स्टील टि्वन सिटी के नाम से ज्ञात मेरे नगर के मुख्य डाकघर के पास लगे एक पत्थर पे मेरी नजर पिछले कई बरसों से ठहर जाती रही है. यह पत्थर संभवत: तत्कालीन ब्रिटिश शासन के द्वारा मील के पत्थर के रूप में जीई रोड के किनारे लगाई गई थी. इस पर नागपुर और रायपुर की दूरी लिखी गई है. इस पत्थर में दुर्ग का नाम द्रुग लिखा हुआ है. DURG की जगह DRUG. इस प्रश्न का जवाब हमने कई लोगों से पूछा संतोषप्रद उत्तर नहीं मिल पाया. थोडा और खोजबीन की तो पाया कि छत्तीसगढ के दुर्ग नगर को 'दुर्ग' कहने की परम्परा ज्यादा पुरानी नहीं है. दुर्ग नगर का क्षेत्र जब भंडारा से संलग्न था तदुपरांत 1857 में यह रायपुर जिले का तलसील बना तब तक इस नगर को द्रुग कहा जाता था.
दुर्ग नगर की स्थापना लगभग दसवीं शताब्दि में मिर्जापुर के बाघल देश से आये जगपाल नामक व्यक्ति नें की थी. तब जगपाल रतनपुर के राजा का खजांची का काम सेवानिष्ठा से निबटा रहा था जिसके एवज में रतनपुर के राजा नें दुर्ग सहित 700 गांव उसे इनाम में दिये थे. सन् 1890 के लगभग यूरोपीय यात्री लेकी के दुर्ग आगमन का उल्लेख मिलता है. अपनी डायरी में लेकी नें लिखा था कि हमने दुर्ग के किले के आस-पास अपना टेंट लगाया, यहां पान के बहुतायत खेत थे, आस पास के गांवों में कृषि की जाती है. दुर्ग जिले की स्थापना 1 जनवरी सन् 1906 में की गई थी. तब आज के कवर्धा(कबीरधाम) व राजनांदगांव जिले भी इसमें शामिल थे, साथ ही साथ धमतरी तहसील, सिमगा व मुंगेली के कुछ भाग भी इस जिले में शामिल थे. बाद में इसके अतिरिक्त छुई खदान की रियासत भी इस जिले में शामिल की गई. ब्रिटिश शासन काल के सभी अभिलेखों में सन् 1818 से 1947 तक दुर्ग नगर, तहसील व जिले को द्रुग ही कहा गया है.
bhai wah ! tum to ab itihas ki baat bhi likhne lage, achchhi baat hai..badhai
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिख रहे हो संजीव ,फुर्सत से सभी पोस्ट पढ़कर टिप्पणी करूंगा । शरद कोकास दुर्ग छ.ग.
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