"पहल के प्रवेशांक से लेकर अभी-अभी प्रकाशित 90 अंक तक का एक-एक शव्द मैंने पढा है । पहल मेरे लिए एक आदर्श पत्रिका प्रारंभ से लेकर आज तक रही है । पहल के संपादक ज्ञानरंजन से प्रेरणा लेकर ही मैंने 'सापेक्ष' पत्रिका प्रारंभ की थी जिसके अभी तक 50 अंक छप चुके हैं ।
पहल का बंद होना मेरे लिए सिर्फ एक दुखद घटना नहीं है वरण मैं यह मानता हूं कि पहल के बंद होने से सुधी पाठकों की दुनियां में एक शून्यता और निराशा आयेगी । मेरी ज्ञानरंजन जी से दूरभाष पर चर्चा हुई उन्होंनें कहा - अब लिखेंगें पढेंगें और मित्रों से भेंट मुलाकात करेंगें । मुझे लगता है नई पीढी में कोई न कोई आयेगा और ''पहल'' के काम को आगे जरूर बढायेगा । "
डॉ. महावीर अग्रवाल
संपादक - सापेक्ष
सापेक्ष 47 - हबीब तनवीर का रंग संसार, सापेक्ष 48 - उत्तर आधुनिकता और द्वंदवाद, सापेक्ष 49 विज्ञान का दर्शन (फ्रेडरिक एंगेल्स का योगदान), सापेक्ष 50 - हिन्दी आलोचना पर
इस ब्लाग पर कल पढें - 'राजीव रंजन, शानी और काला जल'
संजीव भाई महावीर जी से सहमत हूं। आप कब पधार रहे है रायपुर,बहुत दिनो से मुलाकात नही हुई है।
जवाब देंहटाएंपहले के बंद होने की खबर मुझे कबाड़खाना ब्लॉग से लगी और इसकी पुष्टि मैंने कुमार अंबुज से बात कर की थी। यह सचमुच दुखद है। अपने लेखक को दांव पर लगाकर ज्ञानरंजन जी ने एक पूरी पौध नई लेखकों की तैयार की थी। मेरे ख्याल से नई लेखक पहल में प्रकाशित होकर अपने गौरवान्वित महसूस करते थे उतना किसी पत्रिका में छपकर नहीं। रवींद्र व्यास, इंदौर
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