खबर है कि छत्तीसगढ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के दुर्गूकोंदल इलाके के गांव कोडेकुर्से में एक किसान लक्ष्मण चुरेन्द्र ने अपने खेतों के फसलों को बेंचकर बैंक में पैसा जमा करवाया था । अपनी पत्नी के इलाज के लिये उसने विगत दिनों बैंक से बीस हजार रूपया निकाला और गांव जाकर अपनी पत्नी को दे दिया । उसकी पत्नी उसी समय घर के बैल को बांधने लग गई पैसे को उसने अपने आंचल में बांध लिया, बैल, रूपये उसकी आंचल से मुह मार कर खाने लगा, बैल के मुंह से बडी मुस्किल से लक्ष्मण की बीबी पांच हजार छीन पाई बाकी के पंद्रह हजार बैल हजम कर गया ।
बस्तर में राजकीय अनुदान व सहायता के संबंध में पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी जी का आंकलन था कि दिल्ली से सहायता के रूप में चला सौ रूपया, बस्तर के आदिवासियों के हाथों तक पहुंचते पहुंचते अट्ठारह रूपये रह जाता है । यानी बाकी के 82 रूपये आदिवासियों के हित के लिए स्वांग रचने वाले नेता, अफसर व एनजीओ खा जाते हैं, । अब इस बैल को कौन समझाये कि जो नोट इसने खाये वो सरकारी सहायता के नहीं थे आदिवासी के मेहनत से कमाये नोट थे ।
पुछल्ला -
पिछले दिनों पूर्व गृह राज्य मंत्री चिन्मयानंद जी के साथ पूरे एक दिन बिताने को मिला । चर्चा में यह भी 'ज्ञात' हुआ कि पिछले विधान सभा चुनाव में उनके प्रयास से बस्तर के ग्यारह सीट रमन के झोली में पडे और रमन की सरकार बन सकी । अब जो भी हो कम से कम एक दिन उनके साथ रहने पर बस्तर के मौजूदा हालात पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय की सोंच की आंशिक जानकारी प्राप्त हुई । फिर कभी इस मसले पर विस्तृत लिखुगा, तब तक के लिए इस माईक्रो पोस्ट से अपनी निरंतरता कायम रखने का प्रयास कर रहा हूं ।
बस्तर में राजकीय अनुदान व सहायता के संबंध में पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी जी का आंकलन था कि दिल्ली से सहायता के रूप में चला सौ रूपया, बस्तर के आदिवासियों के हाथों तक पहुंचते पहुंचते अट्ठारह रूपये रह जाता है । यानी बाकी के 82 रूपये आदिवासियों के हित के लिए स्वांग रचने वाले नेता, अफसर व एनजीओ खा जाते हैं, । अब इस बैल को कौन समझाये कि जो नोट इसने खाये वो सरकारी सहायता के नहीं थे आदिवासी के मेहनत से कमाये नोट थे ।
पुछल्ला -
पिछले दिनों पूर्व गृह राज्य मंत्री चिन्मयानंद जी के साथ पूरे एक दिन बिताने को मिला । चर्चा में यह भी 'ज्ञात' हुआ कि पिछले विधान सभा चुनाव में उनके प्रयास से बस्तर के ग्यारह सीट रमन के झोली में पडे और रमन की सरकार बन सकी । अब जो भी हो कम से कम एक दिन उनके साथ रहने पर बस्तर के मौजूदा हालात पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय की सोंच की आंशिक जानकारी प्राप्त हुई । फिर कभी इस मसले पर विस्तृत लिखुगा, तब तक के लिए इस माईक्रो पोस्ट से अपनी निरंतरता कायम रखने का प्रयास कर रहा हूं ।
कलियुग है। आदमी चारा खा रहा है और बैल नोट!
जवाब देंहटाएंउसने अपने चारे का बदला लिया :) पर इंसान नहीं पहचाना ..बैल ही तो है आखिर
जवाब देंहटाएंबहुत ही जोरदार है . आजकल जानवर पन्नी कागज भी खाते देखे जा सकते है .धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंखबर बहुत दर्दनाक है।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना की चर्चा आज समयचक्र में
जवाब देंहटाएंसमयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : आज " धरती -प्रहर" में एक वोट धरती को भी दीजिये
बेचारे उस गरीब किसान की क्या मनोदशा होगी!!!
जवाब देंहटाएंRochak khabar magar us kisaan ke dard ka ahsaas bhi.
जवाब देंहटाएंसंजीव जी बैल क्या जाने नोट और कागज का अंतर, वह तो भर पेट चारा न मिलने से कागज खाने का आदी हो चुका है, उसके लिए रद्दी कागज और 20 हजार के नोट में कोई भेद नहीं। अगर वह यह भेद करना जान पाता तो इंसान न बन जाता। इस समाचार को पढ़ कर ऐसा लगा जैसे मैं कोई लोककथा पढ़ रही हूं, जिसका अंत अभी लिखना बाकी है।
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