे/खासे/स्थापित ब्लागर लगते हैं !
जवाब देंहटाएंchalo achhi khabar hai hamare liye. Shuruaat karanevalo ko kahin to fayda mil raha hai.
जवाब देंहटाएंजानते हैं संजीव जी जब भी मैं हिंदी ब्लोग्गिंग को लेकर ऐसी कोई बहस पढता हूं तो एक कथन बडे जोर से मेरे कानों में गूंजता है ........ब्लोग्गिंग निरंकुश है ,तभी ऐसी है , मगर जैसी है , बहुत बेहतर है यदि सबसे बेहतर न भी हुई तो ...हां बिग्नर और अमिताभ बच्चन , हम जाने कहां ठहरते हैं
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
भाई! आपने अकारण इस ज़र्रे की ज्यादा ही ज़र्रा नवाज़ी कर दी है!
जवाब देंहटाएंभले अपुन का जन्म मगध में हुआ हो, लेकिन संस्कार तो छत्तीस गढ़ में ही पल्लवित और पुष्पित हुआ है.और यह अपुन की आदत है कि ,भैया जितना बूझता हो, बता देने में गुरेज़ कैसा,यही तो इंसानी कर्तव्य है भाई!
भाई! धृष्टता के लिए अग्रिम क्षमा-याचना!
मैं जितनी और जो भी कलम-घसीटी करता रहा हूँ या करता हूँ उसकी भाषा हिंदी है, उर्दू नहीं.
अब तक दर्जन भर भी चीज़ें मेरी उर्दू में नहीं छपी जबकि आप लोगों के आशीर्वाद से हिंदी में प्रकाशित सामग्री इतनी रही कि ढेरों दीमक ने अपनी खुराक बनाया .
आपने याद रखा, आभार!
लेकिन इतना मान मत दो!
कि
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा!
भाषा केमामले में ललित जी से सहमत!
Sanjeev ji aapse bahunt dino se sampark karane ki kosis kar raha hun lekin lagata hai jo email ID mere paas hai vo aap use nahi kar rahe hai .. kripya mujhe gajpaly@gmail.com par apan naya email ID bhejen..
जवाब देंहटाएंdhanyavaad,
yuvraj gajpal
उन मसीजीवि को बहुत बहुत धन्यवाद जो इस चर्चा का आरम्भ हुआ ।
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