दुर्ग जिले में लौह अयस्क भंडार होने के संबंध में सर्वप्रथम 1887 में भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण जिल्द बीस के अभिलेखों में पी.एन.बोस के द्वारा एक शोध पत्र के द्वारा बतलाया गया. इसके बाद से ही तत्कालीन मे.टाटा संस एण्ड कम्पनी की ओर से दुर्ग जिले में दिलचस्पी बढ गई थी. टाटा के द्वारा दुर्ग (तब रायपुर जिले का एक तहसील) के तत्कालीन डौंडी लोहारा जमीदारी के विशाल क्षेत्र में सर्वेक्षण अनुज्ञप्ति प्राप्त किया गया था एवं टाटा के द्वारा विपुल लौह भंडारों की जांच की गई थी.
टाटा के द्वारा लायसेंस प्राप्त करने के बाद सर्वप्रथम सन 1905 में राजहरा पहाडी में सर्वेक्षण प्रारंभ किया था. टाटा के द्वारा लगभग दो वर्ष इन क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया गया एवं अचानक काम समेट लिया गया, और तत्कालीन बिहार में टाटानगर अस्तित्व में आया. टाटा के द्वारा काम समेटने को लेकर भारतीय उद्योग जगत में तब काफी चर्चा हुई थी पर टाटा नें अपनी चुप्पी नहीं तोडी थी.
सोवियत रूस के साथ हुए समझौते के तहत् सेल नें यहां भिलाई स्पात संयंत्र की स्थापना की और भिलाई अस्तित्व में आ गया. 1906 में टाटा नें यहां से कैम्प नहीं हटाया होता तो ....... यह टाटानगर कहलाता.
achchhi jaankaari...
जवाब देंहटाएंभू वैज्ञानिक श्री बोस के द्वारा बैलाडीला की पहाडियों के सर्वेक्षण की जानकारी थी परन्तु आप ने नयी जानकारी दी. आभार
जवाब देंहटाएंबैलाडीला पर हम से एक विस्तृत लेख सोमवार को प्रकाशित कर रहे हैं.
तब शायद भिलाई का नक्शा ही कुछ और होता।
जवाब देंहटाएंफेर हमर नाम "टाटानगरी छत्तीसगढिया" होतीस
जवाब देंहटाएंNICE INFORMATION.PEOPLE WOULD HAVE KNOWN RAJHARA AS "DALLI NAGAR" AND IT WOULD BE WELL CONNECTED BY RAIL THROUGH OUT THE COUNTRY.
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