किसी भी भाषा की परम्परा रही है कि कोई लेख, कविता, कहानी या अन्य विधा लेखन की शास्त्रीयता की कसौटी मे तुल कर साहित्य की श्रेणी मे स्वीकार कर ली जाती है और उसे तथाकथित सहित्यिक मठाधीशो को भी किंचित ना-नुकुर के बावजूद भी स्वीकार करना पडता है. मठाधीशो को हिन्दी ब्लागिंग के दमदार धमक के कारण पुस्तक पाठन रुचि के गिरते ग्राफ की चिंता है. उनका मानना है कि किसी भी विधा मे शास्त्रीयता अध्ययन और निरंतर प्रयाश से आती है. और यह शास्त्रीयता मोटी मोटी किताबो मे बन्द है.
इन्ही सन्दभों में हिन्दी ब्लागरो के शव्द सामर्थ्य व पुस्तक अध्ययन की रुचि हमे देखने को मिली. पिछले दिनों ब्लाग पोस्टों को पढनें के दौरान डॉ.अरविन्द मिश्रा जी के पोस्ट पर पढने को मिला कि वे तीन पुस्तकें क्रय कर लाये है और किताबों का अवगाहन कर रहे है. अपने छत्तीसगढ के ललित शर्मा जी नें भी अवधिया जी के एक पोस्ट में टिप्पणी में कहा कि उन्हें आजकल बहुत किताबें पढनी पडती हैं जबकि वे स्वयं संस्कृत, ज्योतिष, भाषा सहित अनेक विषयों के ज्ञाता हैं एवं एकेडमिक रूप से भी वे इन विषयों को पढ चुके हैं. इनके अतिरिक्त और भी कई हिन्दी ब्लागर हैं जो हिन्दी ब्लागिंग के लिए प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रुप से पुस्तको का अध्ययन करते रहते है. जिसमे पाठकों तक जानकारी प्रदान करने के लिए, पोस्ट को पठनीय बनाने के लिए विभिन्न पुस्तकों का सन्दर्भ देते रहे हैं.
मेरा एक मित्र कहता है कि हिन्दी ब्लागरों के पुस्तक पाठन का यह बैरोमीटर ब्लाग में चल रहे पोस्ट-कमेंट वार के चलते उपर उठने को मजबूर हुआ है. उसका मानना है कि हिन्दी ब्लाग विवादों नें भी ब्लागरों के पुस्तकों के अध्ययन को बढाया है अभी पिछले दिनों अलबेला खत्री जी की एक कविता पर जब विवाद हुआ तब हिन्दी साहित्य के शास्त्रीय परम्पराओं की किताबें खुल पडी एवं कविता- नवगीत व कविता के अन्यान्य विधाओं, बिम्बों के रूप में खत्री जी की कविता की स्वीकार्यता-अस्वीकार्यता प्रस्तुत की गई. जो भी हो यह हिन्दी के विकास के लिए अतिउत्तम है. हिन्दी ब्लागजगत में इस पठन-पाठन का फायदा भी अब स्पष्ट नजर आने लगा है एक तरफ ज्ञानीजन सुन्दर विमर्श प्रस्तुत करने वाले पोस्ट ठेल रहे हैं वहीं ब्लाग जगत में भारतीय संस्कृति व परंपरा के विकास के लक्षण भी नजर आने लगे हैं. अब हिन्दी ब्लागर टिप्पणियों में आदरणीय व आदरणीया ब्लागरों के प्रति श्रद्धा-स्नेह-आदर सूचक शव्दों का बहुधा प्रयोग भी करने लगे हैं जिसमें प्रणाम-चरण स्पर्श जैसे शद्वों से टिप्पणियों की शुरूआत हो रही है. यह बहुत ही शुभ लक्षण हैं. ऐसे में पाठकों को पोस्ट पढने एवं ब्लाग लेखकों को अन्य साधनों से ज्ञान अर्जित करने, अन्य ब्लाग पोस्टों को पढने व अपने विषय वस्तुओं को पोस्ट के रूप में परिर्वर्तित करने में बौद्धिकता का क्रमश: परिमार्जन हुआ है.
