छत्तीसगढी गद्य का सौंदर्य निर्दिष्ट कराने वाले तथा लोक कथात्मक कहानियों से छत्तीसगढी कला साहित्य का समारंभ करने वाले ये ऐसे कथाकार हैं जिन्हें लोककथ्थकड और शिष्ट कथाकार का संधस्थल कहा जा सकता है । प्रयास प्रकाशन ने तैंतीस वर्ष पूर्ण उनकी कहानियों को भोजली त्रैमासिक छत्तीसगढी पत्रिका में प्रकाशित करके और फिर सुसक झन कुररी । सुरता ले । में संग्रहित करके एतिहासिक कार्य किया । बाद में इनकी अन्य कहानियां तिरिया जनम झनि देय – शीर्षक से छिपी जिसे एम.ए. अंतिम हिन्दी के पाठ्यक्रम में समावेशित किया गया । इसका द्वितीय संस्करण अभी हाल में बिलासा कला मंच ने प्रकाशित किया है । लोक कथात्मक आंचलिक कहानियां छत्तीसगढ के इतिहास और संस्कृति की धरोहर है । इन कहानियों की भाषा शैली अत्यंत प्रभावोत्पादक और मानक छत्तीसगढी गद्य के उदाहरण है । डॉ. शर्मा की अन्य लोकप्रिय कृति गुडी के गोठ- बात नवभारत में प्रकाशित स्तभं का चुनिंदा संकलन है । छत्तीसगढी गद्य की आदर्श संस्थापना की दृष्टि से तीनों कृतियां अत्यंत म हत्वपूर्ण है ।
डॉ. शर्मा ने सन् 1973 में छत्तीसगढ के कृषक जीवन की शब्दावली पर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की । इसके मुख और पूंछ को जहां छत्तीसगढ का इतिहास एवं परम्परा के रूप में प्रस्तुत किया गया वही मुख्यांश को छत्तीसगढी हिन्दी शब्दकोश के रूप में विलासा कला मंच ने छापा । इसके पूर्व के डॉ. रमेशचन्द्र महरोत्रा के शब्दकोश में रायपुरी शब्द अधिक थे । डॉ. शर्मा ने उसे बिलासपुरी के साथ समन्वित कर वृहद विस्तृत किया । इस तरह प्रमाणिक शब्द शिल्पी, कोशकार,इतिहास तथा संस्कृति के पुरोधा के रूप में डॉ. शर्मा प्रतिष्ठित हुए । रतनपुर और मल्हार छत्तीसगढ के पुरातत्व के
संग्रहालय हैं । इन पर दो पुस्तकें आपने लिखी । मल्हार की डिडिनदाई पर पहली बार प्रमाणिक प्रकाश आपने डाला । इसी तरह छत्तीसगढ के व्रत, त्यौहार पर अरपा पाकेट बुक्स की प्रस्तुति भी उल्लेखनीय कही जा सकती है । छत्तीसगढी लोकसाहित्य पर तो इनके अनेक लेख प्रकाशित व वार्ताओं के रूप में प्रसारित होकर प्रशांशित हुए हैं । इस तरह डॉ. शर्मा छत्तीसगढ के जीवंत इन साइक्लोपीडिया हैं ।
समय-समय पर इन्हें प्रादेशिक व क्षेत्रीय पुरस्कारों व सम्मानों से अलंकृत किया गया है । इन्हें प्रदेश का सर्वोच्च साहित्य व संस्कृति सम्मान भी दिया गया है । डॉ. शर्मा तो कबीर की तरह अलमस्त और नागर्जुन की तरह फक्कड साहित्यकार हैं । इन्हें इन सबसे कोई खास सरोकार भी नहीं ।
डॉ. शर्मा लेखन व व्याख्यान दोनों में पटु है । हिन्दी में पहले भी प्राध्यापक, निबंधाकर व आलोचक के रूप में आपकी पहचान बना चुके थे । उनका प्रबंध पटल निबंध संग्रह (1969) प्रयास प्रकाशन से प्रकाशित व स्नातक स्तर पर विद्यार्थियों के लिए पठनीय प्रकाशन प्रमाणित हो चुका है । ऐसे शब्दों के जादुगर और छत्तीसगढ के माटी पुत्र की अनवरत सेवा-साधना का लाभ प्रदेश को मिल रहा है, यह हम सबके लिए गर्व और गौरव का विषय है ।
आलेख - डॉ. विनय कुमार पाठक
परिचय : डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा
माता : श्रीमती सेवती शर्मा
पिता : पंडित श्यामलाल शर्मा
जन्मतिथि एवं ग्राम: 1 मई 1928, जांजगीर
शिक्षा: पी.एच.डी. भाषा- विज्ञान (छत्तीसगढ के कृषक जीवन की शब्दावली)
वर्तमान पता: 35 ए, विद्यानगर, बिलासपुर (छत्तीसगढ)
व्यवसाय: सी.एम.डी. कालेज में 32 वर्षो तक अध्यापन
अन्य अनुभाव: एन.सी.सी. मेजर, छात्र-संघ प्रभारी प्राध्यापक बीस वर्षो तक, वि.वि. परीक्षाऍं अधीक्षक (25 वर्षो तक) प्रमुख निरिक्षक वि.वि. परीक्षाऍं, छात्र जीवन में धावक, खेलकूद कबड्डी का खिलाडी रहा, कहानी प्रतियोगिताओं में अनेक पुरस्कार प्राप्त ।
