पितृ पक्ष के साथ ही हमें शिवनाथ की याद आ गई और हम पक्ष के पहले दिन सुबह हमारे घर से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर शिवनाथ नदी पितृ तर्पण के लिए गए. बहुत दिनों बाद उस नदी को पाकर मन अति आनंदित हुआ. मेरा गांव इस नदी के किनारे खारून नदी के संगम के तुरंत बाद है और मैनें बचपन से आजतक इसे अपने दिल के बहुत ही करीब पाया है. लगभग सात किलोमीटर पैदल सिमगा पढ़ने जाने पर कई कई बार इसने मेरा रास्ता रोका है और कई कई बार मैनें इसकी उत्श्रंखलता को धता बतलाते स्कूल के रास्ते में आने वाले इसके सहायक नालों को पार करते हुए हुए इसके सिमगा पुल के उपर चढ़ जाने के बावजूद अपने बचकाने हाथ से साथी बच्चों के दल के साथ हाथ से हाथ थाम कर अपने बस्ता को बचाते हुए पुल पार किया है. पुल के इस पार आकर जोर से अट्टहास भी लगाया है कि 'तू..तू मुझे छकायेगी....' बहुत अच्छा लगाता है जब मैं अपने पुत्र को यह वाकया सुनाता हूं. ............... और भी बहुत सी यादें हैं इसके साथ.
आज दूसरे दिन जब मैं सुबह तर्पण के लिए नदी जाने के लिए निकलने लगा, मेरा पुत्र भी शिवनाथ जाने की जिद करने लगा. मैं उसे साथ लेकर दुर्ग के पुष्पवाटिका घाट आया. विगत वर्षों की भांति इस वर्ष कम वर्षा के कारण शिवनाथ में पानी बहुत कम है पर नदी में नहाने का आनंद कुछ अलग ही है. आज रवीवार होने के कारण भीड़ कुछ अधिक थी. मैंनें पुरखों को पानी दिया. इधर पुत्र नें कम पानी में बहुत मस्ती किया. किनारे में छिछले नदी के तेज घार का मजा लिया. कुल मिलाकर वह बहुत - बहुत 'हैप्पी' हुआ. उसके लिये यह नदी मात्र एक खेल है मेरे लिये इस नदी की क्या अहमियत है यह मैं उसे अभी तो नहीं समझा सकता हॉं, हो सकता है उम्र बढ़ने पर उसे कुछ समझ में आये.
संजीव तिवारी
बारिश हो जाने से नदियों तालाबों में पानी भर गया है .. मन को अनंदित करने के लिए इतना ही काफी है !!
जवाब देंहटाएंसंजीव जी आपकी पोस् और तस्वीरें देख कर अपना भी मन इस जगह को देखने का हो रहा है । बडिया पोस्ट है शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसंजीव जी आपकी पोस् और तस्वीरें देख कर अपना भी मन इस जगह को देखने का हो रहा है । बडिया पोस्ट है शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंशिवनाथ तो बहुत अच्छे आकार की नदी लग रही है। गंगा से तुलनीय!
जवाब देंहटाएंऐसे नदी में नहाए और तैरे बहुत दिन हो गए।
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंवैसे आपका जाना तब हुआ जब पानी कम था।
कुछ दिन पहले वाली बाढ़ में तो पानी से दूर ही रहते :-)
चित्र बहुत छोटे हैं, बस आभास ही होता है दृश्य का
प्रकृति से दूर होते बच्चों को उसका महत्व समय रहते ही समझाना होगा।
जवाब देंहटाएंप्रकृति से दूर होते बच्चों को उसका महत्व समय रहते ही समझाना होगा।
जवाब देंहटाएंनदी से जुडाव होना बहुत प्राकृतिक है .. लेकिन नदी जीवन से बहुत दूर हो गयी है .. नदी के लिए न लोगों के पास समय है न कोई एहसास और बिडम्बना ये की उसके बिना जीवन संभव ही नहीं है .. अपकी कलम नदी के छींटे कंप्यूटर तक ले आई ..
जवाब देंहटाएंमैने भी बाबूजी की अस्थियाँ यहीं शिवनाथ मे विसर्जित की थी तुम्हारे लेख से उनकी याद आ गई । कभी कभार नदी जाते समय मुझे भी बुला लिया करो । शिवनाथ का सौन्दर्य तो अद्भुत है । शरद कोकास दुर्ग छ.ग.
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