इन्ही सन्दभों में हिन्दी ब्लागरो के शव्द सामर्थ्य व पुस्तक अध्ययन की रुचि हमे देखने को मिली. पिछले दिनों ब्लाग पोस्टों को पढनें के दौरान डॉ.अरविन्द मिश्रा जी के पोस्ट पर पढने को मिला कि वे तीन पुस्तकें क्रय कर लाये है और किताबों का अवगाहन कर रहे है. अपने छत्तीसगढ के ललित शर्मा जी नें भी अवधिया जी के एक पोस्ट में टिप्पणी में कहा कि उन्हें आजकल बहुत किताबें पढनी पडती हैं जबकि वे स्वयं संस्कृत, ज्योतिष, भाषा सहित अनेक विषयों के ज्ञाता हैं एवं एकेडमिक रूप से भी वे इन विषयों को पढ चुके हैं. इनके अतिरिक्त और भी कई हिन्दी ब्लागर हैं जो हिन्दी ब्लागिंग के लिए प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रुप से पुस्तको का अध्ययन करते रहते है. जिसमे पाठकों तक जानकारी प्रदान करने के लिए, पोस्ट को पठनीय बनाने के लिए विभिन्न पुस्तकों का सन्दर्भ देते रहे हैं.
मेरा एक मित्र कहता है कि हिन्दी ब्लागरों के पुस्तक पाठन का यह बैरोमीटर ब्लाग में चल रहे पोस्ट-कमेंट वार के चलते उपर उठने को मजबूर हुआ है. उसका मानना है कि हिन्दी ब्लाग विवादों नें भी ब्लागरों के पुस्तकों के अध्ययन को बढाया है अभी पिछले दिनों अलबेला खत्री जी की एक कविता पर जब विवाद हुआ तब हिन्दी साहित्य के शास्त्रीय परम्पराओं की किताबें खुल पडी एवं कविता- नवगीत व कविता के अन्यान्य विधाओं, बिम्बों के रूप में खत्री जी की कविता की स्वीकार्यता-अस्वीकार्यता प्रस्तुत की गई. जो भी हो यह हिन्दी के विकास के लिए अतिउत्तम है. हिन्दी ब्लागजगत में इस पठन-पाठन का फायदा भी अब स्पष्ट नजर आने लगा है एक तरफ ज्ञानीजन सुन्दर विमर्श प्रस्तुत करने वाले पोस्ट ठेल रहे हैं वहीं ब्लाग जगत में भारतीय संस्कृति व परंपरा के विकास के लक्षण भी नजर आने लगे हैं. अब हिन्दी ब्लागर टिप्पणियों में आदरणीय व आदरणीया ब्लागरों के प्रति श्रद्धा-स्नेह-आदर सूचक शव्दों का बहुधा प्रयोग भी करने लगे हैं जिसमें प्रणाम-चरण स्पर्श जैसे शद्वों से टिप्पणियों की शुरूआत हो रही है. यह बहुत ही शुभ लक्षण हैं. ऐसे में पाठकों को पोस्ट पढने एवं ब्लाग लेखकों को अन्य साधनों से ज्ञान अर्जित करने, अन्य ब्लाग पोस्टों को पढने व अपने विषय वस्तुओं को पोस्ट के रूप में परिर्वर्तित करने में बौद्धिकता का क्रमश: परिमार्जन हुआ है.
चलते चलते - हल्का - फुल्का :-
ब्लाग पोस्टों के द्वारा वैचारिक विमर्श का यह दौर भी अजूबा है. जिसमे हल्के फुल्के मनोरंजन के साथ सतही चिंतन भी है. एक तरफ प्रवीण त्रिवेदी जी कैमरा व ललित शर्मा जी व्यंग्य के रूप में ब्रांडेड चड्डी खरीदने का सुझाव ब्लाग जगत से मांगते है तब उन्हें व्यवहारिक सुझाव दिये जाते है. और जब डॉ.अरविंद मिश्र जी 'नहीं पाप का भागी ........' का अर्थ जानने-जनाने के लिए एक पोस्ट लिखते है उसमें सार्थक विमर्श होता है और उस पर हिन्दी ब्लागरो के द्वारा न केवल अपने स्वयं के मानस में इस पर चिंतन किया जाता है बल्कि अपने मित्रों-परिचितों व सहकर्मियों तक को इस विमर्श में शामिल किया जाता है . इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि हिन्दी ब्लाग जगत में एक ओर आप अपने लिए चड्डी खरीदने के लिए सुझाव मांग सकते हैं तो दूसरी ओर आप विशुद्ध काव्य मीमांशा करते हुए किसी छंद पंक्ति या गद्यांशों पर साहित्तिक विमर्श भी कर सकते हैं.