प्रकाशन/प्रसारण: आकाशवाणी से डेढ सौ से अधिक रचनाऍं प्रसारित, समाचार पत्रों में शताधिक रचनाऍं प्रकाशित एवं छत्तीसगढ परिदर्शन एवं गुडी के गोठ – धारावाहिक नवभारत में निरंतर 125 सप्ताह तक प्रकाशित ।
शोध निर्देशन : दस छात्रों को पी.एच.डी. उपाधि के लिए सफल निर्देशन ।
प्रकाशित ग्रंथ : 1. प्रबंध पाटल (निजी निबंध संकलन)
प्रथम संकलन (1955) ,द्वितीय संस्करण (1971)
2. सुसक झन कुररी सुरता ले, छत्तसीगढी कहानियों का निजी संकलन (1972)
3. तिरिया जनम झनि देय (अपनी कहानियों का संग्रह प्रथम संस्करण) एम.ए. हिन्दी कक्षा में पाठ्य पुस्तक (1990) पाठ्य पुस्तक दो संस्करण द्वितीय संस्करण (2002)
4. छत्तीसगढ का इतिहास एवं परंपरा प्रथम संस्करण । (म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा वागीश्वरी पुरस्कार से सम्मानित)
5. नमस्तेअस्तु महामाये (1997)
6. गुडी के गोठ (पहला भाग)
7. डिडिनेश्वरी पार्वती महिमा (2000)
8. छत्तीसगढ के तीज-त्यौहार (2000)
9. छत्तीसगढ के लोकोक्ति मुहावरे (2001)
10. पं. रमाकांत मिश्र अभिनंदन ग्रंथ (2001)
11. छत्तीसगढ हिन्दी शब्द कोश (2001)
12. सुरूज साखी हे (ललित निबंध)
13. ज्योति धाम रतनपुर – मां महामाया (2003)
14. छत्तीसगढ की खेती किसानी (2003)
14.
संपादित ग्रंथ: : पाठ्य पुस्तकें – एम.ए. हिन्दी कक्षा के लिए –
1. छत्तीसगढी काव्य संकलन (1988)
2. हिन्दी कहानी संकलन (1977)
3. रेखाचित्र तथा संस्मरण (1978)
(बी.ए. कक्षा के लिए) -
4. रविशंकर वि.वि. घासीदास वि.वि. एम.ए. छत्तीसगढ में पाठय रचनाऍं –
अभिनंदन ग्रंथ: भारतेंदु साहित्य समिति द्वारा अभिनंदित अभिनंदन गंथ.
वर्ष का ग्रंथ : छत्तीसगढी हिन्दी शब्दकोश का संपादन । बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा विद्याकर कवि सम्मान (2003) ।
सम्मान : मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा वागीश्वरी पुरस्कार, महंत बिसाहू दास स्मृति द्वारा छत्तीसगढ अस्मिता पुरस्कार (गुडी के गोठ) अखिल भारतीय लोक कथा पुरस्कार, विलासा कला मंच द्वारा बिलासा साहित्य सम्मान, तथा भारतेंदु साहित्य समिति बिलासपुर, छत्तीसगढ साहित्य समिति, रायपुर, भिलाई, भाटापारा, समन्वय, अमृत लाल महोत्सव समिति, गुरू घासीदास वि.वि. बिलासपुर, बालको लोक कला महोत्सव समिति द्वारा सम्मानित छत्तीसगढ लोक कला उन्नयन मंच भाटापारा द्वारा छत्तीसगढ निबंध प्रतियोगिता में विशेष सम्मान पुरस्कार आदि । बिलासा कला मंच द्वारा वयोवृद्ध सृजनशील साहित्यकार सम्मान निधि प्रदत्त ।
रोटरी क्लब, बिलासपुर वेस्ट 2002 का प्रशस्ति पत्र । बाबू रेवाराम साहित्य समिति रतनपुर छ.ग. अभिनंदन पत्र, वशिष्ठ सम्मान 1998 गुरू घासीदास विश्व विद्यालय छात्र संघर्ष समिति, बिलासपुर द्वारा सम्मान, संरक्षक छत्तीसगढ हिन्दी साहित्य परिषद (छत्तीसगढ प्रदेश)
छत्तीसगढ शासन द्वारा संस्कृत भाषा परिषद् छत्तीसगढी भाषा परिषद के मनोनीत सदस्य संस्कृति विभाग की पत्रिका बिहनिया के परामर्शक ।
रविशंकर वि.वि. बख्शी शोध-पीठ द्वारा साधना सम्मान (2005)
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सृजनशील साहित्य साधक सम्मान 2005
संस्कृति विभाग छत्तीसगढ शासन द्वारा पं. सुंदरलाल शर्मा सम्मान 2005.
डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा
विद्या नगर, फोन नं. – 223024
बिलासपुर (छत्तीसगढी
हिंदी लेखन और समीक्षक के बतौर प्रदेशभर में पहचान बनाने और अपनी कविता, कहानी से छत्तीसगढ़ी को देशभर में पहचान दिलाने वाले साहित्यकार डॉ. पालेश्वर शर्मा का दिनांक 02/01/2016, (शनिवार) की शाम उनके विद्याउपनगर स्थित निवास पर निधन हो गया। वे 86 वर्ष के थे।
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