रेलवे क्रासिंग बंद होते ही मैनें बाईक में ब्रेक लगाया, बाईक गेट के पास आकर रूक गई । बाईक में मेरे पीछे बैठे मित्र नें मेरे कमर में अपने हाथ को दबाते हुए धीरे से कहा ‘ये देख !’ मेरी नजर वहीं पडी जिसे वह दिखाना चाहता था । मेरे बाईक के आगे एक लडकी अपने स्कूटी में बैठी थी और क्रासिंग बंद होने के कारण इत्मीनान से मोबाईल में बतिया रही थी । मैनें उस पर उडती नजर डालते हुए मित्र से कहा ‘हॉं देख लिया !’
‘अरे नहीं देखा यार, ठीक से देखो !’ उसने फिर बुदबुदाया । अब मैनें उसे ध्यान से देखा, नई स्कूटी में वह अपने दोनों पैरों को सडक में जमाए बैठी थी, कान में मोबाईल चिपका था । जीन्स जैसा कुछ उसने पहन रखा था, उपर जो पहनी थी उसे आजकल शार्ट शर्ट कहा जाता है । उसकी पीठ हमारी ओर थी, शार्ट शर्ट कुछ ज्यादा ही शार्ट थी, जींस के उपर का पीठ पूरा उघडा हुआ दिख रहा था और जींस के कमर पट्टे के नीचे का अंडरवियर भी सीट में बैठने और टांग के फैलने के कारण नजर आ रहा था, कूल्हे की विभाजन रेखा स्पष्ट नजर आ रही थी । मैनें नजर दूसरी ओर करते हुए मित्र से कहा ‘बडी खराब सोंच है यार तेरी, बच्ची है, यह कोई बडी चीज नहीं आजकल यह तो आम है !’ मित्र हंसने लगा ‘ये तुझे बच्ची लगती है, 24-25 साल से कम नहीं है !’
तब तक ट्रेन गुजर गई और क्रासिंग खुल गया । मैं गाडी स्टार्ट कर आगे बढ गया, वह लडकी भी फर्राटे फरते हुए ट्रैफिक के बीच से युवा बाईक सवार की तरह कट मारते हुए चली गई । मैनें विषय को वासना से दूर होने पर राहत की सांस ली ।
आफिस में कुछ अतिरिक्त समय मिलने पर अपनी कलम घसीटी डायरी में लिखने लगा इसी बीच मेरा जूनियर किसी काम से मेरे पास आया तभी एक फोन आ गया और मैं फोन में व्यस्त हो गया । डायरी यू हीं खुली पडी थी, जूनियर नें खुले पन्नो का रस लिया । फोन रखने के बाद मैनें जूनियर की ओर देखा, वह मुस्कुराने लगा । मैनें पूछा ‘क्या हुआ ?’ ‘कुछ नहीं सर आपकी लेखनी पढ रहा था !’ उसने कहा । ‘तो ?’ मैनें कहा । ‘शर्म आ रही है पढते हुए !’ उसने कहा । ‘किस पर ? अपने आप पर .... उस लडकी पर ..... मेरे मित्र पर .... या मुझ पर .... ?’ मैंनें मुस्कुराते हुए पूछा । वह भी मुस्कुराता रहा उसने जवाब नहीं दिया । उसका मौन कह रहा था कि उसे शर्म मुझ पर आ रही थी जो ऐसा अश्लील लिख रहा था ।
उससे बहस करना निरर्थक था सो मैं अपने आप से बात करने लगा । ‘इसे पढते हुए मेरे पाठक को शर्म आ रही है !’ ‘इस हकीकत को देखते हुए मुझे भी शर्म आ गई थी !’ ‘इसे लिखते हुए शायद मुझे शर्म नहीं आई वो इसलिये कि जिसका शरीर उधडा वह उसी हालत में फर्राटे भरते स्कूटी में चली गई अब शर्मसार मुझे क्यों होना चाहिए ?’ ‘क्या इसे, मुझे नहीं लिखना चाहिए ?’ ‘हॉं, क्योंकि यह अश्लील लेखनी होगी !’ ‘..... पर ऐसे लडकियों को कौन समझायेगा जो खुलेआम अश्लीलता परोस रही हैं ?’ काफी हलचलों के बाद अंत में मैनें इसे अपने ब्लाग में पब्लिश करने का फैसला कर ही लिया ।
संजीव तिवारी
संजीव जी, आपने वही लिखा जो आपने देखा और महसूस किया। मुझे लगता है आजकल हर किसी को रोज ही ये नजारा देखने को मिल जाता है। ज््यादातर लोग इस बारे में अपनी सोच को दबा जाते हैं और अकेले में अपनी वासना तृप््त करते हैं....और आप जैसे हिम््मती लोग इसे बयां करने में कोई गुरेज नहीं करते...बढ़िया
जवाब देंहटाएंकोई शर्म नहीं आनी चाहिए ऐसी बातों को उजागर करने में । फ़ैशन की भी कोई सीमा होनी चाहिए । गलती किसकी है उस बच्ची की या उसके माता – पिता की जिनको अपने बच्चों के पहनावे का कोई ध्यान ही नहीं । शायद आजकल हो रहे ज्यादतर बलात्कार का कारण भी यही है जब सभ्य कहे जाने वाले सामाजिक लोग उस दृश्य को देखने से कोई गुरेज नहीं तो असभ्यों का क्या भरोसा ! देखने के साथ कुछ और भी कर सकते है उनकी तो बस यही सोच होती है कि ऐसे निर्र्लज्ज लोगों के साथ कुकर्म करना कोई गुनाह नहीं ।
जवाब देंहटाएंकभी कभी तो साफ़ पाक लोग भी बहती गंगा मे हाथ धो लेते हैं …बड़े शहरों मे ऐसे दृश्य तो आम हैं ।
पिछली बार मैं सिनेमा हाल गया था तो सामने वाली कुर्सी पर बैठी नवयुवती ने भी कुछ ऐसे ही दृश्य दिखाये थे ।
फ़ैशन भी क्या चीज़ है कभी उरोज दिखाती है कभी नितंब … हद है ।
काहे घबराते हैं जी...आपने तो जो देखा वही लिखा..और कब तक हम अश्लीलता पर बात करने से बिदकते रहेंगे...जो हो रहा है उसकी चर्चा तो होनी ही चाहिए..फिल्म वाले तो ना जाने क्या क्या दिखाते हैं ये कहकर कि ये सब कुछ समाज में ही हो रहा है....