ब्लाग पोस्टों के द्वारा वैचारिक विमर्श का यह दौर भी अजूबा है. जिसमे हल्के फुल्के मनोरंजन के साथ सतही चिंतन भी है. एक तरफ प्रवीण त्रिवेदी जी कैमरा व ललित शर्मा जी व्यंग्य के रूप में ब्रांडेड चड्डी खरीदने का सुझाव ब्लाग जगत से मांगते है तब उन्हें व्यवहारिक सुझाव दिये जाते है. और जब डॉ.अरविंद मिश्र जी 'नहीं पाप का भागी ........' का अर्थ जानने-जनाने के लिए एक पोस्ट लिखते है उसमें सार्थक विमर्श होता है और उस पर हिन्दी ब्लागरो के द्वारा न केवल अपने स्वयं के मानस में इस पर चिंतन किया जाता है बल्कि अपने मित्रों-परिचितों व सहकर्मियों तक को इस विमर्श में शामिल किया जाता है . इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि हिन्दी ब्लाग जगत में एक ओर आप अपने लिए चड्डी खरीदने के लिए सुझाव मांग सकते हैं तो दूसरी ओर आप विशुद्ध काव्य मीमांशा करते हुए किसी छंद पंक्ति या गद्यांशों पर साहित्तिक विमर्श भी कर सकते हैं.
संजीव तिवारी
संजीव भाई-यह विशेषता ब्लाग जगत मे ही है कि आपको अपने प्रश्नों का उत्तर जैसा भी हो मिल जाता है। त्वरित कार्यवाही दल भी ब्लाग जगत पर है, मुझे तो बडा आनंद आता है, एक दो घटनाओं को छोड कर, शास्त्रों मे कहा गया है,
जवाब देंहटाएंस्वाध्याय मे कभी आलस नही करना चाहिए
इस लिए पढन-पाठन और अध्ययन-अध्यापन जरुरी है। इनसे सम्मुख रहना चाहिए,
विमुख रहने से हमारे जैसे भुलने की बिमारी हो जाती है।:)
अनोखी चर्चा है। बधाई!
जवाब देंहटाएंहम भारतीय भाषाओं के इतिहास पर नजर डालें तो हिन्दी उन में सब से कम उम्र की भाषा है। वह अभी किशोर भाषा है और विकसित हो रही है। अभी इसे बोलने वालों की संख्या विश्व में दूसरी सबसे अधिक है तो इस का भविष्य उज्जवल ही है।
संजीव भाई-आपकी व्यस्तता के कारण जल्दबाजी मे कु्छ त्रुटियां हो गयी हैं। जिन्हे सु्धार लें,
जवाब देंहटाएं1-देवकी नंदन खत्री की जगह अलबेला खत्री कर लें
इसका लिंक सही है।
2-ललित शर्मा पे लिंक गलत है।
ब्लाग का भविष्य सुरक्षित लग रहा है, आपके चिंतन को नमन। बधाई।
जवाब देंहटाएंललित भाई त्रुटियो की ओर ध्यान दिलाने के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंलिंक व टायपिंग सुधार कर ठीक कर दिया हूं.
चलिये भविष्य उज्ज्वल है
जवाब देंहटाएंBhai Pranam kuchh suna kya 24/01/2010 ko press club raipur me bloggers sumit.....?
जवाब देंहटाएंहाँ सही सुना
जवाब देंहटाएंEk achcha lekh
जवाब देंहटाएंpadhna achcha laga
sab kaam ek hi jagah par ho rahe hain
महोदय, कृपया निम्न सुधार कर लें:
जवाब देंहटाएंसहित्यिक - साहित्यिक
प्रयाश - प्रयास
शव्द - शब्द
सन्दभों - सन्दर्भों
ब्लाग - ब्लॉग
शद्वों - शब्दों
अपने विषय वस्तुओं - अपनी विषयवस्तु
परिर्वर्तित - परिवर्तित
व्यवहारिक - व्यावहारिक
मीमांशा - मीमांसा
साहित्तिक - साहित्यिक
_____________
लेख अत्युत्तम है। सतही ही सही शुरू तो हुआ।
धन्यवाद संजीव जी एक सार्थक चर्चा देने के लिये। लिंक के द्वारा सभी को पढ़ पाये।
जवाब देंहटाएंकिताबें मनुष्य होने का अहसास कराती हैं इसलिये हर व्यक्ति के लिये पुस्तकें पढ़ना ज़रूरी है । यह अच्छी बात है कि ब्लॉगिंग से लोगों में पढ़ने की पृवृत्ति उत्पन्न हो रही है । ब्लोग पुस्तकों का स्थान तो नही ले पाएंगे लेकिन पुस्तकों में नीहित ज्ञान को आम लोगों तक पह्यँचाने में अवश्य मदद करेंगे और इससे पाठकीय रुचि भी बढ़ेगी ।
जवाब देंहटाएंयह एक अच्छे विषय पर आपने कलम चलाई है ।
ललित जी के लिये एक शोध विषय का सुझाव - " देवकीनन्दन खत्री से अलबेला खत्री तक हिन्दी की यात्रा "