छत्‍तीसगढ से परजीवियों के लिए सुसमाचार

समाचार है कि योजना आयोग व छत्तीसगढ शासन के अधिकारियों के बीच पिछले दिनों हुई बैठक में दोनों पक्षों के बीच कुल 18310.32 करोड रुपए के योजना पर सहमति बन गई है। इसमें केंद्र द्वारा संचालित योजना, ऑफ बजट स्कीम व केंद्र-क्षेत्रीय व्यय भी शामिल हैं। इस बात की संभावना मजबूत है कि राज्य के पिछले प्रदर्शन को देखते हुए आवंटन और ज्यादा हो। आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहुलवालिया व मुख्यमंत्री डा रमन सिंह के बीच अगले कुछ दिनों में होनेवाली बैठक में इसको अंतिम स्वीकृति दी जाएगी व इसकी घोषणा की जाएगी। छत्तीसगढ योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष डा डीएन तिवारी ने बताया कि पिछली बार राज्य की कुल योजना 14000 करोड रुपए की थी, जबकि इस बार योजना 18310 करोड रुपए की है।

राज्य ने अपनी योजना में दो हजार एनीकेट बनाने की योजना के लिए आर्थिक सहयोग की मांग की है। आज की बैठक में जल प्रबंधन पर सर्वाधिक जोर देते हुए कहा गया कि राज्य के पानी के समुद्र में बहाव को रोकने व उसके कृषि व औद्योगिक उपयोग के लिए दो हजार एनीकट व ढाई हजार लघु सिंचाई योजनाओं पर जोर देना होगा। सूत्रों के अनुसार अकेले इस योजना का व्यय लगभग 15 हजार करोड क़ा है। फिलहाल राज्य ने लगभग 600 एनीकेट के निर्माण के लिए कार्ययोजना तैयार कर ली है। उचित जल प्रबंधन कर राज्य के 70 प्रतिशत जल की हो रही बर्बादी को रोककर उससे कृषि के साथ औद्योगिक विकास भी किया जा सकेगा। इसमें सीमेंट कारखाने व पनबिजली संयंत्र चलाने के अलावा मछलियों का भी उत्पादन हो सकेगा। राज्य ने आयोग से राष्ट्रीय बायोटिक स्ट्रेस मैनेजमेंट इंस्‍टीट्यूट को भी केंद्र से जल्द स्वीकृति दिलाने की मांग की है। ज्ञात हो कि राज्य ने इसके लिए रायपुर में भूमि व अन्य संसाधन उपलब्ध करा दिए हैं। पूसा से भी अधिक उन्नत यह संस्थान शोध के साथ बीजों का उत्पादन भी करेगा। राज्य ने राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थान की स्थापना की मांग रखी है। इसके साथ ही वनवासियों को भूमि पट्टा दिलाने के लिए इस मद में 100 करोड रुपए के आवंटन की बात कही है।

बस्तर में मलेरिया के कहर को देखते हुए राष्ट्रीय मलेरिया कार्यक्रम में राज्य को शामिल करने, एम्स की जल्द स्थापना व हर्बल प्रोसेसिंग योजना में मदद की भी मांग रखी गई है। राज्य ने योजना आयोग से प्रदेश में एक आईआईटी की स्थापना व बस्तर या सरगुजा में से किसी एक आदिवासी विश्वविद्यालय को केंद्रीय वनवासी विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने की मांग की है। झारखंड को पछाड क़र देश के सबसे अधिक खनन करने वाला राज्य बनने के आधार पर प्रदेश में राष्ट्रीय खनन संस्थान खोलने की भी मांग रखी गई है। राज्य ने नई राजधानी की स्थापना में केंद्र से 600 करोड रुपए की सहायता की भी मांग की है.

ऐसे समाचार और आंकडे छत्‍तीसगढ में मंत्रियों-संत्रियों के चम्‍मचों और कागजों पर कार्य कर रहे व मजे कर रहे एनजीओ के लिए बडे काम की है, वे तो पहले से ही नोट कर लिए होंगें या ये भी हो सकता है कि वे अपने उत्‍थान के लिए जुगत भिडा कर इन आंकडो में अपने स्‍वार्थ के मुद्दों को शामिल करा लिए हों. छत्‍तीसगढ जाए भांड में इन्‍हें क्‍या इन्‍हें तो अपना झोला भरना है अपने घर में खाली करना है और फिर से खाली झोला लटकाये, लुभावने प्रोजेक्‍टों व सेमीनारों का मायाजाल बिखेरते, लाईन में लग जाना है, जनता के पैसों से एश करने के लिए.

संजीव तिवारी

6 टिप्‍पणियां:

  1. हमने सार्वजनिक कार्यों पर सामुदायिक निगाह और नियंत्रण के सिद्धान्त को नहीं अपनाया। उस के स्थान पर एनजीओ ठेकेदार प्रणाली को अपनाया है। जिस का यही परिणाम हो सकता है।

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  2. क्या करेंगे किस-किस को सुधारेंगे।

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  3. चुतीया बईठे गद्दी ,साधू चले किनार
    सटी बेचारी भूख मरे,लडुवा खाए छिनार

    बने सुन्दर गोठ हवय

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  4. yaar tumne pahle to sari schemes achchhe se batayi pahle 3 paragraphs me.. fir 4th paragraph me tum sidhe se uska virodh karne lage bina kisi point ke.. kyoki tumhe lagta hai ki waha corruption hoga isliye tum virodh karo, aur ye sari achchhi schemes band kar di jaye :)

    Shayad Jogi pariwaar inme se ek rupaye bhi logo ke paas nahi aane deta aur apni gundagardi me kharch karta to tumhe khushi hoti

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  5. ऊपर ललित शर्मा जी ने बहुत लठ्ठमार लिखा है!

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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