जवाब देंहटाएंबहुत आम बात है। लेकिन पहले इसे अपने घर से रोकें और फिर अभियान चलाएँ। अभियान का नेतृत्व महिलाओं को करने दें।
जवाब देंहटाएंनेचुरल इण्डियन बिहेवियर!
जवाब देंहटाएंतिवारी जी
जवाब देंहटाएंइस पर्दानशीं व्यभिचार के दौर में पुरुषजीवी निगाहें दिन भर इसी तरह भोग्या भोग भोगती रहती हैं। आपका लिखा न कोई ताजा सच है, न तीसमार खबरबयानी...ब्लॉग पर ऐसी मनोहर कहानियां कई साथी रोज लिख रहे हैं। इस पर टिप्पणी करना भी फालतू का काम लगा। तो भी जवाब जरूरी था।
नजर नजर का फेर है मित्र.
जवाब देंहटाएंआपने तो जैसा देखा, सोचा, सुना-सब वैसा ही बयाना.
बहुत बहुत धन्यवाद मुहफट जी, जो आपने टिप्पणी से हमें नवाजा । आपने लिखा 'इस पर टिप्पणी करना भी फालतू का काम लगा। तो भी जवाब जरूरी था' क्यों जरूरी था जी ?
जवाब देंहटाएंमुहफट होना भी समाज के प्रति एक दायित्व है पर जो अपना मूल अस्तित्व छुपाकर प्रस्तुत होता है उसे मुहफट के अतिरिक्त कुछ और फट भी कहते हैं, ....फट , इसलिये मुहफट के साथ साथ अपना नाम भी लिखें और ...फट कहलाने से बचें ।
Ek sach sabake samane rakhane ke liye dhanyawaad.
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ जो घटित होता है उसे छोटी मान लेने की बिमारी से ग्रसित से हम ग्रसित हैं .अंग प्रदर्शन फैशन नही खुला आमंत्रण है .संजीव जी जारी रखें . हम आपके साथ हैं .
जवाब देंहटाएंआपकी यही हिप्पवादी बात मुझे अच्छी लगी ,आप को जो उचित लगा वह आपने लिखा ,पर इस चीज को रोकने के लिये उन पर बंदीस लगाइ जायेंगी और जितनी बंदीसे उतने ही प्रदर्शन के नये तरीके होंगे , दमन से आकर्षण और गहरा होता है जब्कि अनुभव से वैराग्य गहराता है ॥किसी ने सच कहा है सारी दुनिया ने सेक्स को जहर देकर मारने कि कोशीश कि सेक्स मरा तो नही बस जहरीला होकर जिंदा है ॥आशा है आप सहमत होंगे
जवाब देंहटाएंबंधुवर! आपने सिर्फ़ किस्सा बताया, अपनी राय को ढ़ंग से सामने रखा नहीं। आपको क्या लगता है, किसे शर्म आनी चाहिये? मेरी राय में किसी को भी नहीं। जिस चीज़ को सहजता से लेंगे वही तो सहज लगेगी। यदि ये कहें कि अश्लील है, शर्मनाक है तो मैं कहूँगा दकियानूसी सोच है ये, हाँ यदि अश्लील नहीं, वाहियात लगता है तो मैं फ़िर भी स्वीकार कर लूँगा। इस विषय पर मैं दो लेख मार चुका हूँ अपने ब्लोग पर। कभी फ़ुर्सत हो तो तशरीफ़ लाइयेगा इस ओर।
जवाब देंहटाएंबंधुवर! आपने सिर्फ़ किस्सा बताया, अपनी राय को ढ़ंग से सामने रखा नहीं। आपको क्या लगता है, किसे शर्म आनी चाहिये? मेरी राय में किसी को भी नहीं। जिस चीज़ को सहजता से लेंगे वही तो सहज लगेगी। यदि ये कहें कि अश्लील है, शर्मनाक है तो मैं कहूँगा दकियानूसी सोच है ये, हाँ यदि अश्लील नहीं, वाहियात लगता है तो मैं फ़िर भी स्वीकार कर लूँगा। इस विषय पर मैं दो लेख मार चुका हूँ अपने ब्लोग पर। कभी फ़ुर्सत हो तो तशरीफ़ लाइयेगा इस ओर।
जवाब देंहटाएंaapka kathan vartmaan samay ki girls k liye sabak hai,
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