हिन्दी ब्लागों के द्वारा वैचारिक विमर्श की संभावना के संबंध में लगातार ब्लागों में लिखा जा रहा है और ब्लाग की इस शक्ति का अंदाजा अब सबको नजर आने लगा है । राजनैतिक हलकों में भी इस प्रभावशाली माध्यम को भुनाने का जुगाड तोड अब आरंभ हो गया है । हाईटेक प्रचार माध्यमों के रूप में राजनैतिक दलों के वेब पेज पहले भी अस्तित्व में थे जिन्हें हाईलाईट करने व उन साईटों में ट्रैफिक बढानें के लिए एडसेंस का भरपूर उपयोग वर्तमान में किया जा रहा है । वेब पेजों के साथ ही प्रत्याशियों के ब्लाग भी नजर आ रहे हैं, इसी क्रम में छत्तीसगढ के रायपुर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल का ब्लाग अचानक अस्तित्व में आया है । हम आशा करते हैं कि भूपेश का यह ब्लाग चिरंतन रहे । वैचारिक रूप से जहां तक मैं उन्हें जानता हूं इसके अनुसार से वे अध्ययनशील व्यक्ति है, साहित्य से उनका जुडाव रहा है इस कारण से वे यदि अपने इस दायित्व को निभाने का सोंचें तो महीने में आठ दस पोस्ट स्वयं लिख सकते हैं । पिछले विधानसभा चुनाव में बृजमोहन अग्रवाल का ब्लाग आरंभ हुआ था जिसके संबंध में प्रिंट मीडिया नें भी चर्चा कर हो हल्ला किया था किन्तु दो चार पोस्टों के बाद वह ब्लाग भी टांय टांय फिस्स हो गया । कम से कम ऐसा तो न हो ।
छत्तीसगढ के राजनैतिक गलियारों से जुडे अमित जोगी अरसों से ब्लाग लिख रहे हैं जो नियमित है एवं उसके बहुसंख्यक पाठक भी हैं । अमित जोगी स्वयं नेट प्रयोक्ता हैं एवं ब्लाग के पोस्ट स्वयं लिखते हैं, वे अपने ब्लाग में छत्तीसगढ के ज्वलंत मुद्दों व पार्टी के कार्य व्यवहार की भी गंभीर समीक्षा करते हैं । विगत माह से छत्तीसगढ के पूर्व मुख्य मंत्री अजीत जोगी नें भी ब्लाग लिखना आरंभ कर दिया हैं जिससे कुछ आश बन पडी है कि अमित जोगी की भांति वे भी अपने ब्लाग पर नियमित पोस्ट लिखेंगें और हमे शीर्षस्थ राजनैतिज्ञों के विचार बिना रिपोर्टरी लाग लपेट के पढने को मिलेगा ।अमित जोगी या अजित जोगी के ब्लाग पर नियमिता पर विश्वास किया जा सकता है क्योंकि वे न केवल ब्लाग पर वरन सोसल नेटवर्किंग साईट आरकुट पर भी सक्रिय है ।
भूपेश के अतिरिक्त दुर्ग से लोकसभा की प्रत्यासी सरोज पाण्डेय का वेब साईट भी अचानक अस्तित्व में आया है और बडी खुशी की बात यह है कि इस वेब साईट के प्रमोशन के लिये दैनिक भास्कर के मुख्य पृष्ट पर बाकायदा विज्ञापन भी छपवाया गया है । धीरे धीरे संचार क्रांति का फैलाव विस्तृत हो रहा है, शहरों व कस्बों के युवा अब अपना अधिकतम समय नेट व पीसी में ही दे रहे है ऐसे में भारी भरकम खर्चे से स्टार प्रचारकों की सभा करवा कर, समाचार पत्रों में विज्ञापन छपवाकर अपनी बात जनता तक पंहुचाने के अतिरिक्त प्रचार का कुछ हिस्सा इंटरनेट में तो होना ही चाहिए ताकि नेट सेवी जन तक प्रत्याशियों की बात पहुच सके ।
पुछल्ला -
आज इस पर गंभीर ब्लाग चिंतन करते हुए एक ब्लागिया मित्र नें बतलाया कि, पिछले विधान सभा चुनाव के समय कुछ लोगों नें राजनैतिक दलों के प्रचार प्रमुखों से भेट कर समाचार पत्रों की भांति ब्लागों को भी 'मैनेज' करवाने का आफर दिया था और ब्लागों की ताकत समझाने का प्रयास किया गया था किन्तु छत्तीसगढ के राजनैतिक दलों के मीडिया प्रभारियों को रत्ती भर भी भरोसा नहीं था कि ब्लाग 'मैनेज' करने के कारण अमेरिका में 'बराक ओबामा' राष्ट्रपति बन गये थे और समाचार पत्रों के सामने ब्लागों की कोई अहमियत भी होती है सो ब्लागों को घास नहीं डाला गया । और पिछले पोस्ट में मैनें लिखा ही था कि छत्तीसगढ में बैल घास खाने की जगह नोट खा रहे हैं इसलिये मैने और मित्र नें सोंचा कि बिचारे बैलों के लिए राजनैतिक पार्टियों के प्रचार प्रमुखों का घास सुरक्षित रखा जाए क्योंकि रमन सरकार पर आरोप है कि उसने गरीब किसानों को मुफ्त में जो बैल बांटे थे वे बेहद कमजोर थे ।
achchi jaankaree...
जवाब देंहटाएंयह पढ़ कर हमें आशा बन्धती है कि शायद कभी हममें भी नेताई के गुण देख ले! खैर पता नहीं ब्लॉगर नेता बन सकते हैं या नेता ब्लॉगर बन रहे हैँ!
जवाब देंहटाएंक्या बात है महाराज बड़ी नज़र रख रहे है नेताओ के ब्लाग पर कंही चुनाव उनाव लड़ने का इरादा तो नही है।
जवाब देंहटाएंanil bhaiya wala sawal idhar bhi hai ;)
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी ... आभार।
जवाब देंहटाएंwell
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