पिछले दिनों प्रलेस की एक गोष्ठी एवं बिलासपुर के प्रख्यात रावत नाच महोत्सव में सम्मिलित होने गए दुर्ग-भिलाई के साहित्यकारों के रेल से वापसी के समय आरक्षित बोगी में बैठ जाने एवं एक लाठी को लट्ठेश्वरनाथ बनाकर बोगी में निर्विघ्न सीट कब्जा करने का किस्सा साहित्यजगत में छाए रहा वहीं हरिभूमि रायपुर के पत्रकार श्री राजकुमार सोनी नें इस वाकये पर हरिभूमि के विशेष कालम में दिनांक 16 व 20 नवम्बर को लम्बा - लम्बा लेख लिख कर इसे संपूर्ण प्रदेश में विमर्श हेतु प्रस्तुत कर दिया. हम आगे प्रयास करेंगें, इस लेख और इस पर लोगों की प्रतिक्रियाओं को क्रमश: प्रकाशित करें. इसी कडी में हमें मेल से भिलाई के साहित्यकार एवं मुक्तकंठ के संपादक सतीश कुमार चौहान नें अपनी प्रतिक्रिया प्रेषित की है, पाठकों के लिए यह प्रस्तुत है. -
जय लट्ठेश्वरनाथ के माध्यम से लेखक राज कुमार सोनी ने प्रदेश के तमाम उन साहित्यिक मठाधीशों पर अपनी भडास निकाली वह गैरवाजिब नही हैं, दरअसल लेखक जो लिख रहा हैं वह उसके लम्बें अनुभव का परिणाम हैं, जिस पर अलग से बहस की जा सकती हैं .......................को ही इसकी पहल करनी चाहिये,और इन परिस्थितियो में इससे बेहतर कुछ हो नही सकता, खैर वस्तुस्थिति तो फोटो उपलब्ध कराने वाला ही बता पायेगा संभवत: वह भी बाबा टोली का सदस्य होने के साथ साथ मीडियापरस्त भी हो,पर पासा ही उल्टा पड गया हो, यह महज एक इत्तफाक ही है कि ये साहित्यकार आरक्षित कूपे में आवश्यक टिकट के बिना बैठ गऐ । ऐसा नही हैं की इन्होने टिकट मांगे जाने पर दिखाया नही या फिर फाइन पटाने की से कतरा रहे थे, क्योकि व्यक्तिगत तौर पर मैं इनकी नैतिक और आर्थिक समृद्धि पर गौरव महसूस करता हुं, अगर सकारात्मक सोच के साथ घटनाक्रम को जोड कर देखा जाऐ तो यह एक कलाकार की परिस्थितिजन्य सोच का साकार नमूना हैं जिससे हमारी उस समृद्ध धार्मिक आस्था को बल मिलता हैं जिसमें भगवान कही भी किसी भी रुप में मिल जाते हैं, और इन्सान भी इतना समाजिक, राजनैतिक, व्यवस्था और मंहगाई से इतना त्रस्त हैं कि हर ओर भगवान ही नजर आता हैं और यही भगवान राहत भी पहुचाता हैं जैसा कि आपके लेख दर्शाता हैं ।
जय लट्ठेश्वरनाथ के माध्यम से लेखक राज कुमार सोनी ने प्रदेश के तमाम उन साहित्यिक मठाधीशों पर अपनी भडास निकाली वह गैरवाजिब नही हैं, दरअसल लेखक जो लिख रहा हैं वह उसके लम्बें अनुभव का परिणाम हैं, जिस पर अलग से बहस की जा सकती हैं .......................को ही इसकी पहल करनी चाहिये,और इन परिस्थितियो में इससे बेहतर कुछ हो नही सकता, खैर वस्तुस्थिति तो फोटो उपलब्ध कराने वाला ही बता पायेगा संभवत: वह भी बाबा टोली का सदस्य होने के साथ साथ मीडियापरस्त भी हो,पर पासा ही उल्टा पड गया हो, यह महज एक इत्तफाक ही है कि ये साहित्यकार आरक्षित कूपे में आवश्यक टिकट के बिना बैठ गऐ । ऐसा नही हैं की इन्होने टिकट मांगे जाने पर दिखाया नही या फिर फाइन पटाने की से कतरा रहे थे, क्योकि व्यक्तिगत तौर पर मैं इनकी नैतिक और आर्थिक समृद्धि पर गौरव महसूस करता हुं, अगर सकारात्मक सोच के साथ घटनाक्रम को जोड कर देखा जाऐ तो यह एक कलाकार की परिस्थितिजन्य सोच का साकार नमूना हैं जिससे हमारी उस समृद्ध धार्मिक आस्था को बल मिलता हैं जिसमें भगवान कही भी किसी भी रुप में मिल जाते हैं, और इन्सान भी इतना समाजिक, राजनैतिक, व्यवस्था और मंहगाई से इतना त्रस्त हैं कि हर ओर भगवान ही नजर आता हैं और यही भगवान राहत भी पहुचाता हैं जैसा कि आपके लेख दर्शाता हैं ।
सोनी जी, जो लिख रहे हैं वह साहित्यजगत में व्याप्त गिरोहबंदी और अवसरवादिता पर तो कटाक्ष करती ही हैं साथ ही प्रदेश में चल रहे सरकारी विज्ञप्तिबाज तथाकथित अवसरवादी साहित्यकारो की ओर भी ईशारा हैं खैर इसमें भी साहित्यकार आत्ममुग्ध हैं ...........
सतीश कुमार चौहान
CALL 098271 13539
भिलाई
अब यह तो राजकुमार है .. राजकुमार की कलम से .. अब कैसे बचेंगे साहित्यकार !!
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